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(भाग:325) किसानो को आर्थिक संकट से उबार सकती है कपिला धेनु गाय

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(भाग:325) किसानो को आर्थिक संकट से उबार सकती है कपिला धेनु गाय

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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पशुपालन किसानों को संकट से उबार सकती है। कपिला धेनु गिर नस्ल की स्वर्ण कपिला गायें कमाऊ पूत की तरह सहारा भी बन सकती हैं। इस नस्ल की गाय के दूध में सात प्रतिशत तक फैट (क्रीम) होता है। दूध तो सेहतमंद है ही, घी भी उम्दा माना जाता है। डायबिटीज और हाइ ब्लड प्रेशर आदि बीमारियों से पीडि़त मरीजों के लिए इन गायों का दूध टॉनिक समान है। जर्सी के मुकाबले इनके दूध की दो से तीन गुना कीमत (प्रति लीटर 70 रुपए) मिलती है। गिर नस्ल की गाय का घी 2000 रुपए किलो से कम नहीं बिकता। गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ये गायें बहुतायत में मिलती हैं। ये ज्यादातर कत्थई-लाल और हल्के भूरे रंग की होती हैं। इन्हें काठियावाड़ी, भोडली, गुराती और देवमणि नाम से भी जाना जाता है।

 

ये हमें पाल रहीं

अंबेगांव के धीरज पाटिल पिछले साल राजस्थान की पथमेड़ा गौशाला से गिर नस्ल की पांच गायें लाए। उन्होंने बताया कि देसी नस्ल होने के कारण देखभाल की बहुत जरूरत नहीं पड़ती। आसानी से किसी भी आबोहवा में रह लेती हैं। सामान्य चारा देने पर भी औसतन अच्छी दूध देती हैं। एक गाय औसतन 20 लीटर दूध हर दिन देती है। पाटिल ने कहा, हम इन गायों की सेवा कर रहे हैं। हकीकत यह कि हम इन्हें नहीं, ये हमारे परिवार को पाल रही हैं।

 

दूध-मक्खन की मांग

धीरज की सफलता से पास-पड़ोस के किसान भी प्रेरणा ले रहे। गांव के ही दो दर्जन से ज्यादा किसान 100 से ज्यादा गायें ला चुके हैं। पशुपालक किशोर जाधव के पास सात गाय हैं। इनमें चार दूध दे रहीं जबकि तीन गर्भवती हैं। जाधव ने कहा कोरोना काल में इनके दूध-मक्खन की मांग बढ़ गई है। सुबह-शाम घर से ही दूध बिक जाता है। जर्सी के मुकाबले इनके दूध की ज्यादा कीमत मिलती है। बच्चों की पढ़ाई और परिवार के गुजारे की कमाई हो जाती है। साल भर में हम डेढ़ लाख कर्ज भी उतार चुके हैं।

 

ज्यादा तामझाम नहीं

गिर नस्ल की गाय को पालने के लिए ज्यादा तामझाम की जरूरत नहीं पड़ती। बारिश, धूप, ठंड और कीड़े-मकोड़ों, मच्छरों से बचाव के लिए शेड होना चाहिए। शेड में साफ-सफाई और पानी की सुविधा होनी चाहिए। ध्यान रखें इन्हें खुली हवा मिलती रहे। गोबर-मूत्र के निकासी व्यवस्था होनी चाहिए। गर्भवती गाय को चारा खिलाने में कमी नहीं करनी चाहिए। फलीदार चारे के साथ तूड़ी मिलानी चाहिए ताकि इन्हें अफारा या बदहजमी ना हो।

 

सरकार की पहल

केंद्र और राज्य सरकार पशु पालन को प्रोत्साहन देती हैं। चालू साल के लिए केंद्र सरकार ने नौ हजार करोड़ का बजट रखा है। इसके तहत किसानों को बिना गारंटी बैंकों से कर्ज मिलता है। पशु किसान क्रेडिट कार्ड से गायें खरीद सकते हैं। सरकारी सब्सिडी मिलती है। साथ ही कर्ज पर ब्याज दर कम होती है। गिर नस्ल की एक गाय एक लाख से पांच लाख रुपए तक में मिलती है। एक बार ब्यांत के बाद गिर गायें 1500 से 1700 लीटर दूध देती हैं।

 

कपिला गाय की कई खूबियां

स्वर्ण कपिला गाय सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। विदेशी नस्ल की गायों (जर्सी) की तुलना में गिर गाय का दूध सुपाच्य और सेहतमंद होता है। इसके साढ़े तीन लीटर ए-2 दूध में आठ ग्राम प्रोटीन होता है। इसमें मिलने वाला ए-1 कैसिइन प्रोटीन स्वास्थ्य के लिए विशेष गुणकारी है। इनका जीवन काल 12 से 15 वर्षों का होता है। इस दौरान एक गिर गाय छह से 12 बार बच्चे दे सकती है।

 

आयुर्वेद में दूध के बारे में क्या लिखा है?

क्या हर तरह का दूध एक जैसा फायदेमंद होता है?

दूध पकाने की शास्त्रीय विधि क्या लिखी है?

दूध को कब पिएं

इतिहासकारों में इस बात को लेकर बहस हो सकती है कि इंसान ने दूध पीना तभी सीख लिया था, जब वह पूरी तरह से असभ्य था या फिर उसने सभ्य होने के बाद दूध पीना सीखा। लेकिन, इस बात पर कोई बहस नहीं हो सकती कि दूध बेहद फायदेमंद होता है इंसानों के लिए।

यह भी सुनें या पढ़ें: उस दौर में दूध पर था पुलिस का पहरा

 

कपिला गाय के दूध का इतिहास 19 अरब ईसा पूर्व तक पुराना है। पुराने बरतनों पर बची रह गई दूध की खुरचन इतिहासकारों को इतिहास में इतना वापस लौटने की वजह देती है। दूध पर जितना इतिहासकारों ने लिखा है, उससे कहीं ज़्यादा लिखा है वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और वैद्यों ने। बात भारत की करें तो यहां दूध की महिमा उपनिषदों में तो मिलती ही है, चरक संहिता, अष्टांगहृदय सूत्रस्थान, भावप्रकाशनिघंटु, सुषेणनिघंटु, कैयदेवनिघंटु और राजनिघंटु जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी खूब लिखा गया है। बड़ी बात यह कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में एक दो नहीं, बल्कि लगभग आधा दर्जन प्राणियों से मिलने वाले दूध के फायदे-नुकसान भी दिए हैं। इस एपिसोड में हम इन ग्रंथों के हिसाब से गाय के दूध से होने वाले फायदे-नुकसान तो जानेंगे ही, साथ ही इन ग्रंथों में कही गई बातों का आज के समय में कितना अर्थ बचा है, यह भी डॉक्टरों से जानेंगे।

 

16वीं सदी में वाराणसी में भाव मिश्र हुए, जिन्हें प्राचीन भारतीय औषधि-शास्त्र का अंतिम आचार्य माना जाता है। भावप्रकाशनिघंटु उन्हीं का लिखा हुआ आयुर्वेद का ग्रंथ है। अपने ग्रंथ में वह दूध के सामान्य गुण के बारे में बताते हैं कि दूध सबके लिए शीतल तो होता ही है, जल्द से जल्द शुक्राणु बढ़ाने में भी मददगार है। इससे जीवनी शक्ति, बल और मेधा बढ़ती है। जो लोग दूध पीते हैं, उनकी जवानी ज़्यादा दिनों तक बनी रहती है। इससे आयु बढ़ती है। यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने वाला रसायन है। उल्टी दस्त में भी यह काम आता है और अगर किसी को सूजन, बेहोशी, चक्कर, पीलिया, एसिडिटी और हार्ट की प्रॉब्लम है, तो उनमें भी यह फायदा करता है। इसके साथ ही, बवासीर, रक्तपित्त, अतिसार, योनिरोग में भी फायदा करता है दूध।

 

वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार के रिटायर्ड आयुर्वेदाचार्य डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि दूध केवल स्तनधारियों में ही होता है, जो उनके बच्चे पीते हैं। जब तक बच्चा अपना चारा या खाना नहीं खा सकता, तब तक वह दूध पीता है। सिर्फ इंसान ही है, जो बचपना जाने के बाद भी दूध पीता रहता है, बाकी और किसी स्तनधारी का बच्चा भोजन करने लायक होने के बाद दूध नहीं पीता। सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि दूध एक पूरक आहार है, ना कि पूरा आहार। आयुर्वेद में आहार आधी चिकित्सा के तौर पर यूज होता है। आहार नियंत्रण से इसमें बहुत-सी बीमारियों का इलाज किया जाता है, जिसमें से दूध एक है।

 

यूपी हेल्थ के सीनियर डॉक्टर संजय तेवतिया बताते हैं कि 16-17 साल तक तो बच्चों को दूध ज़रूर पीना चाहिए, क्योंकि उसमें ग्रोथ हार्मोन पाया जाता है। लेकिन, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, लिपिड प्रोफाइल बढ़ा हुआ हो, तो इन मामलों में फैट फ्री दूध ही लें, वो भी थोड़ा, और ना लें तो ज़्यादा अच्छा है।

 

इसके बाद आते हैं दूध के ख़ास गुण। यह गुण अष्टांगहृदय नाम के ग्रंथ में मिलते हैं, जिसे वाग्भट ने लिखा था। सन 672-695 में भारत आने वाले चीनी यात्री इत्सिंग ने लिखा है कि उनके आने से भी सौ साल पहले वाग्भट ने ऐसी संहिता बनाई, जिसमें आयुर्वेद के आठों अंगों का समावेश हो गया। दूध के ख़ास गुणों के बारे में वाग्भट बताते हैं कि गाय का दूध पाचक और काफी स्वादिष्ट होता है। पित्त और वात रोग का नाश करता है। इससे देह की कांति बढ़ती है। प्रज्ञा, बुद्धि, मेधा और अंग मजबूत होते हैं। वीर्य बढ़ता है। यह ओज और सप्त धातुओं को बढ़ाता है। गाय का दूध ख़ासतौर से जीवनी शक्ति बढ़ाने वाला है। यह घाव और चोट-मोच में भी फायदा करता है। इसे पीने से महिलाओं का दूध भी बढ़ता है, लेकिन इस तथ्य पर डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि यह साफ़ होना चाहिए कि उन्हीं महिलाओं का दूध बढ़ता है, जिनमें ऑलरेडी दूध उतर रखा है। इन दिनों सिजेरियन डिलिवरी होती है, तो ढेरों महिलाओं को दूध ही नहीं उतरता। ऐसी हालत में दूध बिलकुल काम नहीं करता है।

 

आगे अष्टांगहृदय में दिया है कि यह भ्रम, मद, खांसी, दमा वगैरह को दूर करता है और पुराने बुखार, पेशाब की दिक्कतों और रक्तपित्त को नष्ट करता है। लेकिन, यह सामान्य रंग की गाय के दूध के गुण हैं। अलग-अलग रंग की गाय के दूध के वाग्भट ने अलग-अलग गुण बताए हैं। वाग्भट के मुताबिक, सफे़द गायों का दूध पित्त की समस्या दूर करता है। काली गाय का दूध वात की समस्या दूर करता है, तो लाल रंग वाली गायों का दूध कफनाशक होता है। कपिल वर्ण वाली गाय का दूध त्रिदोष नाशक होता है। रंग-बिरंगी या मिले जुले रंगों वाली गायों का दूध वात और पित्त की समस्या दूर करता है। जो गायें चितकबरी होती हैं, उनका दूध इतना ठंडा होता है कि उसे पीने से लोगों को जुकाम भी हो सकता है। इस पर डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि गायों के रंग का प्रैक्टिकली अब कोई महत्व नहीं रह गया। वहीं, डायटीशियन कामिनी सिन्हा कहती हैं कि आज के समय में ऐसी चीज़ों के अर्थ बदल गए हैं। वजह यह है कि अधिकतर जगहों पर डेरी का ही दूध मिलता है, तो आप यह नहीं तय कर सकते कि गाय किस रंग की है।

 

गाय के दूध के बाकी गुणों के बारे में अपनी किताब भोजनकुतूहलम में रघुनाथसूरि कहते हैं कि जिस गाय को पहली बार बच्चा होता है, उसका दूध वात नाशक होता है। प्रौढ़ गाय के दूध से पित्त का इलाज होता है, तो बूढ़ी गाय के दूध से कफ का। और जिस गाय का बछड़ा बड़ा हो गया हो- यानी जिसे बच्चा पैदा किए काफी दिन बीत चुके हों, उसका दूध तो रसायन होता है। बच्चा होने के तुरंत बाद गाय के दूध से जो खीस बनती है, वह विभेदी और मधुर होती है और इससे जठराग्नि शांत होती है। लेकिन, इसी बारे में अपने ग्रंथ राजनिघंटु में नरहरि पंडित कहते हैं कि पहली बार प्रेग्नेंट हुई गाय के दूध में कोई गुण नहीं होता। जो गायें प्रौढ़ होती हैं, उनके दूध को सायन कहा गया है, यानी श्रेष्ठ। जो गाय बूढ़ी हो जाती हैं, उनका दूध भी दुबला हो जाता है।

 

इस बारे में डॉ. एसपी कटियार कहते हैं कि यह बात तो सही है कि गायों की नस्ल और उनके खानपान का असर उनके दूध पर पड़ता है। डायटीशियन कामिनी सिन्हा कहती हैं कि इन दिनों तो गायें कूड़ा-कचरा ज़्यादा खाती हैं, पॉलिथीन खाती हैं या फिर ज़्यादा दूध के लिए उनको इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। इसलिए अब दूध की क्वालिटी के साथ समझौता हो चुका है। ऐसे में जवान, प्रौढ़ और बूढ़ी गायों के दूध का अब कोई ज़्यादा मतलब नहीं रह गया है।

 

दूध तो घर में आ गया, अब उसे पकाने की शास्त्रीय विधि क्या हो?

 

कश्मीर के राजसी खानदान के विद्वान और आयुर्वेद के महाज्ञाता नरहरि पंडित ने अपने ग्रंथ राजनिघंटु में इसका तरीका बताया है। वह कहते हैं कि कच्चा दूध रसवहा शिराओं में रुकावट पैदा करने वाला और गुरु होता है। इसे ठीक से पकाएं तो यह भारी बन जाता है। बहुत अधिक पकाने पर यह गरिष्ठ हो जाता है। नरहरि पंडित की सलाह है कि दूध में चौथा हिस्सा पानी डालकर इसे उबालना चाहिए। ऐसा दूध सभी रोगों को नष्ट करने वाला, बलकारक, पुष्टिकारक और वीर्य बढ़ाने वाला होता है। वहीं, बाकी विद्वान कहते हैं कि दूध में समान भाग पानी मिलाकर तब तक पकाएं, जब तक पानी उसमें से उड़ ना जाए। इस पर डॉ. कटियार कहते हैं कि ग्रंथों में दी गई यह बात उन्हें हजम नहीं होती। इसकी वजह यह है कि दूध में तो पहले से तीन चौथाई से ज़्यादा पानी होता है। भारी दूध तो सिर्फ भैंस का होता है, क्योंकि उसके दूध में वसा ज़्यादा होती है। गाय का दूध हल्का होता है, तो उसमें पानी मिलाने की ज़रूरत नहीं होती।

अब सवाल उठता है कि दूध को कब पिएं कि उसका अधिक से अधिक फायदा मिल सके?

नरहरि पंडित कहते हैं कि दोपहर बारह बजे से पहले अगर दूध पीते हैं तो यह जठराग्नि बढ़ा देता है। दोपहर में अगर दूध पिएं तो इससे बल बढ़ता है, चेहरे पर लाली आती है। बचपन में पिया दूध जठराग्नि बढ़ाता है, जवानी में पिया दूध बल बढ़ाता है, तो बुढ़ापे में पिया दूध वीर्य बढ़ाता है। रात में अगर कोई दूध पीता है, तो ढेरों दोष जाते रहते हैं।

 

नरहरि पंडित कहते हैं कि उबालने के बाद अगर दूध ठंडा करके पिया जाए तो पित्त की समस्याएं जाती रहती हैं। वहीं, गर्म दूध कफ की समस्या निपटाता है। बिना पकाया हुआ ठंडा दूध त्रिदोषों को बढ़ा देता है। कच्चा और शीतल दूध त्रिदोष-वर्धक होता है, लेकिन धार से तुरंत निकले दूध को अमृत कहा गया है। वह कहते हैं कि दूध को बिना उबाले कभी नहीं पीना चाहिए। इसी प्रकार दूध को कभी भी नमक के साथ नहीं लेना चाहिए। आटे से बनने वाली चीज़ों, अचार, कसैली चीज़ों, मूंग, तोरी, कंद और फलों के साथ दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इन सबके साथ दूध का मेल दोषकारक है।

 

वैसे डॉ. कटियार कहते हैं कि एक बात बिलकुल साफ़ होनी चाहिए कि दूध जिस भी स्तनधारी का है, वह उसी के बच्चे के लिए ही है और सबसे ज़्यादा फायदा भी उसी को करता है। डॉ. संजय तेवतिया कहते हैं कि दूध संपूर्ण आहार नहीं है और ज़रूरी नहीं कि हर किसी को यह फायदा ही करे। आयुर्वेद में बल, वीर्य, त्रिदोष, वात, चोट मोच, भ्रम या जुकाम जैसी चीज़ें जिस तरह से दूध से जुड़ी बताई हैं, इससे डॉ. तेवतिया सरासर इनकार करते हैं और कहते हैं कि मेडिकल साइंस में ऐसी कोई चीज़ नहीं मानी जाती।

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