मुंबई मे शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का चातुर्मास समापन
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
मुंबई। पूज्यपाद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का चातुर्मास समारोह का समापन हुआ. शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज के समस्त शिष्यगण, संत महात्मा महामण्डलेश्वर और भक्त अपने अपने गन्तव्य को वापस हुए.
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का चातुर्मास समापन 6 और 7 सितंबर को मुंबई के बोरीवली कोरा केंद्र प्रांगण में सम्पन्न हुआ है, जिसके बाद उन्होंने भक्तों को आशीर्वाद दिया और भगवान गणराया को विदाई दी गई। इस दौरान आयोजित गो प्रतिष्ठा महायज्ञ का लाभ लेने और सेवा करने के लिए भक्तों से अपील की गई थी। चातुर्मास व्रत की शुरुआत विगत 10 जुलाई, 2025 को हुई थी। मुंबई के बोरीवली में कोरा केंद्र मैदान में चातुर्मास का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गोमाता को राष्ट्रमाता के पद पर प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से 33 करोड़ आहूतियों का संकल्प लिया गया था। चातुर्मास के दौरान नित्य प्रातः 108 शिवलिंगों का अभिषेक, वेदांत वर्ग और प्रवचन आयोजित किए गए।
चातुर्मास का समापन गणेश उत्सव के साथ ही हुआ है।
आयोजन समिति ने भक्तों से चातुर्मास और महायज्ञ का लाभ लेने और ऑनलाइन सेवा भेजने का आग्रह किया था।
समापन के अवसर पर भक्तों ने दर्शन किए और गणराय को विदाई दी। यह जानकारी चातुर्मास के दौरान हुए धार्मिक आयोजनों और उसके समापन से संबंधित है, जो मुंबई में आयोजित किया गया था।
दरअसल में शंकराचार्य के चातुर्मास्य प्रवचन वैदिक सिद्धांतों पर आधारित होते थे, जिसमें वे अद्वैत वेदांत की शिक्षा देते थे, विशेष रूप से आत्मा और ब्रह्म की एकता का उपदेश देते थे, जिसका मुख्य लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना होता है। शंकराचार्य के प्रवचनों में वेदों के ज्ञान और कर्मकाण्ड के बीच सामंजस्य, उपनिषदों के महत्व पर जोर दिया जाता है और विभिन्न देवताओं की पूजा में एकरूपता लाने पर बल देते है। शंकराचार्य के चातुर्मास्य प्रवचनों की मुख्य विशेषताएँ यह है कि वे अद्वैत वेदांत का प्रचार प्रसार करते हैं.वेदों और उपनिषदों के ज्ञान के आधार पर उन्होंने अद्वैत वेदांत का प्रचार किया, जिसमें ब्रह्म और आत्मा की एकरूपता का सिद्धांत है। उनके प्रवचनों का मुख्य उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और अद्वैत सत्य का ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त करना होता था। उन्होंने विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और शक्ति जैसे विभिन्न देवताओं के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया और सभी को ब्रह्म के ही भिन्न-भिन्न रूप बताया। उनके उपदेश वेदों, उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रों जैसे ग्रंथों पर आधारित होते थे, जिससे वेदों के ज्ञान को स्पष्ट और सरल रूप में प्रस्तुत करते थे। मोक्ष प्राप्त करने के लिए उन्होंने मन की एकाग्रता और आध्यात्मिक अभ्यास पर भी जोर दिया है। चातुर्मास्य एक विशेष अवधि होती है, जिसमें हिंदू साधु और विद्वान वर्षा ऋतु के दौरान एक ही स्थान पर रुककर प्रवचन और धार्मिक उपदेश देते हैं। शंकराचार्य ने इसी अवधि का उपयोग अपनी वैदिक शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए किया जाता है।