(भाग:233) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने राम रामेश्वरम् की स्थापना करके ही की थी श्रीलंका में चढाई 

भाग:233) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने राम रामेश्वरम् की स्थापना करके ही की थी श्रीलंका में चढाई

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

सीता को लंका से छुड़ाने के लिए श्री राम ने रामेश्वरम की स्थापना और शिव जी की-पूजा अर्चना की थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम ने श्रीलंका से लौटते समय इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी, जिनके नाम पर रामेश्वर मंदिर और रामेश्वर द्वीप का नाम रखा गया है।

रामेश्वरम मंदिर तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है, यह मंदिर हिंदुओं का एक पवित्र मंदिर है और इसे चार धामों में से एक माना जाता है। रामेश्वरम मंदिर को रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर में जो मान्यता काशी की है, वही दक्षिण में रामेश्वरम की है।

 

भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले एक पत्थर का पुल बनवाया था, जिस पर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची और विजय प्राप्त की, बाद में विभीषण के अनुरोध पर राम ने धनुषकोटि नामक स्थान पर इस पुल को तोड़ दिया।

 

राम ने सीताजी को छुड़ाने के लिए लंका पर आक्रमण कर दिया था, उन्होंने सीताजी को बिना युद्ध किये छुड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब रावण को मजबूर होना पड़ा तो उन्होंने युद्ध किया, इस युद्ध के लिए राम को वानर सेना सहित समुद्र पार करना पड़ा। जो कि बहुत कठिन कार्य था, तब युद्ध कार्य में सफलता और विजय के बाद श्री राम ने अपने आराध्य भगवान शिव की आराधना के लिए समुद्र तट की रेत से अपने हाथों से एक शिवलिंग का निर्माण किया, तब भगवान शिव प्रकट हुए। तभी भगवान शिव प्रकाश के प्रकाश में प्रकट हुए और इस लिंग को श्री रामेश्वरम का नाम दिया, रावण के साथ इस युद्ध में उसका पूरा राक्षस वंश समाप्त हो गया और अंततः श्री राम सीता को मुक्त करा कर वापस आये।

 

राम के परमभक्त हनुमान जी के भी दर्शन

 

रामेश्वरम शहर से लगभग डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी सी पहाड़ी है, इसी पर्वत से हनुमानजी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी। बाद में राम ने लंका पर आक्रमण करने के लिए यहीं एक विशाल सेना संगठित की। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बनाया गया है, जहां श्री राम के पैरों के निशान की पूजा की जाती है। इसे पादुका मंदिर कहा जाता है

 

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने दिन गुरुवार रात को सेतु बंधन तथा रामेश्वरम् की स्थापना से रामलीला शुरू हुई। भगवान राम रावण से युद्ध करने की तैयारी में हैं। ऐसे में समुद्र के पास भगवान शिव की स्थापना की जा रही है।

 

भगवान राम कहते हैं मैंने संकल्प लिया था मैं शिवजी की स्थापना करूं, हे लंकापति विभीषण बताएं मैं किस पंडित को बुलाकर प्राण प्रतिष्ठा करूं, तब विभीषण कहते हैं रावण शिवजी का भक्त है। उसे ही बुलाया जाए। हनुमानजी रावण को प्राण प्रतिष्ठा के लिए लाते हैं। राम रावण से कहते हैं हे ब्राह्मण देवता मैंने शिवलिंग स्थापना का संकल्प लिया था। इस संसार में आपसे उत्तम पंडित नहीं है, इसीलिए आपको आमंत्रित किया है। शिवलिंग की स्थापना भगवान राम ने की है, इसीलिए उसका नाम रामेश्वरम् पड़ा। भगवान राम कहते हैं जो मनुष्य रामेश्वरम के दर्शन व सेवा करेगा, उन्हें शंकरजी मेरी भक्ति देंगे। शिवजी के समान मुझको कोई प्रिय नहीं है।

 

भगवान राम ने बताया जो रामेश्वरम् पर गंगाजल लाकर चढ़ाएगा वह मनुष्य मुक्ति पाएगा। इसके बाद पूरी राम सेना युद्ध की तैयारी में जुट गई। लेकिन राम अंगद को शांतिदूत बनाकर रावण के दरबार भेजते हैं।

रावण के दरबार में अंगद पहले शांति प्रस्ताव रखता है, लेकिन रावण शांति प्रस्ताव ठुकरा देता है। अंगद कहता है मैं बाली पुत्र अंगद हूं। तुमने माता सीता का हरण कर ठीक नहीं किया। मेरे साथ चलो भगवान राम से त्राहि-त्राहि की मांग करने से तुम्हारे अपराधों को क्षमा कर देंगे, नहीं तो लंका नगरी नष्ट हो जाएगी। इसके बाद रावण के नहीं मानने पर अंगद अपना पांव जमीन पर रखता है और कहता है यदि मेरा पांव कोई हिला दिया तो मैं श्रीराम की ओर से माता सीता हार जाऊंगा। रावण दरबार के बड़े-बड़े योद्धा भी अंगद का पैर नहीं हिला पाते। रावण के नहीं मानने पर अंगद वापस लौट आता है। इसके बाद भगवान राम रावण पर हमला बोल देते हैं।

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