(भाग:321) हल्का फीका बादामी पीलापन रंग वाला और गाढा अमृत तुल्य होता है कपिला धेनु का दुग्ध और घी
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
कपिला धेनु की नस्ल को गौंटी और गवती के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल की गाय अधिकतर सफेद रंग की होती हैं, लेकिन इन्हें काले, ब्राउन या हल्के लाल रंग में भी देखा जा सकता है। कपिला गाय की नस्ल मध्यम आकार की होती हैं और इनका चेहरा सफेद एवं इनकी बोंहे भी सफेद होती हैं।
कपिला धेनु गाय के दूध में केरोटीन नामक प्रोटीन पीलेपन का जिम्मेदार है।दूसरे गाय के hump में ग्रन्थि धूप से विटामिन डी लेकर दूध की शक्ति व कैल्सियम को बढ़ाती है।इसलिये कहते है।गाय का खुर जितना तपता है उतना वो अच्छा दूध देती है
दूध का इतिहास 5000 से 8000 ईसा पूर्व तक पुराना है। पुराने बरतनों पर बची रह गई दूध की खुरचन इतिहासकारों को इतिहास में इतना वापस लौटने की वजह देती है। दूध पर जितना इतिहासकारों ने लिखा है, उससे कहीं ज़्यादा लिखा है वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और वैद्यों ने। बात भारत की करें तो यहां दूध की महिमा उपनिषदों में तो मिलती ही है, चरक संहिता, अष्टांगहृदय सूत्रस्थान, भावप्रकाशनिघंटु, सुषेणनिघंटु, कैयदेवनिघंटु और राजनिघंटु जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी खूब लिखा गया है। बड़ी बात यह कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में एक दो नहीं, बल्कि लगभग आधा दर्जन प्राणियों से मिलने वाले दूध के फायदे-नुकसान भी दिए हैं। इस एपिसोड में हम इन ग्रंथों के हिसाब से गाय के दूध से होने वाले फायदे-नुकसान तो जानेंगे ही, साथ ही इन ग्रंथों में कही गई बातों का आज के समय में कितना अर्थ बचा है, यह भी डॉक्टरों से जानेंगे।
16वीं सदी में वाराणसी में भाव मिश्र हुए, जिन्हें प्राचीन भारतीय औषधि-शास्त्र का अंतिम आचार्य माना जाता है। भावप्रकाशनिघंटु उन्हीं का लिखा हुआ आयुर्वेद का ग्रंथ है। अपने ग्रंथ में वह दूध के सामान्य गुण के बारे में बताते हैं कि दूध सबके लिए शीतल तो होता ही है, जल्द से जल्द शुक्राणु बढ़ाने में भी मददगार है। इससे जीवनी शक्ति, बल और मेधा बढ़ती है। जो लोग दूध पीते हैं, उनकी जवानी ज़्यादा दिनों तक बनी रहती है। इससे आयु बढ़ती है। यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने वाला रसायन है। उल्टी दस्त में भी यह काम आता है और अगर किसी को सूजन, बेहोशी, चक्कर, पीलिया, एसिडिटी और हार्ट की प्रॉब्लम है, तो उनमें भी यह फायदा करता है। इसके साथ ही, बवासीर, रक्तपित्त, अतिसार, योनिरोग में भी फायदा करता है दूध।
वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार के रिटायर्ड आयुर्वेदाचार्य डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि दूध केवल स्तनधारियों में ही होता है, जो उनके बच्चे पीते हैं। जब तक बच्चा अपना चारा या खाना नहीं खा सकता, तब तक वह दूध पीता है। सिर्फ इंसान ही है, जो बचपना जाने के बाद भी दूध पीता रहता है, बाकी और किसी स्तनधारी का बच्चा भोजन करने लायक होने के बाद दूध नहीं पीता। सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि दूध एक पूरक आहार है, ना कि पूरा आहार। आयुर्वेद में आहार आधी चिकित्सा के तौर पर यूज होता है। आहार नियंत्रण से इसमें बहुत-सी बीमारियों का इलाज किया जाता है, जिसमें से दूध एक है।
यूपी हेल्थ के सीनियर डॉक्टर संजय तेवतिया बताते हैं कि 16-17 साल तक तो बच्चों को दूध ज़रूर पीना चाहिए, क्योंकि उसमें ग्रोथ हार्मोन पाया जाता है। लेकिन, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, लिपिड प्रोफाइल बढ़ा हुआ हो, तो इन मामलों में फैट फ्री दूध ही लें, वो भी थोड़ा, और ना लें तो ज़्यादा अच्छा है।
इसके बाद आते हैं दूध के ख़ास गुण। यह गुण अष्टांगहृदय नाम के ग्रंथ में मिलते हैं, जिसे वाग्भट ने लिखा था। सन 672-695 में भारत आने वाले चीनी यात्री इत्सिंग ने लिखा है कि उनके आने से भी सौ साल पहले वाग्भट ने ऐसी संहिता बनाई, जिसमें आयुर्वेद के आठों अंगों का समावेश हो गया। दूध के ख़ास गुणों के बारे में वाग्भट बताते हैं कि गाय का दूध पाचक और काफी स्वादिष्ट होता है। पित्त और वात रोग का नाश करता है। इससे देह की कांति बढ़ती है। प्रज्ञा, बुद्धि, मेधा और अंग मजबूत होते हैं। वीर्य बढ़ता है। यह ओज और सप्त धातुओं को बढ़ाता है। गाय का दूध ख़ासतौर से जीवनी शक्ति बढ़ाने वाला है। यह घाव और चोट-मोच में भी फायदा करता है। इसे पीने से महिलाओं का दूध भी बढ़ता है, लेकिन इस तथ्य पर डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि यह साफ़ होना चाहिए कि उन्हीं महिलाओं का दूध बढ़ता है, जिनमें ऑलरेडी दूध उतर रखा है। इन दिनों सिजेरियन डिलिवरी होती है, तो ढेरों महिलाओं को दूध ही नहीं उतरता। ऐसी हालत में दूध बिलकुल काम नहीं करता है।
आगे अष्टांगहृदय में दिया है कि यह भ्रम, मद, खांसी, दमा वगैरह को दूर करता है और पुराने बुखार, पेशाब की दिक्कतों और रक्तपित्त को नष्ट करता है। लेकिन, यह सामान्य रंग की गाय के दूध के गुण हैं। अलग-अलग रंग की गाय के दूध के वाग्भट ने अलग-अलग गुण बताए हैं। वाग्भट के मुताबिक, सफे़द गायों का दूध पित्त की समस्या दूर करता है। काली गाय का दूध वात की समस्या दूर करता है, तो लाल रंग वाली गायों का दूध कफनाशक होता है। कपिल वर्ण वाली गाय का दूध त्रिदोष नाशक होता है। रंग-बिरंगी या मिले जुले रंगों वाली गायों का दूध वात और पित्त की समस्या दूर करता है। जो गायें चितकबरी होती हैं, उनका दूध इतना ठंडा होता है कि उसे पीने से लोगों को जुकाम भी हो सकता है। इस पर डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि गायों के रंग का प्रैक्टिकली अब कोई महत्व नहीं रह गया। वहीं, डायटीशियन कामिनी सिन्हा कहती हैं कि आज के समय में ऐसी चीज़ों के अर्थ बदल गए हैं। वजह यह है कि अधिकतर जगहों पर डेरी का ही दूध मिलता है, तो आप यह नहीं तय कर सकते कि गाय किस रंग की है।
गाय के दूध के बाकी गुणों के बारे में अपनी किताब भोजनकुतूहलम में रघुनाथसूरि कहते हैं कि जिस गाय को पहली बार बच्चा होता है, उसका दूध वात नाशक होता है। प्रौढ़ गाय के दूध से पित्त का इलाज होता है, तो बूढ़ी गाय के दूध से कफ का। और जिस गाय का बछड़ा बड़ा हो गया हो- यानी जिसे बच्चा पैदा किए काफी दिन बीत चुके हों, उसका दूध तो रसायन होता है। बच्चा होने के तुरंत बाद गाय के दूध से जो खीस बनती है, वह विभेदी और मधुर होती है और इससे जठराग्नि शांत होती है। लेकिन, इसी बारे में अपने ग्रंथ राजनिघंटु में नरहरि पंडित कहते हैं कि पहली बार प्रेग्नेंट हुई गाय के दूध में कोई गुण नहीं होता। जो गायें प्रौढ़ होती हैं, उनके दूध को सायन कहा गया है, यानी श्रेष्ठ। जो गाय बूढ़ी हो जाती हैं, उनका दूध भी दुबला हो जाता है।
इस बारे में डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि यह बात तो सही है कि गायों की नस्ल और उनके खानपान का असर उनके दूध पर पड़ता है। डायटीशियन कामिनी सिन्हा कहती हैं कि इन दिनों तो गायें कूड़ा-कचरा ज़्यादा खाती हैं, पॉलिथीन खाती हैं या फिर ज़्यादा दूध के लिए उनको इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। इसलिए अब दूध की क्वालिटी के साथ समझौता हो चुका है। ऐसे में जवान, प्रौढ़ और बूढ़ी गायों के दूध का अब कोई ज़्यादा मतलब नहीं रह गया है।
दूध तो घर में आ गया, अब उसे पकाने की शास्त्रीय विधि क्या हो?
कश्मीर के राजसी खानदान के विद्वान और आयुर्वेद के महाज्ञाता नरहरि पंडित ने अपने ग्रंथ राजनिघंटु में इसका तरीका बताया है। वह कहते हैं कि कच्चा दूध रसवहा शिराओं में रुकावट पैदा करने वाला और गुरु होता है। इसे ठीक से पकाएं तो यह भारी बन जाता है। बहुत अधिक पकाने पर यह गरिष्ठ हो जाता है। नरहरि पंडित की सलाह है कि दूध में चौथा हिस्सा पानी डालकर इसे उबालना चाहिए। ऐसा दूध सभी रोगों को नष्ट करने वाला, बलकारक, पुष्टिकारक और वीर्य बढ़ाने वाला होता है। वहीं, बाकी विद्वान कहते हैं कि दूध में समान भाग पानी मिलाकर तब तक पकाएं, जब तक पानी उसमें से उड़ ना जाए। इस पर डॉ. कटियार कहते हैं कि ग्रंथों में दी गई यह बात उन्हें हजम नहीं होती। इसकी वजह यह है कि दूध में तो पहले से तीन चौथाई से ज़्यादा पानी होता है। भारी दूध तो सिर्फ भैंस का होता है, क्योंकि उसके दूध में वसा ज़्यादा होती है। गाय का दूध हल्का होता है, तो उसमें पानी मिलाने की ज़रूरत नहीं होती।
अब सवाल उठता है कि दूध को कब पिएं कि उसका अधिक से अधिक फायदा मिल सके?
नरहरि पंडित कहते हैं कि दोपहर बारह बजे से पहले अगर दूध पीते हैं तो यह जठराग्नि बढ़ा देता है। दोपहर में अगर दूध पिएं तो इससे बल बढ़ता है, चेहरे पर लाली आती है। बचपन में पिया दूध जठराग्नि बढ़ाता है, जवानी में पिया दूध बल बढ़ाता है, तो बुढ़ापे में पिया दूध वीर्य बढ़ाता है। रात में अगर कोई दूध पीता है, तो ढेरों दोष जाते रहते हैं।
नरहरि पंडित कहते हैं कि उबालने के बाद अगर दूध ठंडा करके पिया जाए तो पित्त की समस्याएं जाती रहती हैं। वहीं, गर्म दूध कफ की समस्या निपटाता है। बिना पकाया हुआ ठंडा दूध त्रिदोषों को बढ़ा देता है। कच्चा और शीतल दूध त्रिदोष-वर्धक होता है, लेकिन धार से तुरंत निकले दूध को अमृत कहा गया है। वह कहते हैं कि दूध को बिना उबाले कभी नहीं पीना चाहिए। इसी प्रकार दूध को कभी भी नमक के साथ नहीं लेना चाहिए। आटे से बनने वाली चीज़ों, अचार, कसैली चीज़ों, मूंग, तोरी, कंद और फलों के साथ दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इन सबके साथ दूध का मेल दोषकारक है।
वैसे डॉ. कटियार कहते हैं कि एक बात बिलकुल साफ़ होनी चाहिए कि दूध जिस भी स्तनधारी का है, वह उसी के बच्चे के लिए ही है और सबसे ज़्यादा फायदा भी उसी को करता है। डॉ. संजय तेवतिया कहते हैं कि दूध संपूर्ण आहार नहीं है और ज़रूरी नहीं कि हर किसी को यह फायदा ही करे। आयुर्वेद में बल, वीर्य, त्रिदोष, वात, चोट मोच, भ्रम या जुकाम जैसी चीज़ें जिस तरह से दूध से जुड़ी बताई हैं, इससे डॉ. तेवतिया सरासर इनकार करते हैं और कहते हैं कि मेडिकल साइंस में ऐसी कोई चीज़ नहीं मानी जाती।
कपिला धेनू गाय अलग-अलग नस्ल की होती हैं।हर गाय की अपनी एक खासियत होती है। जिस गाय के बारे में आज हम बात कर रहे हैं वह गाय है कपिला धेनू कपिला गाय वह होती है जो मालिक के पास उसके घर में खूंटे के साथ बंधी रहती है। जो चारा मालिक उसे डालता है वही चारा वह खाती है।
गाय की बछिया कैसे तैयार करें संपूर्ण जानकारी पढ़ें
कपिला गाय की बछिया को अगर अच्छे तरीके से तैयार किया जाए तब इससे भविष्य में आपकी डेयरी में बिना ज़्यादा लागत के एक दुधारू पशु तैयार हो जाएगी और उसका दूध बेचकर या फिर पशु को ही बेचकर अच्छी कमाई भी कर सकते हैं। बछिया को तैयार करने के लिए कुछ ज़रूरी बातों पर ध्यान देना पड़ता है। इसमें सबसे पहला है बछिया का उचित तरीके से पोषण करना। बछिया जन्म ले तब उसे उसकी मां का दूध यानी खीस पिलाना चाहिए। जन्म के पहले 6 घंटों में 2.5 या 3 लीटर या फिर बछड़ी के भार के 10 प्रतिशत के बराबर देना चाहिए। खीस देने से बछड़ी में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो जाती है। बछिया को उचित पोषण देने के लिए आहार के साथ ही साफ पानी भी उचित मात्रा में देना चाहिए। पोषण के अलावा बछिया की उचित देखभाल भी करनी चाहिए उसके रहने की जगह के तापमान का ध्यान रखना चाहिए। इन सभी चीज़ों के बाद बछिया को कोई बीमारी ना हो और वह किसी संक्रमण की चपेट में ना आए इसके लिए समय-समय पर टीकाकरण भी कराते रहें।
अंतर्वस्तु :
1. कपिला बाल बछिया गाय की देखभाल
2. कपिला बाल बछिया गाय को हीट में कैसे लाएं
3.कपिला गाय की बछिया कितने दिन में गाभिन होती है
4.कपिला बाल बछिया गाय का पोषण
5.कपिला बाल गिर गाय की बछिया
6. आहार देते समय इन बातों का रखें ध्यान, बरतें सावधानी
1.कपिला बाल बछिया की देखभाल
कपिला बाल बछिया के जन्म के शुरुआती कुछ दिनों में विशेष देखभाल की ज़रूरत होती है। जन्म के ठीक बाद बछड़ी के नाक और मुंह से कफ और श्लेष्मा जैसी चीज़ों को अच्छे से साफ करना चाहिए। इसके बाद बछिया को उसकी मां का दूध उचित मात्रा में पिलाना चाहिए। जन्म के एक हफ्ते के बाद उसे दाना व साफ-सुथरा हरा चारा भी धीरे-धीरे खिलाना चाहिए। वहीं उसे साफ पानी भी उचित मात्रा में देना चाहिए। उसके रहने के स्थान पर सुरक्षा की उचित व्यवस्था करनी चाहिए क्योंकि शुरुआत में बछिया के ऊपर कुत्ते या अन्य जानवरों का हमला करने का डर बना रहता है। बछिया में अगर किसी तरह की बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हों या फिर अगर वह दूध ना पिए और फुर्तीलापन ना दिखाई दे तब किसी पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
2.कपिला बाल बछिया को हीट में कैसे लाएं
बाल बछिया को कैसे तैयार करें, बछिया को तैयार करने के लिए उसके पोषण, रहने के स्थान और टीकाकरण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बछिया को अगर अच्छा पोषण मिलेगा तब वह समय पर हीट में भी आ जाएगी। एक बछिया की हीट में आने की उम्र 15 से 24 महीने के बीच होती है। वहीं इस दौरान कुछ उपायों को अपनाकर आप उसे जल्दी हीट में ला सकते हैं जैसे कि थोड़ी मात्रा में गुड़ खिलाकर, बिनौला देकर, सरसों का तेल, तिल और गुड़ का मिश्रण देकर भी बछिया को हीट में ला सकते हैं।
3.कपिला गाय बाल बछिया कितने दिन में गाभिन होती है
गाय की बछिया कितने दिन में गाभिन होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस नस्ल की है और उसको पोषण कैसा मिल रहा है, वह किस प्रकार के वातावरण में रहती है इसके अलावा उसे किसी तरह की गंभीर बीमारी तो नहीं है। आमतौर पर गाय की बछिया की गाभिन होने की उम्र 15 से 24 महीने के बीच होती है।
4.कपिला बाल बछिया का पोषण
कपिला बाल बछिया के पोषण की उसके स्वास्थ्य में सबसे अहम भूमिका होती है। बछिया के पोषण में सबसे ज़रूरी उसकी मां का दूध होता है। बछिया के जन्म के पहले महीने में उसे प्राथमिक आहार के रूप में उसकी मां दूध भरपूर मात्रा में देना चाहिए। इसके बाद हरा चारा और दाना भी खिलाना चाहिए। अगर बछिया इसके बाद भी कमजोर दिखाई दे रही हो तब किसी पशु चिकित्सक से सलाह लेकर उसके हिसाब से पोषण सामग्री तैयार करके खिलाना चाहिए।
5.कपिला गिर गाय की बछिया
कपिला गिर गाय की बछिया को इसके रंग से पहचान सकते हैं ज़्यादातर यह लाल रंग की होती है। शरीर के ऊपर भूरे लाल रंग के या चॉकलेटी धब्बे भी होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि गिर गाय के दूध में सोने के गुण होते हैं ऐसे में अगर गिर की बछिया को आपने तैयार कर लिया तब इसके दूध से काफी फायदा मिल सकता है। गिर गाय एक ब्यात में 300 से ज़्यादा दिन तक दूध दे सकती है। इस नस्ल की गाय 30 से 40 लीटर तक दूध एक दिन में देने की क्षमता रखती है। वहीं इसके 1 किलो घी की बाज़ार में 2 हज़ार रुपये से लेकर 4 हज़ार रुपये तक की कीमत होती है।
साहिवाल गाय की बछिया :
साहिवाल बछिया का रंग आमतौर पर लाल व भूरा होता है। इसका सिर चौड़ा होता है। साहिवाल गाय की बछिया को उचित तरीके से तैयार करने पर कई फायदे मिलते हैं। इसके दूध की बाज़ार में अच्छी मांग रहती है। साहिवाल गाय के दूध में कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम उचित मात्रा में पाया जाता है जो कि हार्ट के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है।
जर्सी गाय की बाल बछिया :
जर्सी गाय की बछिया का पालन नस्ल सुधारने के लिए किया जाता है। इसके रंग और बनावट से इसकी पहचान की जा सकती है। इसका रंग हल्का पीला, हल्का लाल या बादामी होता है और शरीर पर सफेद रंग के चित्ते भी मौजूद होते हैं। इसकी बछिया को तैयार कर आप मालामाल हो सकते हैं क्योंकि जर्सी गाय सबसे ज़्यादा और लंबे समय तक दूध देने वाली गाय की नस्लों में से है। इस नस्ल की बछिया 2 साल की उम्र में गाभिन हो सकती है
डेयरी उद्योग से जुड़े हुए बहुत से पशुपालक भी हरधेनु गाय के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते। आपको बता दें कि ये नस्ल अपनी अधिक दुधारू क्षमता से दुनिया को चौका रही है। यूं तो बहुत कम लोग हरधेनु गाय के बारे में कुछ जानते हैं। लेकिन जो लोग इस बारे में जानते हैं वो इसे अच्छी कीमत पर खरीदने को तैयार रहते हैं और हो भी क्यों न ये गाय एक दिन में 50 लीटर से ज्यादा दूध देने की क्षमता रखती है। आज हम अपने इस लेख के अंदर हरधेनु गाय की कीमत से लेकर हरधेनु गाय कितना दूध देती है और हरधेनु गाय की नस्ल कहां पाई जाती है, ये सारी जानकारियां देंगे। कुल मिलाकर अगर आप हरधेनु गाय से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो इस लेख पर अंत तक बने रहें।
अंतर्वस्तु :
1. कपिला हरधेनु गाय नस्ल की उत्पत्ति
2. कपिला हरधेनु गाय की पहचान कैसे करें?
3. कपिला हरधेनु गाय की खासियत क्या है?
4.कपिला हरधेनु गाय को खाने में क्या देना चाहिए?
5.कपिला हरधेनु गाय के दूध से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
6.कपिला हरधेनु गाय कहां से खरीदें और कहां बेचें?
7.कपिला लाल गाय की कीमत कैसे तय करें?
1.कपिला हरधेनु गाय नस्ल की उत्पत्ति
कपिला हरधेनु गाय की नस्ल को हरियाणा के लाला लाजपत राय पशु – चिकित्सा एवं पशु विज्ञान ( लुवास) के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है। आपको बता दें कि हरधेनु गाय एचएफ, देसी हरियाणवी और साहिवाल गाय से तैयार हुई है। हरधेनु गाय के अंदर 62.5 प्रतिशत अंश एचएफ गाय के हैं। वहीं बचे हुए 37.5 प्रतिशत गुण साहिवाल और देसी हरियाणवी गाय के हैं।
2.कपिला हरधेनु गाय की पहचान कैसे करें?
शुद्ध हरधेनु गाय की पहचान उनके रंग और शारीरिक बनावट के जरिए हो सकती है। हरधेनु गाय की नस्ल का रंग सफेद होता है और उसके शरीर पर काले रंग के धब्बे होते हैं। ये कद में ऊंची होती हैं और इनका हम्प भी नहीं होता। इसके अलावा हरधेनु गाय के सींग भी नहीं होते। इस नस्ल की गाय के कान बाहर की ओर सीधे होते हैं और इनकी पूंछ घुटनों से नीचें तक जाती है।
3.कपिला हरधेनु गाय की खासियत क्या है?
कपिला हरधेनु गाय एक क्रॉस ब्रीड नस्ल है जिसे तीनों गायों के गुणों के माध्यम से तैयार किया है। इस गाय के अंदर 67.5 प्रतिशत एचएफ गाय के गुण है। वहीं 37.5 प्रतिशत गुण साहिवाल और देसी हरियाणवी गाय के हैं। ये गाय देसी गायों के मुकाबले अधिक दूध दे सकती है। इसके अलावा हरधेनु गाय की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी होती है और ये आसानी से बीमार नहीं पड़ती। हरधेनु गाय 1 दिन में 50 से 55 लीटर तक दूध दे सकती है। इसके साथ ही ये एक बार ब्याने के बाद 10 महीने तक दूध दे सकती है।
4. कपिला हरधेनु गाय को खाने में क्या देना चाहिए?
कपिला हरधेनु नस्ल अधिक दूध देने वाली गाय है, ऐसे में इस गाय की आहार की मात्रा गाय की स्थिति पर निर्भर करती है। अगर हरधेनु गाय दूध दे रही है तो ऐसे में उसे जितना आहार खिलाया जाएगा उतना ही वह दूध देने लगेगी। वहीं अगर हरधेनु गाय गाभिन है तो उसके आहार में कुछ ऐसी चीज़ों को शामिल करना चाहिए जिसमें कैल्शियम, पाचक प्रोटीन, लवण पदार्थ मौजूद हों। वहीं एक साधारण हरधेनु गाय को 20 से 25 किलो हरा चारा खिलाना चाहिए। इसके अलावा 3 से 5 किलो सूखा चारा गाय को देना चाहिए। इसके साथ ही हरधेनु गाय को 40 से 70 लीटर तक पानी पिलाना चाहिए।
5.कपिला हरधेनु गाय के दूध से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
कपिला हरधेनु गाय के दूध और उसकी मात्रा को लेकर कई सवालों पशुपालकों के बीच प्रचलित हैं, जैसे हरधेनु गाय 1 दिन में कितना लीटर दूध देती है या हरधेनु गाय का दूध महंगा क्यों होता है आदि। ऐसे ही प्रचलित सवालों के जवाब की जानकारी हम नीचे दे रहे हैं।दूध में वसा और एसएनएफ
कपिला हरधेनु गाय 1 दिन में 50 से 55 लीटर तक दूध दे सकती है।
हरधेनु गाय का दूध महंगा नहीं होता। बल्कि इसका दूध सामान्य दाम पर ही आपको मिलता है।
हरधेनु गाय के दूध में वसा और एसएनएफ अधिक मात्रा में नहीं होता।
हरधेनु गाय का दूध देसी गायों के मुकाबले पतला होता है।
कपिला हरधेनु गाय के दूध में ए 1 प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है।
हरधेनु गाय के दूध का रंग सफेद होता है, जबकि देसी गायों के दूध का रंग सुनहरा होता है।
6. हरधेनु गाय कहां से खरीदें और कहां बेचें?
कपिला हरधेनु गाय की नस्ल क्रॉस ब्रीड की नस्ल है और इनकी संख्या इतनी ज्यादा अभी नहीं हुई है। ऐसे हरियाणा के लुवास में इस नस्ल के सांड का सीमेन खरीदा जा सकता है। वहीं अगर आप हरधेनु गाय ऑनलाइन खरीदना चाहते हैं तो आप Animall ऐप को डाउनलोड कर सकते हैं। यहां से आप हरधेनु गाय आसानी से खरीद सकते हैं।
सबसे सस्ती हरधेनु गाय कहां से खरीदें? :
हरधेनु गाय को सबसे सस्ती कीमत पर खरीदने के लिए भी आप Animall ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं। आपको बता दें कि हरधेनु गाय और कई अन्य बिकाऊ गाय भैंसों की जानकारी ऐप पर अपलोड होती है। जिनमें से आप गाय का चुनाव करके उसके मालिक से सीधे बात कर सकते हैं और मोल भाव भी करा सकते हैं।बिकाऊ गाय भैंसों की जानकारी
कपिला हरधेनु गाय खरदीने से पहले सावधानी :
हरधेनु गाय खरीदने से पहले उसकी शुद्धता और उसकी शारीरिक जांच जरूर करें। अगर गाय के थन में किसी तरह की दिक्कत है, तो उसे न खरीदें। वहीं अगर गाय के दूध में छर्रे, या दूध फटा हुआ आ रहा हो तो भी गाय खरीदने की गलती न करें। इसके अलावा हरधेनु गाय के दूध की मात्रा, उम्र और ब्यात की जांच भी सही तरह से करने के बाद गाय खरीदें।उम्र
7.कपिला हरधेनु गाय की कीमत कैसे तय करें?
कपिला हरधेनु गाय रोजाना 50 से 55 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है और इनकी कीमत भी दूध और ब्यात के आधार पर ही की जा सकती है। इसके अलावा गाय के साथ बछड़ी होने पर उसकी कीमत और अधिक हो सकती है। वहीं हरधेनु गाय की औसत की कीमत की बात करें तो बता दें कि ये गाय आपको 1.5 से 2 लाख रुपए तक में मिल सकती है