नैतिक मूल्यों में गिरावटें के चलते घटिया और अश्लील होती जा रही हैं महेंदी और हल्दी की रस्मों की पराकाष्ठा
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
मुंबई। देशभर में विवाह का मौषम आते है पुनः मेंहदी और हल्जी की रस्में शुरु हो गई है, इसके साथ ही संस्कारों के नाम पर हमारे समाज में अश्लीलता का पदार्पण हो चुका है । नई नई कुप्रथाएँ जन्म ले रहीं हैं । ऐसे ही एक मेहंदी और हल्दी कार्यक्रमों में बढ़ रही अश्लीलता को लेकर समाा सेवीश्री करण पटेल_ का यह आलेख पठनीय है ।
वैवाहिक मौषम मे हल्दी रस्म ,मेहंदी रस्म की प्रगति निरंतर बढ़ती जा रही है।अपनी माँ दादी की परम्पराओं को छोड़ एकता कपूर के सीरियल पर आधारित शादी करोगे तो वो सनातन सांस्कृतिक अनुसार वैवाहिक रस्में कम देह भोग विलासिता के लिए पार्टनर जुगाड़ व्यवस्था ज्यादा कर रहे हैं। वहां मेंहदी रस्म और हल्दी रस्म की आड में समाज की होनहार बहू बेटियों का अंग स्पर्श सहलाने का अश्लील नंगा होना भला कितना मायने रखता है।
_इसलिए मैं कहता रहता हूं अपने घर के विवाह संस्कारों को एकता कपूर आधारित मत बनाओ_ _बल्कि अपने घर की माता दादियों भुआ काकी मौसी और घर की परंपरा अनुसार बनाओ, क्योंकि अगर घर का विवाह टीवी सीरियल आधारित हो गया तो हल्दी रसम मेहंदी रस्म जैसे फर्जी आयोजनों में हमारे घर की दादी नानी भुआ काकी और घर के बड़ों की हिस्सेदारी खत्म हो जाएगी और सारे आयोजन परंपरा से कट कर टीवी सीरियल आधारित हो जाएंगे और टीवी सीरियल तो निरंतर बहन बेटियों को नंगा करने का ही काम कर रहे हैं इसलिए इन टीवी सीरियल वालों को अपने घर की पवित्र सनातन परंपराओं में घुसपैठ मत करने दो वरना यह आपके घर की बहन बेटियों को भी नंगा करेंगे और आप ग्लैमर के नाम पर सेवाएं देखने के कुछ नहीं कर पाओगे ।
अभी इन नाटकों की शुरुआत हुई है कहीं कपड़े ढके हैं कहीं कपड़े ऊपर हो चुके हैं जब तक पूरे कपड़े ना निकले उससे पहले अपनी परंपराओं और जड़ों की ओर लौट आओ वरना परंपराओं से कटे आपके घर की बहन बेटियों को आपके सामने आपके आंगन में ही नंगा कर दिया जाएगा ।
_ग्लैमर के नाम पर और आप नाचते रहोगे। समय है थोड़ा संभल जाओ।_
_यह हल्दी रस्म ओर महंदी रस्म हमारे सनातन विवाह परंपराओं के अंग नहीं है इन फर्जी फिल्मी नाटकों को परंपराओं में मत भरो , वरना आपकी पवित्र परंपरा और आपके कुल दोनों के लिए यह नोटंकी घातक सिद्ध हो सकता है।
वैवाहिक आयोजकों ने इसे गंभीरतापूर्वक विचार विमर्श करके प्राचीन सनातन धर्म संस्कृतनिष्ठा के अनुकूल सभी रस्मों का सम्पन्न किया जाना चाहिए? अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब आधुनिक फिल्म के निर्माता और अभिनेत्रियों के जीवन काल में घटित घटियापन और ओछी हरकतों की वजह से अज्ञात बीमारियों जैसे सैक्सफीवर,एड्स, तपेदिक क्षय व्याधिदोष विकारों की चपेट में अकाल मृत्यू का शिकार होना पड सकता है?