उपराष्ट्रपती जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष के छूटे पसीने!
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दल्ली। जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कराने में छूटेंगे विपक्ष के पसीने! जानें राज्यसभा में किसकी कितनी ताकत
विपक्ष ने सभापति जगदीप धनखड़ को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है, जिसपर 60 सदस्यों ने हामी भरी है. इस प्रस्ताव में सोनिया गांधी या किसी भी दल के फ्लोर लीडर ने साइन नहीं किए हैं.
राज्यसभा में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राज्यसभा में विपक्ष की ओर से सभापति जगदीप धनखड़ को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है. विपक्षी गठबंधन एकजुट होकर सदस्यों के साइन भी करवा लिए हैं और राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को प्रस्ताव सौंप दिया गया है. खास बात ये है कि धनखड़ के खिलाफ 60 सदस्यों ने साइन कर भी दिए हैं. इस प्रस्ताव में सोनिया गांधी या किसी भी दल के फ्लोर लीडर ने साइन नहीं किए हैं. हालांकि, पहले भी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ ऐसे प्रस्ताव लाए गए हैं, लेकिन उनका कुछ हो नहीं पाया. मगर अब सवाल ये है कि 60 सदस्यों के हस्ताक्षर के बाद क्या धनखंड के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कराना आसान है या मुश्किल.
जब हम बात करते हैं राज्यसभा में किसी भी पार्टी की स्थिति की तो भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने 12 और सदस्यों को अपने साथ जोड़कर सदन में बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया है. उच्च सदन में भाजपा लंबे समय से बड़ी पार्टी रही है और अपने सहयोगियों के साथ और 12 सदस्यों को जोड़ने के बाद अब उसकी संख्या 96 हो गई है. वहीं छह मनोनीत और दो निर्दलीयों के साथ अब एनडीए के पास अब 119 सदस्यों का समर्थन हो गया है.
राज्यसभा में कुल सदस्य 237 हैं
राज्यसभा में कुल 237 सदस्य हैं. आठ खाली सीटों में से चार जम्मू-कश्मीर से हैं और चार मनोनीत सदस्य हैं. राज्यसभा में एनडीए की ये संख्याएं अप्रैल 2026 तक बनी रहेंगी.
क्या है कांग्रेस की स्थिति?
दूसरी ओर सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो वह विपक्ष के नेता का दर्जा खोने के कगार पर आ गई थी. वर्तमान में उसके कुल 26 सदस्य हैं. फुल स्ट्रेंथ हाउस में विपक्ष के नेता का पद पाने के लिए किसी भी पार्टी के पास कम से कम 25 सांसद होने चाहिए.
फिलहाल नहीं होगा कोई बदलाव
वहीं अब राज्यसभा में किसी प्रकार के कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है. अब चुनावों का दौर अगले साल नवंबर में होगा, जब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 11 सदस्य रिटायर होंगे. उनमें से भी 10 भाजपा के तो वहीं 1 समाजवादी पार्टी का होगा. दोनों राज्यों की विधानसभाओं की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है.
कौन सा दल आया विपक्ष के करीब?
बात करें सदन में विधेयक पास होने की तो बीते 10 सालों में उच्च सदन में कोई भी बिल अटका नहीं. हमेशा सत्ताधारी और विपक्षी दलों से अलग खड़े रहे वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और बीजू जनता दल अक्सर सरकारी बिलों के समर्थन में सामने आए हैं. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से दोनों दल विपक्षी दलों के करीब आ गए हैं. वहींं सदन में निर्विरोध चुने गए सदस्यों में राजस्थान से केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू और मध्य प्रदेश से जॉर्ज कुरियन शामिल हैं. कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी तेलंगाना से राज्यसभा के लिए चुने गए हैं.
उपराष्ट्रपति को हटाने की क्या है प्रक्रिया?
विपक्ष की ओर से भले ही उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, लेकिन उनको हटाना इतना आसान नहीं हैं. सभापति को हटाने की एक प्रक्रिया होती है. उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभापति पद से तभी हटाया जा सकता है, जब उनको देश के उपराष्ट्रपति के पद से हटाया जाए. संविधान के आर्टिकल 67(बी) में उपराष्ट्रपति के अपॉइंटमेंट से लेकर उनको पद से हटाने की प्रक्रिया और उसके नियम काफी लंबे चौड़े बताए गए हैं.
आर्टिकल 67(बी) क्या कहता है?
इन नियमों के तहत उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित और लोकसभा की ओर से सहमत एक प्रस्ताव के माध्यम से उनके पद से हटाया जा सकता है. हालांकि, प्रस्ताव पेश करने के बारे में 14 दिन पहले नोटिस भी देना होता है. नोटिस में ये भी बताना होता है कि ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है.
क्या कहते हैं नियम
1- उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव सिर्फ राज्यसभा में ही पेश किया जाता है. इसे लोकसभा में नहीं पेश कर सकते हैं.
2- आर्टिकल 67(बी) कहता है कि 14 दिन पहले नोटिस देने के बाद ही प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
3- राज्यसभा में प्रस्ताव को प्रभावी बहुमत के जरिए पारित करना होगा और लोकसभा में इसके लिए साधारण बहुमत से सहमति जरूरी है.
4- नियम से भी कहते हैं कि जब प्रस्ताव विचाराधीन हो तो सभापति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते हैं