आचार्य शुभम् कृष्ण शास्त्री द्धारा 84 कोस बृन्दावनधाम की मंहिमा का वर्णन
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
छिन्दवाडा जिले के गोपालपुर ग्राम में श्रीमद भगवत पुराण कथा व्यास आचार्य शुभम् कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने 84 कोस बृन्दावन धाम का आलौकिक वर्णन करते हुए कहा कि यह बृन्दावनधाम ब्रज का हृदय स्थल है ,जहां ठाकुर जी औेर माता राधिका अवतरित हो ,अन॔त लीलाएं कर , वृंदावन धाम की भूमि को अपने चरण कमलों से पावन कर दिए । ऐसे पवित्र तीर्थ स्थल को बारम्बार नमन। यहां जन्म लेने को देवता भी तरसते हैं, और प्रभु से विनती करते हैं। यहां उनके ही जन्म होगें, जिसपर श्याम श्यामा की असीम कृपा बरसेगी
वृंदावन एक पलक जो रहिये।
जन्म जन्म के पाप कटत हे कृष्ण कृष्ण मुख कहिये ॥१॥
महाप्रसाद और जल यमुना को तनक तनक भर लइये।
सूरदास वैकुंठ मधुपुरी भाग्य बिना कहां पइये
नारद पुराण के उत्तरभाग मे पुरोहित वसु जी ने भगवती मोहिनी से कहा की –
” कृमिकीटपतंगाद्या: खगा वृक्षा नगा मृगा:–
समुच्चरंति सततं राधाकृष्णेति मोहिनी”-
अर्थात् ब्रजमण्डल मे रहने वाले सभी कीट-कृमि-खग-मृग
,पर्वत ,वानर,नर नारी- आदि सब राधा कृष्ण नाम का उच्चारण करते रहते हैं—
ओर ईसी पुराण मे फिर वसुजी ने बहुत प्यारी बात कही की–
” न तस्य दुर्लभं किंचित्त्रिषु भामिनी–
वृन्दावनेति नामापि य: समुच्चरति प्रिये:–
अर्थात् जो मनुष्य श्री वृंदावन का नाम जपता है उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नही हैं—
ओर फिर आगे कहा की —
” गोपान् गोपी: खगमृगागोपगोभूरजांसि—
स्मृत्वा प्रणमति जने प्रेमरज्जवा निबद्ध:–
” अर्थात् जो व्यक्ति वृंदावन के गोप-ग्वालो ,खगों,मृगों,वृक्षो,,ब्रज की रज ,,पर्वतो,पशु-पक्षियो ओर गायो का दर्शन या स्मरण करके उन सबको प्रणाम करता है तो एसा करने वाले व्यक्ति के प्रेम मे भगवान बंध जाते हैं-“स्मृत्वा प्रणमति” यानि वृंदावन भुमि का दर्शन/स्मरण ओर ब्रजवासियो,वृक्षो,पशु-
पक्षियो,रज,खगो मृगो,गायों,पर्वतो आदि को ह्रदय से प्रणाम करना चाहिये–
ओर फिर नारद पुराण मे कहा गया की “– दृश्यं गम्यं च संसेव्य ध्येयं वृंदावनं सदा–
नास्ति लोके समं तस्य भुवि कीर्तिविवर्द्धनम्”–
अर्थात् वृंदावन का सदा दर्शन करना चाहिये ,वृंदावन की यात्रा करनी चाहिये ,,वृंदावन का सेवन करना चाहिये ओर वृंदावन का घर बैठकर ध्यान करना चाहिये- यानि जिन लोगो को वृंदावन वास नही मिला है वे सब ब्रज के घाटो,कुण्डो,पर्वतो, मन्दिरो आदि का अगर घर बैठें ही ध्यान कर लेंगे तो उनको भी उत्तम लाभ मिलेगा — पुज्य गुरुदेव के द्वारा गाया गया ” ब्रज 84 कोस यात्रा” भजन मे भी पुज्य गुरुदेव शुरु मे एक बात कहा करते हैं की-
“ईस मानसिक ब्रजयात्रा से आपको वास्तविक ब्रज की यात्रा करने का ही फल मिलेगा”–
यानि अगर घर बैठे ही मानसिक ब्रज यात्रा होगी तो भी उत्तम लाभ मिलेगा
ईसलिए पुरोहित वसु जी ने नारद पुराण मे कहा की–
” ध्येयं वृंदावनं सदा
अर्थात् वृंदावन का सदा मन से स्मरण करो– भागवत पुराण मे नारद जी ध्रुव जी से कहते हैं की —
” पुण्यं मधुवनं यत्र सान्निध्यं नित्यदा हरे:”–
अर्थात् हे ध्रुव ,तु मधुवन यानि वृंदावन चला जा ,जहां हरि नित्य विराजमान रहते हैं-( सान्निध्यं नित्यदा हरे:)—
यानि ब्रजमण्डल भगवान की नित्य लीला स्थली है–
इस बात को नारद पुराण मे कहा की –“यस्मिन्नित्यं विचंरति हरिर्गोपगोगोपिकाभि:”-
अर्थात् ईस ब्रजमण्डल मे भगवान कृष्ण नित्य गोप-ग्वालो ओर गोपियो के साथ विचरण करते हैं–
ओर स्कंदपुराण मे भी शांडिल्य जी कहते हैं की —
” अत्रैव व्रजभूमि: सा यत्र तत्त्वं सुगोपितम्—-
भासते प्रेमपूर्णानां कदाचिदपि सर्वत:”-
अर्थात् ईस ब्रजभुमि मे भगवान गुप्त रुप से गोपियो के साथ लीला करते है ओर जो भगवान के प्रेमी होंते हैं उनको ईस नित्य लीला का कभी कभी दर्शन भी होता हैं– बहुत सारे संत हैं जिन्हे वृंदावन मे भगवान की दिव्य लीलाओ का दर्शन हूआ हैं–
भगवान की दो प्रकार की लीलाएं होती हैं–
वास्तविकी ओर व्यवहारिकी–
वास्तविकी लीला भगवान की नित्य लीला है जो ब्रज मे नित्य चलती रहती है–
भगवान की वास्तविकी लीला को प्रेमी भक्त ही ब्रज मे देख पाते हैं ओर दूसरी लीला व्यवहारिकी लीला है– व्यवहारिकी लीला अवतार काल मे होती हैं जिनका वर्णन पुराणो मे किया गया हैं–
स्कंदपुराण के अनुसार जब उद्धव जी ने गोवर्धन मे भागवत कथा की थी तो सब श्रोता स्थुल जगत से अंतर्धान होकर भगवान की नित्य लीला मे प्रवेश कर गये यानि ब्रज मे ही गुप्त रुप से रहने लगें —
” ये अन्ये च तत्र ते सर्वे नित्यलीलान्तरं गता:”–
ओर फिर स्कंदपुराण मे कहा की –” गोवर्धननिकुञ्जेषु गोषु वृन्दावनादिषु– नित्यं कृष्णेन मोदन्ते दृश्यन्ते प्रेमतत्परै:-“–
अर्थात् जो भी श्रोतागण कथारस पान करके ब्रज मे अंतर्धान हो गये थे वे सब श्रोता गोवर्धन ,वृंदावन यानि ब्रज की कुंजो मे गुप्त रुप से भगवान के साथ विचरण करते रहते हैं ओर जो कृष्ण प्रेमी हैं उनको ही उन भक्तो का दर्शन होता है-