तीन पहर तीन स्वरुपों मे विराजमान हैं कोराडी की श्री महालक्ष्मी जगदंबा माई
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री:सह-संपादक रिपोर्ट
कोराडी की विख्यात श्री महालक्ष्मी जगदंबा तीन पहर तीन रुपों में विराजमान रहती हैं। प्राचीन कालीन मान्यताओं के अनुसार मां महालक्ष्मी जगदंबा के तीन रुपों मे भक्तों को दर्शन प्राप्त होता है। प्रातःकालीन कन्या रुप मध्यानकाल यानी दोपहर युवा रुप तथा सायंकाल बौद्ध रुप मे दर्शन होते है।
*शारदीय अश्विन नवरात्र मे मां के रूपों में स्त्री जीवन का पूर्ण बिम्ब*
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या *”शैलपुत्री”* स्वरूप है।
2. कौमार्य अवस्था तक *”ब्रह्मचारिणी”* का रूप है।
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह *”चंद्रघंटा”* समान है।
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह *”कूष्मांडा”* स्वरूप में है।
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री *”स्कन्दमाता”* हो जाती है।
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री *”कात्यायनी”* रूप है।
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह *”कालरात्रि”* जैसी है।
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से *”महागौरी”* हो जाती है।
9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली *”सिद्धिदात्री”* हो जाती है।
*आज मां चंद्रघंटा की पूजा होगी?*
धर्म शास्त्रों के अनुसार माता चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान रहती है और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं। माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में अपितु परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है।