भाग:230)श्रीलंका दहन से पहले हनुमानजी महाराज ने किया था रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में स्वयं भगवान श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से कहा है कि हनुमान के पराक्रम से ही उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की है। हनुमान अष्टमी के अवसर पर हम आपको हनुमानजी द्वारा किए गए कुछ ऐसे ही कामों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें करना किसी और के वश में नहीं था-
1) रामायण कथा के अनुसार
युद्ध में हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमानजी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार, हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमानजी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।
माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।
समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमानजी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमानजी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमानजी ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसको भी मार दिया। हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी।
जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
युद्ध के दौरान रावण के पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। तब जामवंत के कहने पर हनुमानजी औषधियों का पहाड़ लेकर आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।
हनुमान जी श्री जानकी माता से फल खाने की आज्ञा लेकर बाग में प्रवेश करते हैं। बाग में पहरा देने वाले राक्षसों ने देखा कि एक वानर चला आ रहा है। एक राक्षस ने दूसरे से कहा ।कि बंदर आ रहा है। राक्षस तो स्वभाव से ही आलसी होते है ।दूसरे ने कहा आने दो।
फिर एक पहरेदार राक्षस ने कहा बंदर फल खा रहा है। दूसरा आलसी राक्षस बोला खाने दो। बंदर है ,दो-चार फल खाएगा चला जाएगा हनुमान जी ने देखा की इन राक्षसों पर तो कोई प्रभाव ही नहीं पड़ रहा है। तो हनुमान जी ने वृक्षों को उखाड़ना प्रारंभ किया।
फल खाएसि तरु तोरे लागा।।
अब तो राक्षसों ने देखा फल खा रहा था वहां तक तो ठीक था। हम रावण से कह सकते थे कि वृक्षों में फल ही इतने लगे थे। किंतु अब तो यह वृक्षों को उखाड़ कर बगीचा ही नष्ट करना चाहता है। रावण को क्या जवाब देंगे।राक्षस दौड़े। हनुमान जी ने वृक्षों को ही उखाड़ कर राक्षसों के ऊपर डाल दिए। अब तो बहुत सारे रखवाले हनुमान जी के ऊपर दौड़े। हनुमान जी ने राक्षसों को आपस में ही झांझ मंजीरे की तरह रगड़ कर मसल कर फेंक दिया ।अब कुछ अधमरे से हुए राक्षस रावण के दरबार की ओर भागे
रहे तहां बहु भट रखवारे।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे।।
भागते जा रहे हैं, पीछे देखते जा रहे हैं। हांफते हुए रावण के दरबार में पहुंचे ।और रावण से कहने लगे। गोस्वामी तुलसीदास जी इस चौपाई के माध्यम से बड़ा सुंदर संकेत करते हैं। जिस तरह की भागकर जाने वाला व्यक्ति हांफते हुए एक वाक्य को एक ही सांस में कह नहीं सकता है।
इसलिए वह बीच में सांस लेते हुए एक एक शब्द कहता है। और उसी तरह इन राक्षसों ने रावण से जाकर कहा। नाथ, फिर कहा एक, फिर कहा आवा, फिर कहा कपि, फिर कहा भारी।
नाथ एक आवा कपि भारी।।
एक वाक्य को एक ही सांस में नहीं कह पाये। हांफने के कारण।राक्षसों ने रावण से कहा कि एक बहुत महाबली बंदर बाग में आया है। और उसने पूरे बाग को तहस-नहस कर दिया है।अशोक वाटिका को उजाड़ दिया है।
नाथ, एक, आवा ,कपि, भारी।
तेहि, अशोक ,वाटिका ,उजारी।।
हम रख वालों को बहुत मारा है। यह सुनकर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ। कि इतना महाबली बंदर कौन हो
सकता है? वह तो केवल एक बाली का पुत्र अंगद ही हो सकता है ।रावण जानता था इतना सामर्थ तो केवल अंगद में है। और अंगद को तो यह श्राप है कि मेरे पुत्र अक्षय कुमार पर यदि वह हाथ उठाता है तो वह मारा जायेगा। रावण ने विचार किया ऐसे समय में अक्षय कुमार को ही उसके सामने भेजना चाहिए।रावण ने अक्षय कुमार को हनुमान जी को मारने के लिए भेजा।
पुनि पठयऊं तेहि अच्छकुमारा।
चला संग ले सुभट अपारा।।
अक्षय कुमार अपनी सेना लेकर हनुमान जी के सामने गया। हनुमान जी भी जानते थे। कि यह अंगद के लिए सबसे बड़ा कांटा है ।जब राम जी सेना सहित लंका में आएंगे तो अंगद जी भी आएंगे। इसलिए कहीं इसके कारण अंगद जी पर कोई संकट ना आ जाए। इसलिए हनुमान जी ने अक्षय कुमार को वही पछाड़ दिया ।अंगद जी के लिए रास्ता साफ कर दिया ।अब तो राक्षस सेना फिर दौड़ते हुए दरबार में गई ।और जाकर रावण से कहा कि उस वानर ने अक्षय कुमार को मार दिया है। अक्षय कुमार की मृत्यु का समाचार सुनकर रावण बहुत क्रोधित हुआ।
सुनी सुत वध लंकेस रिसाना।।
और क्रोधित होते हुए बोला। ऐसा महाबली कौन बन्दर लंका में आया है? मेघनाथ ने कहा पिताजी मुझे आज्ञा दीजिए। मैं जा कर देखता हूं ।जिसने मेरे भाई को मारा है ।मैं अभी जाकर उसका बदला लेता हूं। रावण ने कहा जाओ मेघनाथ ।किंतु उस बंदर को मारना मत। यहां पकड़ कर लाना। मैं भी तो देखूं। यह महाबली बंदर कौन है। मेघनाथ अपनी सेना लेकर जाता है।
पठयसि मेघनाथ बलवाना।।
हनुमान जी जानते हैं। पहले सुभट आया था ।अब यह दारुन भट्ट आया है ।
कपि देखा दारुन भट आवा।।
किंतु ठीक है। इसे भी देख लेते हैं ।हनुमान जी और मेघनाथ का संग्राम होता है। मेघनाथ हर तरह से माया करके हनुमान जी पर विजय पाना चाहता है। किंतु हनुमान जी को जीत नहीं पाता है।
उठि बहोरि कीन्हसि बहु माया।
जीति न जाइ प्रभंजन जाया।।
हनुमान जी ने जब अपने बल का प्रयोग किया ।तब मेघनाथ को लगा कि अब मेरे प्राण बचने वाले नहीं है ।तब मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। हनुमान जी ने देखा मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र चलाया है। इसकी मर्यादा रखना मेरा कर्तव्य है । ब्रह्मा जी के अस्त्र का तो मान रखना ही पड़ेगा। नहिं तो ब्रह्मास्त्र की महिमा ही नहीं रहेगी।
ब्रह्म अस्त्र तेंहि सांधा,
कपि मन कीन्ह विचार,
जौं न ब्रह्म सर मानऊं,
महिमा मिटइ अपार।।
हनुमान जी ब्रह्मास्त्र के प्रहार से भूमि में गिरते हुए बैठ गये। मूर्छित हो गये।
मेघनाथ ने देखा हनुमान जी मूर्छित हो गये है।नागपास में बांध लिया
तेंहिं देखा कपि मूर्छित भयऊ।
नागपास बांधेसि लै गयऊ।।