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(भाग-51)भवसागर से पार के लिए श्रीमद-भगवद गीता का अनुसरण,अनुकरण और अनुगमन जरुरी है

गीता जयंती पर श्रीराधा कृष्ण सेवा समिति की ओर से आयोजित संकीर्तन में योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का बखान किया गया। वक्ताओं ने भवसागर से पार जाने के लिए गीता के श्लोकों का अनुसरण अनुकरण और अनुगमन करने पर जोर दिया है।

सोमवार को गीता मंदिर प्रांगण में प्रथम में संकीर्तन का आयोजन किया गया। श्रद्घालुओं को भगवान श्रीकृष्ण के अमृत वचनों से परिपूर्ण गीता भेंट की।

समिति अध्यक्ष अंबरीश कुमार वर्मा ने कहा कि आठ साल से लगातार संकीर्तन और गीता वितरण कार्य जारी है। अध्यक्ष ने कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण के अर्जुन को दिए गए उपदेशों का वर्णन किया। अपनों को देख मोह में फंसे अर्जुन को विराट रूप दिखाने का प्रसंग सुनाया। गीता के पहले अध्याय के पाठ का लाभ, पूर्वजन्म बातें  याद आती हैं

हमारे शास्त्रों में गीता की महिमा का बखान किया गया है। शास्त्र कहते हैं कि गीता में मनुष्य के जीवन का सार निहित है। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्‍ण ने पांडव पुत्र अर्जुन को कुछ उपदेश दिए थे जिनका पालन कर पांडवों को युद्ध में विजय प्राप्‍त हुई थी।पुनर्जन्म से आशय आत्माओ की पुर्नस्थापना से है। गीता के पहले अध्याय के पाठ में पुर्नजन्म से जुड़ी कई दिलचस्प बातों का उल्लेख किया है। मान्यता है कि पहले पाठ के अध्ययन से पिछले जन्म से जुड़ी बातें याद आ जाती हैं। हमारे पुराने कर्मों का जीवनचक्र से गहरा संबंध है। हमें कई ऐसे उदाहरण मिले हैं जहां लोगों ने अपने पूर्व जन्म के बारे में बताया है मगर अधिकांश लोग मृत्यु के बाद जब नए योनि में प्रवेश करते है तो वो अपने पुराने जन्म के बारे में भूल जाते हैं।

एक बार भगवान विष्णु से माता लक्ष्मी ने प्रश्न किया, भगवन! आप संपूर्ण जगत का पालन करते हुए भी अपने ऐश्वर्य के प्रति उदासीन से होकर इस क्षीरसागर में निद्रा में लीन रहते हैं, इसका क्या कारण है? तब भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह निद्रा में नहीं रहते हैं बल्कि तत्त्व का अनुसरण करने वाली अन्तर्दृष्टि के द्वारा अपने ही माहेश्वर तेज से साक्षात्कार करते हैं। श्री भगवान बोले प्रिये! आत्मा का स्वरूप द्वैत और अद्वैत से पृथक, भाव और अभाव से मुक्त तथा आदि और अंत से रहित है। शुद्ध ज्ञान के प्रकाश से उपलब्ध होने वाला तथा परमानन्द स्वरूप होने के कारण एकमात्र सुन्दर है। वही मेरा ईश्वरीय रूप है। आत्मा का एकत्व ही सबके द्वारा जानने योग्य है। गीताशास्त्र में इसी का प्रतिपादन हुआ है।

उधर क्षीरसागर में भगवान विष्णु के वचन सुनकर लक्ष्मी देवी ने कहा गीता का यह प्रतिपादन मैं भी जानना जानती हूं। तब भगवान विष्णु ने गीता के 18 अध्यायों में अपनी स्थिति बताने के उद्देश्य से कहा, क्रमश पाँच अध्याय मेरे पांच मुख हैं, दस अध्याय मेरी दस भुजाएं हैं, एक अध्याय उदर और दो अध्याय दोनों चरणकमल है। इस प्रकार यह अठारह अध्यायों को ईश्वरीय मूर्ति ही समझनी चाहिए। गीता के ज्ञानमात्र से ही महान पातकों का नाश होता है। जो भी गीता के एक या आधे अध्याय का अथवा एक, आधे या चौथाई श्लोक का भी प्रतिदिन अभ्यास करता है, वह सुशर्मा के समान मुक्त हो जाता है। तब देवी लक्ष्मी ने सुशर्मा के जीवन की कथा जाननी चाही।

जबलपुर जिले में अध्यात्म विलास वाटिका उबरीखेड़ा के प्रांगण में पांच दिवसीय भगवत गीता प्रवचन सप्ताह उत्सव के चौथे दिन रविवार को वृंदावन के आचार्य नीलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा कि आत्म शांति व आत्म कल्याण भगवत भजन के बिना संभव नहीं है। जैसे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है, उसी प्रकार आत्मा के लिए भजन व सत्संग भी अत्यंत आवश्यक है। एक ही भगवान अनेक रूपों में विभक्त होकर अनेक प्रकार की लीला करते हैं। जीव ईश्वर के किसी भी रूप का आश्रय लेकर परम तत्व को प्राप्त कर सकता है।

श्रीमद्भगवत गीता कथा श्रवण से आध्यात्मिक रस वितरण का सार्वजनिक प्याऊ है। भव सागर से पार उतारने के नौका का नाम है श्रीमद्भगवत। सनातन धर्म में मानव जन्म से मृत्यु पर्यंत चार आश्रमों से गुजरता है। अलग-अलग कार्यों के लिए चार आश्रमों का निर्माण हुआ है। प्रथम ब्रह्मचर्य में विद्याजर्न, गृहस्थाश्रम में धनाजर्न, वानप्रस्थ आश्रम ने पुष्पार्जन व सन्यास आश्रम में विसर्जन होना चाहिए। वहीं वृंदावन की नाट्य मंडली ने भव्य रासलीला प्रस्तुत की जिससे भक्तगण भावविभोर हो गए। आयोजक हरीराम त्रिपाठी, सवायजपुर विधायक माधवेन्द्र प्रताप सिंह रानू, जिला पंचायत सदस्य विमल मिश्र, अनुपम त्रिपाठी, रामानुज त्रिपाठी, विस्वास त्रिपाठी, सुबोध बाजपेई आदि मौजूद रहे।

अहंकार के वशीभूत होकर कोई कार्य न करें : कथा व्यास: हरदोई : बैंक ऑफ बड़ौदा सांडी रोड के सामने गली में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथा व्यास संत डॉ. सत्येंद्र स्वरूप शास्त्री ने बलि बामन चरित्र की कथा सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

मध्यप्रदेश के जबलपुर से आए कथा व्यास ने कहा कि अहंकार के वशीभूत होकर कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि परमात्मा ने उस अहंकार मय यज्ञ में मात्र तीन पग में ही अखिल ब्रह्मांड नाप लिया। उन्होंने समुद्र मंथन, गजग्राह, गंगा अवतरण, भक्त प्रहलाद के चरित्र की कथा सुनाई। श्री राम जन्म एवं श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जब मायापति का आगमन होता है तो सारे बंधन अपने आप ही खुल जाता है। इस दौरान कृष्ण जन्मोत्सव झांकी बनाकर भक्तों को भावविभोर कर दिया। मुख्य यजमान डॉ. अरुण कुमार मिश्र, डॉ. शिक्षा मिश्रा और राजीव कुमार मिश्र व प्रिया मिश्रा ने व्यास गद्दी का पूजन अर्चन किया। बच्चा बाबा, मुकेश बाजपेयी, रेनू बाजपेयी, रेखा बाजपेयी, रंजना मिश्रा, जगदीश पांडेय, मनोज यादव, धीरेंद्र सिंह, गोविद शरण मिश्र, अमित शर्मा आदि मौजूद रहे।

विष्णु भगवान ने बताया कि सुशर्मा बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। वह न ध्यान करता था, न जप और न अतिथियों का सत्कार। वह हल जोतता और पत्ते बेचकर जीविका चलाता था। वह मदिरा और मांस का सेवन करता था। इस प्रकार उसने अपने जीवन का दीर्घकाल व्यतीत कर दिया। एकदिन वह पत्ते लाने के लिए किसी ऋषि की वाटिका में घूम रहा था तभी कालरूपधारी काले सांप के डंसने से उसकी मृत्यु हो गयी। तदनन्तर वह अनेक नरकों में जा वहां की यातनाएं भोगकर मृत्युलोक में लौट आया फिर बोझा ढोने वाले बैल के रूप में उसने जन्म लिया। तब किसी पंगु ने उसे खरीद लिया। बैल ने अपनी पीठ पर पंगु का भार ढोते हुए बड़े कष्ट से सात-आठ वर्ष बिताए। एक दिन पंगु ने किसी ऊंचे स्थान पर बहुत देर तक बड़ी तेजी के साथ उस बैल को घुमाया। इससे वह थककर बड़े वेग से पृथ्वी पर गिरा और मूर्छित हो कर मर गया। उस समय वहां बहुत से लोग एकत्रित हो गए। उस जनसमुदाय में से किसी पुण्यात्मा व्यक्ति ने उस बैल का कल्याण करने के लिए उसे अपना पुण्य दान किया। उस भीड़ में एक वेश्या भी खड़ी थी। उसे अपने पुण्य का पता नहीं था तो भी उसने लोगों की देखा-देखी उस बैल के लिए कुछ त्याग किया।

यमराज के दूत उस मरे हुए प्राणी को पहले यमपुरी में ले गए। वह वेश्या के दिए पुण्य से पुण्यवान हो गया, फिर उसे छोड़ दिया गया। वह भूलोक में आकर उत्तम कुल और शील वाले ब्राह्मणों के घर में उत्पन्न हुआ। उस समय भी उसे अपने पूर्वजन्म की बातों का स्मरण बना रहा। बहुत दिनों के बाद जिज्ञासु होकर वह उस वेश्या के पास गया और उसके दान की बात बतलाते हुए पूछा ‘तुमने कौन सा पुण्य दान किया था?’ वेश्या ने उत्तर दिया ‘वह पिंजरे में बैठा हुआ तोता प्रतिदिन कुछ पढ़ता है। उससे मेरा अन्तःकरण पवित्र हो गया है। उसी का पुण्य मैंने तुम्हारे लिए दान किया था।’ इसके बाद उन दोनों ने तोते से पूछा। तब उस तोते ने अपने पूर्वजन्म का स्मरण करके प्राचीन इतिहास कहना आरम्भ किया।

तोता बोला, पूर्वजन्म में मैं विद्वान होकर भी विद्वता के अभिमान से मोहित रहता था। मेरा राग-द्वेष इतना बढ़ गया था कि मैं गुणवान विद्वानों के प्रति भी ईर्ष्या भाव रखने लगा फिर समयानुसार मेरी मृत्यु हो गई और मैं अनेकों घृणित लोकों में भटकता फिरा। उसके बाद इस लोक में आया। सदगुरु की अत्यन्त निंदा करने के कारण तोते के कुल में मेरा जन्म हुआ। पापी होने के कारण छोटी अवस्था में ही मेरा माता-पिता से वियोग हो गया। एक दिन मैं ग्रीष्म ऋतु में तपते हुए मार्ग पर पड़ा था। वहां से कुछ श्रेष्ठ मुनि मुझे उठा लाये और महात्माओं के आश्रय में आश्रम के भीतर एक पिंजरे में उन्होंने मुझे डाल दिया। वहीं मुझे पढ़ाया गया। ऋषियों के बालक बड़े आदर के साथ गीता के प्रथम अध्याय की आवृत्ति करते थे। उन्हीं से सुनकर मैं भी बारंबार पाठ करने लगा। इसी बीच में एक चोरी करने वाले बहेलिये ने मुझे वहां से चुरा लिया। तत्पश्चात इस देवी ने मुझे खरीद लिया। मैंने इस प्रथम अध्याय का अभ्यास किया था, जिससे मैंने अपने पापों को दूर किया है। फिर उसी से इस वेश्या का भी अन्तःकरण शुद्ध हुआ है और उसी के पुण्य से आप भी पापमुक्त हुए हैं। इसलिए जो गीता के प्रथम अध्याय को पढ़ता, सुनता तथा अभ्यास करता है, उसे इस भवसागर को पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती

सहर्ष सूचनार्थ नोट्स:-

उपरोक्त लेख श्रीमद-भगवद गीता एवं विद्वान संत महात्माओं के प्रवचनों से संकलन कर भगवत प्रेमियों को सामान्य आध्यात्मिक ज्ञानार्जन कें लिए प्रस्तुत है।

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