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संतुलित नींद, तनाव मुक्ति और दीर्धायू के लिए चंद्रभेदी प्राणायाम परमोत्तम

संतुलित नींद, तनाव मुक्ति और दीर्धायू के लिए चंद्रभेदी प्राणायाम परमोत्तम

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

वैदिक सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार प्राणायाम कितनी देर करना चाहिए? जानिए चंद्रभेदन प्राणायाम को करने की विधि:-

अब बाईं नाक से लंबी और गहरी सांस को भरें और हाथ की अंगुलियों से बाएं नाक के छेद को भी बंद कर दें। अब जितना हो सके उतनी गहरी श्वास को अंदर ही रोकें। बाद में दाहिनी नाक से धीरे-धीरे श्वास छोड़ दें। अब इसी क्रिया को कम से कम 5 मिनट तक दोहराएं।

 

चंद्रभेदी प्राणायाम

इस प्रकार, चंद्र भेदन को चंद्रभेदी के रूप में जाना जाता है। चन्द्रभेदी प्राणायाम में बाईं नाक का इस्‍तेमाल सांस अंदर लेने और दाईं नाक से सांस छोड़ने के लिए किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सांस लेने से ऊर्जा इड़ा या चंद्र नाड़ी और सांस छोड़ने पर पिंगला या सूर्य नाड़ी के माध्यम से गुजरती है।

चंद्र नाड़ी की सक्रियता से शरीर और मन को ठंडा और आरामदायक अहसास होता है। इससे मन की अवसादना और चिंता में कमी होती है, और शारीरिक और मानसिक विश्राम प्राप्त होता है। योग में चंद्र नाड़ी को संतुलित करने और इसे शुद्ध करने के लिए विशेष प्राणायाम और अभ्यास होते हैं, जैसे कि अनुलोम-विलोम प्राणायाम।

चंद्रनाडी का संबंध चंद्रमा (चंद्र) के शीतलता और शांतिप्रद प्रकृति से है। चंद्र नाड़ी शरीर के बाएं पक्ष से गुजरती है और मूलाधार चक्र से शुरू होकर आज्ञा चक्र में समाप्त होती है, इसका अर्थ है कि यह हमारे सूक्ष्म शरीर के निचले हिस्से से शीर्ष तक पहुंचती है, जिसमें सभी चक्र समाहित होते हैं। चंद्र नाड़ी का प्रतीक शीतलता और शांति है।

प्राण यानी शरीर को चलाने वाली शक्ति। प्राण यानी ‘फोर्स ऑफ लाइफ’। प्राण से ही सब कुछ है और यही प्राण योग से प्रदीप्त होता है। प्राण को श्वास मान लेने की गलती कभी नहीं करनी चाहिए। लेकिन श्वास के आश्रय से ही प्राण भी है। प्राण के लिए श्वास जरूरी है और इसी श्वास को संतुलित तरह से लेकर प्राणायाम किया जाता है।

प्राण+ आयाम, यानी प्राणों का दायरा बढ़ाने का कार्य।

मेडिकल साइंस के अनुसार डर व क्रोध इससे

भावों को मेडिकल साइंस नहीं मानता, लेकिन हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने सिम्पेथैटिक नर्व के बारे में कहा है कि यह ‘फ्लाइट और फाइट’, दोनों के बारे में फैसला करती है। यानी डर भी लगेगा और क्रोध भी आएगा। इसी नर्व के कारण लार कम बनती है, म्यूकस घटता है। आंतों में गतिशीलता मंद होती है। लिवर में ग्लायकोजन से ग्लूकोज बनाने का काम इसी का है, इसके कारण यूरिन सीक्रिशन प्रभावित होता है। धड़कनें तेज हैं तो नाक के इस हिस्से को काबू करने से वे धीमी पड़ जाएंगी।

आयुर्वेद चंद्र नाड़ी कहता है

आयुर्वेद के अनुसार यह चंद्र नाड़ी है। चंद्र यानी शीतलता का प्रतीक। शीतलता यानी जिसका संबंध कफ से होता है। इस नासाछिद्र के माध्यम से ही बढ़े हुए ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण किया जा सकता है। चंद्र नाड़ी होने के साथ-साथ यह मन पर काम करने वाली नाड़ी है।

योग शास्त्र शरीर के इस भाग को इड़ा कहता है

बायीं नासिका से जुड़ी जो नाड़ी शरीर में है उसे इड़ा नाड़ी कहा जाता है। इड़ा यानी काली। जो स्वरूप काली के हैं, वही कार्य इस नाड़ी के भी हंै। चरम वात्सल्य और तीव्र उद्वेग। योग में प्रत्येक अभ्यास पहले बायीं ओर से करने का नियम है।

ऐसा इसलिए, क्योंकि पहले मन को साधोगे तभी बुद्धि सधेगी।

ये असर दिखता है

इस नाड़ी का प्रभाव यह रहता है कि इसके सक्रिय होने पर लोग भावावेश में रहते हैं। एेसे लोगों को रोना जल्द आता है और जल्दी ही वे खिलखिलाने भी लगते हैं। मन में उथल-पुथल चलती रहती है।

आसन जो इसे सक्रिय कर देते हैं

शरीर के बाएं भाग को सक्रिय करने वाले प्रमुख आसनों में सूर्य नमस्कार है। यदि ये भाग शिथिल है तो धनुरासन, उष्ट्रासन, चक्रासन इसे सक्रिय कर सकते हैं। यानी छाती पर प्रभाव डालने वाले जितने भी आसन हैं, वे इसको खोल सकते हैं। क्योंकि इन सभी आसनों में अतिरिक्त रूप से श्वास रोकनी होती है।

इड़ा नाड़ी के अधिक चलने पर कैसा होता है स्वभाव?

जिन लोगों का बायां नासाछिद्र अधिक सक्रिय होता है, वे अंतर्मुखी होते हैं। यह नाड़ी यदि एक-डेढ़ घंटे से ज्यादा समय तक चल रही है तो समझना चाहिए कि शरीर में कहीं गड़बड़ हो रही है। बायीं नासिका से ली जाने वाली श्वास मस्तिष्क में दाहिने भाग को प्रभावित करती है। ऐसे लोग भावनात्मक होते हैं, वे बहुत जल्द ग्लानि महसूस करते हैं और वे किसी के भी द्वारा आसानी से दबाए जाते है

स बसे बड़ी बात यह है कि दोनों ही नासाछिद्र एक साथ नहीं चलते हैं। मात्र संधिकाल में चलते हैं। यदि दाहिना नासाछिद्र बंद है, तो बायां चालू रहेगा और बायां बंद है तो दाहिना चालू रहेगा। योग की वजह से दोनों नासाछिद्र खुलते हैं और दोनों से श्वास को भीतर ले जा सकते हैं, जो जीवनदायिनी प्राण को तैयार करता है। शरीर पंच महाभूत (पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश) से बना है। उसी प्रकार प्राण भी पांच प्रकार के हैं। पांच उपप्राण भी हैं- जैसे छींक, डकार, जम्हाई, हिचकी व खुजली।

क्या करती है ये

शरीर को ठंडा करती है। इसमें ध्यान यह रखना होता है कि यदि यह अधिक सक्रिय हुई तो शारीरिक मंदता आ जाती है।

डिप्रेशन के लिए यह अधिक जिम्मेदार है। क्रोध, आलस इसके असंतुलन से ही होता है।

इस तरह से खुलेगी नासिका

जो आसन बताए गए हैं, उनमें दोनों हाथों और कंधों का प्रयोग होता है। इससे कंधे से मस्तिष्क तक दोनों ओर से जाने वाली कैरोटिड आर्टरी खुलती है और दोनों ही नासाछिद्र खुल जाते हैं। जिन लोगों की बायीं नाक बंद है, वह खुल जाती है।

1. प्राण 2. अपान 3. समान 4. उदान 5. व्यान

इनके पांच उप-प्राण भी हैं- नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनंजय

प्राण कहां रहता है?

नासिका से लेकर हृदय तक का क्षेत्र प्राण का होता है। आंखें, कान, मुख इसी प्राण से काम करते हैं। यह सभी प्राणों का राजा है। राजा के समान यह अन्य प्राणों को विभिन्न कार्य सौंपता है।

अपान कहां रहता है?

यह शरीर के निचले स्थान की वायु है, गंदी वायु। नाभि से लेकर पैर तक है।

इस छिद्र से प्राणायाम पहले यह नाड़ी शांति से बैठने नहीं देती है। इसीलिए पहले शरीर के बायें भाग को आसन, प्राणायाम से साधते हैं। यदि इसे काबू नहीं किया तो ध्यान संभव नहीं। ठीक वैसे ही कि भारी जुकाम कुछ करने नहीं देगा।

ये प्राणायाम न करें

जिन लोगों की यह नाड़ी अधिक समय तक सक्रिय है, उन्हें कफ रहता है। इसलिए शरीर को ठंडा करने वाले, शीतली और शीतकारी प्राणायाम नहीं करने चाहिए।

समान कहां रहता है?

यह हृदय से लेकर नाभि के बीच में है। अन्न पचाने का काम करता है। इसी से अन्न से रस, रक्त और धातु बनते हैं।

उदान कहां रहता है?

कंठ से मस्तिष्क तक। इसी से शब्द बोले जा रहे हैं। वमन भी यही करता है।

व्यान कहां रहता है?

पूरे शरीर में है। रक्त संचरण और प्राणों के आवागमन का कार्य इसका है।

योग से कैसे मिलेगी?

जीवन देने वाली शक्ति-

मेरूदंड या रीढ़ की हड्‌डी को मेडिकल साइंस शरीर का पावर हाउस मानता है यह कई नस नाड़ियों को मस्तिष्क से जोड़ती है।

योग से जब दोनों नासाछिद्र खुल जाते हैं तभी प्राण मेरुदंड से लगी सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करते हैं और प्राण जाग्रत होता है।

आसन जो इसकी अत्यधिक सक्रियता को कम कर सकते हैं

इस ओर की नासिका यदि निष्क्रिय है, तो मनुष्य को भूख ही नहीं लगेगी। इसकी सक्रियता के लिए भी सूर्य नमस्कार बेहद आवश्यक है। लेकिन समस्या इसकी अत्यधिक सक्रियता के कारण होती है। इसे शांत करने के लिए शशकासन, भ्रामरी, शीतकारी प्राणायाम हैं।

पिंगला नाड़ी के अधिक चलने पर कैसा होता है स्वभाव?

जिन लोगों की दायीं यानी पिंगला नाड़ी अधिक सक्रिय होती है, वे बहिर्मुखी होते हैं। जैसे ही यह सक्रिय होती है, दायीं नासिका से श्वास-प्रश्वास अधिक होने लगता है। यदि यह लंबे समय तक चलती रही तो प्राणिक स्तर पर बदलाव दिखने लगता है। यह नाड़ी मस्तिष्क के बाएं गोलार्द्ध को नियंत्रित करती है। ऐसे लोगों में अहंकार अधिक होता है। कई बार ऐसे लोग अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते।

ए क प्रकार से सांस लेना और छोड़ना प्राण की बाह्य अभिव्यक्ति है। श्वास लेने के लिए नासिका के दो छिद्र दिए हैं। योग से दोनों छिद्र खुलकर श्वास भीतर ले जा सकते हैं। इसके बाद ही मेरूदंड से लगी सुषुम्ना नाड़ी में प्राण का उद्भव होता है। आपकी कौन-सी नासिका से ली गई श्वास शरीर को किस तरह से प्रभावित करती है- यह सारे रहस्य इसमें हैं।

इस पेज में शरीर के दो भाग हैं, जो इनके कार्य बताते हैं।

मेडिकल साइंस के अनुसार पाचन व आराम इससे

जो काम बायां नासिका छिद्र करता है, ठीक उसका उलट कार्य दायां नासाछिद्र करता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अनुसार पैरा-सिम्पेथैटिक नर्व ब्रेक की तरह काम करती है और इसे खाना पचाने और आराम के लिए सक्रिय माना जाता है। चूंकि यह पाचन करती है, इसलिए सलाइवा भी इससे बढ़ता है। इसी से खाना पचाने के लिए पाचक रस निकलते हैं। इसी से यूरिन का सीक्रिशन बढ़ता है। ब्लड प्रेशर घटाने की दवा, इसी नर्व पर लागू होकर वह यूरिन सीक्रिशन बढ़ाती है।

योग शास्त्र शरीर के इस भाग को पिंगला कहता है

इसे योग शास्त्र में पिंगला कहा जाता है। गर्म नाड़ी है। शरीर में गर्मी का काम इसी के जिम्मे रहता है। यही शरीर में खाना पचाने का भी काम करती है। स्वरयोग के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति की सुबह 10.30 बजे यह नाड़ी खुलती ही है।

यानी सुबह 10.30 बजे ये नासाछिद्र चलने लगता है। उस वक्त जो भी खाया हो पच जाएगा।

खाना ऐसे पचता है

इस नासिका छिद्र के सक्रिय होने पर कई पाचक रस निकलते हैं। इसके चालू रहने पर अन्न को पचाने की ताकत आती है। इसीलिए भोजन के पश्चात बायीं करवट लेकर लेटने को कहते हैं, जिससे बायां बगल दबेगा और सूर्य नाड़ी चालू होकर खाना पचा देगी।

कब जीवित रहने तक रहता है।

कहां शरीर में पांच स्थानों पर।

कैसे प्राणायाम के विभिन्न तरीके से।

प्राण का प्रभाव

प्राण के दो महत्वपूर्ण प्रभाव शरीर पर दिखते हैं। एक गर्मी लगना दूसरा ठंडक लगना। ये दोनों ही प्राण को इंगित करते हैं। इसीलिए कुछ प्राणायाम शरीर में पसीना ला देते हैं और कुछ में ठंडक लगती है।

आयुर्वेद इसे सूर्य नाड़ी कहता है

यह सूर्य नाड़ी है। सूर्य यानी शरीर में गर्मी बढ़ाने का कार्य इसके जिम्मे रहता है। इसीलिए ये खाना पचाने के लिए भी जिम्मेदार है। खाना पचाना यानी हायड्रोक्लोरिक एसिड बनाने का कार्य। इस लिहाज से यह नाड़ी शरीर को संतुलित मात्रा में पित्त देने का भी कार्य करती है। इसी नाड़ी की गड़बड़ी के कारण शरीर में एसिडिटी की शिकायत होती है।

जिनकी ये नाड़ी अधिक सक्रिय है, वे धनुरासन, उष्ट्रासन, सूर्य नमस्कार, भुजंगासन करने से बचें। ऐसे लोगों को उज्जायी, कपालभाति और भस्रिका प्राणायाम भी नहीं करना चाहिए।

क्या होगा जीवनअवधि बढ़ेगी, एक-एक कोशिका को नया जीवन मिल सकेगा, अन्यथा कोशिकाएं आयु बढ़ने के साथ टूटती रहती हैं।

क्यों दरअसल, हम सामान्य लोग एक मिनट में दस से पंद्रह श्वास तक लेते हैं, इसे कम करते हुए मिनट में एक श्वास तक लाना उद्देश्य है।

गर्मी देने वाले प्रभाव

कपालभाति, भस्रिका और सूर्यभेदी ऐसे प्राणायाम हैं, जो शरीर में गर्मी उत्पन्न करते हैं। भस्रिका और कपालभाति में तो पेट तेजी से अंदर बाहर होता है। इसलिए इन प्राणायामों से समान प्राण सक्रिय होता है।

इसके बिना ध्यान असंभव

ध्यान करने के लिए इसी नासिका का खुला होना सबसे ज्यादा जरूरी है। अन्यथा ध्यान लग पाना संभव नहीं है।

क्योंकि यह नासाछिद्र बंद है तो आप भावनाओं के भंवर में ही फंसे रहेंगे। एकाग्र होकर ध्यान नहीं कर सकेंगे। इस नाड़ी के चलने से ध्यान की लय बन पाती है।

इन्हें जरूर अपनाएं

जिनमें इसकी अत्यधिक सक्रियता है, उन्हें योगनिद्रा करना चाहिए। योग िनद्रा से मनोवौज्ञानिक रूप से विश्रांति आती है, अहंकार शिथिल होता है। योगनिद्रा इस तरह के व्यक्तित्व को बदलती है।

शीतली, शीतकारी ऐसे प्राणायाम हैं, जिनसे ठंडक बढ़ती है। ये वक्षस्थल पर कार्य करते हैं। यहां प्राण का ही वास होता है, जो कभी उत्तेजित नहीं होता है। इससे ब्लड प्रेशर लो होता है। यूरिन इन्फेक्शन दूर होता है।

इसकी सक्रियता से आप काम को सही तरह से कर सकेंगे। जिस प्रकार बायीं नाड़ी मूत्र विसर्जन के लिए जिम्मेदार है, उसी प्रकार यदि यह नाड़ी चल रही है और आप शौच विसर्जन के लिए जाते हैं तो पेट साफ अच्छे से होगा अन्यथा नहीं।

हां, कुम्भक यानी श्वास को जब भीतर और बाहर रोका जाता है तो पेट और हृदय के पास प्राण, अपान और समान तीनों एक होते हैं। तीनों के एक होने पर ही ऊर्जा और आनंद का अनुभव होता है।

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