भाग:197) मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ में गूंजेगी प्रभु के अरण्यकाण्ड की कथामृत
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के ननिहाल के रूप में पूरी दुनिया में अपनी एक विशेष पहचान रखता है। सदियों से भगवान श्रीराम का नाम छत्तीसगढ़ के आम जन जीवन में रचा-बसा है, प्राचीन समय में दंडकारण्य रहा आज का छत्तीसगढ़ भगवान श्रीराम की तपोभूमि रही है, एक सामान्य मानव से मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनने के पड़ाव में भगवान श्रीराम ने दण्डकारण्य आधुनिक छत्तीसगढ़ में लंबा समय बिताया था।
छत्तीसगढ़ की इस गौरवशाली आध्यात्मिक विरासत से नई पीढ़ी को अवगत कराने के क्रम में राज्य सरकार प्रदेश के कोरिया जिले के सीतामढ़ी-हरचौका से सुकमा के रामाराम तक लगभग 2260 किलोमीटर लम्बे राम वन गमन पथ में भगवान श्रीराम के वनवास काल की स्मृतियों को सहेजने की दिशा में कार्य कर रही है।
छत्तीसगढ़ ने सम्पूर्ण विश्व को आध्यात्मिक पर्यटन की ओर लाने का अनूठा प्रयास किया है। इस प्रयास से नई पीढ़ी के साथ-साथ, समाज के ऐसे तबके को, जो अब तक छत्तीसगढ़ की पुण्यभूमि से जुड़ी भगवान श्रीराम की स्मृतियों से अनजान हैं उन्हें अपनी ऐतिहासिक विरासत से परिचित होने का गौरव मिलेगा।
छत्तीसगढ़ सरकार भगवान श्रीराम के वनवास काल से जुड़े 75 स्थानों को चिन्हित कर उन्हें पर्यटन की दृष्टि से विकसित कर रही है। भगवान राम से जुड़े प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थल चंदखुरी और शिवरीनारायण के स्थलों के सौंदर्यीकरण के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से बुनियादी सुविधाओं को विकसित किया जा चुका है। राजिम में मंदिरों के सौंदर्यीकरण और पर्यटन सुविधाओं के विकास के कार्य किए जा रहे हैं।
भगवान श्रीराम पूरी दुनिया में मर्यादा और आदर्श के सर्वाेच्च प्रतीक के रूप में पूजे जाने वाले लोकनायक हैं, महाकाव्य रामायण और महर्षि तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस भगवान राम के जीवन के प्रतिबिंब हैं, छत्तीसगढ़ की भूमि राम के वनवास से लेकर उनके पुरुषोत्तम होने तक की यात्रा की साक्षी रही है। जहां भगवान राम का व्यक्तित्व विराट रूप लिया।
छत्तीसगढ़ में वनवासी राम का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक समरसता का प्रतीक है, यहां उन्होंने सदैव समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को गले लगाया। राम ने दंडकारण्य की धरती से पूरी दुनिया तक “सम्पूर्ण समाज एक परिवार है” का संदेश दिया।
मुख्यमंत्री बघेल कहते हैं कि “हमारे राम समावेशी राम हैं, जो हमारे रग-रग में रचे, हर धड़कन में बसे हैं, हर सुख-दुख में हमारे साथ होते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लोक आस्था का सम्मान करते हुए राम वन गमन पथ को पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित किया जा रहा है। लोकपरम्परा के अनुसार मिथिला में बेटियों से पैर नहीं छुआते क्योंकि वहां माता सीता का जन्म हुआ था ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ में भांजे से पैर नहीं छुआते क्योंकि भांजे को यहां भगवान राम के रूप में देखा जाता है।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के चंदखुरी में स्थित विश्व के एकमात्र माता कौशल्या मंदिर में हर वर्ष भव्य कौशल्या महोत्सव के आयोजन की शुरूआत की है। इसी क्रम में अब छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में 1 जून से 3 जून तक तीन दिवसीय भव्य राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से आए कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देंगे। इस आयोजन में प्रभु की अरण्य कांड पर नृत्य नाटिका की विशेष प्रस्तुति होगी। इसके साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ और केलो महा आरती का भी आयोजन होगा
अयोध्या से वन गमन को चले भगवान श्रीराम के पग जहां-जहां पड़े थे, अब वहां राम वन गमन पथ बनाया जाएगा। राम वन गम पथ बनाने की तैयारी पूरी हो गई है। छह चरणों में 177 किलोमीटर का फोरलेन राम वन गमन किया जाना है। इस पर 4319 करोड़ रुपये की लागत आएगी। आइए जानते हैं क्या है राम वन गमन पथ जिसको बनाने का शंखनाद कर दिया गया है..
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दरअसल माना जाता है कि अयोध्या से श्रीलंका तक की 14 साल की यात्रा में श्रीराम ने करीब 10 किमी का सफर तय किया। इस बीच लगभग 248 ऐसे प्रमुख स्थल थे जहां उन्होंने या तो विश्राम किया या फिर उनसे उनका कोई रिश्ता जुड़ा। आज यह स्थान धार्मिक रूप में राम की वन यात्रा के रूप में याद किए जाते हैं। 2015 में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने रामायण सर्किट विकसित करने का एलान किया था।
यूपी में इन जगहों पर वनगमन स्थल
तमसा नदी: अयोध्या से 20 किमी दूर महादेवा घाट से दराबगंज तक वन-गमन यात्रा का 35 किलोमीटर। पहला पड़ाव रामचौरा यहां राम ने रात्रि विश्राम किया था। यूपी सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया है।
शृगवेरपुर (सिंगरौर): गोमती नदी पार कर प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किमी श्रृंगवेरपुर। निषादराज गुह का राज्य। श्रृंगवेरपुर को अब सिंगरौर कहते हैं।
कुरई: इलाहाबाद सिंगरौर के निकट गंगा उस पार कुरई नामक स्थान है। यहां एक मंदिर है जिसमें राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया।
प्रयाग: कुरई से आगे राम प्रयाग पहुंचे थे। संगम के समीप यमुना नदी पार कर यहां से चित्रकूट पहुंचे। यहां वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप आदि हैं।
चित्रकूट: चित्रकूट में श्रीराम के दुर्लभ प्रमाण हैं। यहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे। यहीं से वह राम की चरण पादुका लेकर लौटे। यहां राम साढ़े ग्यारह साल रहे। इसके बाद सतना, पन्ना, शहडोल, जबलपुर, विदिशा के वन क्षेत्रों से होते हुए वह दंडकारण्य चले गये।
कहां है दंडकारण्य?
रामायण के मुताबिक भगवान राम ने वनवास का वक्त दंडकारण्य में बिताया। छत्तीसगढ़ का बड़ा हिस्सा ही प्राचीन समय का दंडकारण्य माना जाता है। अब उन जगहों को नई सुविधाओं के साथ विकसित किया जा रहा है, जिन्हें लेकर यह दावा किया जाता है कि वनवास के वक्त भगवान यहीं रहे।
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4319 करोड़ रुपए में 177 किलोमीटर होगा निर्माण
प्रयागराज में श्रृंगरपुर धाम से इस सड़क के निर्माण के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने आधारशिला रखी। इस सड़क का निर्माण 4319 करोड़ में 177 किलोमीटर का निर्माण होगा। बुधवार से इसके निर्माण के लिए लोक निर्माण विभाग तैयारी शुरू कर देगी। सड़क परिवहन को बढ़ावा देने के लिए भगवान श्री राम से जुड़े स्थलों तक राम भक्तों को जाने के लिए रास्ता सुगम बनाने के लिए रामवन गमन पथ का निर्माण किया जाएगा। आज इसकी शुरुआत हो गई। कार्यक्रम में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद भी मौजूद रहे। गुरूवार को वह कौशांबी में इसके तीन हिस्से का शिलान्यास करेंगे।
यहां से गुजरेगा राम गमन पथ मार्ग
श्रीराम की वनगमन यतारा राम जन्मभूमि अयोध्या से शुरू होकर प्रतापगढ़, प्रयागराज, कौशांबी होते हुए चित्रकूट तक गई थी। इसी पथ को ही राम वनगमन मार्ग कहा जाता है। इसकी लंबाई करीब 177 किलोमीटर है। राम वनगमन मार्ग को पूरी तरह से तैयार करने में 3500 करोड़ रुपये की लागत आएगी।