भाग:255) श्री लंका पति रावण को हराकर अयोध्या लौटने पर हुआ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राजतिलक?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
श्रीलंका जीत के बाद वापस अयोध्याधाम लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राजतिलक की तैयारियां शुरू हो गई। अयोध्या मे चारों तरफ खुशहाली छा गई है।14 वर्ष के वनवास के बाद विजय प्राप्त कर लंका से अयोध्या लौटने पर प्रभु श्री राम का राजतिलक हुआ था. गुरु वशिष्ठ के आदेश पर राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू हुईं जिसके बाद सबसे पहले गुरु वशिष्ठ ने ही उनका राजतिलक किया. क्या है भगान श्रीराम के राज्याभिषेक की पौराणिक कथा, आइए विस्तार से जानते हैं.
श्री राम जब रावण को हराकर 14 सालों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे तो अयोध्या वासियों ने पूरे हर्ष और उल्लास के साथ श्रीराम-लक्ष्मण माता सीता का स्वागत किया. इतने सालों के बाद अपने राम को देखकर पूरी अयोध्या में जश्न का माहौल था. अयोध्या लौटने पर श्री राम के राजतिलक का आयोजन किया गया. क्या आप जानते हैं श्रीराम का पहली बार राजतिलक किसने किया था.
गुरु वशिष्ठ ने किया था सबसे पहले राजतिलक
गुरु वशिष्ठ ने जब ब्राह्मणों के साथ मिलकर श्री राम के राजतिलक की योजना बनाई. जिसके बाद मंत्री सुमंत्र जी ने साभी ब्राह्मणों के साथ मिलकर राजतिलक की तैयारियां शुरू कर दी. गुरु की आज्ञा के अनुसार सेवकों को संमग्री लाने के लिए भेजा गया. साथ ही रथ, घोडे़, हाथी और पूरे राज्य को सुंदर ढ़ग से सजाया गया.
गुरु वशिष्ठ ने सबसे पहले श्री राम का राजतिलक करने के लिए आए. उन्होंने प्रेम भरे हृदय से अयोध्या का सिंहासन मंगवाया और भगवान श्री राम को उस पर विराजमान होने को कहा. गुरु वशिष्ठ की आज्ञा प्राप्त कर श्रीराम ने सभी ब्राह्मणों और मुनियों की तरफ आदर से सिर झुकाया और सिंहासन पर विराजमान हो गए, जिसके बाद ब्राह्मणों ने मंत्रोंच्चार किया. माताओं ने आरती की और स्वर्ग से देवी-देवता भी भगवान श्री राम की जय-जयकर करने लगे.
श्रीराम के लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटने पर अयोध्या में दिवाली मनाई गई, पूरा नगर रोशनी से जगमगा रहा था. माता सीता और लक्ष्मण के साथ हनुमानजी, नर-नील, सुग्रीव, अंगद का भी आदरपूर्वक स्वागत किया. इसके बाद गुरु वशिष्ठ ने कहा कि आज की बहुत ही शुभ घड़ी है. जिसके बाद गुरु वशिष्ठ ने ब्राह्मणों को बुलाकर श्रीराम का राजतिलक करने का विचार किया.
जब भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के लिए जा रहे थे, तब उनके छोटे भाई भरत ने यह प्रण लिया था कि जब आप 14 सालों का वनवास पूरा कर वापस नहीं आते तब तक मैं यहीं रहकर नंदीग्राम में तप करूंगा और सिंहासन पर आपकी चरण पादुका रखकर सेवक की भांति अयोध्या की सेवा करूंगा. अगर आपने वापस आने में 14 सालों से एक भी दिन अधिक लिया तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा. इसलिए श्रीराम ने अयोध्या लौटते ही सबसे पहले अपने प्रिय भाई भरत को गले से लगाया तभी से यह क्षण भरत मिलाप कहलाया.
गुरु वशिष्ट की सहमति से सभी मंत्री सुमंत नगर की सारी प्रजा खुश है सभी राम के राज तिलक की तैयारी में लग जाते हैं
मंत्री मुदित सुनतप्रिय वानी अभिमत विरव परेअजनू पानी
विनती सचिव करहि कर जोरी जिअहु जगतपति वरष करोरी
राजा दशरथ की इस मधुर वाणी को सुनते ही मंत्री ऐसे आनंदित हुए उनके मन में उग रहे सूखे पौधे को पानी मिल गया हो मंत्री हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं
कि राजन हे जगत पिता आप हजारों साल जियो आपने जगत का मंगल करने वाला कार्य किया है ऐसा काम कोई सिद्ध पुरुष महात्मा ही कर सकता है राजन जल्दी कीजिए देर ना लगाइए मंत्रियों की आवाज सुनकर राजा दशरथ प्रसन्न हुए जैसे डूबे हुए को तिनके का सहारा मिल जाता है
राजा ने कहा जैसे गुरु वशिष्ट कहें वैसा करें तभी गुरु वशिष्ट ने कहा संपूर्ण श्रेष्ठ तीर्थों का जल लाए फिर औषधि फूल फल लाने को मंगल वस्तुओं के नाम बताएं
बेद विदत कहि सकत निधाना कहेऊ रचऊ पुर विविध विताना
सफल रसाल पुंगफल केरा रोप हूं विथिन्ह पुर चहूँ फेरा
गुरु ने वेदों में कहा हुआ सब विधान बताकर नगर में बहुत से मंडप सजवाए फल सुपारी केले के पेड़ नगर के चारों तरफ लगवा मुनीश्वर ने जिसको जिस काम के लिए कहा उसने वह काम शीघ्र कर दिया राजा ब्राह्मण साधु सभी देवताओं को पूछ रहे हैं सभी मंगल कार्य हो रहे हैं दोनों भाई एक दूसरे से बात कर रहे हैं कि इस कार्य से भारत के आने के संकेत मिल रहे हैं उनको मामा के घर गए काफी दिन हो गए हैं
राम को भारत के सम्मान जगत में कौन प्यारा है राम को भाई भरत की दिन रात याद आती है जैसे कछुए का मन अंडो में रहता है महलों में जब यह समाचार पहुंचा तो खुशी की लहर फैल गई माता उन्हें समाचार देने वालों को आभूषणों से मालामाल कर दिया है।
राज राज अभिषेक सुनि हिय हरषे नर नारि
यगे सुमंग्गल सजन सव विधि अनुकूल विचारि
रामचंद्र जी का राजतिलक होगा यह सुनकर सभी नगर वासी हृदय में हर्षित हो उठे और भगवान को अपने पर मेहरबान समझकर नगर की शोभा बढ़ाने में लग गए
तब राजा ने वशिष्ठ जी को बुलवाया और शिक्षा के लिए राम के पास महलों में भेजे, प्रभु राम ने गुरु जी को आते देखा तो दौड़कर दरवाजे पर आए गुरु जी के चरणों में शीश नवाया गुरु जी को आदर पूर्वक घर में लाएं और पूजा वंदना करके उनका सत्कार किया फिर सीता सहित उनके चरण स्पर्श किए कमल जैसे हाथ जोड़कर श्री राम बोले यद्यपि सेवक के घर स्वामी का आना दुखों का नाश करने वाला होता है परंतु है नाथ ठीक तो यही था प्रेम पूर्वक दास को ही कार्य के लिए भेजते
गुरु वशिष्ठ राम के मीठे वचनों को सुनकर उनकी प्रशंसा की और कहा राम आप सब का आदर करना भली-भांति जानते हैं आप सूर्यवंशज जो हैं राम का बखान कर मुनिराज बोले राजा दशरथ ने राज्य अभिषेक की तैयारी की है और वह आपको युवराज पद देना चाहते हैं राम आज आप उपवास हवन आदि विधि पूर्वक करें जिससे भोलेनाथ इस कार्य को कुशलता पूर्वक कर दें गुरुजी शिक्षा देकर राजा दशरथ की और चले गए
रामचंद्र के मन में इस बात का दुख हुआ कि हम सभी भाई साथ साथमें पड़े खेले शिक्षा प्राप्त की विवाह आदि सब साथ-साथ हुए पर इस निर्मल वंश में एक परंपरा गलत है कि राजा बड़े को बनाया जाता है
तेहि अवसर आये लखन मगन प्रेम आनन्द
सनमाने प्रिय वचन कहि रघुकुल केरवचन्द
उसी समय मन में खुश होते हुए लक्ष्मण जी आए प्रभु राम ने प्रिय वचन कह कर उनका सम्मान किया
नगर में बाजे बज रहे हैं नगर की गति का बखान नहीं किया जा सकता सब लोग भरत जी के आने की खुशी मना रहे हैं अयोध्या नगरी में चारों तरफ यही चर्चा है कि कल का लग्न मुहूर्त कितने समय में है जब भोलेनाथ हमारी मनोकामना पूर्ण करेंगे
जब सीता सहित श्री रामचंद्र जी सोने के सिंहासन पर विराजमान होंगे और हमारा मन प्रसन्न होगा अयोध्या नगरी देवों की नगरी की तरह स्वाभिमान लग रही थी