नीतीश कुमार को लेकर बिहार में हलचल तेज : करवट बदल रही है राजनीति
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
पटना। कहा जाता है कि राजनीति में सबकुछ जायज है और नाजायज कुछ भी बेवजह नहीं होता है. संभव है कि वजह बाद में पता चलता है? तब तक काफी समय बीत चुका होता है?
बिहार में नीतीश कुमार कुछ भी करने वाले होते हैं तो उसके संकेत पहले से ही मिलने लगते हैं. कई बार लगता है कि ये तो सामान्य बात है लेकिन कुछ महीने बाद ही असामान्य हो जाती है.
नीतीश कुमार की एक तस्वीर पर ख़ूब बात हो रही है. इस तस्वीर में नीतीश कुमार ने हँसते हुए तेजस्वी यादव के कंधे पर हाथ रखा है और तेजस्वी हाथ जोड़कर थोड़ा झुक कर हँस रहे हैं.
हालांकि यह एक सरकारी कार्यक्रम की तस्वीर है. जहां पक्ष और विपक्ष का आना एक औपचारिक रस्म होता है. लेकिन कई बार औपचारिक रस्म में ही अनौपचारिक चीज़ें हो जाती हैं.
दरअसल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान राज्यपाल की शपथ ले रहे थे और इसी कार्यक्रम में नीतीश कुमार भी मौजूद थे और बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी हंस रहे थे?
2024 हमारी परीक्षा थी, लेकिन 2025 में नीतीश जी की परीक्षा समाप्त होनी है’
दोनों नेताओं की यह तस्वीर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने एक चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाज़े खुले हुए हैं.
बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और राज्य के सियासी गलियारों में पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार को लेकर लगातर अटकलें लगाई जा रही हैं. इन अटकलों को नीतीश की चुप्पी ने भी हवा दी है.
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आरिफ़ मोहम्मद ख़ान का चुनाव से पहले बिहार का राज्यपाल बनना फ़ायदेमंद नहीं है।
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के एक बयान ने बिहार की सियासत में अटकलों को तेज़ कर दिया है
लालू के इस बयान के बाद बिहार में कांग्रेस के नेता शकील अहमद ख़ान ने भी कहा, “गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करने वाले लोग गोडसेवादियों से अलग हो जाएंगे, सब साथ हैं, नीतीश जी तो गांधीजी के सात उपदेश अपने टेबल पर रखते हैं.”
क़रीब एक साल पहले ही नीतीश कुमार ने बिहार में महागठबंधन का साथ छोड़ दिया था और वापस एनडीए में चले गए थे. वो अगस्त 2022 में दोबारा बिहार में महागठबंधन से जुड़े थे.
गुरुवार को जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पत्रकारों ने इस मुद्दे पर सवाल किया तो वो ख़ामोश दिखे, लेकिन राज्य के नए राज्यपाल ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा, “आज शपथ ग्रहण का दिन है, राजनीतिक सवाल मत पूछिए.”
हालांकि जेडीयू के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने लालू के बयान से किनारा करते हुए कहा, “छोड़िए न… लालू जी क्या बोलते हैं, क्या नहीं बोलते हैं ये लालू जी से जाकर पूछिए हमलोग एनडीए में हैं और मज़बूती से एनडीए में हैं.”
हालांकि ललन सिंह का यह कहना बहुत मायने नहीं रखता है क्योंकि नीतीश कुमार ने तो यहां तक कहा था कि मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन फिर से बीजेपी के साथ नहीं जाऊंगा.
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नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा में उनके साथ बीजेपी के कोटे के मंत्री भी मौजूद दिखे हैं. यह 26 दिसंबर को सीतामढ़ी में हुई प्रगति यात्रा की तस्वीर है
बिहार में बीजेपी के नेता कई बार इस तरह का बयान देते रहे कि वो राज्य में अपना मुख्यमंत्री और अपनी सरकार चाहते हैं.
पिछले दिनों बीजेपी विधायक और राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के मौक़े पर कहा था कि अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब राज्य में बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री होगा.
हालांकि बाद में वो अपने बयान से पलटते नज़र आए और एक बयान जारी कर नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का चेहरा बताया.
हाल के समय में देशभर में कई क्षेत्रीय दलों में टूट हुई है, जिनमें महाराष्ट्र की शिव सेना और एनसीपी जैसे दल भी शामिल हैं. बिहार में रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी एलजेपी के भी दो टुकड़े हो गए, जिसके लिए चिराग पासवान ने बीजेपी के प्रति नाराज़गी भी जताई थी.
इसके अलावा ओडिशा में बीजू जनता दल जैसी ताक़तवर क्षेत्रीय पार्टी भी बीजेपी से हार गई. क्षेत्रीय पार्टियों के कमज़ोर पड़ने का सीधा फायदा बीजेपी को हो रहा है. ऐसे में क्या नीतीश के मन में भी बीजेपी का डर है?
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, “डर बड़े-बड़े नेताओं को होता है तो नीतीश कुमार को क्यों नहीं होगा. इसलिए नीतीश कुमार दो तरह से खेल रहे हैं. वो बीजेपी के साथ हैं और तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखकर संकेत दे रहे हैं कि हालात बदले तो वो आरजेडी के साथ भी आ सकते हैं.”
सुरूर अहमद मानते हैं कि अगर नीतीश को कभी बिहार की सत्ता किसी और को सौंपनी पड़े तो उनकी पार्टी में कोई नेता नहीं है और वो बिहार के मौजूदा नेताओं को यहां की सत्ता नहीं सौंपेंगे, ऐसी स्थिति में उनके लिए तेजस्वी यादव ज़्यादा सही हैं.
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी बिहार की मौजूदा सियासत को कुछ अलग नज़रिए से देखते हैं.
उनका कहना है, “नीतीश राजनीतिक तौर पर मज़बूत हैं, इसलिए उनकी चर्चा होती रहती है. अलग बीजेपी ने नीतीश की पार्टी तोड़ी तो भी उनका वोट नहीं तोड़ पाएंगे. नीतीश के भरोसे ही केंद्र की सरकार चल रही है तो बीजेपी ऐसा क्यों करेगी.”
उनका मानना है कि बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्य में बहुत फ़र्क़ है. नीतीश कुमार सियासी तौर पर बहुत अनुभवि नेता हैं, जो हर चाल को पहले ही भांप लेते हैं.
वो कहते हैं, ” नीतीश अगर आरजेडी के साथ जाते हैं तो भी वो ज़्यादा से ज़्यादा सीएम ही रहेंगे, पीएम नहीं बन जाएंगे. हो सकता है कि नीतीश कुमार बीजेपी पर दबाव बना रहे हों कि वो 122 विधानसभा सीटें चाहते हैं,
बाक़ी सीटें बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ बांटे.”
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गुरुवार को आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने बिहार के राज्यपाल के तौर पर शपथ ग्रहण किया
बिहार में विधानसभा की नीतीश कुमार को लेकर बिहार में फिर से क्यों है हलचल, हो
कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी बेवजह नहीं होता है. संभव है कि वजह बाद में पता चले.
बिहार में नीतीश कुमार कुछ भी करने वाले होते हैं तो उसके संकेत पहले से ही मिलने लगते हैं. कई बार लगता है कि ये तो सामान्य बात है लेकिन कुछ महीने बाद ही असामान्य हो जाती है.
नीतीश कुमार की एक तस्वीर पर ख़ूब बात हो रही है. इस तस्वीर में नीतीश कुमार ने हँसते हुए तेजस्वी यादव के कंधे पर हाथ रखा है और तेजस्वी हाथ जोड़कर थोड़ा झुक कर हँस रहे हैं.
हालांकि यह एक सरकारी कार्यक्रम की तस्वीर है. जहां पक्ष और विपक्ष का आना एक औपचारिक रस्म होता है. लेकिन कई बार औपचारिक रस्म में ही अनौपचारिक चीज़ें हो जाती हैं.
दरअसल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान राज्यपाल की शपथ ले रहे थे और इसी कार्यक्रम में नीतीश कुमार भी मौजूद थे और बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी है।
दोनों नेताओं की यह तस्वीर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने एक चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाज़े खुले हुए हैं.
बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और राज्य के सियासी गलियारों में पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार को लेकर लगातर अटकलें लगाई जा रही हैं. इन अटकलों को नीतीश की चुप्पी ने भी हवा दी
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के एक बयान ने बिहार की सियासत में अटकलों को तेज़ कर दिया है बिहार में कांग्रेस के नेता शकील अहमद ख़ान ने भी कहा, “गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करने वाले लोग गोडसेवादियों से अलग हो जाएंगे, सब साथ हैं, नीतीश जी तो गांधीजी के सात उपदेश अपने टेबल पर रखते हैं.”
क़रीब एक साल पहले ही नीतीश कुमार ने बिहार में महागठबंधन का साथ छोड़ा था और वापस एनडीए में चले गए थे. वो अगस्त 2022 में दोबारा बिहार में महागठबंधन से जुड़े थे.
गुरुवार को जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पत्रकारों ने इस मुद्दे पर सवाल किया तो वो ख़ामोश दिखे, लेकिन राज्य के नए राज्यपाल ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा, “आज शपथ ग्रहण का दिन है, राजनीतिक सवाल मत पूछिए.”
हालांकि जेडीयू के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने लालू के बयान से किनारा करते हुए कहा, “छोड़िए न… लालू जी क्या बोलते हैं, क्या नहीं बोलते हैं ये लालू जी से जाकर पूछिए हमलोग एनडीए में हैं और मज़बूती से एनडीए में हैं.”
हालांकि ललन सिंह का यह कहना बहुत मायने नहीं रखता है क्योंकि नीतीश कुमार ने तो यहां तक कहा था कि मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन फिर से बीजेपी के साथ नहीं जाऊंगा.
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नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा में उनके साथ बीजेपी के कोटे के मंत्री भी मौजूद दिखे हैं. यह 26 दिसंबर को सीतामढ़ी में हुई प्रगति यात्रा की तस्वीर है
बिहार में बीजेपी के नेता कई बार इस तरह का बयान देते हैं कि वो राज्य में अपना मुख्यमंत्री और अपनी सरकार चाहते हैं.
पिछले दिनों बीजेपी विधायक और राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के मौक़े पर कहा था कि अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब राज्य में बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री होगा.
हालांकि बाद में वो अपने बयान से पलटते नज़र आए और एक बयान जारी कर नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का चेहरा बताया.
हाल के समय में देशभर में कई क्षेत्रीय दलों में टूट हुई है, जिनमें महाराष्ट्र की शिव सेना और एनसीपी जैसे दल भी शामिल हैं. बिहार में रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी एलजेपी के भी दो टुकड़े हो गए, जिसके लिए चिराग पासवान ने बीजेपी के प्रति नाराज़गी भी जताई थी.
इसके अलावा ओडिशा में बीजू जनता दल जैसी ताक़तवर क्षेत्रीय पार्टी भी बीजेपी से हार गई. क्षेत्रीय पार्टियों के कमज़ोर पड़ने का सीधा फायदा बीजेपी को हो रहा है. ऐसे में क्या नीतीश के मन में भी बीजेपी का डर है?
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, “डर बड़े-बड़े नेताओं को होता है तो नीतीश कुमार को क्यों नहीं होगा. इसलिए नीतीश कुमार दो तरह से खेल रहे हैं. वो बीजेपी के साथ हैं और तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखकर संकेत दे रहे हैं कि हालात बदले तो वो आरजेडी के साथ भी आ सकते हैं.”
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी बिहार की मौजूदा सियासत को कुछ अलग नज़रिए से देखते हैं.
उनका कहना है, “नीतीश राजनीतिक तौर पर मज़बूत हैं, इसलिए उनकी चर्चा होती रहती है. अलग बीजेपी ने नीतीश की पार्टी तोड़ी तो भी उनका वोट नहीं तोड़ पाएंगे. नीतीश के भरोसे ही केंद्र की सरकार चल रही है तो बीजेपी ऐसा क्यों करेगी.”
उनका मानना है कि बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्य में बहुत फ़र्क़ है. नीतीश कुमार सियासी तौर पर बहुत अनुभवि नेता हैं, जो हर चाल को पहले ही भांप लेते हैं.
वो कहते हैं, ” नीतीश अगर आरजेडी के साथ जाते हैं तो भी वो ज़्यादा से ज़्यादा सीएम ही रहेंगे, पीएम नहीं बन जाएंगे. हो सकता है कि नीतीश कुमार बीजेपी पर दबाव बना रहे हों कि वो 122 विधानसभा सीटें चाहते हैं, बाक़ी सीटें बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ हैं।
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं और राज्य के पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू को महज़ 43 सीटों पर जीत मिली थी जबकि उसने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि इसके बाद भी नीतीश कुमार ही राज्य के मुख्यमंत्री बने थे.
पहले उन्होंने एनडीए में रहकर सीएम पद अपना दावा बनाए रखा और फिर अगस्त 2022 में महागठबंधन में आ गए. उनकी पार्टी ने उस वक़्त आरोप भी लगाया था कि जेडीयू को तोड़ने की कोशिश की जा रही थी.
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “दरअसल नीतीश को लेकर नई चर्चा पिछले दिनों बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान के बाद शुरू हुई.”
नचिकेता नारायण मानते हैं, “लालू प्रसाद यादव ने नीतीश के लिए दरवाज़ा खुला होने की बात कहकर एक सधी हुई चाल चली है. इसका असर धीरे-धीरे समझ में आएगा. लालू जानते हैं कि एनडीए में किसी भ्रम या टूट का फ़ायदा आरजेडी को होगा.”
दरअसल बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और नीतीश कुमार की जेडीयू राज्य की एक ऐसी पार्टी है जो आरजेडी या बीजेपी किसी के साथ भी गठबंधन में जा सकती है.
आंकड़े बताते हैं कि नीतीश कुमार की पार्टी अकेले भले ही बहुत कुछ हासिल न कर पाए लेकिन वो जिस गठबंधन में होती है, उसकी ताक़त काफ़ी बढ़ जाती है.
सुरूर अहमद कहते हैं, “बिहार को लेकर जो ख़बरे चल रही हैं या चलाई जा रही हैं, वह काफ़ी दिनों से हो रहा है. लेकिन बीते 15 दिनों से इसमें कुछ ख़ास बातें देखी गईं. पहले 15 दिसंबर से नीतीश महिला सम्मान यात्रा पर जाने वाले थे, जिसे स्थगित कर दी गई
प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं, “लोकसभा चुनावों में बीजेपी नीतीश कुमार से साथ एकता चाहती है. लेकिन विधानसभा चुनाव में वह अपनी ताक़त बढ़ाकर अपने बूते राज्य में सरकार बनाना चाहती है, इसलिए नीतीश कुमार को कमज़ोर करना चाहती है. पिछली बार भी चिराग पासवान की मदद से यह कोशिश की गई.”
“इस तरह से देखें तो नीतीश कुमार बीजेपी की ज़रूरत भी हैं और बेचैनी की वजह भी. यही बेचैनी कई बार बीजेपी नेताओं के बयान में भी नज़र आती है.”
हालांकि बाद में वो अपने बयान से पलटते नज़र आए और एक बयान जारी कर नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का चेहरा बताया है.
बिहार के मौजूदा सियासी समीकरण पर नचिकेता नारायण कहते हैं, “बिहार में भ्रम की जो स्थिति है उसकी सच्चाई नीतीश कुमार को छोड़कर कोई नहीं जानता है. पिछली बार भी जब नीतीश कुमार ने गठबंधन बदला था तो दो दिन पहले तक उनके मंत्रियों तक को कुछ पता नहीं था.”
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को महज़ 43 सीटों पर जीत मिली थी जबकि उसने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि इसके बाद भी नीतीश कुमार ही राज्य के मुख्यमंत्री बने थे.
पहले उन्होंने एनडीए में रहकर सीएम पद अपना दावा बनाए रखा और फिर अगस्त 2022 में महागठबंधन में आ गए. उनकी पार्टी ने उस वक़्त आरोप भी लगाया था कि जेडीयू को तोड़ने की कोशिश की जा रही थी.
दरअसल बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और नीतीश कुमार की जेडीयू राज्य की एक ऐसी पार्टी है जो आरजेडी या बीजेपी किसी के साथ भी गठबंधन में जा सकती है.
आंकड़े बताते हैं कि नीतीश कुमार की पार्टी अकेले भले ही बहुत कुछ हासिल न कर पाए लेकिन वो जिस गठबंधन में होती है, उसकी ताक़त काफ़ी बढ़ जाती है.