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गांधी परिवार की वो राजनैतिक सुरक्षित अमेठी लोकसभा सीट? पिता और बेटे की जोड़ी ने किया था कमाल

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गांधी परिवार की वो राजनैतिक सुरक्षित अमेठी लोकसभा सीट? पिता और बेटे की जोड़ी ने किया था कमाल

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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अमेठी। गांधी-नेहरू परिवार को देश के राजनीतिक इतिहास का सबसे मजबूत और ताकतवर राजनीतिक परिवार माना जाता है. परिवार का गढ़ उत्तर प्रदेश रहा है और इसमें अमेठी संसदीय क्षेत्र बेहद अहम माना जा रहा है. अमेठी सीट से ही गांधी परिवार से जुड़े 5 लोगों ने अपने चुनावी करियर की शुरुआत की है जिसमें 2 को तो हार मिली लेकिन 3 लोग जीत के साथ आगे बढ़ने में कामयाब रहे.

अमेठी देश की उन चंद लोकसभा क्षेत्रों में से एक है जिसके चुनाव परिणाम पर सभी की नजर टिकी रहती है. अमेठी उत्तर प्रदेश का एक अहम जिला है और संसदीय सीट भी. 2019 के चुनाव परिणाम को लेकर यह सीट दुनियाभर में चर्चा में रही थी. तब बीजेपी की प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी को हरा दिया था. कांग्रेस ने अब तक इस सीट पर प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं किया है. माना जा रहा है कि राहुल गांधी इस बार यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं. इस कांग्रेस की ओर से कौन लड़ेगा स्थिति अभी साफ नहीं हो सकी है. लेकिन देश के सबसे ताकतवर गांधी-नेहरू परिवार के लिए अमेठी सीट ‘पॉलिटिकल डेब्यू’ की तरह रही है.

 

गांधी-नेहरू परिवार की ओर से एक या दो नहीं बल्कि पांच लोगों ने अमेठी लोकसभा सीट से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की. इनमें से पति-पत्नी की एक जोड़ी को पहले ही मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा तो एक जोड़ी ने जीत के साथ अपनी शुरुआत की. पिता-बेटे की जोड़ी ने भी कमाल किया. राहुल गांधी ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अमेठी सीट से ही चुनाव लड़कर की थी, और वह विजयी रहे थे.

 

गांधी परिवार का अमेठी से नाता

 

अवध क्षेत्र में पड़ने वाले अमेठी से साल 1977 में गांधी परिवार का नाता पहली बार जुड़ा. तब इमरजेंसी खत्म होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव कराया गया और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने चुनाव में उतरने का फैसला लिया. संजय ने लोकसभा पहुंचने के लिए अमेठी को अपना निर्वाचन क्षेत्र बनाया, लेकिन जनता में इमरजेंसी के दौरान उनको लेकर इस कदर नाराजगी थी कि उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा.

 

संजय गांधी को चुनाव में 100,566 वोट मिले जबकि उनके मुकाबले में खड़े भारतीय लोकदल के रविंद्र प्रताप सिंह को 176,410 वोट आए. रविंद्र ने यह मुकाबला 75,844 मतों के अंतर से अपने नाम कर लिया. हालांकि अमेठी की जनता की ओर से यह बेरुखी ज्यादा समय तक कायम नहीं रही. करीब ढाई साल बाद 1980 में जब देश में लोकसभा चुनाव कराए गए तो बदले हालात के बीच संजय गांधी ने फिर अमेठी से किस्मत आजमाने का फैसला किया और इस बार उन्हें अमेठी से जीत हासिल हुई.

 

दूसरे चुनाव में अमेठी से जीते संजय

 

बदली फिजा में यह चुनाव न सिर्फ संजय गांधी बल्कि उनकी पार्टी कांग्रेस के लिए भी शानदार परिणाम वाला रहा. संजय ने लगातार दूसरी बार अमेठी से अपनी दावेदारी पेश की. इस बार उन्होंने पिछली हार का बदला लेते हुए रविंद्र प्रताप सिंह को 1,28,545 मतों के अंतर से हरा दिया. साथ में कांग्रेस करीब ढाई साल के इंतजार के बाद फिर से सत्ता में लौटने में कामयाब रही. इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं लेकिन संजय गांधी 1981 में एक प्लेन हादसे में मारे गए. उनके निधन के बाद खाली हुई अमेठी संसदीय सीट पर उपचुनाव कराया गया.

 

उपचुनाव के जरिए संजय के बड़े भाई राजीव गांधी भी राजनीति में आ गए. भाई के निधन के बाद वह भी चुनावी रण में आए और अमेठी से ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की. अपने डेब्यू चुनाव में राजीव ने शरद पवार को हराया था. राजीव के खाते में 258,884 वोट आए तो उनके सामने खड़े हुए शरद को महज 21,188 वोट ही मिल सके. इस तरह से 77 फीसदी मतों के अंतर से यानी 237,696 मतों के साथ वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

 

1984 में अमेठी में फैमिली वार

 

इंदिरा गांधी की नृंशस हत्या के बाद देश में अगला लोकसभा चुनाव 1984 में कराया गया. कांग्रेस नए नेतृत्व के साथ मैदान में उतरी. कमान राजीव गांधी के हाथों में थी. खुद राजीव ने एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ने का फैसला लिया. हालांकि इस बार उनके लिए यह चुनाव थोड़ा असहज करने वाला रहा था क्योंकि उनके मुकाबले में उनके छोटे भाई संजय की पत्नी मेनका गांधी मैदान में ताल ठोक रही थीं. मेनका का यह पहला चुनाव था. उन्होंने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अमेठी सीट से ही की, लेकिन पति की तरह उन्हें भी अपने पहले चुनाव में अमेठी से नाकामी हाथ लगी थी. वह निर्दलीय ही मैदान में उतरी थीं.

 

यह चुनाव सहानुभूति लहर में लड़ा गया लिहाजा कांग्रेस को इसका फायदा भी खूब हुआ. कांग्रेस पहली बार 400 के आंकड़े को पार करने में कामयाब रही. राजीव गांधी ने 365,041 वोट हासिल करते हुए मेनका गांधी को 314,878 मतों के अंतर से हराया था. इस बार उनकी जीत का आंकड़ा 70 फीसदी से अधिक का रहा था. मेनका के खाते में 50 हजार से थोड़ा ज्यादा वोट (50,163) आए थे. अमेठी से चुनाव जीतने वाले राजीव देश के छठे प्रधानमंत्री बने.

 

अमेठी में कांशीराम को भी हराया

 

राजीव गांधी ने अगला 2 चुनाव (1989 और 1991) भी इसी सीट से लड़ा. 1989 के चुनाव में राजीव ने महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को हराया था. कांशीराम तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें 25 हजार से थोड़े ज्यादा वोट मिले थे. हालांकि 1991 के चुनाव परिणाम को वह देख नहीं सके क्योंकि मतगणना से पहले तमिलनाडु में एक चुनाव प्रचार के दौरान आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई.

 

राजीव के जाने के बाद यहां पर उपचुनाव कराया गया जिसमें कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा को जीत मिली. 1996 में सतीश शर्मा फिर विजयी रहे. लेकिन 1998 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने यहां सेंध लगाने में कामयाबी हासिल की और यह सीट अपने कब्जे में कर लिया. अमेठी में कांग्रेस की यह महज दूसरी हार थी. पति की हत्या के करीब 8 साल बाद सोनिया गांधी राजनीति में एंट्री करती हैं और कांग्रेस ज्वाइन करने के कुछ समय बाद ही वह पार्टी प्रमुख बन गईं. फिर 1999 के लोकसभा चुनाव में वह चुनावी समर में उतरने का फैसला करती हैं.

 

डेब्यू चुनाव में सोनिया को बड़ी जीत

 

सोनिया गांधी ने पति राजीव की तरह अपने पॉलिटिकल डेब्यू के लिए अमेठी संसदीय सीट को ही चुना. बीजेपी ने उनके सामने अपने सांसद संजय सिंह को फिर से मैदान में उतारा लेकिन अमेठी की जनता ने गांधी परिवार के प्रति जो अपना समर्थन था वो इस चुनाव में फिर से दिखा दिया. सोनिया 3 लाख से अधिक यानी 300,012 मतों के अंतर से चुनाव जीत गईं. राजीव की तरह वह भी अपने पहले राजनीतिक जंग में जीत के साथ कामयाब हुई थीं. हालांकि उनके देवर-देवरानी संजय और मेनका के लिए शुरुआत अच्छी नहीं रही थी, उन्हें यहीं से अपने पहले चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था. हालांकि सोनिया ने इस सीट को जल्द ही छोड़ दिया और रायबरेली चली गईं.

 

2004 में जब देश में लोकसभा चुनाव हुए तो गांधी परिवार के एक और वारिस ने यहीं से पॉलिटिकल डेब्यू करने का निर्णय लिया. सोनिया रायबरेली चली गईं तो उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ने का फैसला लिया. एक बार फिर अमेठी की जनता ने गांधी परिवार को यहां से जीत दिलाई. राहुल भी अपने माता-पिता की तरह यहां से अपनी राजनीतिक पारी की जीत के साथ शुरुआत करने में कामयाब रहे. हालांकि वो अपने माता-पिता की तरह कोई रिकॉर्ड नहीं बना सके. पिता ने अपनी पहली जीत 70 फीसदी से अधिक मतों के अंतर से हासिल की थी तो मां सोनिया ने 3 लाख से अधिक मतों के साथ जीत अपने नाम किया था. राहुल को चुनाव में 290,853 मतों के अंतर से जीत मिली.

 

पिता की तरह राहुल भी 4 बार लड़े

 

राहुल गांधी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत से ही अमेठी से चुनाव लड़ते रहे हैं. वह 2004 से लेकर 2019 तक हुए सभी चारों चुनाव में मैदान में उतरे. 2009 और 2014 के चुनाव में भी वह विजयी रहे. लेकिन 2019 के संसदीय चुनाव में वह जीत का चौका नहीं लगा सके. उन्हें कड़े संघर्ष के बाद हार का मुंह देखना पड़ा. बीजेपी की प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अमेठी के लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहीं, जिसका नतीजा यह हुआ कि राहुल को शिकस्त का सामना करना पड़ा. पिता की तरह राहुल अमेठी सीट से 4 बार चुनाव मैदान में उतर चुके हैं.

 

हालांकि अब 2024 में फिर लोकसभा चुनाव जोरों पर है. अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस ने अब तक अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है. राहुल गांधी के बारे में कहा जा रहा है कि वो यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं. हालांकि उन पर अमेठी से फिर से चुनाव लड़ने के लिए मनाया जा रहा है. अमेठी में पांचवें चरण (20 मई) में वोटिंग कराई जानी है. बीजेपी की ओर से स्मृति ईरानी मैदान में हैं तो कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की ओर से कौन उनकी चुनौती का सामना करेगा, फिलहाल इसका इंतजार है.

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