भाग:256) मर्यादा पुरुषोत्तम राजा श्रीराम के राज्य में जनता-जनार्दन को नैसर्गिक न्याय मिलना संभव था?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
त्रेतायुग में कैसी थी अयोध्या:मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम के राज्य में जनता-जनार्दन को नैसर्गिक न्याय मिलता था, टैक्स लेने का नियम क्या थे?
भारत में राम राज्य की चर्चा तो गाहे-बगाहे होती है. ऐसे में इस स्पेशल स्टोरी में आइए जानते हैं कि राम के वक्त अयोध्या कैसी थी और उसका राम राज्य कैसा था?
14 सालों का वनवास काटकर अयोध्या लौटे श्रीराम का राज्याभिषेक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में छठवीं तिथि को हुआ था. इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज की मानें तो यह वाकया करीब 5075 ईसा पूर्व की है, यानी इस घटन को घटे करीब 7000 साल हो चुके हैं.
राज्याभिषेक के बाद भगवान राम के लोकगमन तक की अवधि को राम राज्य कहा जाता है यानी राम का शाषण. कहा जाता है कि राम ने अयोध्या में करीब 45 साल तक शासन किया.
शास्त्रों में राम राज्य को आदर्श राज्य व्यवस्था की संज्ञा दी गई है. इसे यूटोपिया (आदर्शवाद की चरम स्थिति) भी कहा जाता है.
किंवदंती है कि राम राज्य में चीजें इतनी संतुलित थी कि नदी के एक ही घाट पर बकरी और बाघ साथ पानी पीते थे. यही वजह है कि 7090 साल बाद भी नेता और पार्टियां अपने यहां राम राज्य लाने की बात करते हैं.
भारत में राम राज्य की चर्चा तो गाहे-बगाहे होती है. ऐसे में इस स्पेशल स्टोरी में आइए जानते हैं कि राम के वक्त अयोध्या कैसी थी और उसका राम राज्य कैसा था?
राम के वक्त कैसी थी अयोध्या?
वाल्मीकि रामयाण के उत्तरकांड में अयोध्या के बारे में विस्तार से बताया गया है. वाल्मीकि के मुताबिक सरयू तट पर बसी अयोध्या का कुल क्षेत्रफल बारह योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी है.
वर्तमान के माप को देखें तो एक योजन का मतलब 8 मील से है. एक मील में 1.6 किमी होते हैं. इस हिसाब से गुणा किया जाए, तो अयोध्या करीब 12 हजार वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी.
अयोध्या की सुरक्षा व्यवस्था लक्ष्मण की देखरेख में काफी चाक-चौबंद थी. अयोध्या की सीमा पर बड़े-बड़े गड्ढे किए गए थे, जिससे आसानी से कोई प्रवेश नहीं कर पाए.
एक मुख्यद्वार के अलावा कई छोटे-छोटे द्वार भी बनाए गए थे. इन द्वारों पर पहरेदारों की 24 घंटे तैनाती रहती थी. अयोध्या के तट पर बसे सरयू के किनारे-किनारे तुलसी के हजारों पौधे लगे हुए थे. सरयू के किनारे ही विरक्त और ज्ञानपरायण मुनि और संन्यासी निवास करते थे.
1. राम राज्य में मौसम कैसा था?
राम राज्य में न तो अधिक ठंड थी और न ही अधिक गर्मी. वाल्मीकि लिखते हैं- यहां बारिश भी इच्छानुसार होती है, क्योंकि कृषकों के लिए बरसात जरूरत है. कहा जाता है कि राम राज्य में मौसम बसंत ऋतु जैसा था.
मौसम और अयोध्या की स्थिति को लेकर रामचरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं-
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती
इसका अर्थ होता है- राम राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप नहीं था. सभी लोग अच्छे ढंग से रहते थे और एक दूसरे का पारस्परिक सहयोग करते थे.
2. अपराध को लेकर क्या नियम थे?
राम राज्य में एकाध अपराध को छोड़ दिया जाए, तो किसी भी अपराध का कोई जिक्र नहीं है. राम चरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं- ‘दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज…. जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज’
अर्थात राम राज्य में दंड (एक तरह का वस्तु) केवल संन्यासियों के हाथों में है और भेद नाचने वालों के नृत्य समाज में है और ‘जीतो’ शब्द केवल मन के जीतने के लिए ही सुनाई पड़ता है केवल संन्यासियों के हाथों में रह गया था और भेद केवल नाचने वालों के नृत्य-समाज में था.
तुलसीदास के मुताबिक रामराज्य में कोई किसी का शत्रु नहीं था, इसलिए दंड देने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. राम राज्य में अपराध कितना और किस तरह का होता था, इसके बारे में भले नहीं बताया गया है, लेकिन कुछ जगहों पर न्याय का जिक्र जरूर है.
वाल्मीकि रामायण में कुत्ते और ब्राह्मण के बीच के एक झगड़ा का जिक्र है. इसके मुताबिक एक ब्राह्मण एक कुत्ते के सिर पर लाठी मार देते हैं, जिसके बाद कुत्ता राम के पास न्याय के लिए जाता है.
वाल्मीकि लिखते हैं- कुत्ते की बात सुनकर राम ने ब्राह्मण से पूछा,*’त्वया दत्तः प्रहारोऽयं सारमेयस्य वै द्विज ॥ किं तवापकृतं विप्र दण्डेनाभिहतो* यतः’….अर्थात- हे ब्राह्मण, आपने इस कुत्ते को क्यों मारा और इसका क्या अपराध था?
कहा जाता है कि राम ने इसके बाद कुत्ते के इच्छानुसार उक्त ब्राह्मण को मठाधीश होने का दंड सुनाया.
हालांकि, यह भी कहा जाता है कि राम राज्य में माता सीता ही एकमात्र पीड़ित थीं. मिथिला के क्षेत्र में आज भी इसको लेकल एक लोक उक्ति ‘सीता जन्म वियोगे गेल, दुख छोड़ी सुख कहियौ ने भेल’ कहा जाता है.
चंदा झा मैथिलि रामायण में लिखते हैं- राम जब राजा बन गए, तो उन्हें नागरिक गुप्तचरों ने कुछ सीक्रेट बात बताई. राम जब यह जानने के लिए निकले, तो लोग सीता और रावण को लेकर तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे थे.
अयोध्या के निवासी सीता की पवित्रता पर सवाल उठा रहे थे.
चंदा झा लिखते हैं- इसके बाद राजभवन लौटकर राम ने लक्ष्मण से कहा कि मैं अब सीता का परित्याग कर दूंगा और कल तुम उन्हें ऋषि आश्रम छोड़ आना. अगर, मैं बीच में आऊं, तो तुम मेरा गला उतार देना.
चंदा झा के मुताबिक जब सीता को राम ने वनवास का आदेश सुनाया, तब सीता 8 महीने की गर्भवती थीं. राम के कहे अनुसार ने लक्ष्मण ने उन्हें वन में छोड़ दिया. रथ से उतरने के बाद सीता कहती हैं-
रघुपति बड़ महराजे, कयल उचित न सम्प्रति काजे
हुनकर रमणि कहाये, दुखित बसब हम घन-वन जाये
इसका अर्थ है- राम महान राजा है फिर उन्होंने यह उचित नहीं किया है. उनकी पत्नी होकर मैं दुख के साथ घने जंगल में जाकर रहूंगी. मैं अपनी वेदना क्या बतलाऊं?
3. राम राज्य में कैसी थी टैक्स की व्यवस्था?
राम राज्य में लोगों की समृद्धि पर सबसे ज्यादा फोकस किया गया था. तंत्र इसी के अनुरूप कार्य करता था. सीमा विस्तार और प्रजा की समृद्धि के लिए राम ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन कराया था.
राम राज्य में अनाज प्रयाप्त मात्रा में था. इसकी बड़ी वजह लोगों का कृषक होना था. टैक्स कलेक्शन को लेकर राम राज्य में 2 नियम थे.
तुलसीदास रामचरित्र मानस में लिखते हैं- “मणि-माणिक महंगे किए, सहजे तृण, जल, नाज. तुलसी सोइ जानिए राम गरीब नवाज”
इसका अर्थ है- जेवरात को महंगा किया जाए, जिससे लोग इसे आसानी से खरीद न सके. वहीं जल और अनाज की सुगम उपलब्धता कराई जाए.
तुलसी एक जगह और लिखते हैं- “बरसत हरसत सब लखें, करसत लखे न कोय, तुलसी प्रजा सुभाग से, भूप भानु सो होय”
इसका अर्थ है- टैक्स इतना ही लेना चाहिए, जिससे आम लोगों पर असर न पड़े या वो न दिखाई दे. वहीं उस टैक्स का इतना काम करें कि सब लोग देख लें.
4. राम राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य का हाल?
किसी भी शासन व्यवस्था में शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे अहम विषय माना जाता है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि राम राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था का क्या हाल था?
रामचरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं-
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा, सब सुंदर सब बिरुज सरीरा
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना
अर्थात- राम राज्य में छोटी अवस्था में किसी की मृत्यु नहीं होती है. न किसी को कोई पीड़ा होती है. सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं. न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न दीन ही है. न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है.
गुरुकुलों में शिक्षा देने की व्यवस्था थी. धर्म और न्याय के बारे में सबको जानना जरूरी था. राम राज्य में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस रखा गया था. रामायण में वाल्मीकि लिखते हैं-
*अमात्यानुपधातीतान्पितृपितामहञ्च्छुचिन्।
श्रेष्ठान्श्रेष्ठेषुच्छित्वं नियोजयसि कर्मसु*
इसका अर्थ होता है- आप ऐसे मंत्रियों को बेहतर कार्य सौंप रहे हैं, जो रिश्वतखोरी और अन्य प्रलोभनों के आगे झुकने वाले नहीं हैं. जो पद पर वंशानुगत हैं और जो ईमानदारी और श्रेष्ठता से भरे हुए हैं.
आखिरी वक्त में वियोग में चले गए थे श्रीराम
मैथिलि रामायण के रचयिता चंदा झा लिखते हैं- धरती फटने और सीता के उसमें समाने के बाद राम व्याकुल हो गए. रोते हुए राम ने सीता से क्षमा मांगी और फिर विलाप करने लगे. ऋषि और मुनियों के समझाने के बाद राम यज्ञ काम में जुट गए, लेकिन उसके बाद वे वियोग में ही रहने लगे.
राम के वियोग में देखकर उनकी मां कौशल्या उसका कारण जानना चाहती हैं, जिस पर राम उन्हें भक्ति में लीन होने की सलाह देते हैं.
चंदा झा के मुताबिक राम सीता के विरह को सह नहीं पाए और जल्द ही उन्होंने अपनी राजगद्दी अपने बेटे को सौंप दी. इसके बाद पहले लक्ष्मण और फिर बाकी भाईयों के साथ राम स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं.
21 दिन तप के बाद प्रभु राम तीन शर्तों पर ओरछा चलने को हुए राजी हुए थे। अयोध्या नगरी सज रही है. तमाम अड़चनों के बाद 5 अगस्त को भूमिपूजन के साथ यहां प्रभु राम का विशाल मंदिर बनना शुरू हो जाएगा. अयोध्या के रामलला के साथ ही ओरछा के राजाराम भी हमेशा चर्चा में रहते हैं. अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा नाता है. जिस तरह अयोध्या के रग-रग में राम हैं, ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी राम विराजमान हैं. राम यहां धर्म से परे हैं. हिंदू हों या मुस्लिम, दोनों के ही वे आराध्य हैं. अयोध्या और ओरछा का करीब 600 वर्ष पुराना नाता है. कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आईं थीं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवरि गणेश, राम उपासक. इसके चलते दोनों के बीच अक्सर विवाद भी होता था. एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली. तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ
जब प्रभु राम ने ओरछा चलने के लिए रखीं 3 शर्तें
इस पर महारानी कुंवरि अयोध्या रवाना हो गईं. वहां 21 दिन उन्होंने तप किया. इसके बाद भी उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी. कहा जाता है कि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए. तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं. पहली, मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा. दूसरी, ओरछा के राजा के रूप विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी. तीसरी और आखिरी शर्त खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की थी.
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महारानी ने ये तीनों शर्तें सहर्ष स्वीकार कर ली. इसके बाद ही रामराजा ओरछा आ गए. तब से भगवान राम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं. राम के अयोध्या और ओरछा, दोनों ही जगहों पर रहने की बात कहता एक दोहा आज भी रामराजा मन्दिर में लिखा है कि रामराजा सरकार के दो निवास हैं खास दिवस ओरछा रहत हैं रैन अयोध्या वास.
ओरछा में प्रभु राम पर एक और बात प्रचलित है. कहा जाता है कि 16वीं सदी में जिस समय भारत में विदेशी आक्रांता मंदिर और मूर्तियों को तोड़ रहे थे, तब अयोध्या के संतों ने जन्मभूमि में विराजमान श्रीराम के विग्रह को जल समाधि देकर बालू में दबा दिया था. यही प्रतिमा रानी कुंवरि गणेश ओरछा लेकर आई थीं. साहित्यकार राकेश अयाची कहते हैं कि 16वीं सदी में ओरछा के शासक मधुकर शाह ही एकमात्र ऐसे पराक्रमी हिंदू राजा थे जो अकबर के दरबार में बगावत कर चुके थे.
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बुंदेला शासक मधुकर शाह पर अयोध्या के संतों का भरोसा
इतिहास में यह बात दर्ज है कि जब अकबर के दरबार में तिलक लगाकर आने पर पाबंदी लगा दी गई थी, तब मधुकर शाह ने भरे दरबार में बगावत कर दी थी. उनके तेवर के चलते अकबर को अपना फरमान वापस लेना पड़ा था. अयोध्या के संतों को यह भरोसा था कि मधुकर शाह की हिंदूवादी सोच के बीच राम जन्मभूमि का श्रीराम का यह विग्रह ओरछा में पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. इसीलिए उनकी महारानी कुंवर गणेश अयोध्या पहुंचीं और संतों से मिलकर विग्रह को ओरछा ले आईं.
बुंदेला शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवरि गणेश ने ही श्री राम को अयोध्या से ओरछा लाकर विराजित किया था, यह धार्मिक कथा ही नहीं है, बल्कि उन संभावनाओं को भी मान्यता देती है जिनमें कहा गया कि कहीं अयोध्या की राम जन्म भूमि की असली मूर्ति ओरछा के रामराजा मंदिर में विराजमान तो नहीं? अयोध्या के रामलला के साथ ही ओरछा के राजाराम भी सुर्खियों में आ जाते हैं.
हर बार मीडिया में ये सवाल सुर्खियों में रहता है कि अयोध्या जन्म भूमि की प्रतिमा ही ओरछा के रामराजा मंदिर में विराजमान है. इतिहासकार बताते हैं कि रामराजा के लिए ओरछा के मंदिर का निर्माण कराया गया था, पर बाद में उन्हें सुरक्षा कारणों से मंदिर की बजाए रसोई में विराजमान किया गया. इसके पीछे तर्क ये है कि माना जाता था कि रजवाड़ों की महिलाएं जिस रसोई में रहती हैं, उससे अधिक सुरक्षा और कहीं नहीं हो सकती है
ओरछा में राम हिन्दुओं के भी, मुसलमानों के भी
ओरछा में राम हिन्दुओं के भी हैं और मुसलमानों के भी. 40 साल से ओरछा निवासी मुन्ना खान जो सिलाई का काम करते हैं. वह कहते हैं कि रोज दरबार में सजदा करता हूं. हमारे तो सब यही हैं. राम उनके आराध्य हैं. ओरछा के ही नईम बेग भी राम को उतना ही मानते हैं जितना रहीम को. वे कहते हैं कि आपसी भाईचारा ऐसा ही रहे, जैसा ओरछा के रामराजा दरबार में है. यही तो ओरछा के राम की गंगा जमुनी तहजीब है. ओरछा के राम श्रद्धा चाहते हैं. इसलिए उन्होंने विशाल चतुर्भुज मन्दिर त्याग कर वात्सल्य भक्ति की प्रतिमूर्ति महारानी कुंवरि गणेश की रसोई में बैठना स्वीकार किया था. राम भक्तों के भावों में बसते हैं, भवनों की भव्यता में नहीं.
राजाराम को दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर
ओरछा और अयोध्या का संबंध करीब 600 वर्ष पुराना है. कहते हैं कि संवत 1631 में चैत्र शुक्ल नवमी को जब भगवान राम ओरछा आए तो उन्होंने संत समाज को यह आश्वासन भी दिया था कि उनकी राजधानी दोनों नगरों में रहेगी. तब यह बुन्देलखण्ड की ‘अयोध्या’ बन गया. ओरछा के रामराजा मंदिर की एक और खासियत है. एक राजा के रूप में विराजने की वजह से उन्हें चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है. ओरछा नगर के परिसर में यह गार्ड ऑफ ऑनर रामराजा के अलावा देश के किसी भी वीवीआईपी को नहीं दिया जाता, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक को भी नहीं.