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यूरोप को भारत के ज़रिये मिल रहा रूस का सस्ता तेल! जानिए सच्चाई क्या है?

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नई दिल्ली । यूक्रेन पर हमले की सज़ा देने के लिए यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने पिछले साल दिसंबर में रूसी कच्चे तेल पर लगभग प्रतिबंध लगा दिया था.दो महीने बाद ये प्रतिबंध उसके रिफाइंड ऑयल प्रोडक्ट्स पर लगा दिए गए. प्रतिबंध से पहले तक यूरोप अपनी ज़रूरत का 30 फीसदी तेल रूस से खरीदता था.
माना जा रहा था कि रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध से यूरोपीय संघ समेत पूरे यूरोप में सप्लाई की किल्लत पैदा हो सकती है. यूरोप के लिए ये और अधिक चिंता की बात थी क्योंकि ये पहले से ही ऊंची महंगाई दरों से जूझ रहा है
रूस का कच्चा तेल सीधे यूरोप तक न पहुंचने की वजह से वहां की तेल रिफाइनिंग कंपनियों के सामने उत्पादन की समस्या पैदा हो गई है.लेकिन भारत की प्राइवेट सेक्टर की रिफाइनरियों ने इसे यूरोप के सप्लाई गैप को भरने के अच्छे मौके के तौर पर देखा है.
आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल जनवरी तक भारत से यूरोपीय संघ के देशों में रिफाइंड पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का निर्यात लगातार पांच महीने तक बढ़ता रहा. इस महीने ये 19 लाख टन तक पहुंच गया.
वित्त वर्ष 2022-23 का ये सर्वोच्च मासिक आंकड़ा था. अप्रैल 2022 से लेकर जनवरी 2023 भारत से यूरोप को निर्यात किया जाने वाला रिफाइंड पेट्रोलियम का निर्यात बढ़ कर 1.16 करोड़ टन तक पहुंच हो गया.
इस वजह से भारत से जिन 20 क्षेत्रों को रिफाइंड पेट्रोल प्रोडक्ट का आयात होता है उसमें यूरोपियन यूनियन शीर्ष पर पहुंच गया था.
इस अवधि के दौरान भारत के रिफाइंड पेट्रोल प्रोडक्ट्स के निर्यात का 15 फीसदी हिस्सा अकेले यूरोपीय बाज़ार में किया गया. बाद में ये बढ़ कर 22 फीसदी तक पहुंच गया.
ब्लूमबर्ग की एक ख़बर के मुताबिक रूस के पेट्रोलियम उत्पादों पर यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंध के बाद भारत के रिफाइंड पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का इस बाज़ार में निर्यात लगातार बढ़ा है और अब यहां सबसे बड़े सप्लायर बनने की राह पर है.
अमेरिका और यूरोप की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भी भारत रूस से भारी मात्रा में रियायती दाम पर कच्चा तेल खरीद रहा है.
पिछले साल फरवरी में छिड़े रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले तक भारत के आयात बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी सिर्फ एक फीसदी थी लेकिन एक साल में यानी फरवरी 2023 में ये हिस्सेदारी बढ़ कर 35 फीसदी पर पहुंच गई. इस समय तक भारत रूस से प्रतिदिन 16.2 बैरल तेल खरीद रहा था.
इस साल मार्च में खुद रूसी उप प्रधानमंत्री अलेक्जे़ंडर नोवाक ने बताया कि उनके देश ने पिछले एक साल में भारत को अपनी तेल बिक्री 22 फीसदी बढ़ाई है. भारत चीन और अमेरिका के बाद तेल का तीसरा बड़ा खरीदार है. लेकिन अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बाद से जब रूस ने अपना तेल सस्ता किया तो भारत के लिए ये अपना तेल भंडार बढ़ाने का अच्छा मौका था.
रूस से बढ़ी तेल सप्लाई का फायदा अब यहां की निजी तेल रिफाइनिंग उठा रही हैं और इनका सबसे अच्छा बाज़ार उन्हें यूरोप दिख रहा है.
भारत दुनिया के सबसे बड़े तेल रिफाइनिंग देश में शामिल है. भारतीय रिफाइनिंग कंपनियों की ओर से सप्लाई में हुई बढ़ोतरी से यूरोपीय बाज़ार में तेल का संकट बेकाबू नहीं हुआ है, जबकि पहले इसकी काफी ज्यादा आशंका जताई जा रही थी.
भारत कच्चे तेल का सबसे बड़े आयातक देशों में शामिल है. लेकिन भारत की रिफाइनरी क्षमता इसकी घरेलू मांग से कहीं ज्यादा है. यही वजह है अतिरिक्त सप्लाई तेज़ी से यूरोपीय बाज़ार की ओर मुड़ गई है.
इससे भारतीय रिफाइनिंग कंपनियों रिलायंस और रूसी एनर्जी ग्रुप रोजनेफ्ट की हिस्सेदारी वाली कंपनी नायरा को अच्छा फायदा मिल रहा है.
भले ही यूरोपियन यूनियन ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन भारत के ज़रिये ये खूब तेल खरीद रहा है.ये भी दिलचस्प है कि यूरोपीय देशों ने रूस से सस्ते में कच्चा तेल खरीदने के भारत के कदम पर नाराज़गी जताई थी.दिसंबर 2022 में भारत आई जर्मनी की विदेश मंत्री एनेलिना बेरबॉक ने जब रूस से तेल खरीदने पर भारत से शिकायत की थी तो भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि पिछले नौ महीने में यूरोपियन यूनियन ने जितना तेल खरीदा है, भारत ने उसका छठा हिस्सा ही खरीदा है.अब यूरोपीय देशों में भारत से तेल मंगाने में कोई आपत्ति नहीं दिख रही है.
क्या भारत भरोसेमंद सप्लायर के तौर पर उभर रहा है?
आईआईएफएल सिक्योरिटीज़ में कमोडिटीज़ के वाइस प्रेसिडेंट अनुज गुप्ता का कहना है कि भारत की अपनी क्रूड की मांग काफी ज़्यादा है. इसके पास एक महीने से ज़्यादा का रिज़र्व नहीं रहता.
ऐसे में अगर भारतीय रिफाइनिंग कंपनियां ज़्यादा सप्लाई का इस्तेमाल पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात बढ़ा रही है तो यह इसके लिए काफी अच्छी बात है.
गुप्ता का कहना है कि रूस के तेल पर बैन के बाद यूरोपियन यूनियन के देशों में जो तेल संकट है, उसे देखते हुए वहां आयात बढ़ा है. अभी तक यूरोपीय देश भारत से ज्यादा रिफाइंड प्रोडक्ट नहीं खरीदते थे लेकिन अब उन्होंने मौजूदा संकट को देखते हुए भारतीय प्रोडक्ट को तवज्जो देना शुरू कर दिया है.
गुप्ता कहते हैं, ”ये भारत की आर्थिक क्षमता के लिए अच्छी बात है. इससे भारत एक भरोसेमंद सप्लायर के तौर पर उभरा है. भारत के सप्लाई चेन की एक मज़बूत कड़ी के तौर पर उभरने की संभावना बनी है, जिस पर अमेरिका और यूरोपीय देश भरोसा कर सकते हैं.” कुल मिलाकर ये इसकी आर्थिक हैसियत के लिए अच्छी बात है.
विश्लेषकों का कहना है कि भले ही कुछ पश्चिमी देश रूस से ज़्यादा तेल खरीदने को लेकर भारत से नाराज़ थे. दुनिया के सामने उन्होंने इस पर आपत्ति जताई थी लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें इस स्थिति से कोई दिक्कत नहीं थी.
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अमेरिका और कई पश्चिमी देशों के लिए ये राहत की बात होगी कि भारत की रिफाइनिंग कंपनियों को ग्लोबल ऑयल की सप्लाई बरकरार रहे. क्योंकि इससे यहां के रिफाइंड पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स उनके मार्केट में आ सकें और वहां सप्लाई की स्थिति अच्छी रहे. ये यूरोप और अमेरिका दोनों के हित में हैं. खासकर यूरोप के लिए, क्योंकि बढ़ती महंगाई को देखते हुए वहां तेल महंगा होना ख़तरे की घंटी है.
अमेरिका और यूरोप को लग रहा है कि तेल की ग्लोबल सप्लाई को झटके से बचाने के लिए भारतीय रिफाइनिंग कंपनियों का निर्यात बढ़ना एक अच्छा संकेत है.
भारतीय रिफाइनिंग कंपनियों को इसका ख़ासा फायदा हो रहा है. सस्ते रूसी तेल की वजह से उनकी रिफाइनिंग लागत घटी है और मार्जिन बढ़ा है.
अनुज गुप्ता कहते हैं, ”भारत को इसका फायदा मिलेगा. इससे पहले से ही मज़बूत भारतीय रिफाइनिंग इंडस्ट्री और ताकतवर बनेगी. इससे भविष्य में भारत एक इंटरमीडियरी मार्केट बन सकेगा. ज्यादा से ज्यादा देश भारत से रिफाइनिंग पेट्रो प्रोडक्ट्स खरीदेंगे.”
भारत को बढ़ानी होगी अपनी रिफाइनिंग क्षमता
रूसी तेल पर प्रतिबंध को लेकर यूरोपीय यूनियन के देशों में शुरू में सहमति नहीं थी. ये जल्दबाज़ी में लिया गया फैसला था. यहां तक कि फ्रांस और जी-7 के बाहर देशों ने भी कहा कि ये जल्दबाजी में लिया गया फैसला है.
एनर्जी एक्सपर्ट अरविंद मिश्रा कहते हैं, ”यूरोप के सामने अभी सबसे बड़ा संकट ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी है. यूरोप में बिजली के दाम में 35 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. आज भले ही रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा हो लेकिन यूरोप को रूसी एनर्जी पर निर्भर रहना ही होगा. आज भी ऐसा ही है. बदले हालात में ये तेल अब सीधे रूस से नहीं बल्कि भारत के जरिये आ रहा है. एनर्जी सिक्योरिटी एक ऐसा विषय है जिस पर सीधे कोई लाइन नहीं ली जा सकती.”
भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीद कर कर अब तक 35 हज़ार करोड़ रुपये बचाए हैं. दूसरी ओर ये पेट्रोलियम उत्पादों का बड़ा सप्लायर बन कर भी उभरा है.
अरविंद मिश्रा कहते हैं, ”युद्ध ने ऐसी स्थिति बनाई है कि भारत जिस कमोडिटी का आयातक रहा है वो अब इसका निर्यातक बनता जा रहा है. भारत तेजी से पेट्रोल के वैल्यू एडेड प्रोडक्ट की सप्लाई का बड़ा हब बनता जा रहा है. लेकिन भारत आगे इस स्थिति का फायदा तभी उठा पाएगा जब वो अपनी रिफाइनिंग क्षमता को और विस्तार दे और इसे मजबूत बनाए

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