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(भाग:289) झारखण्ड राज्य के देेवधर बैजनाथ धाम में ज्‍योत‍िर्लिंग के साथ यहां शक्तिपीठ भी है

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भाग:289) झारखण्ड राज्य के देेवधर बैजनाथ धाम में ज्‍योत‍िर्लिंग के साथ यहां शक्तिपीठ भी है

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथ धाम में स्‍थापित श‍िवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है। यह देश का पहला ऐसा स्‍थान है जो ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है। लेक‍िन शिवपुराण में इसकी विस्‍तारपूर्वक जानकारी म‍िलती है। इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्‍तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंदिर में स्‍थापित श‍िवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। इसके अलावा इस धाम को अन्‍य कई नामों से भी जानते हैं। आइए जानते हैं क‍ि इन नामों का कैसा है नाता?

बैजनाथ धाम देवघर को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया। यज्ञ के बारे में पता चला तो देवी सती ने भी जाने की बात कही। श‍िवजी ने कहा क‍ि ब‍िना न‍िमंत्रण कहीं भी जाना उच‍ित नहीं। लेक‍िन सतीजी ने कहा क‍ि प‍िता के घर जाने के लिए किसी भी न‍िमंत्रण की आवश्‍यकता नहीं। श‍िवजी ने उन्‍हें कई बार समझाया लेक‍िन वह नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गईं। लेक‍िन जब वहां उन्‍होंने अपने पति भोलेनाथ का घोर अपमान देखा तो सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं। सती की मृत्यु की सूचना पाकर भगवान शिव अत्‍यंत क्रोध‍ित हुए और वह माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर आक्रोशित शिव को शांत करने के लिए श्रीहर‍ि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। सती के अंग जिस-जिस स्‍थान पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्‍यता है इस स्‍थान पर देवी सती का हृदय गिरा था। यही वजह है क‍ि इस स्‍थान को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह यह देश का पहला ऐसा स्‍थान है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। इस वजह से इस स्‍थान की महिमा और भी बढ़ जाती है।

 

रावण का भी अनूठा संबंध है कामना लिंग से

 

बैजनाथ धाम में स्‍थापित में श‍िवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान ने उससे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है। यह सुनकर सभी देवता परेशान हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और कहा कि अगर शिवजी रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा? इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव को सोच-समझकर वरदान देने के लिए कहा। इस पर शिवजी ने रावण से कहा कि यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो लेकिन मेरी एक शर्त रहेगी। भगवान शिव ने रावण से कहा कि जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वही स्थापित हो जाउंगा।

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आज भी है रावण की लघुशंका वाला तालाब

 

इस बात पर रावण सहमत हो गया। भगवान ने एक शिवलिंग का रूप धारण कर लिया। इसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर जा रहा था। इसी दौरान भगवान शिव ने रावण को लघुशंका की इच्छा जगा दी। काफी समय तक बर्दाश्त करने के बाद रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने लगा। इसी समय भगवान ने अपना वजन बढ़ा दिया और इससे चरवाहे ने रावण को आवाज लगाकर कहा कि वह अब इस शिवलिंग को उठाए नहीं रह सकता है। रावण लघुशंका करने में व्यस्त होने के कारण सुन नहीं पाया। इधर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब रावण को भगवान की लीला समझ में आई वह अत्‍यंत क्रोधित हुआ। कथा के अनुसार उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और अन्‍य देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की और शिवजी के दर्शन होते ही शिवलिंग को उसी जगह पर स्थापित कर दिया। तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।

 

ऐस होती हैं व‍िवाह और संतान प्राप्ति की मन्‍नतें पूरी

 

भोले सबकी सारी ही मुरादें पूरी करतें हैं बस जातक श्रद्धा से उनका स्‍मरण कर ले। कामना लिंग की भी ऐसी ही मान्‍यता है। कहते हैं ज‍िनके व‍िवाह में कोई द‍िक्‍कत हो वह अगर यहां आकर दर्शन करके श‍िवजी का जलाभ‍िषेक कर दे तो भोले की कृपा से एक वर्ष के अंदर ही उनका व‍िवाह संपन्‍न हो जाता है। वहीं संतान प्राप्ति के लिए भी श्रद्धालु कामना लिंग के दर्शनों के लिए आते हैं। बता दें क‍ि संतान प्राप्ति के लिए भक्‍तजन अपने स्‍थान से दंडवत प्रणाम करते हुए कामना लिंग तक पहुंचते हैं। इसके बाद श‍िवजी का जलाभिषेक करते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। कहते हैं भोलेनाथ की कृपा से उनकी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।

 

यहां मंदिरों के शीर्ष पर लगा है पंचशूल

 

यूं तो सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा द‍िखता है लेक‍िन बैजनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। यहां प्रत्‍येक वर्ष महाशिवरात्रि से दो दिनों पूर्व बाबा मंदिर, मां पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथास्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान भोलेनाथ व माता पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है।

 

निराली है महिमा बाबा बैजनाथ धाम की

 

बैजनाथ धाम.का सिद्धांत है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों के सभी मन पूरी तरह से हैं। इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को इच्छित लिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह लिंग रावण की भक्ति का प्रतीक है। इस जगह को लोग बाबा बैजनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। सावन में इस मंदिर का खास महत्व। सावन के पूरे महीने आशीर्वाद में दूर-दूर से लोग आइकन लेकर बाबा के धाम और गंगा जल चढ़ाकर उनके प्राप्त होते हैं।

बाबा बैद्यनाथ धाम की कथा: भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैद्यनाथ की कहानी बड़ी निराली है। पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण, भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहे थे। वह, एक-एक करके अपना सिरिअल विभक्ति पर चढ़ा रहा था। 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला ही था तो भोलेनाथ ने उसे दर्शन दिए और उसके वर को कहा।

 

तब रावण ने “कामना लिंग” को ही लंका ले जाने का गौरव माँग लिया। रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीन लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही, साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वों पर कब्ज़ा करके भी लंका में कब्जा कर लिया था। इस कारण से रावण की यह इच्छा थी कि भगवान शिव कैलास को लंका में छोड़ दें। महादेव ने अपने इस मन को पूरा तो किया साथ में ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि, “अगर आपने जिस तरह से भाषा को कहीं भी रखा है तो मैं फिर से कहीं स्थापित हो जाऊंगा और नहीं उठूंगा।” रावण ने शर्त मान ली।

 

यहां भगवान शिव की कैलास की शरण में ही सभी देवताओं की चिंता हो गई थी। इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के माध्यम से रावण के पेट में आचमन कहा। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास लघुशंका लगी।

 

कहते हैं कि रावण, बाजू नाम के एक वाले की बोली लघुशंका करने चला गया। उस ग्वाले के रूप में स्वयं भगवान विष्णु ही वहाँ उपस्थित थे। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण कई घंटों तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है। यहां भगवान विष्णु ने शिवलिंग को धरती पर स्थापित कर दिया।

जब रावण लघुशंका से लौटकर आया तो लाख कोशिशों के बाद भी लिंग को नहीं उठाया। तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह अपनी अंगूठा गढ़ाकर पर गायन करने लगा। उनके बाद ब्रह्मा जी, विष्णु जी आदि देवताओं ने उस लिंग की पूजा की। शिवजी के दर्शन होते ही सभी देवी-देवता अपनी स्तुति वापस लेकर स्वर्ग चले गए। उसी समय महादेव “कामना लिंग” के रूप में देवघर में विराजते हैं

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