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(भाग:300) देवी देवता और असुर भी करते हैं माता सिद्धिदात्री की नवधा भक्ति पूजा अर्चना और प्रार्थना

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(भाग:300) देवी देवता और असुर भी करते हैं माता सिद्धिदात्री की नवधा भक्ति पूजा अर्चना और प्रार्थना

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था. मां सिद्धिदात्री की अनुकंपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाएं. मां दुर्गा के नौ रूपों में यह रूप अत्यंत ही शक्तिशाली रूप है.

मां सिद्धिदात्री की व्रत कथा:नवरात्रि के नवमी के दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। आदिशक्ति होते हुए भी मां दुर्गा को सिद्धिदात्री का रूप क्यों लेना पड़ा क्या आपको पता है? सिद्धिदात्री माता कमल पर बैठती हैं।माता का यह स्वरूप सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाला है। माता ने यह स्वरूप असुरों का संहार करने के लिए लिया था।

हिंदू धर्म में नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना की जाती है। असुरों का संहार करना, देवताओं का कल्याण करना यही उनके अस्त्र-शस्त्र धारण करने का कारण है। माता के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व आठ प्रकार की सिद्धियां हैं। माता का यह स्वरूप सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाला है। माता ने यह स्वरूप असुरों का संहार करने के लिए लिया था। इस दिन माता की पूजा अर्चना भक्ति पूर्वक करने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं।

 

सिद्धिदात्री माता कमल पर बैठती हैं। माता के इस रूप की पूजा मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर भी करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को आसान और सही तरीके से प्राप्त करने के लिए नवरात्रि के नवमी के दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। पौराणक कथाओं के अनुसार जब पूरे ब्रम्हांड पर चारो ओर अंधकार हो गया था और रोशनी का कोई संकेत नहीं था, तब उस अंधकार से भरे ब्रह्मांड में ऊर्जा का एक छोटा से किरण प्रकट हुआ। धीरे धीरे इस किरण ने बड़ा आकार लिया। अंत में इसने एक दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया। ये देवी भगवती का नौवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री का था। आज चैत्र राम नवमी पर कैसे करें भगवान श्री राम की पूजा? यहां देखिए संपूर्ण पूजा विधि

 

ब्रह्मा, विष्णु, महेश को दिया जन्म

माता ने प्रकट होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश को जन्म दिया। पुराणों के अनुसार भगवान शिव शंकर ने भी मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही सिद्धियों को प्राप्त किया था। सिद्धिदात्री की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण से उन्हें अर्धनरेश्वरी नाम से भी पुकारा जाता है। इस दिन देवी का पूजन करने से मोक्ष की प्राप्ति होता है। देवी के इस रूप की पूजा व्यक्ति को अमृत मार्ग की ओर ले जाने का काम करता है। नवमी के दिन भक्त माता की पूजा अर्चना करने के बाद कन्या भोजन कराते हैं। ऐसी मान्यता है, कि कन्या भोजन कराने से ही माता पूजा को ग्रहण करती है।

माता की चारों भुजाओं में गदा, चक्र, डमरू और कमल का फूल विराजमान है। माता को बैंगनी रंग अत्यंत प्रिय है। इस दिन माता को नौ प्रकार के फूल अर्पित करने व मिठाई का भोग लगाने से माता जल्दी प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सभी कष्टों का नाश करती हैं।

मां सिद्धिदात्री अपनी सिद्धियों के लिए विशेष रूप से पूजी जाती हैं। जैसा कि इनके नाम से ही हमें मालूम चलता है सिद्धि प्रदान करने वाली देवी सिद्धिदात्री। नवरात्रि के इस आखिरी दिन साधक यदि पूरी निष्ठा के साथ पूजा-अर्चना करता है तो देवी प्रसन्न होकर उन्हें सिद्धियां प्रदान करती हैं। ऐसी आठ सिद्धियां हैं जिनपर विजय प्राप्त कर साधक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर विजय पा सकता है।

मार्कण्डेय पुराण सिद्धिदात्री की आठ सिद्धियां कुछ इस प्रकार है :

अणिमा : इस सिद्धि की शक्ति से योगी एक सूक्ष्म रुप धारण कर अदृश्य हो जाते हैं।

महिमा : इसमें साधक स्वयं को विशाल बना लेने की क्षमता रखता है।

गरिमा : इस सिद्धि में साधक अपना भार बढ़ा लेता है और कोई भी उसे टस से मस नहीं कर सकता।

लघिमा : यह साधक के भारहीन होने की स्थिति है, इसके प्रयोग से साधक कोई भी वस्तु बुला सकता है।

प्राप्ति : सब कुछ प्राप्त करने की क्षमता रखना इस सिद्धि की शक्ति है।

प्राकाम्य : अपनी इच्छानुसार किसी भी रूप को धारण करने की क्षमता रखना।

ईशित्व : किसी पर भी अपना नियंत्रण कर लेने का सामर्थ्य ईशित्व है।

वशित्व : जीवन और मृत्यु तक की स्थिति को अपने वश में कर लेने की सिद्धि ही वशित्व कहलाती है।

वहीं ब्रह्मवैवर्त पुराण में इन सिद्धियों की संख्या 18 बताई गई है। ऊपर दी गई उन आठ सिद्धियों के अलावा यहां बाकी सिद्धियों का वर्णन किया गया है :

 

मां सिद्धिदात्री के रूप का वर्णन करें तो देवी दाहिने हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाईं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर के हाथ में कमल पुष्प लिए हुए हैं। मां की सवारी सिंह होने के साथ ही वे कमल पुष्प पर भी विराजमान रहती हैं।

 

मां सिद्धिदात्री की कथा

ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि देवी सिद्धिदात्री की सच्चे मन से पूजा कर लेने के बाद साधक के मन में कोई इच्छा बचती ही नहीं है। वे शून्य को प्राप्त होते हुए लोक-परलोक की समस्त प्रकार की कामनाओं से पूर्ण हो जाता है। माना जाता है मां का ध्यान, स्मरण और आराधना हमें संसार की दशा का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदा की ओर ले जाती है। देवी पुराण में इस बात का वर्णन हमें मिलता हैं कि भगवान शिव ने इन्हीं की उपासना कर सिद्धियों को प्राप्त किया था और अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया था।

सिद्धिदात्री मंत्र

”ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।”

सिद्धिदात्री श्लोक

‘‘सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमसुरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||देवाधिदेव महादेव भगवान शिव ने सिद्धि प्राप्त करने के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा की थी।

देवी सिद्धिदात्री प्रकाश किरण से प्रकट हुई थीं।

मां सिद्धिदात्री के मुख पर एक दीप्तिमान आभा झलकती है।

नवरात्र की महानवमी तिथि पर मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री की महिमा का शास्त्रों में विस्तार से वर्णन किया गया है। शिव पुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव ने सिद्धि प्राप्त करने के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा की थी। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से साधक को शुभ कार्यों में सफलता मिलती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त कष्ट और संकट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो महानवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की विधि-विधान से पूजा करें।

 

मां सिद्धिदात्री को समर्पित है नवरात्र का नौवां दिन, जानिए इनका स्वरूप और पूजा विधि इस प्रकार है।

सनातन ग्रंथों में यह बताया गया है कि जब ब्रह्मांड में कुछ भी मौजूद नहीं था। हर तरफ सिर्फ अंधेरा था। उसी क्षण ब्रह्माण्ड में प्रकाश की एक किरण प्रकट हुई। प्रकाश की यह किरण तेजी से फैलने लगी। इस पुंज से एक देवी प्रकट हुईं। इसके बाद प्रकाश किरण का विस्तार रुक गया। प्रकाश किरण से प्रकट हुई देवी मां सिद्धिदात्री थीं। मां सिद्धिदात्री ने अपने तेज से त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रकट किया। तब माता सिद्धिदात्री ने तीनों देवताओं को सृष्टि का संचालन करने का आदेश दिया। तब त्रिदेवों ने मां सिद्धिदात्री की कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर, माँ ने त्रिदेवों को शक्ति और सिद्धि प्रदान की है। राम नवमी पर इस विधि से करें हवन-पूजन करने का विधान है।

देवी मां का स्वरूप मां सिद्धिदात्री

मां सिद्धिदात्री के मुख पर एक दीप्तिमान आभा झलकती है। यह प्रकाश सभी संसारों में कल्याण लाता है। माता की चार भुजाएं हैं। मां कमल पर विराजमान हैं और सिंह की सवारी करती हैं। मां के एक हाथ में सुदर्शन चक्र और दूसरे हाथ में गदा है। तीसरे में शंख है और चौथे में कमल का फूल है। माँ अपने भक्तों के सभी दुःख दूर कर देती है।

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