(भाग-48) ईश्वर पर पूर्ण विश्वास एवं समर्पण भाव से होगा संसारिक कलह-क्लेशों का नाश

 

✍️टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री:सह-संपादक की रिपोर्ट

गीता में भी भगवान कृष्ण ने मन को चंचल बताया है तथा उसे स्थिर करने के लिए अभ्यास और वैराग्य की बात कही है। भगवान व्यासदेवजी ने अभ्यास और वैराग्य को रूपक के माध्यम से बड़े ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया है । चित्त एक नदी है, जिसमें वृत्तियों का प्रवाह बहता है । इसकी दो धाराएं हैं
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के अंदर जमा प्रेम, मोह और डर को दूर किया था। गीता के 18 योगमुख्य बातें महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को श्रीकृष्ण ने दिया था उपदेश और अर्जुन के विषाद को दूर करने के लिए बताएं थे 18 योग श्रीकृष्ण ने कहा था,कि कर्मयोग ही सबसे बड़ा योग है
गीता में योग शब्द को एक नहीं बल्कि कई अर्थों में प्रयोग हुआ है, लेकिन हर योग अंतत: ईश्वर से मिलने मार्ग से ही जुड़ता है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। गीता में योग के कई प्रकार हैं, लेकिन मुख्यत: तीन योग का वास्ता मनुष्य से अधिक होता है। ये तीन योग हैं, ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। महाभारत युदध् के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातों में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को बताया था कि जीवन में सबसे बड़ा योग कुछ है तो वह है, कर्म योग।
उन्होंने बताया था कि कर्म योग से कोई भी मुक्त नहीं हो सकता, वह स्वयं भी कर्म योग से बंधे हैं। कर्म योग ईश्वर को भी बंधन में बांधे हुए रखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि भगवान शिव से बड़ा तपस्वी कोई नहीं हैं और वह कैलाश पर ध्यान योग मुद्रा में लीन रहते हैं। श्रीकृष्ण योग ने अर्जुन को 18 प्रकार के योग मुद्रा के बारे में जानकारी देकर उनके मन के मैल को साफ किया था। क्या हैं ये 18 योग मुद्राएं? गीता में उल्लेखित श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को आइए हम भी जानें।
: ईश्वर में पूर्ण विश्वास व समर्पण से होगा दुखों का नाश, श्री कृष्ण ने गीता में दिया ये ज्ञान: सांसारिक वस्तुओं को त्याग ऐसे होगी ईश्वर की प्राप्ति, कृष्ण ने गीता में अर्जुन को दिखाया था मार्ग

गीता में उल्लेखित हैं ये प्रमुख योग मुद्राएं

विषाद यानी दुख। युद्ध के मैदान में जब अर्जुन ने अपनो को सामने देखा तो वह विषाद योग से भर गए। उनके मन में निराशा और अपनो के नाश का भय हावी होने लगा। तब भगवान श्रीकष्ण ने अर्जुन के मन से यह भय दूर करने का प्रयास किया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वही गीता बनीं। उन्होंने सर्वप्रथम विषाद योग से अर्जुन को दूर किया और युद्ध के लिए तैयार किया था।

सांख्य योग के जरिये भगवान श्रीकृष्ण ने पुरुष की प्रकृति और उसके अंदर मौजूद तत्वों के बारे में समझाया। उन्होनें अर्जुन को बताया कि मनुष्य को जब भी लगे कि उस पर दुख या विषाद हावी हो रहा है उसे सांख्य योग यानी पुरुष प्रकृति का विश्लेषण करना चाहिए। मनुष्य पांच सांख्य से बना है, आग, पानी, मिट्टी, हवा। अंत में मनुष्य इसी में मिलता है।

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जीवन में सबसे बड़ा योग कर्म योग है। इस योग से देवता भी नहीं बच सकते। कर्म योग से सभी बंधे हैं। सभी को कर्म करना है। इस बंधन से कोई मुक्त नहीं हो सकता है। साथ ही यह भी समझाया की कर्म करना मनुष्य का पहला धर्म है। उन्होंने अर्जुन को समझाया कि सूर्य और चंद्रमा भी अपने कर्म मार्ग पर निरंतर प्रशस्त रहते हैं। तुम्हें भी कर्मशील बनना होगा।

भगवान श्रीकृष्ण अजुर्न से कहा कि ज्ञान अमृत समान होता है। इसे जो पी लेता है उसे कभी कोई बंधन नहीं बांध सकता। ज्ञान से बढ़कर इस दुनिया में कोई चीज़ नहीं होती है। ज्ञान मनुष्य को कर्म बंधनों में रहकर भी भौतिक संसर्ग से विमुक्त बना देता है।

भगवान ने अर्जुन को बताया कि कर्म से कोई मुक्त नहीं, यह सच है, लेकिन कर्म को कभी कुछ पाने या फल पाने के लिए नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपना कर्म करना चाहिए यह सोचे बिना कि इसका फल उसे कब मिलेगा या क्या मिलेगा। कर्म के फलों की चिंता नहीं करनी चाहिए। ईश्वर बुरे कर्मों का बुरा फल और अच्छे कर्मों का अच्छा फल देते हैं।

ध्यान योग से मनुष्य खुद को मूल्यांकन करना सीखता है। इस योग को करना हर किसी के लिए जरूरी है। ध्यान योग में मन और मस्तिष्क का मिलन होता है और ऐसी स्थिति में दोनों ही शांत होते हैं और विचलित नहीं होते। ध्यान योग मनुष्य को शांत और विचारशील बनता है।

इस योग में मनष्य किसी खोज पर निकलता है। सत्य की खोज विज्ञान योग का ही अंग है। इस मार्ग पर बिना किसी संकोच के मनुष्य को चलना चाहिए। विज्ञान योग तप योग की ओर ही अग्रसर होता है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि अक्षर ब्रह्म योग की प्राप्ति से ही ब्रह्मा, अधिदेव, अध्यात्म और आत्म संयम की प्राप्ति होती है। मनुष्य को अपने भौतिक जीवन का निर्वाह शून्य से करना चाहिए। अक्षर ब्रह्म योग के लिए मनुष्य को अपने अंदर के हर विचार और सोच को बाहर करना होता है। नए सिरे से मन को शुद्ध कर इस योग को कराना होता है।

इस योग में स्थिर रहकर व्यक्ति परम ब्रह्म के ज्ञान से रूबरू होता है। मनुष्य को परम ज्ञान प्राप्ति के लिए राज विद्या गुह्य योग का आत्मसात करना चाहिए। इसे आत्मसात करने वाला ही हर बंधनों से मुक्त हो सकता है।

मनुष्य विभूति विस्तार योग के जरिये ही ईश्वर के नजदीक पहुंचता है। इस योग के माध्यम से साधाक ब्रह्म में लीन हो कर अपने ईश्वर मार्ग पर प्रशस्त करना चाहिए । इस योग को मनुष्य जब कर लेता है तब उसे ईश्वर के विश्वरूप का दर्शन होता है। ये अनंत योग माना गया है। ईश्वर तक विराट रूप योग के माध्यम से अपना रूप प्राप्त किए हैं।

भक्ति योग ईश्वर प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ योग है। बिना इस योग के भगवान नहीं मिल सकते। जिस मनुष्य में भक्ति नहीं होती उसे भगवान कभी नहीं मिलते। क्षेत्र विभाग योग ही वह जरिया है जिसे जरिये मनुष्य आत्मा, परमात्मा और ज्ञान के गूढ़ रहस्य को जान पाता है। इस योग में समा जाने वाले ही साधक योगी होते हैं।

गीता में वर्णित ये योग, मौजूदा समय में मनुष्य की जरूरत हैं। इसे अपनाने वाला ही असल मायने में अपने जीवन को पूर्ण रूप से जी पाता है

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