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राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ दुनिया का सबसे बडा एनजीओ: PM मोदी का कथन

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ दुनिया का सबसे बडा एनजीओ:PM

मोदी का कथन

 

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

नई दिल्ली ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है। अब संघ एक ऐसा संगठन है जिसका देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा है। देश को दो प्रधानमंत्री भी इसी संघ ने दिए हैं। अब जब संघ की इतनी चर्चा हर तरफ हो रही है, इसका इतिहास जानना भी दिलचस्प है। RSS की स्थापना की कहानी काफी रोचक मानी जाती है।

बात 1919 की है, पहला विश्व युद्ध खत्म हो चुका था। ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य का खात्मा कर तुर्की की सबसे बड़ी इस्लामिक राजशाही को सत्ता से बेदखल कर दिया था। दुनिया के कई मुस्लिम देशों में इसका विरोध हुआ। भारत के मुसलमानों ने भी इसका विरोध किया। उस जमाने में शौकत अली और मोहम्मद अली नाम के दो भाइयों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, खिलाफत आंदोलन (खलीफा के लिए) शुरू किया था। उस आंदोलन का एक ही मकसद था- तुर्की में फिर से खलीफा को सत्ता पर काबिज करना था।

खिलाफत आंदोलन और मुस्लिमों की राजनीति

अब भारत में तब तक जलियांवाला बाग हत्याकांड हो चुका था, उस वजह से पूरे देश में रौलेट एक्ट का विरोध हो रहा था। महात्मा गांधी भी अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की शुरुआत करना चाहते थे, वे हिंदू और मुसलमानों को एक साथ लाना चाहते थे। अब शौकत अली और मोहम्मद अली के खिलाफत आंदोलन में गांधी ने भी हिस्सा लेने का फैसला किया था। उन्हें महसूस हुआ कि इससे एकता का संदेश दिया जाएगा, सभी धर्मों को अंग्रेजों के खिलाफ साथ लाया जाएगा। महात्मा गांधी ने नारा दिया था- जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा।

जब गांधी से नाराज हो गए थे हेडगेवार

अब महात्मा गांधी ने तो ऐलान कर दिया था कि वे खिलाफत आंदोलन का समर्थन करेंगे, लेकिन नागपुर के रहने वाले केशव बलिराम हेडगेवार को यह नीति रास नहीं आ रही थी। वे तब नए-नए कांग्रेसी बने थे, डॉक्टरी की पढ़ाई कर आए थे। उनका मानना था कि महात्मा गांधी को खिलाफत आंदोलन का समर्थन नहीं करना चाहिए। इस घटना के बारे में सीपी भिशीकर ने अपनी किताब ‘केशव: संघ निर्माता’ में काफी विस्तार से लिखा है। वे बताते हैं कि हेडगेवार ने गांधी के सामने अपनी बात स्पष्ट कर दी थी। उन्होंने दो टूक कहा था कि मुसलमानों ने यह साबित कर दिया है कि उनके लिए देश से पहले उनका धर्म आता है। इसी आधार पर हेडगेवार चाहते थे कि गांधी इस आंदोलन से दूरी बनाए रखें।

 

बताते हैं कि गांधी की एकता डा बाबासाहेब अंबेडकर को भी रास नहीं आई .तब तो डा हेडगेवार के मन में आक्रोश के बीज पनप चुके थे, उन्होंने कांग्रेस का चोला तो ओढ़ रखा था, लेकिन उसकी विचारधारा के साथ चलना मुश्किल हो रहा था। अब समय बीतता गया और 1921 आते-आते खिलाफत आंदोलन की आग केरल तक पहुंच गई। केरल के ही मालाबार इलाके में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच झड़प हुई, जमींदारों की इस लड़ाई ने 2000 से ज्यादा लोगों की जान ली। अब इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी भी दबाव में आ चुके थे, उनकी एकता का सपना टूट रहा था। उनके फैसले पर सवाल उठने शुरू हो चुके थे। ऐसा ही एक सवाल डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ने भी उठाया था। उनकी किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में इस घटना का जिक्र मिलता है।

हिंदुओं पर अत्याचार, कांग्रेस की चुप्पी और नाराज हेडगेवार

अंबेडकर ने कहा था कि खिलाफत आंदोलन का सिर्फ एक उदेश्य था, ब्रिटिश हुकूमत को खत्म कर इस्लाम का राज स्थापित करना था। उस समय जबरन धर्म परिवर्तन भी हुए और मंदिर तक तोड़े गए। उसी किताब में अंबेडकर ने गांधी पर सवाल उठाते हुए बोला था कि क्या इसे ही गांधी की हिंदू-मुस्लिम को एक करने की कोशिश माना जाए, उन्हें इससे क्या ही हासिल हुआ है। अब इतना सबकुछ हो गया, हेडगेवार अपनी आंखों से देखते रहे, सहते रहे, लेकिन तब उन्होंने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा।

हेडगेवार का कांग्रेस से अलग रास्ता और संघ का जन्म

फिर 1923 में नागपुर में सांप्रदायिक दंगा भड़क गया। असल में वहां के कलेक्टर ने हिंदुओं को झांकी निकालने की इजाजत नहीं दी थी, उसी वजह से बवाल हुआ और देखते ही देखते उसने दंगे का रूप ले लिया। हेडगेवार को लगा कि जो कांग्रेस मुसलमानों के लिए खिलाफत आंदोलन का समर्थन कर सकती है, वो अब हिंदुओं के समर्थन में भी उतर सकती थी, वो नागपुर घटना का भी विरोध कर सकती है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, कांग्रेस चुप रही और हेडगेवार ने अलग रास्ता चुनने की ठान ली।

कुछ समय तक वे हिंदू महासभा के साथ जुड़े, लेकिन उन्हें लगने लगा कि बात जब अपने हितों की आएगी, हिंदू महासभा भी शायद हिंदुओं को दगा देगी। तब हिंदुओं की आवाज उठाने का काम हिंदू महासभा भी किया करती थी। वीर सावरकर उसके प्रमुख थे, उनकी भी महात्मा गांधी के साथ ठनी रहती थी। लेकिन हेडगेवार के विचार उनके साथ भी ज्यादा मेल नहीं खाए, इसी वजह से उन्होंने 1925 में विजयदशमी के दिन अपने घर पर एक जरूरी बैठक की। उस बैठक में पांच लोग शामिल हुए- गणेश सावरकर, डॉक्टर बीएस मुंजे, एलवी परांजपे और बीबी थोलकर। उस बैठक में हेडगेवार ने ऐलान कर दिया- हम अब संघ शुरू कर रहे हैं। फिर एक साल बाद 17 अप्रैल, 1926 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी कि RSS की स्थापना हो गई। खाकी शर्ट, खाकी पैंट और खाकी कैप पहचान बनी और शाखाओं का आयोजन होने लगा।

गांधी का नमक आंदोलन, 9 महीने जेल में रहे हेडगेवार

अब शाखाओं का आयोजन हो रहा था तो एक ऐसे स्थान की भी जरूरत थी जहां सभी इकट्ठे हो सकें। ऐसे में नागपुर के ‘मोहिते का बाड़ा’ मैदान को हेडगेवार ने चुना और कई सालों तक वहां पर संघ की शाखा लगने लगी। अब एक तरफ आजादी की लड़ाई तेज हो रही थी और संघ को भी अपनी पहचान बनानी थी। ऐसे में 1930 में जब महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ नमक आंदोलन की शुरुआत की, संघ कार्यकर्ताओं के मन में एक सवाल उठा- क्या उन्हें भी गांधी का समर्थन करना चाहिए? अंग्रेजों के खिलाफ तो वे भी थे, तो क्या इस लड़ाई में गांधी के साथ चला जाए? अब संघ कार्यकर्ता चाहते थे कि वे भगवा झंडे के साथ उस आंदोलन में जुड़ जाएं।

लेकिन हेडगेवार ने साफ कर दिया था कि अगर भगवा झंडे और संघ की पोशाक में ही उस आंदोलन में हिस्सा लिया गया, तो ब्रिटेश हुकूमत उनके संगठन पर बैन लगा देगी। ऐसे में अगर कोई इस आंदोलन का हिस्सा बनना भी चाहता है तो उसे व्यक्तिगत रूप से शामिल होना होगा, वो संघ का कार्यकर्ता बन वहां नहीं जाएगा। अब बड़ी बात यह है कि हेडगेवार ने खुद महात्मा गांधी के उस आंदोलन में हिस्सा लिया था, लेकिन एक संघ प्रमुख के रूप में नहीं बल्कि सामान्य व्यक्ति के रूप में। इस वजह से उन्हें जेल भी हुई और 9 महीने तक वे काल कोठरी में रहे।

संघ पर लगा बैन और संविधान की स्थापना

अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सबसे बड़ी चुनौती 1949 में तब आई जब नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी। उस हत्या के साथ क्योंकि संघ का नाम जुड़ा, ऐसे में संगठन पर ही बैन लगा दिया गया। बाद में सरकार ने ही आदेश दिया और संघ ने अपना खुद का एक संविधान तैयार किया। उस संविधान में 25 अनुच्छेद हैं। संविधान में पांच बातों पर सबसे ज्यादा फोकस है- संघ का उदेश्य क्या है, संघ की फंडिंग कैसे होगी और संघ का वर्किंग स्ट्रक्चर कैसा होगा। संघ ने कई दूसरे संगठन भी शुरू कर रखे हैं, सभी उसकी विचारधारा को ही अलग-अलग क्षेत्रों में आगे बढ़ा रहे हैं।

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