कमल पुष्प भगवान श्रीलक्ष्मी नारायण को बहुत प्रिय
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
मथुरा । कमल पुष्प भगवान श्री लक्ष्मी नारायण को बहुत ही प्रिय है.श्री लक्ष्मी को कमल पुष्प जिसे “पुष्प सम्राट” कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पवित्रता, सौंदर्य, और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है। कमल का फूल कीचड़ में खिलता है, फिर भी वह कीचड़ से अछूता रहता है, जो सांसारिक जीवन में रहते हुए भी पवित्रता बनाए रखने का संदेश देता है।
कमल पुष्प की पवित्रता और सुंदरता का प्रतीक माना जाता है.कमल को शुद्धता, ज्ञान, और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है।
देवी-देवताओं का प्रिय कमल का फूल भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, और भगवान शिव सहित कई देवी-देवताओं को प्रिय है।
आध्यात्मिक महत्व के संबंध मे बतातेहैं कि कमल का फूल आत्मज्ञान और मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक अनुष्ठानों में भी कमल के फूलों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-पाठ, और मंदिरों में किया जाता है। कमल भारत का राष्ट्रीय फूल होने के नाते, कमल देश की सुंदरता और गौरव का प्रतिनिधित्व करता है।
ब्रह्म कमल, जो हिमालय में पाया जाता है, को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है और इसे देवताओं का फूल माना जाता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि कमल का फूल कई पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में पाया जाता है, जैसे कि रामायण और महाभारत मे कमल के चिकित्सीय गुण के संबंध में
कुछ अध्ययनों में कमल के फूल में औषधीय गुण भी पाए गए हैं, जैसे कि सिरदर्द के लिए एक आयुर्वेदिक उपाय।
संक्षेप में, कमल का फूल न केवल एक सुंदर फूल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म, और आध्यात्मिकता में एक गहरा अर्थ रखता है।
पूजा-अर्चना में हमारे यहां पुष्प के उपयोग का बहुत महत्त्व है।बिना पुष्प अर्पित किए पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है।वैसे तो लगभग सभी प्रकार के पुष्प भगवान को चढ़ाएं जाते हैं किन्तु उन पुष्पों में कमल के पुष्प का विशेष स्थान है।यह पुष्प सभी देवी-देवताओं को अतिप्रिय है।कमल की महिमा इसी बात से सिद्ध होती है कि भगवान के नेत्रों की तुलना कमल के पुष्प से की जाती है
यह पुष्प प्रभु को क्यो प्रिय है इसके कई कारण खोजें जा सकते हैं:
(1) कमल पवित्रता का प्रतीक है।इसकी सुगंध एवं सुन्दरता सभी के लिए मनमोहक होती है।
(2) कमल यह संदेश देता है कि हमें कैसे जीना चाहिए?कमल जो कीचड़ में उ
ब्रह्म कमल का पुष्प कहाँ पाया जाता है और इसकी विशेषता क्या होती है ?
ब्रह्म कमल के बारे में जानकारी और उसकी विशेषता कुछ इस प्रकार है:-
ब्रह्म कमल एक ऐसा कमल है, जो हिमालय की चोटी में खिलता है। यह कमल 14 वर्ष में एक बार ही खिलता है, इस कमल को देख पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह आधी रात को कुछ घंटों के लिए ही खिलता है। ब्रह्म कमल को ब्रह्मा जी का ही रूप माना जाता है, इस कमल को देखने से कोई भी मांगी हुई इच्छा पूरी हो जाती है। यह कमल सफेद रंग का होता है, जो दिखने में अत्यंत दुर्लभ और चमत्कारी है। इस ब्रह्म कमल में ब्रह्मा जी का वास होता है और ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी इसी कमल के ऊपर बैठकर सृष्टि की रचना करते हैं।
कुछ ऐसी मान्यता भी है कि जब द्रोपदी अपने पतियों के साथ वनवास कर रही थी, उस समय उसे नदी पर एक सफेद कमल दिखाई दिया जो अत्यंत ही आकर्षित था। ऐसे में अपने पति अर्जुन को वह ब्रह्म कमल का फूल को लाने के लिए कहा और द्रोपदी ने जैसे ही वह कमल को पाया उसे अध्यात्मिक शक्ति का एहसास हो गया।
ब्रह्म कमल अत्यंत ही आध्यात्मिक चमत्कारी फूल है। ब्रह्म कमल के बारे में तो पुराणों में सुना ही होगा, लेकिन यह कमल हिमालय के पर्वत में स्थित है, यह बात 100% सत्य है। ब्रह्म कमल को केवल वही व्यक्ति देख सकता है, जिसने अच्छे कर्म किए हैं अन्यथा यह कमल सभी व्यक्तियों को दिखाई नहीं देता है।
ब्रह्म कमल एक पौधा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसके फूल में हैं, जो वर्ष में एक ही बार खिलते हैं। ज्यादातर समय ये फूल जुलाई से सितम्बर के बीच खिलते हैं। वर्ष में एक ही बार खिलने के कारण ये बहुत दुर्लभ होते हैं।
ब्रह्म कमल के फूल में औषधीय गुण होते हैं। वनस्पति शास्त्रों के अनुसार ब्रह्म कमल की 31 प्रजातियाँ होती हैं। प्रारम्भ में ये हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते थे, पर अब लोग इन्हें घर में लगाने लगे हैं। हिमाचल प्रदेश में इसे ‘दुधाफूल’, कश्मीर में ‘गलगल’, श्रीलंका में ‘कदुफूल’ और जापान में ‘गेक्का विजन’ कहते हैं।
दन्तकथाओं के अनुसार, गणेश के सिर की जगह हाथी का सिर लगाने के लिए इस फूल के प्रयोग किया गया था।
भगवान विष्णु को कौन सर्वाधिक प्रिय है ?
जय माँ
सबसे पहले आपके प्रश्न का उत्तर:
*निर्मल मन जन सो मोहि पावा।*
*मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।*
अपने मनोरथ पूरे करने , शांति या मोक्ष पाने और ईश्वर की खोज के लिए भक्तजन क्या नहीं करते! जप-तप , पूजा-पाठ , व्रत-उपवास , ज्ञान-ध्यान और तीर्थ- दान तक पुण्यार्जन के जितने भी उपाय हैं , वे सब इसीलिए तो किए और कराए जाते हैं कि उनके करने से परमात्मा प्रसन्न होगा तथा उसकी कृपा हमें प्राप्त हो सकेगी। हमारे पाप मिट जाएंगे और हमारा जीवन पवित्र हो जाएगा। यह तभी संभव है जबकि मन से अपवित्रता दूर हो जाए। प्रभु का प्यार पाने के लिए यह जरूरी है कि हमारा मन निर्मल हो। तुलसीदास ने ईश्वर की इच्छा को व्यक्त करते हुए यही लिखा है : निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद न भावा।। जिनका मन निर्मल होता है , वही आनंद स्वरूप ईश्वर को पा सकते हैं , क्योंकि परमात्मा को छल कपट आदि दुर्गुणों की गदंगी नहीं भाती। अपने कल्याण की कामना करने वालों को इसीलिए इनसे सदैव दूर ही रहना चाहिए। कभी भूल कर भी किसी के साथ कपट नहीं करना चाहिए। कपटपूर्ण व्यवहार वही करता है , जो खुद कुटिल होता है। जैसा कि मंथरा ने कैकेयी के साथ किया था। छल , फरेब , झूठ , दिखावा और विश्वासघात आदि ये सब कपट के ही विभिन्न रूप हैं। दूसरों का धन हड़पने वाले , दूसरों की सुख शांति से ईर्ष्या रखने वाले व्यक्ति कपटी हो जाते हैं। वे तरह-तरह के प्रपंच रचते हैं , दांव खेलते हैं और खुद को बुद्धिमान समझते हैं , किंतु ईश्वर उन्हें माफ नहीं करता। उन्हें अंतत: उसके परिणाम अवश्य भोगने पड़ते हैं। कपटी व्यक्ति को कभी सुख चैन नहीं मिलता। दूसरा दोष है -छल , जिसे आजकल बुद्धि बल समझा जाने लगा है। साधु वेष में रावण ने भी तो सीता के साथ छल ही किया था। इसके परिणाम में उस महाबली और विद्वान रावण को भी सर्वनाश का फल भोगना पड़ा था। अपने स्वार्थ या अहंकार में किसी के भी साथ कभी छल नहीं करना चाहिए , अन्यथा उसका फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। तीसरी कमी है छिद्र , जो परमात्मा को अपने भक्त में प्रिय नहीं लगती। छिद्र का अर्थ होता है कमी , दोष , व्यसन यानि बुराइयां। सब जानते हैं कि ऐसी कौन- कौन सी बातें हैं , जो इनमें आती हैं। फिर भी ज्यादातर व्यक्ति दूसरों का छिद्रान्वेषण करने में तो लगे रहते हैं , पर खुद अपनी कमियां ढूंढ़ कर उन्हें दूर करने में रुचि नहीं लेते। इसीलिए विचारकों का कथन है कि कमियां अपनी और अच्छाइयां दूसरों की देखनी चाहिए। यही आत्मोत्थान का मार्ग तथा आत्म विकास का उपाय है। जिस प्रकार से अनेक छिद्रयुक्त होने के कारण छलनी में दूध या जल कुछ भी नहीं ठहरता , उसी प्रकार यदि हमारे अंदर भी कमियां ही कमियां हों तो कोई भी अच्छाई ठहर ही नहीं सकती। इसलिए सबसे जरूरी है अपनी कमियों के छिद बंद करना अर्थात् अपने दोषों को दूर करना। यह सरल नहीं है , किंतु दृढ़ इच्छा शक्ति वालों के लिए असंभव भी नहीं है। छल-कपट से दूर रहते हुए अपने व्यक्तित्व के छिद्रों को भरने के लिए यदि सतत सचेष्ट रहा जाए तो ईश्वर की समीपता का सच्चा सुख और अद्भुत मानसिक शांति मिलती है। इससे आचरण सुधरता है। कार्य और व्यवहार बेहतर हो जाता है और साथ ही साथ चिंतन भी निखर जाता है। मन का मैल भी धुल जाता है। निर्मल मन हो , स्वस्थ तन हो तथा सद्गुरु का आशीर्वाद हो तो ईश्वरीय कृपा की अनुभूति स्वयं होने लगती है। पग-पग पर उस दिव्य चेतना का अनुभव होने लगता है , जिसकी खोज हमारे ऋषि मुनि और मनीषी करते थे। वे अपने को ऊंचा उठाते थे। ऊंचाइयों को पाने के लिए सन्यास लेने की जरुरत नहीं है। सद्गृहस्थ भी ऐसा कर सकते हैं। बशर्ते हम छल , कपट और व्यसनों से दूर रहें। आनंदस्वरूप परमात्मा हमें घर-परिवार और समाज में ही हर जगह मिल जाएगा। किसी न किसी रूप में वह खुद हमारे पास चला आएगा