भाग :195) सबके मर्यादा पुरुषोत्तम है राम सत्य मर्यादा कर्म आदर्श और अनुकरणीय है श्री राम
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
सभी के अनुकरणीय, हरमन में विराजते और जगत के पालनहार सबके मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं. “र” का अर्थ है – अग्नि, प्रकाश, तेज, प्रेम, गीत. रमते इति राम: जो कण-कण में रमते हों, उसे राम कहते हैं. निरंतर आत्मा में रमने वाला राम ही शीतल और स्वच्छ हृदय का धीरवान संत है हम सबके राम.
संत कबीर लिखते हैं कि, राम शब्द भक्त और भगवान में एकता का बोध कराता है. जीव को प्रत्येक वक्त आभास होता है कि राम मेरे बाहर एवं भीतर साथ-साथ हैं. केवल उनको पहचानने की आवश्यकता है. मन इसको सोचकर कितना प्रफुल्लित हो जाता है. इस नाम से सर्वआत्मा, स्वामी, सेवक और भक्त में उतनी सामीप्यता नहीं अनुभव होता हैं.
दुनिया के राम और राम की दुनिया, दुनियाभर में लोग श्रीराम को भगवान और अपना आराध्य मानते हैं. इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड में रामगाओं का गौरवमयी और पुराना इतिहास है. मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गुयाना की राम कथाएं पूरी दुनिया में अपना अलग महत्व रखती हैं. दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में वैश्विक स्तर पर रामलीलाएं आयोजित होती हैं. हर देश में रामायण की प्रस्तुतियां, अनूठी राम मान्यताएं और उनकी महान परंपराएं विद्यमान हैं. स्तुत्य, घट-घट वासी हम सबके राम कंठ-कंठ में अलौकिक है.
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में अवतार के उद्देश्य और सिद्धांत को सुंदर ढंग से प्रतिपादित किया है. अवतारी पुरुष अपनी श्रेष्ठता प्रकट करने के उद्देश्य आचरण नहीं करते उनका उद्देश्य यह होता है कि मनुष्य अपने जीवन में श्रेष्ठता जागृत करने का मर्म एवं ढंग उनको देखकर सीख सकें. इसीलिए वह अपने आप को सामान्य मनुष्य की मर्यादा में रखकर ही कार्य करते हैं. राम तो धर्म की साक्षात मूर्ति है. वह बड़े साधु और सत्य पराक्रमी है. जिस प्रकार इंद्र देवताओं के नायक हैं. उसी प्रकार राम भी सब लोकों के नायक हैं. श्री राम धर्म के जानने, सत्य प्रतिज्ञ की भलाई करने वाले कीर्तिवान, ज्ञानी, पवित्र, मन और इंद्रियों को वश में करने वाले तथा योगी है.
प्रत्युत, तुलसी के राम, जैसे काम के अधीन कामुक व्यक्ति को नारी प्यारी लगती है और लालची व्यक्ति को जैसे धन प्यारा लगता है. वैसे ही हे रघुनाथ, हे राम, आप मुझे हमेशा प्रिय लगते हैं. हे श्री रघुवीर! मेरे समान कोई दीन नहीं, आपके समान कोई दीनों का करने वाला नहीं है. ऐसा विचार कर हे रघुवंशी मणि! मेरे जन्म-मरण के भयानक दुखों को हरण कर लीजिए. श्री राम भक्ति रुकमणी जिसके हृदय में बसती है. उसे स्वप्न में भी लेश मात्र दुख नहीं होता.
हृदयंगम, राम नाम के पैरोकार गुरु नानक देव जी ने ना केवल राम नाम बल्कि नाद, शब्द, धुन, सच एक ही अर्थ में प्रयोग किया है. भगवान राम की महिमा सिक्ख परंपरा में भी बखूबी विवेचित है. सिक्खों के प्रधान ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में 55 सौ बार भगवान राम के नाम का जिक्र मिलता है. सिक्खों में भगवान राम से जुड़ी विरासत राम नगरी में ही स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में पूरी शिद्दत से प्रावमान है. उनकी जड़ें भगवान राम के पुत्र लव से जुड़ती है और दशम गुरु गोविंद सिंह जिस सोनी कुल के नर नाहर थे, उसकी जड़ें भगवान राम के दूसरे पुत्र कुश से जुड़ती हैं.
मनोहारी, रहीम के राम में जिन लोगों ने राम का नाम धारण न कर अपने धन, पद और उपाधि को ही जाना और राम के नाम पर विवाद खड़े किये, उनका जन्म व्यर्थ है. वह केवल वाद-विवाद कर अपना जीवन नष्ट करते हैं.
लीला में मीरा कहती है, जैसे एक कीमती मोती समुंदर की गहराइयों में पड़ा होता है. और उसे अथक परिश्रम के बाद ही पाया जा सकता है. वैसे ही ‘राम’ यानी ईश्वर रूपी मोती हर किसी को सुलभ उपलब्ध नहीं है. सद्गुरु आपकी कृपा से मुझे राम रूपी रत्न मिला है. यह ऐसा धन है जो ना तो खर्च करने से घटता है और ना ही उसे चोर चुरा सकते हैं
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये
राम शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है “वह जो रोम रोम में बसे”। यदि हम सामाजिक, ऐतिहासिक आदि रूपों से देखेंगे तब भी यह परिभाषा सर्वथा उपयुक्त बैठती है। इतिहास का कोई पृष्ठ नहीं जहाँ श्री राम का प्रभाव न हो, समाज का कोई वर्ग नहीं जो राम भक्ति से अछूता हो। यह कहना तो कदापि अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम भारतीय जनमानस में बसते हैं। यहाँ पिछले सहस्त्रों वर्षों से आजतक जनता यदि किसी आदर्श शासनतंत्र को जानती है तो वो है रामराज्य। यदि कोई जिज्ञासावश जानना चाहे कि रामराज्य के इतने सहस्राब्दियों के बाद भी क्यों सब रामराज्य चाहते हैं तो उत्तर आता है करुणानिधान भगवान श्री राम की महानता।
भगवान श्रीराम की महानता की कोई थाह ही नहीं है, उनके कथा-प्रसंग का श्रवण-पठन कर के आज तक लोग अपने-अपने चरित्र का सुधार करते हैं। उनके अद्वितीय शौर्य एवं पराक्रम से उन्होने यज्ञरक्षा कर ऋषियों को भयहीन किया , उनका अनुपम बल ही खर, दूषण आदि का काल बना, वे ही शील के मूर्त स्वरूप है। धनुष भंग करने का सामर्थ्य होनेपर भी वा सभा मे शांति से बैठे थे और गुरुआज्ञा मिलने पर ही गए, पितृभक्ति ऐसी की पिता का वचन कभी मिथ्या न होने दिए भले स्वयं कष्ट सहे, त्याग ऐसा कि जब कुछ ही समय मे राजतिलक होना था तब भी वल्कल पहनकर वनगमन करने मे संकोच नहीं किया, ज्ञान वेद शास्त्रादि अनेकों ग्रंथों का, मातृभूमि के प्रति प्रेम इतना कि अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी के बारे मे कभी बुरे शब्द सुनना तक नहीं सहा, धर्म परायण ऐसे जो साधुओं का दुःख सुनकर बोल उठे
“निशिचर हीन करहु महि, भुज उठाए पन कीन्ह।”
अनुजों से स्नेह ऐसा कि युगो तक उनके उदाहरण दिए जाते हैं, सीता माता से ऐसा प्रेम किया आज भी कई लोग सम्बोधन के रूप मे सीताराम ही बोलते हैं, सत्यवादी ऐसे कि ‘रामो द्विर्नाभिभाषते’ आज प्रेरणा वाक्य है, शबरी को स्वयं नवधा भक्ति का उपदेश देकर सामाजिक सौहार्द के प्रतीक बने, सुग्रीव की कठिन समय मे सहायता कर सच्चे मित्र होने का अर्थ समझाया, घोषणा करके-
“अनुज बधू भगिनि सुत नारी, सुन सठ कन्या सम ए चारि।
इन्हे कुदृष्टि बिलोकि जेई, ताहि बधे कछु पाप न होई॥”
समाज मे नारियों के सम्मान की शिक्षा दी।
राम अपने भक्तों के सामर्थ्य से भली भांति परिचित हैं तभी वह हनुमान को ही मुद्रिका देते हैं, भगवान राम की उदारता ऐसी है कि जो सम्पत्ति रावण को दस शीशों के दान के बाद मिली वो सम्पत्ति वो विभीषण को तो उसके आगमन के साथ दे देते है। यह परमपुनीत भगवान का बड़प्पन ही है जो पापियों को भी सुधरने का अवसर देते, रावण के पास भी उन्होने शांतिदूत अंगद को भेजा थे। मातृभक्ति ऐसी की कभी मन मे भी कैकयी माता के प्रति द्वेष भाव न रखा और वापस आ कर सर्वश्रेष्ठ शासक बन कर दिखाए जिनका उदाहरण लोग कई युगो बाद आज भी देते हैं।
“दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥”
असुरारि भगवान के कर्मों द्वारा स्थापित ऐसे ही आदर्शों ने मानव कल्याण मे भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत के संविधान की मूल प्रति मे दीनदयाल भगवान के चित्र हैं। गाँधी जी भी भगवान श्रीराम से ही प्रेरणा पाते थे और भारत मे रामराज्य चाहते थे। स्वामी रामानंद जैसे महान समाज सुधारक संत ने भी समाजिक पतन को रोकने के लिए रामनाम की महिमा का ही प्रयोग किया था । भगवान राम से प्रेरणा पाकर लोग समाजसेवा मे अत्यधिक योगदान करते है। आज भी भगवान राम की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है । हिंदू जनमानस के लिए भगवान राम की प्रासंगिकता उतनी ही ही जितनी सागर में जल की, वनों में वृक्ष की अथवा ज्ञानी पुरुषों में विनम्रता की होती है। राम हर हिंदू के लिए इस भारतवर्ष के पवित्र भूमि के हर कण में व्याप्त है। राम के बिना इस भारतवर्ष की कोई कल्पना नहीं की जा सकती। एक बार श्री राम का नाम-मात्र ही उनके भक्तों के संपूर्ण दुखो का हरण करने वाला है। भगवान राम का चरित्र आज के समय मे भी लोगो को सही दिशा बताने मे सक्षम है । कलिप्रभाव की कालिमा मे तो भगवान राम द्वारा दिखाया धर्मपरायण मार्ग अमावस की रात्रि मे दामिनी समान दमकता है।
भक्तवत्सल भगवान् के अवतार के अनेक कारण होते हैं, भक्तों पर कृपा इनमे प्रमुख हैं। गोस्वामी जी ने लिखा है
“जब जब होइ धरम कै हानी, बाढ़हि असुर संत अभिमानी।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा, हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥”
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धर्म की पुनः स्थापना के लिए दुनिया में श्री राम के रूप में अवतार लिया। भगवान से साँवले सलोने रूप मे महारानी कौशल्या और महाराज दशरथ के घर अयोध्या मे जन्म लेकर सर्वत्र आनंद का संचार किया