(भाग:253)सिर्फ बेदाग निष्कलंक और निष्पाप की सत्यता के लिए सीता माता को देनी पड़ी थी अग्नि परीक्षा
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
रामायण में माता सीता के अग्नि परीक्षा देने की ऐसी मुख्य वजह जिसके बारे में आपने पहले नहीं सुना होगा।
रामायण की कथा आप सभी ने सुनी या देखी होगी और ये रामायण प्रभु श्री राम और माता सीता के अटूट प्रेम और विशवास की कहानी बयां करती है। रामायण की कथा के अनुसार भगवान श्री राम को चौदह साल का वनवास मिला था और इस वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ थे। वनवास के कठिन समय के दौरान लंका पति रावण ने माता सीता को अपहरण करके बंदी बना लिया था और इसी वजह से राम और रावण के बीच युद्ध हुआ था। रामायण की न जाने कितनी कथाएं प्रचलित हैं और इनमें से एक प्रमुख कथा है सीता माता की अग्नि परीक्षा की कथा।
वास्तव में ये बात थोड़ी सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर माता सीता और प्रभु श्री राम के बीच के अटूट प्रेम के बावजूद भी अग्नि परीक्षा क्यों देनी पड़ी। इस बात को लेकर भी कई कथाएं सुनने में आती हैं। लेकिन हमने इस बात को गहराई से जानने के लिए हमने नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से बात की। उन्होंने हमें इस अग्नि परीक्षा की सिर्फ एक वजह बताई जानें क्या है वो वजह।
अग्नि परीक्षा को लेकर प्रचलित कथा
प्रजा का मान रखने के लिए ली थी अग्निपरीक्षा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है और एक राजा की तरह श्री राम के लिए अपनी प्रजा के लिए समर्पण सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण था। ऐसे में जब लंबे समय तक रावण की कैद में रहने के बाद माता सीता, श्रीराम के साथ आयोध्या लौटीं तब उनकी पवित्रता को लेकर समाज के एक वर्ग में संदेह होने लगा। इस पर एक वृद्धा ने उन पर कटाक्ष करते हुए ये भी कहा कि ये भला कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो ऐसी माता सीता को अयोध्या वापस ले आये जो तक रावण के पास थीं और उनकी पवित्रता का कोई प्रमाण ही नहीं है। जब श्री राम को ये बात पता चली तो उन्होंने प्रजा के कल्याण के लिए माता सीता को अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता को सिद्ध करने के लिए कहा। प्रभु श्री राम की बात सुनकर माता सीता अग्नि में समा गयीं।
पंडित प्रशांत मिश्रा जी बताते हैं कि पद्म पुराण के अनुसार रामायण में एक नहीं बल्कि दो सीता थी, पहली असली और दूसरी माया की सीता। इसकी कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मण जी जब कंदमूल फल लेने वन को गए हुए थे तब प्रभु श्री राम ने माता सीता से कहा कि “अब मैं नर लीला करूंगा और जब तक मैं राक्षसों का विनाश करूंगा तब तक आप अग्नि में निवास करें।” ऐसा कहकर श्री राम ने माता सीता को अग्नि देव को सौंप दिया। इसके बाद असली सीता जी की जगह माया की सीता प्रकट हुईं। इस तरह जब सीता जी का अपहरण हुआ तब वो माया की ही सीता थीं। जब युद्ध समाप्त हो गया और राक्षसों का विनाश हो गया तब भगवान् श्री राम ने माता सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कहा और माया की सीता अग्नि कुंड में समा गईं। माया की सीता के अग्नि में समाते ही असली माता सीता अग्नि से बाहर आ गयीं और इस पूरी अग्नि परीक्षा का सिर्फ एक यही कारण था।
माता सीता करती थीं अग्नि देव की पूजा
पद्म पुराण की कथाओं के अनुसार असली माता सीता को कोई अग्नि परीक्षा नहीं देनी पड़ी थी और ना ही उन्हें वनवास जाना पड़ा था। भगवान राम भी माता सीता के इन दोनों रुपों के बारे में जानते थे क्योंकि ये उन्हीं के द्वारा रचित थे। माता सीता अग्नि देव की पूजा करती थीं और त्रेतायुग में ये धारणा थी कि अगर कोई व्यक्ति सच्चा है तो उसे अग्नि कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती है। इसी वजह से असली माता सीता अग्नि देव की शरण में सुरक्षित हो गई थीं और सीता अपहरण से लेकर अग्नि परीक्षा तक के समय में माया की सीता ही थीं। राम चरित मानस के अरण्य कांड में दोहा 23 और लंका कांड में दोहा 108 से 109 तक में इस प्रसंग का वर्णन है किया गया
माता सीता के अग्नि परीक्षा देने के पीछे ये है बड़ा रहस्य, क्या जानते हैं आप?
आप सभी ने सुना होगा कि माता सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता सीता को अग्नि परीक्षा क्यों देनी पड़ी थी. आखिर अग्नि परीक्षा देने के पीछे क्या रहस्य है. पूरी जानकारी विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ये लेख…
रामायण की सीता को सभी जानते होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि सीता माता ने अग्नि परीक्षा कैसे दी थी. सीता माता के अग्नि परीक्षा देने के पीछे बहुत बड़ा रहस्य छिपा है. कथाओं के अनुसार, असली माता सीता को कोई अग्नि परीक्षा नहीं देनी पड़ी थी और न ही उन्हें वनवास जाना पड़ा था. भगवान राम भी माता सीता के इन दोनों रुपों के बारे में जानते थे क्योंकि ये उन्हीं के द्वारा रचित थे. माता सीता अग्नि देव की पूजा करती थीं और त्रेतायुग में ये धारणा थी कि अगर कोई व्यक्ति सच्चा है तो उसे अग्नि कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती है. इसी वजह से असली माता सीता अग्नि देव की शरण में सुरक्षित हो गई थीं और सीता अपहरण से लेकर अग्नि परीक्षा तक के समय में माया की सीता ही थीं. राम चरित मानस के अरण्य कांड में दोहा 23 और लंका कांड में दोहा 108 से 109 तक में इस प्रसंग का वर्णन विस्तार से किया गया है.
पद्म पुराण के अनुसार रामायण में एक नहीं बल्कि दो सीता थी, पहली असली और दूसरी माया की सीता. इसकी कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मण जी जब कंदमूल फल लेने वन को गए हुए थे तब प्रभु श्री राम ने माता सीता से कहा कि “अब मैं नर लीला करूंगा और जब तक मैं राक्षसों का विनाश करूंगा तब तक आप अग्नि में निवास करें. ऐसा कहकर श्री राम ने माता सीता को अग्नि देव को सौंप दिया. इसके बाद असली सीता जी की जगह माया की सीता प्रकट हुईं.
जब सीता जी का अपहरण हुआ तब वो माया की ही सीता थीं. जब युद्ध समाप्त हो गया और राक्षसों का विनाश हो गया तब भगवान् श्री राम ने माता सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कहा और माया की सीता अग्नि कुंड में समा गईं. माया की सीता के अग्नि में समाते ही असली माता सीता अग्नि से बाहर आ गयीं और इस पूरी अग्नि परीक्षा का सिर्फ एक यही कारण था.
श्रीराम ने लक्ष्मण को बताया अग्नि परीक्षा का रहस्य
श्रीराम ने लक्ष्मण को माता सीता की अग्नि परीक्षा लेने का गूढ़ रहस्य बताया कि रावण के द्वारा सीता हरण करने तथा स्वर्ण मृग के आने से पूर्व ही श्रीराम को भविष्य में घटित होने वाले संपूर्ण घटनाक्रम का पता चल गया था. तब उन्होंने सीता से कहा था कि अब वह समय आ गया हैं जब उन्हें इस धरती पर लीला करनी हैं. इसलिए उन्होंने सीता से अनुरोध किया कि जब तक वे दुष्ट रावण व पापियों का नाश न कर दें तब तक उन्हें अग्नि देव की सुरक्षा में रहना होगा.
इसके पश्चात उन्होंने अग्नि देव का आह्वान किया तथा असली सीता को उन्हें सौंप दिया जिससे कि वे उनके पास सुरक्षित रह सके. अग्नि देव भगवान श्रीराम की आज्ञा पाकर माता सीता को अपने साथ ले गए तथा माता सीता की एक परछाई वहां छोड़ गए जिसे रावण हरके लेकर गया था. इसलिए उन्होंने लक्ष्मण को समझाया कि अब उन्हें अपनी असली सीता को अग्नि देव से वापस लेना होगा क्योंकि उनका उद्देश्य रावण को खत्म करके समाप्त हो चुका हैं.
सीता माता की अग्नि परीक्षा
जब माता सीता को हनुमान तथा अंगद अशोक वाटिका से श्रीराम के समक्ष लेकर आए तब उन्होंने अपने व माता सीता के बीच में अग्नि को प्रज्जवलित कर दिया व उस अग्नि को लांघकर उनके पास आने को कहा. यह आदेश सुनकर माता सीता ने धधकती अग्नि में प्रवेश किया. जैसे ही माता सीता ने अग्नि में प्रवेश किया वहां अग्नि देव असली सीता को लेकर प्रकट हो गए. माता सीता की परछाई उस अग्नि में समा गई तथा अग्नि देव असली सीता को लेकर श्रीराम के समक्ष आ गए. तब अग्नि देव ने पुनः माता सीता को श्रीराम को लौटा दिया था जिसका उल्लेख रामायण में साफ अक्षरों में मिलता हैं. साथ ही यह घटना संपूर्ण वानर सेना के सामने घटित हुई थी.
जानें अग्नि में क्यों समाईं माता सीता
वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है और एक राजा की तरह श्री राम के लिए अपनी प्रजा के लिए समर्पण सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण था. ऐसे में जब लंबे समय तक रावण की कैद में रहने के बाद माता सीता, श्रीराम के साथ आयोध्या लौटीं तब उनकी पवित्रता को लेकर समाज के एक वर्ग में संदेह होने लगा. इस पर एक वृद्धा ने उन पर कटाक्ष करते हुए ये भी कहा कि ये भला कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो ऐसी माता सीता को अयोध्या वापस ले आए जो तक रावण के पास थीं और उनकी पवित्रता का कोई प्रमाण ही नहीं है. जब श्री राम को ये बात पता चली तो उन्होंने प्रजा के कल्याण के लिए माता सीता को अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता को सिद्ध करने के लिए कहा. तब प्रभु श्री राम की बात सुनकर माता सीता अग्नि में समा गयीं थी.