सत्य सनातन हिन्दू धर्म मे सुपात्र को दान करने का महत्व अतुलनीय
टेकचंद्र शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
बनारस ।प्राचीन वैदिक सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार सुपात्र को ही दान करने का आलौकिक बताया गया है.
सनातन धर्म में सुपात्र को दान देना अत्यंत पुण्यकारी और महिमा मंडित कार्य माना जाता है, जिससे व्यक्ति को परलोक में अनंत फल प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। शास्त्र और पुराण भी इस दान के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि यह बुरे कर्मों और बुरे विचारों को नष्ट करता है और मन को सांसारिक आसक्ति से मुक्त कराता है। सुपात्र वह व्यक्ति है जो वास्तव में दान का हकदार हो, और ऐसे व्यक्ति को श्रद्धापूर्वक दिया गया दान सबसे श्रेष्ठतम माना जाता है। सुपात्र को दान देने के अनन्य फायदे प्राप्त होते है. सुपात्र को दान करने से पुण्य प्रताप अर्जित होता है
: सुपात्र को दान देने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है, जो जीवन के विभिन्न कष्टों से मुक्ति दिलाता है। और
ग्रह अनुकूल होता हैं दान करने से कुंडली के सभी ग्रह बलवान होते हैं और शुभ-अशुभ फल देते हैं, जिससे जीवन सुखद बनता है।
: ज़रूरतमंदों की मदद करने से आत्म-मूल्य और आत्म-सम्मान में वृद्धि होती है, जिससे संतुष्टि का अनुभव होता है। मन को शांति मिलती है सुपात्र को दान देने से मन भौतिक वस्तुओं के प्रति लगाओ से मुक्त मिलती है और शांति प्राप्त करता है। धर्म का पालन दान, सेवा भाव से जुड़ा है और सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य माना जाता है। सुपात्र का चुनाव जरूरतमंद व्यक्ति दान ऐसे व्यक्ति को देना चाहिए जिसे उसकी सचमुच जरूरत हो, जैसे कोई संत महात्मा और गरीब ब्राह्मण या भिखारी ही
सत्पात्र व्यक्ति होता है.
: न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों को दान देना चाहिए। निस्वार्थ भाव
: दान देते समय कोई अपेक्षा या उम्मीद नहीं रखनी चाहिए; यह एक निस्वार्थ कार्य है।
महत्वपूर्ण दानअन्न दान जरूरतमंदों को भोजन कराने से अन्नपूर्णा और लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, जिससे अन्न-जल की कमी नहीं होती।
वस्त्र दान नए और साफ वस्त्रों का दान करने से सफलता मिलती है और परिवार में खुशहाली आती है।
घी का दान गाय के घी का दान शुभ और मंगलकारी समाचार लाता है और परिवार की तरक्की करता है।
तिल का दान काले तिल का दान परेशानियों और विपदाओं से रक्षा करता है, विशेषकर श्राद्ध के समय। नमक का दान नमक का दान भी जीवन में सुख-समृद्धि लाता है, विशेष रूप से श्राद्ध के समय अवश्य दान करना चाहिए.
दान का अर्थ महत्व प्रकार
दान करने के कई प्रकार हैं बतलाए गए है, जिन्हें विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। मुख्य प्रकारों में भौतिक दान (जैसे अन्न, वस्त्र, धन), जैविक दान (जैसे रक्तदान, अंगदान), ज्ञान दान (जैसे शिक्षा, विद्या), और सेवा या मानसिक दान (जैसे अभय दान, समय दान) शामिल हैं। धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से, दान को उसके उद्देश्य, समय और स्थान के आधार पर सात्विक, राजसिक और तामसिक दान में भी बांटा गया है। भौतिक/पदार्थ दान:
अन्न दान: भूखे को भोजन देना, जिसे उत्तम दान माना जाता है। निर्धन या जरूरतमंदों को वस्त्र दान करना। द्रव्य दान (धन दान) धन का दान करना.अश्वदान/गौ दान: घोड़े या गाय का दान करना, जो धन दान से श्रेष्ठ माना जाता है। विद्या दान (ज्ञानदान): ज्ञान देना, जिसे सबसे बड़ा दान माना गया है।
मन का दान: अपने आप को दूसरों में लगा देना और उनके भले के लिए समर्पित करना।
समय दान: किसी कार्य या व्यक्ति के लिए अपना बहुमूल्य समय देना। रक्तदान/अंगदान: अपना रक्त या अन्य अंग दान करना, जो जीवन बचाने वाले दान हैं। किसी भयभीत या असुरक्षित व्यक्ति को भय से मुक्ति और सुरक्षा का वचन देना। सात्विक दान: बिना किसी अपेक्षा के, सही स्थान और समय पर किया गया दान। किसी लाभ या स्वार्थ के उद्देश्य से, फल की आशा के साथ किया गया दान तामसिक दान: अनुचित स्थान, समय और व्यक्ति को किया गया दान। बेटी को विवाह के समय दान करना श्रेयस्कर है जगत कल्याण के लिए शक्ति का अर्पण करना चाहिए। यश और कीर्ति की प्राप्ति के लिए किया गया दान अतिउत्तम मा आ गया है. मानसिक इन भेदों से पुन: दान के तीन भेद गिनाए गए हैं। संकल्पपूर्वक जो सूवर्ण, रजत आदि दान दिया जाता है वह कायिक दान है। अपने निकट किसी भयभीत व्यक्ति को अभय दान भी श्रेयस्कर माना गया है.