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(भाग:254) अयोध्यापुरी लौटे श्रीराम लखन और सीता माता का जोरदार स्वागत वन्दन और अभिनंदन। राम लीला मंचन 

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भाग:254) अयोध्यापुरी लौटे श्रीराम लखन और सीता माता का जोरदार स्वागत वन्दन और अभिनंदन। राम लीला मंचन

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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इस अंक में हम आपको बताने जा रहे हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने रावण का वध करने के के बाद किस तरह से अयोध्या लौटे थे. रावण का वध करने से लेकर अयोध्या पहुंचने तक भगवान राम को करीब 20 दिन का वक्त लगा था.

. अभी तक हमने अयोध्या से श्रीलंका तक कई स्थानों की यात्रा की और आज बात कर रहे हैं भगवान राम की अधर्म पर जीत के बाद की यात्रा के बारे में. हमारे आज के अंक में भगवान राम 14 साल बाद अयोध्या लौटेंगे और हम आपको बताएंगे कि भगवान राम किस रास्ते से होते हुए लंका से अयोध्या पहुंचे थे. रावण का वध करने से लेकर अयोध्या पहुंचने तक उन्हें करीब 20 दिन का वक्त लगा था. भगवान राम खास पुष्पक विमान के जरिए भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ अपने महल लौटे थे. आज के अंक में हम भगवान राम के वनवास के आखिरी चरण की बात करेंगे, जिसके साथ ही हमारी खास सीरीज राम ‘राह’ भी आज खत्म हो जाएगी.

अभी तक इस सीरीज में हमने उन स्थानों के बारे में आपको बताया, जिन स्थानों पर एक समय भगवान राम गए थे. इस सीरीज में भगवान राम की अयोध्या से जनकपुर तक की यात्रा, अयोध्या से लंका तक की यात्रा, लंका में रामायण से जुड़े स्थान और भगवान राम के अयोध्या वापसी तक की यात्रा के बारे में बताया गया है. इस सीरीज में श्रीलंका के भी उन स्थानों के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो माता सीता से जुड़े हैं.

 

पिछले अंक में क्या बताया था?

अगर पिछले अंक की बात करें तो इस अंक में आपको श्रीलंका यात्रा पर लेकर गए थे. दरअसल, अधिकतर रिपोर्ट्स में भगवान राम के अयोध्या से रामेश्वरम् तक की कहानी बताई जाती है, लेकिन हमने आपको श्रीलंका के भी स्थानों के बारे में बताया. हमने बताया था कि कहां अशोक वाटिका थी, कहां से भगवान राम ने लंका को जलाना शुरू किया था और कहां माता सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी. इसमें आज का श्रीलंका और उस वक्त की लंका के बारे में काफी जानकारी दी गई थी और बताया गया था कि वहां रामायण से जुड़े क्या प्रसंग बतलाया है।

 

राम ‘राह’: यहां हुआ था भगवान राम का हनुमान से मिलन, आज ऐसी दिखती है वो जगह

इस अंक में क्या है खास? इस अंक में बात होगी भगवान राम के लंका से अयोध्या वापस आने की. इस अंक में हम बताएंगे कि किस तरह भगवान राम अयोध्या आए थे. इस अंक में भी रामायण के कुछ खास प्रसंगों से जुड़े स्थानो के बारे में आपको पता चलेगा, जिसमें राम ने ब्रह्म हत्या की तपस्या कहां की थी, भरत से मिलाप कहां हुआ था, घनुषकोटि में सेतु को क्यों तोड़ा था आदि प्रसंग शामिल हैं. तो जानते हैं अधर्म पर धर्म की जीत के बाद भगवान राम के अयोध्या पहुंचने तक की कहानी…

त्रिन्कोमली- 48 सालों से लगातार भगवान राम के तीर्थों पर शोध कर रहे डॉ राम अवतार द्वारा लिखी गई किताब वनवासी राम और लोक संस्कृति और उनकी वेबसाइट के अनुसार, जब भगवान राम सीता को लेकर वापस अयोध्या जा रहे थे, तो भगवान राम में लंका में ही एक जगह रुककर तपस्या की थी. इस तपस्या का कारण था कि उन्होंने रावण यानी एक ब्राह्मण की हत्या की थी, ऐसे में ब्रह्म हत्या के पाप को कम करने के लिए उन्होंने यहां तपस्या की थी. वैसे भारत में कुछ जगहों को लेकर दावा किया जाता है कि यहां भगवान राम ने रुककर ब्रह्महत्या के पाप को लेकर तपस्या की थी.

धनुषकोटि- भगवान राम इस रास्ते से होकर लंका में गए थे. लेकिन, जब भगवान राम वापस आ रहे थे तो भी वे धनुषकोटि होकर वापस गए थे. कहा जाता है कि भगवान राम जब अयोध्या जा रहे थे तो उन्होंने विभीषण के अनुरोध पर धनुष की नोक से पुल तोड़ दिया था. वह स्थान आज भी धनुषकोटि के नाम से प्रसिद्ध है. माना जाता है कि विभीषण ने ऐसा इसलिए किया था ताकि कोई लंका पर आक्रमण ना कर सके. इसके अलावा समुद्र ने भी सेतु तोड़ने के लिए कहा था, जिससे कोई समुद्र पार ना कर सके.

चक्रतीर्थ अनागुंडी (हम्पी)- इसके बाद भगवान राम, माता सीता तुंगभद्रा नदी पर भी रुके थे. जहां यह नदी धनुषाकार घुमाव लेती है, उसे चक्रतीर्थ कहा जाता है. माना जाता है कि जब श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या जा रहे थे, तब मां सीता के आग्रह पर विमान यहां उतारा था. बाद में सुग्रीव ने यहां कोदण्ड राम मंदिर बनवाया था.

इसके बाद भगवान राम परिवार के साथ अयोध्या पहुंचे थे. हालांकि, कुछ लोक कथाओं में कहा जाता है कि भगवान राम इलाहाबाद के भारद्वाज आश्रम में मुनि से मिले थे. जहां मुनि ने भगवान राम को ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्त होने के कई तरीके बताए थे, जिसमें कई शिवलिंग बनवाना भी शामिल है.

भादर्शा (अयोध्या)- जब भगवान विमान से अयोध्या पहुंचे तो भादर्शा नाम के बाजार में पहली बार भगवान को विमान में देखा. भादर्शा का अर्थ भये दर्शन बताया जाता है. यहां ही अयोध्यावासियों को श्रीराम के पुष्पक विमान में दर्शन हुए थे.

 

इहां भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।।

 

सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा।।

 

जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना।।

 

अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।

 

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।

 

जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा।।

 

अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी।।

 

हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी।।

 

(वा.रा. 6/127/30 से 39, मानस 7/4 दोहा 7/4 ख दोहा।)

 

रामकुण्ड पुहपी- यहां भगवान राम का विमान उतरा था, जिसके बाद उस जगह का नाम पुष्पकपुरी रखा गया. अब वह जगह पुहपी के नाम से जानी जाती है. इसके पास नन्दी ग्राम में भरत जी तपस्या करते हुए श्रीराम के वापस अयोध्या आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. इसी समय भगवान राम ने हनुमान जी को अपने समाचार देकर भरत जी से मिलने भेजा था. इस स्थल पर हनुमान जी व भरत जी की भावुक भेंट हुई थी.

भरत कुण्ड (नन्दीग्राम)- इस जगह के लिए कहा जाता है कि यहां श्रीराम और भरत का भावुक मिलन हुआ था. यह जगह अयोध्या से करीब 10 किलोमीटर दूर है. इसके पास एक जटा कुंड है, जिसके लिए कहा जाता है कि यहां भगवान राम ने पहले भरत और लक्ष्मण की जटाएं साफ करवायीं और फिर अपनी जटाएं साफ करवाईं और शोभा यात्रा के साथ मंदिर में प्रवेश किया. इसके अलावा इसके आस-पास कई जगह हैं, जिनके लिए अलग अलग प्रसंग जोड़े जाते हैं. इनमें एक सुग्रीव कुंड है, जिसमें सुग्रीव ने स्नान किया था. वहीं एक हनुमान, सीता, राम कुंड हैं, जहां क्रमश: हनुमान, सीता, राम ने स्नान किया था.

भगवान राम के अयोध्या में पहुंचने के बाद उनका स्वागत किया और उस दिन पूरी अयोध्या में घी के दिए जलाए, जिस दिन को आज हम लोग दिवाली के रुप में मनाते हैं. इसके साथ ही भगवान राम की वनवास यात्रा समाप्त होती है. यह सीरीज का आखिरी अंक था. इसके सभी अंक आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं, जिसमें भगवान यात्रा की 14 साल का वर्णन है.

आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को लंकापति रावण का वध करने के बाद श्रीराम कार्तिक अमावस्या के दिन अपने राज्य कौशल वापिस लौट रहे थे। लंका से कौशल आने की अवधि में वे विभिन्न स्थानों पर रूकते हुए आते है। तुलसीदास कृत रामचरितमानस के अनुसार, रावण वध के पश्चात जब श्रीराम की अयोध्या वापसी की बेला आई तो धर्म-अधर्म के इस युद्ध मे उनके साथी रहे नील, जामवंत, हनुमान, सुग्रीव आदि दुःखी हो गए। अपने साथियों की मन:स्थिति को भांपते हुए श्रीराम ने उन्हें भी अपने साथ चलने के लिये कहा।

श्रीराम और उनके साथियों की इस यात्रा में पुष्पक विमान उनका वाहन बना। कुबेर का पुष्पक विमान उन्हें वायु मार्ग से अयोध्या ले जा रहा था। किंतु श्रीराम मार्ग में कई स्थानों पर रूके। सबसे पहले विमान अगस्त्य ऋषि के आश्रम में पहुँचा। मुनि अगस्त्य का आश्रम दंडकवन में था। इस आश्रम में उनके साथ कई अन्य मुनि भी रहते थे। तुलसीदास जी इस संदर्भ में लंकाकाण्ड में लिखते है-

“तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा।।

कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना।।”

दंडकवन पर पड़ाव डालने के बाद श्रीराम का पुष्पक विमान चित्रकूट में उतरा। अपना इंतज़ार कर रहे मुनियों को संतोष दिलाते हुए श्रीराम ने वायुमार्ग से यमुना नदी के ऊपर से उड़ान भरी।

“सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा।।

तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा।।”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

अब वो प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम के समीप पहुँच जाते है। यहाँ से वो गंगा माँ को प्रणाम करते है और सीता जी को संगम का महात्म्य समझाते है। इस बीच उन्हें अपनी राजधानी अयोध्या के दर्शन भी होते है-

 

“पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि।”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

अब उनका पुष्पक विमान प्रयागराज में पड़ाव डालता है। यहाँ पर त्रिवेणी में स्नान करने के उपरांत वो बंदरों और ब्राह्मणों को भोज भी कराते है-

“पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह।

कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह।”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

यहाँ से भगवान श्रीराम ने अपने आगमन की प्रथम सूचना अयोध्या संप्रेषित की-

“जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥

रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

इसी दौरान श्रीराम ने भरत को अपने आगमन की सूचना हेतु हनुमान को आदेश दिया कि ब्राह्मण का रूप धारण कर के नंदीग्राम जाओ-

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा॥

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

इसके उपरांत श्रीराम भरद्वाज मुनि के आश्रम पहुँचते है। यहाँ से पुष्पक विमान गंगा के दूसरे छोर पे पड़ाव डालने हेतु उड़ान भरता है। यहाँ पर श्रीराम अपने प्रिय मित्र निषाद राज से मिलते है। सीता, गंगा की पूजा-अर्चना करती है और आशीर्वाद ग्रहण करती है। अब विमान अयोध्या के लिये उड़ान भरता है।

श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में समस्त अयोध्या की स्त्रियाँ दही, दूब, गोरोचन, फल, फूल और मंगल के मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थालों में भर-भरकर मंगल गीत गाते हुए अयोध्या भर में घूम रही है। श्रीराम को आते देखकर समस्त अयोध्या नगरी सौंदर्य की खान हो गई है। सरयू जल अति निर्मल हो गया है।

अयोध्या का प्रत्येक नागरिक श्रीराम की एक झलक पाने को व्याकुल है। जो जिस दशा में है, वो उसी दशा में बाहर दौड़ा चला आ रहा है। कहीं श्रीराम की पहली छवि निहारने से कोई वंचित न रह जाए, इस भय से कोई बच्चे और बूढ़े को नही लाना चाहता। अयोध्यावासियों से अब और अधिक विलंब सहा न जा रहा है। सभी एक-दूसरे से पूछ रहे है कि आपने श्रीराम को कही देखा है क्या? इनके साथ ही स्तुति-पुराण के जानकार सूत, समस्त वैतालिक(भाँट) लोग भी श्रीराम के दर्शन के लिये अयोध्या से बाहर आते है। वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड सर्ग 127 में लिखा है-

“सूता: स्तुतिपुराणाज्ञा: सर्वे वैतालिकस्तथा।

सर्वे वादित्रकुशला गणिकाश्चैव सर्वश:।।”

गुरू वशिष्ठ, कुटुंबी, छोटे भाई शत्रुघ्न तथा ब्राह्मणों के समूह के साथ भरत अत्यंत हर्षित होकर कृपा निधान श्रीराम की अगवानी हेतु राज महल के बाहर आते है। अयोध्या की बहुत सी स्त्रियाँ अपनी अटारियों पर चढ़कर आकाश की ओर देख रही है। श्रीराम के पुष्पक विमान को देखकर मंगल गीत भी गा रही है-

 

“बहुतक चढ़ीं अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।

देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान॥”

 

(उत्तरकांड-रामचरितमानस)

 

श्रीराम का पुष्पक विमान अब अयोध्या में उतर चुका है। प्रभु श्रीराम पूर्णिमा के चंद्रमा हैं तथा अवधपुर समुद्र है, जो उस पूर्णचंद्र को देखकर हर्षित हो रहा है और कोलाहल करता हुआ बढ़ रहा है। इधर-उधर दौड़ती हुई स्त्रियाँ इस पयोनिधि की तरंगों के समान प्रतीत होती हैं। सब माताएँ श्रीराम का कमल-सा मुखड़ा देख रही हैं। उनके नेत्रों से प्रेम के आँसू उमड़े आते है परंतु मंगल का समय जानकर वे आँसुओं के जल को नेत्रों में ही रोके रखती हैं। सोने के थाल से आरती उतारती हैं और बार-बार प्रभु के अंगों की ओर देखती हैं। गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में लिखते है-

 

“सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं॥

कनक थार आरती उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं॥”

 

प्रभु श्रीराम को निहार कर माताएँ बात-बार निछावर करती है और ह्रदय में परमानंद तथा हर्ष से भर उठती है। माता कौशल्या बार-बार अपने पुत्र श्रीराम को निहारती है। सर्वप्रथम श्रीराम ने अयोध्या की पावन धरती व गुरू वशिष्ठ को प्रणाम किया। इसके उपरांत माँ कैकेई, माँ सुमित्रा व माँ कौशल्या से मिलकर वो महल की ओर चले-

 

“सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद।

चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद॥

 

(उत्तरकांड-रामचरितमानस)

 

श्रीराम के आगमन के अवसर पर अनेक प्रकार के शुभ शकुन हो रहे हैं, आकाश में नगाड़े बज रहे हैं। अयोध्या के नगर के पुरुषों और स्त्रियों को सनाथ (दर्शन द्वारा कृतार्थ) करके भगवान राम महल को चले। इस पावन बेला पर अवधपुर की सारी गलियाँ सुगंधित द्रवों से सींची गईं हैं। गजमुक्ताओं से रचकर बहुत-सी चौकें पुराई गईं। अनेक प्रकार के सुंदर-मंगल साज सजाए गए है और हर्षपूर्वक नगर में बहुत-से डंके बज रहे है। नगर के लोगों ने सोने के कलशों को विचित्र रीति से (मणि-रत्नादि से) अलंकृत कर और सजाकर अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया है। सब लोगों ने मंगल के लिये बंदनवार, ध्वजा और पताकाएँ भी लगाई है। इसके साथ ही समस्त अयोध्या नगरी को दीपों से सजा दिया गया है। दीपों से सजी अयोध्या नगरी दीपोत्सव अर्थात दीपावली मना रही है

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