जानिए,त्रिपुंड तिलक का आध्यात्मिक महत्व
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री : सह-संपादक रिपोर्ट
काशी बनारस। त्रिपुण्ड तिलक को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि त्रिपुंड लगाने वाले को भगवान शिव और 27 देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. त्रिपुंड लगाने से कई तरह के लाभ होते हैं. त्रिपुंड लगाने से मन में बुरे विचार नहीं आते और मानसिक शांति मिलती है. इस सेजाने- अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं.बुरी शक्तियों से छुटकारा मिलता है.चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है.हर क्षेत्र में सफलता मिलती है.अवगुणों में कमी आती है और व्यक्तित्व सकारात्मक तौर पर निखरता है.शत्रुओं पर विजय मिलती है.
त्रिपुंड तिलक लगाने का तरीका अवश्य जानना चाहिए:
त्रिपुंड को मध्य की तीन उंगलियों से बाएं नेत्र से दाएं नेत्र की ओर लगाया जाता है.
तीनों रेखाएं दोनों नेत्रों के बीच रहनी चाहिए.जब भी त्रिपुंड का तिलक धारण करें तो मुख हमेशा उत्तर की ओर होना चाहिए.त्रिपुंड के बारे में ज़्यादा जानकारी जानना चाहिए
त्रिपुंड की तीन रेखाओं में 27 देवी-देवताओं का वास होता है. शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि जो भी भक्त ललाट पर त्रिपुंड धारण करता है, उसे बुरी शक्ति प्रभावित नहीं कर पाती. त्रिपुंड को शरीर के कई अंगों पर भी लगाया जाता है.
त्रिपुंड को ‘शिव तिलक’ भी कहा जाता है और यह बाकी तिलकों से काफी अलग होता है। मस्तक या किसी एनी जगह पर मध्यमा और अनामिका अंगुली से दो रेखाएं करके बीच में अंगुठे से की गई रेखा त्रिपुंड कहलाती है। हिंदू धर्म में त्रिपुंड को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है क्योंकि भगवान शिव इसे अपने मस्तक पर धारण करते हैं। जब भी भगवान् शिव की की पूजा करते हैं, तो उन्हें चंदन या भस्म का त्रिपुंड जरूर लगाया जाता है और यही कारण है कि शिवलिंग पर भी त्रिपुंड लगाया जाता है। मान्यता है कि त्रिपुण्ड की तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है, यानि प्रत्येक रेखा में 9 देवताओं का वास होता है। किन 27 देवताओं का वास है त्रिपुंड में?
शिव पुराण के अनुसार, त्रिपुंड की पहली रेखा में महादेव, अकार, रजोगुण, पृथ्वी, गाहॄपतय, धर्म ,प्रातः कालीन हवन, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद देवता होते हैं। दूसरी रेखा में महेश्वर, ऊंकार, आकाश, अंतरात्मा, इच्छाशक्ति, दक्षिणाग्नि, सत्वगुण, मध्याह्न हवन देवता हैं। तीसरी रेखा में शिव, आहवनीय अग्नि, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तमोगुण, तृतीय हवन स्वर्गलोक, परमात्मा हैं।
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शरीर के किन-किन अंगों पर लगा सकते हैं त्रिपुंड?
अक्सर लोग सोचते हैं कि त्रिपुंड केवल मस्तक पर ही धारण किया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं है। त्रिपुंड शरीर के 32 अंगों पर धारण किया जा सकता है। जब भी त्रिपुंड लगाएं, इसे शरीर के 32, 16, 8 या 5 स्थानों पर ही लगाएं। ये अंग हैं – मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नासिका, मुख, कंठ, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पाश्र्वभाग, नाभि, दोनों अंडकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर। अगर आप कम जगहों पर ही लगाना चाहते हैं, तो आप पांच स्थानों मस्तक, दोनों भुजाओं, हृदय और नाभि पर इसे धारण कर सकते हैं। शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर लगाने का कांसेप्ट यह है कि आपके शरीर के सभी अंगों मों अलग-अलग देवताओं का वास होता है। मस्तक में शिव, केश में चंद्रमा, दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, ह्रदय में शंभू, नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग और नागकन्याएं, दोनों घुटनों में ऋषिकन्याएं, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ठभाग में सभी तीर्थ देवता रूप में रहते हैं।
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त्रिपुंड केवल तिलक का एक आकार नहीं हैं बल्कि यह किस चीज का लगाया जाना चाहिए, इसका भी महत्व है और तभी इसका लाभ मिल पाता है। त्रिपुंड हमेशा भस्म या फिर चंदन का ही होता है। इसमें इनके अलावा किसी और प्रकार के पदार्थ या रंग का प्रयोग करना धार्मिक तौर पर वर्जित माना गया है। चंदन लगाए जाने के कई फायदे हैं। यह मनुष्य के मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। वैज्ञानिकों मतों के अनुसार, माथे पर जहां तिलक लगाया जाता है, वह पिनियल ग्रन्थि का स्थान है, जहां आज्ञाचक्र भी सक्रिय होता है।
त्रिपुंड से मिलने वाले लाभ त्रिपुंड लगाने से सभी 27 देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है,जातक के मन में बुर विचार उत्पन्न नहीं होते और व्यवहार में सौम्यता आती है। शिवलिंग को त्रिपुंड लगाने से चंद्रदोष दूर होते है। त्रिपुंड का लाभ तभी मिलता है, जब इसे मन की शुद्धि के साथ-साथ सभी 27 देवी-देवताओं को प्रणाम कर ‘ऊं नम: शिवाय’ मंत्र का जाप कर धारण करण करना चाहिए