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जानिए कान छिदवाना यानी कर्णबेधन संस्कार का वैज्ञानिक महत्व

जानिए कान छिदवाना यानी कर्णबेधन संस्कार का वैज्ञानिक महत्व

टेकचंद्र शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

बनारस। सनातन हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार कान छिदवाने का वैज्ञानिक महत्व एक्यूप्रेशर से जुड़ा है, जहाँ कान के लोब (निचले हिस्से) में दो महत्वपूर्ण एक्यूप्रेशर बिंदु होते हैं: मास्टर सेंसोरियल और मास्टर सेरेब्रल। इन बिंदुओं को उत्तेजित करने से मानसिक संतुलन सुधरता है, तनाव कम होता है, सुनने की क्षमता बढ़ सकती है और आँखों की रोशनी में भी सुधार हो सकता है। यह दिमाग के विकास को भी बढ़ावा देता है और शरीर के अन्य अंगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. मानसिक स्वास्थ्य: कान के लोब पर एक्यूप्रेशर बिंदु दबाने से घबराहट, चिंता और हिस्टीरिया जैसी मानसिक समस्याओं से राहत मिल सकती है। कान के निचले हिस्से के पास आँखों की नसें होती हैं, और इन बिंदुओं पर दबाव डालने से आँखों की रोशनी तेज हो सकती है।

मस्तिष्क का विकास: कान के मध्य बिंदु को छिदवाने से मस्तिष्क के दाएं और बाएं गोलार्धों को जोड़ने वाले मेरिडियन बिंदु सक्रिय होते हैं, जिससे मस्तिष्क का विकास तेज और सुचारू होता है।कान में स्थित एक विशेष बिंदु पाचन क्रिया को सही करता है और भूख को प्रेरित करता है, जिससे वजन नियंत्रण में भी मदद मिल सकती है।

शारीरिक संतुलन और अन्य कान छिदवाने से शरीर का संतुलन बना रहता है और लकवा, मधुमेह, हर्निया और गठिया जैसी कई गंभीर बीमारियों का खतरा कम हो सकता है। कर्णवेध संस्कार (कान छिदवाने की प्रथा) का उद्देश्य न केवल धार्मिक बल्कि शारीरिक और मानसिक लाभ प्राप्त करना भी है।

आयुर्वेद के अनुसार, कान छिदवाने से दिमाग के महत्वपूर्ण हिस्से सक्रिय हो जाते हैं, जिससे मानसिक बीमारियाँ और घबराहट जैसी समस्याएं दूर होती हैं।

यह कन्याओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इससे मासिक धर्म नियमित रहता है और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है.हिंदू धर्म में कर्णवेध संस्कार बच्चों के कान छिदवाने की परंपरा है, जो स्वास्थ्य और आध्यात्मिक कारणों से की जाती है. यह एक्यूप्रेशर पॉइंट्स के माध्यम से बीमारियों को कम करने में मदद करता है.

हिंदू धर्म में बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल 16 संस्कार बताए गए हैं. इन संस्कारों के पीछे कुछ आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण होते हैं. इन्हीं में से एक है बच्चों के कान छिदवाना. चाहे लड़का हो या लड़की, हिंदू धर्म में दोनों के ही बचपन में कान छिदवाए जाते हैं, जिसे कर्णवेध संस्कार कहा जाता है.

कान छिदवाना सिर्फ परंपरा नहीं, इसके पीछे है साइंस! बीमारियों से भी बचाए

बच्चों के कान छिदवाने के वैज्ञानिक और धार्मिक कारण

कान छिदवाने के पीछे वैज्ञानिक कारण लोकल 18 से बात करते हुए नासिक के महंत अनिकेत शास्त्री ने बताया कि बचपन में बच्चों के कान छिदवाने के पीछे वैज्ञानिक कारण बताया जाता है. हमारे शरीर में विभिन्न स्थानों पर एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जिससे हम शरीर का संतुलन बनाए रख सकते हैं. कुछ बीमारियों पर नियंत्रण पाने की क्षमता इन पॉइंट्स में होती है. ऐसा ही एक पॉइंट कान में होता है, जहां कान छिदवाए जाते हैं. हिंदू धर्म ग्रंथों में भी कर्णवेध संस्कार का उल्लेख किया गया है.

ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों के कर्णवेध संस्कार हुए होते हैं, उन्हें अर्धांगवायू मधुमेह और हर्निया जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा कम होता है. खास बात यह है कि हिंदू धर्म में बच्चों के कान छिदवाना आवश्यक माना जाता है. बच्चे के जन्म के 16वें दिन या उसके बाद के तीन महीनों में कान छिदवाए जाते हैं. बच्चे के नामकरण की तरह ही कान छिदवाने का भी एक महत्वपूर्ण उत्सव माना जाता है.

बता दें कि बच्चों के कान छिदवाने के पीछे स्वास्थ्य संबंधी कारणों के साथ-साथ परंपरा भी एक महत्वपूर्ण कारण है. एक्यूपंक्चर थेरेपी के अनुसार, कान छिदवाने से विभिन्न बीमारियों का खतरा कम होता है. बच्चों के बड़े होने पर कान छिदवाने की बजाय बचपन में ही कान छिदवाने से उन्हें कम दर्द होता है और अस्वस्थता भी कम होती है. कुछ माता-पिता बच्चों के कान छिदवाने के पीछे सांस्कृतिक या पारंपरिक मूल्य मानते हैं. भारतीयों के साथ-साथ दुनिया के कई माता-पिता अपने बच्चों के कान छिदवाते हैं.

किस उम्र में कान छिदवाना सही है?कुछ परंपराओं में बच्चों के कान जन्म के तुरंत बाद छिदवाए जाते हैं, जबकि कुछ माता-पिता अन्य कारणों से बाद में कान छिदवाने का निर्णय लेते हैं. यदि बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा है और उसमें कोई अन्य जटिलता नहीं है, तो जन्म के बाद कान छिदवाने के बारे में डॉक्टर की सलाह लेना उचित है.

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