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मस्तक पर तिलक धारण का आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व

मस्तक पर तिलक धारण का आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व

 

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

मस्तक पर तिलक धारण करना वैदिक सनातन हिंदू धर्म में आस्था और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है, जो माथे पर लगाया जाता है. यह न केवल शुभता का संकेत है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा को भी जागृत करता है. तिलक के चार प्रमुख प्रकार हैं – चंदन, कुमकुम, भस्म और रोली, जिनका अपना धार्मिक महत्व है. यह न सिर्फ धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह मस्तिष्क को ठंडक देता है. आप कौन-सा तिलक लगाते हैं?

हिंदू धर्म में तिलक केवल एक धार्मिक चिन्ह नहीं है, बल्कि यह आस्था और भक्ति का प्रतीक भी है. यह ईश्वर के साथ संबंध जोडने, आध्यात्मिक पहचान और धार्मिक परंपराओं को प्रदर्शित करता है. विभिन्न तिलक विभिन्न देवताओं और संप्रदायों से संबंधित होते हैं और उनका विशेष महत्व होता है.आइए हम चार प्रमुख तिलकों के बारे में जानें और उनके अर्थ को समझें.

कृष्ण तिलक: श्रीकृष्ण के चरणों की छाप

जो भक्त भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं, वे एक विशिष्ट तिलक धारण करते हैं, जिसे गोपिचंदन तिलक कहा जाता है. यह तिलक पवित्र गोपिचंदन मिट्टी से निर्मित होता है, जो भगवान की द्वारकापुरी के एक विशेष सरोवर से प्राप्त की जाती है. इसमें ‘U’ आकार की दो लंबी रेखाएं होती हैं, जो श्रीकृष्ण के चरणों का प्रतीक मानी जाती हैं. कभी-कभी इस तिलक के मध्य में तुलसी पत्ते का निशान भी अंकित किया जाता है, जो भगवान कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक है. यह तिलक भक्तों को श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनके आदर्शों की स्मृति दिलाता है.

शिव तिलक: वैराग्य और शक्ति का प्रतीक है.

भगवान शिव के भक्त उनके आशीर्वाद से आध्यात्मिक दृष्टि से जीवन जीने के लिए त्रिपुंड्र तिलक धारण करते हैं. यह तिलक तीन क्षैतिज रेखाओं से बना होता है, जिसे भस्म से लगाया जाता है. त्रिपुंड्र का अर्थ है:

पहली रेखा: अज्ञान और अहंकार का नाश

दूसरी रेखा: मोह-माया से मुक्ति

तीसरी रेखा: आत्मज्ञान और आध्यात्मिक जागरूकता

त्रिपुंड्र यह संकेत करता है कि जीवन अस्थायी है और हमें भौतिक सुखों की अपेक्षा आत्मा की शुद्धि पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यह तिलक शिव भक्ति, ध्यान और आत्मसंयम का प्रतीक है.

विष्णु तिलक: धर्म और समर्पण का प्रतीक

भगवान विष्णु के भक्त एक विशेष तिलक धारण करते हैं, जिसे उर्ध्वपुंड्र कहा जाता है. यह तिलक सफेद मिट्टी (चंदन) से निर्मित दो सीधी रेखाओं से बनता है, जो भगवान विष्णु के चरणों का प्रतीक है. बीच में एक लाल या पीले रंग की रेखा होती है, जो माता लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करती है. यह तिलक भगवान विष्णु की कृपा और शाश्वत संरक्षण का प्रतीक माना जाता है. इसे धारण करने से यह स्मरण रहता है कि जीवन में धर्म और सत्य का पालन करना अत्यंत आवश्यक है.

वैष्णव तिलक: पूर्ण समर्पण का प्रतीक

वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी, जो भगवान राम, कृष्ण और विष्णु की पूजा करते हैं, विशेष प्रकार का तिलक लगाते हैं. इस तिलक में सफेद मिट्टी की दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो ईश्वर के चरणों का प्रतीक मानी जाती हैं. कभी-कभी, इसके बीच में काली या लाल रेखा भी होती है, जो यज्ञ (हवन) की पवित्र अग्नि का प्रतीक है. कुछ वैष्णव अनुयायी इस तिलक के नीचे लाल बिंदी भी लगाते हैं, जो लक्ष्मी जी की उपस्थिति को दर्शाता है. यह तिलक यह संकेत करता है कि व्यक्ति ने अपने जीवन को पूरी तरह से भगवान की सेवा और धर्म के मार्ग में समर्पित कर दिया है.

तिलक सिर्फ एक निशान नहीं, बल्कि आस्था की पहचान

तिलक केवल एक साधारण चिह्न नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का प्रतीक है. यह व्यक्ति को उसकी आध्यात्मिक यात्रा की ओर इंगित करता है और उसे अपने प्रिय देवता के निकट लाने का कार्य करता है. चाहे वह शिव का तिलक हो, विष्णु का तिलक हो, कृष्ण का तिलक हो या वैष्णव तिलक, प्रत्येक का एक विशेष आध्यात्मिक अर्थ और महत्व है.

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