लोकसभा चुनाव में खूब चले ‘शब्दबाण’ : फैसला तो जनता -जनार्दन के हाथों में रहा
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली। अठारहवीं लोक सभा चुनाव में झूठे और मनगढंत सुनहरे अस्वासन रुपी विश्वासघाती भाषणों के शब्दवाणों की धुंआधार प्रचार की झडी के बावजूद भी पानी की तरह धन बहाया गया है? बावजूद भी भाजपा को 400 पार की सफलता नहीं मिल पाई? गहन विचार का विषय बना हुआ है?असल में राम मंदिर भाजपा चुनावी एजेण्डा रहा है? परंतु भाजपा राम को जानती ही नहीं इसलिए वे राम को मानते ही नहीं?सच देखा जाए तो भाजपा को मर्यादा -पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के आचरण और राम चरित्र से सख्त नफरत करते है? इसलिए भाजपा को भगवान राम के नाम पर राजनीति करना बहुत मंहगा पड रहा है? क्योंकि राम सभी के हैंना कि सिर्फ भाजपा के?
अयोध्या में 500 साल बाद मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा के बाद भाजपा आलाकमान को भरोसा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण रूप से 400 पार बहुमत मिलेगा? परंतु मतदाता जनता-जनार्दन को भाजपा की मोदी सरकार को ठेंगा दिखा दिया है?असल में देश की जनता को श्रीराम के साथ साथ बेरोजगारों को रोज़गार और आसमान छूती मंहगाई को रोकने की अपेक्षा थी? जो भाजपा पूरा नहीं कर पाई? उपरोक्त लोस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को जो वोट मिले हैं चुनाव प्रचार में किए गए करोडों अरबों खर्च के अनुपात में कम शीटों मे संतोष करना पडा है?आगे यदि यही हाल रहे तो निकट भविष्य में पार्टी हाईकमान को जनता-जनार्दन ठेंगा दिखाने मे पीछे नहीं रहेंगी? बीते लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दिखाई दिए विविध रंगों को जनता जनार्दन ने निर्णायक भूमिका दिखा दी है। हालांकि चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले सभी दलों ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए हर तरह के सियासी दांव चले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली कर राष्ट्रवाद और विकास पर जनता का ध्यान खींचा।
खूब चले ‘शब्दबाण’,परंतु जनता-जनार्दन के फैसले को ठुकराया नहीं जा सका?
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों को देश की मतदाता जनता-जनार्दन ने बकवास और जुमलेबाजी करार दे दिया है?
वहीं, बसपा प्रमुख मायावती मुस्लिमों से अपना वोट न बंटने देने का आग्रह कर ध्रुवीकरण को हवा दी थी। अंतिम दिन कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा ने मतदाताओं में जमकर जोश भरा था।परंतु जनता-जनार्दन ने कांग्रेस को भी ठेंगा दिखा दिया है।
भाजपा को कम शीटें मिलने की वजह का अध्ययन, निरीक्षण और अवलोकन करने पर साफ हो चुका है कि खुन्नस रंजिश और बदले की भावनाओं की राजनीति करना बहुत मंहगा पड रहा है? PM नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था?एक मोदी सत्यवादी हो सकता है? बाकि के 70 % नेतागण विकास की आड में कमीशनखोरी, उगाही, के अलावा ED की कार्रवाई में पूर्ण रूपेण पक्षपात भेद-भाव मुख्य रूप से जिम्मेदार है?
भाजपा आलाकमान ने अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ मामला प्रकाशित नहीं होने के लिए मीडिया की खरीद-फरोख्त भी मुख्य जिम्मेदार है? देश की तमाम मतदाता जनता-जनार्दन अब जागरूक और समझदार हो चुकी है? जनता जान चुकी है?राजनैतिक विशेषज्ञों की माने तो भाजपा नेता सच्चाई जाने बिना निष्ठावान और सच्चे लोगों को झूठे मामलों मे फंसाकर गिरफ्तार करवाने मे पीछे नहीं है?
चुनावी घोषणा के बाद लोगों को यहां प्रचार के विविध रंग-रूप देखने को मिले। चुनाव प्रचार की बात करें तो इस मामले में भाजपा ने दूसरे दलों को काफी पीछे छोड़ दिया, जबकि कांग्रेस और बसपा का चुनाव प्रचार धीमी गति से चली।
भाजपा के चुनाव प्रचार के लिए कैबिनेट मंत्री से लेकर डिप्टी सीएम, सीएम और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ने जनसभाएं कर ‘शब्द बाण’ चलाए। सबसे ज्यादा भागदौड़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रही, वह चुनाव घोषित होने के बाद एक-दो बार नहीं चार बार सहारनपुर का सियासी ताप बढ़ाने आए।
यह पहला चुनाव है, जब किसी मुख्यमंत्री को चार बार जिले में आना पड़ा। इतना होने के बाद भी राजपूत समाज की नाराजगी की गांठ अभी पूरी तरह नहीं खुल पाई है। हालांकि, इसके डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा हाईकमान ने ठाकुर बहुल क्षेत्रों में राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ सरीखे नेताओं की जनसभाएं कराईं।
इतना ही नहीं चुनाव में हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने भी पड़ोस के सहारनपुर में सक्रियता बनाए रखी। नकुड़ और बेहट इलाकों में जनसभा कर सैनी बिरादरी को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
वहीं, धर्मसिंह सैनी की भाजपा में वापसी में भी उनकी अहम भूमिका रही। बसपा प्रमुख मायावती ने भी नागल क्षेत्र में रैली कर अपने वोटरों में जोश भरा, उनका पूरा फोकस मुस्लिमों की एकजुटता पर रहा। चूंकि कांग्रेस और बसपा दोनों ही पार्टियों से मुस्लिम प्रत्याशी मैदान दिखाई पडे, इसलिए उनका पूरा जोर इस बात पर रहा कि मुस्लिमों का वोट बंटना नहीं चाहिए।
मायावती मुस्लिमों को समीकरण समझा कर गईं कि अगर उनका वोट बंटा तो भाजपा जीत जाएगी। एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस का प्रचार साइलेंट रहा। पार्टी के किसी बड़े नेता की रैली नहीं हुई।
प्रियंका वाड्रा ने चुनाव प्रचार के अंतिम दिन शहर में रोड शो कर हालात संभालने की कोशिश की। खास बात यह रही कि प्रचार के दौरान कांग्रेस के राहुल गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की जनपद में एक भी जनसभा नहीं हुई।
बहरहाल, चुनाव मैदान में डटीं तीनों प्रमुख पार्टियां अपनी-अपनी जीत के तर्कों के साथ चुनाव मैदान में दिखाई पडी। सहारनपुर सीट पर भाजपा से जहां राघव लखनपाल शर्मा मैदान में थे, वहीं कांग्रेस-सपा गठबंधन से इमरान मसूद ताल ठोके हुए थे।
बसपा के माजिद अली कांग्रेस प्रत्याशी के लिए लगातार चुनौती बने हुए थे। दोनों मुस्लिम प्रत्याशियों में मुस्लिम मतों के बिखराव का फायदा उठाने के लिए भाजपा को मौके की तलाश कर रहे थे।
इस लोकसभा चुनाव में
महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, उद्योग व्यापार और बढ़ती असमानता आदि मुद्दे भी प्रचार से एकदम गायब रहे हैं, जबकि तीन राज्यों से घिरे यूपी के सीमाई जिले सहारनपुर की अपनी ढेरों समस्याएं मुह बाये खडी है।