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2024 चुनाव: बसपा प्रमुख मायावती की बढ़ती चुनौतियां?

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नई दिल्ली :

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संसद भवन की नई इमारत के उद्घाटन को लेकर बीते कई दिनों से विवाद जारी है.

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कांग्रेस समेत दर्जनों विपक्षी दलों का कहना है कि इसका उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए.

बसपा प्रमुख मायावती ने कहा है कि पीएम मोदी को इसका उद्घाटन करने का पूरा हक़ है.

मायावती ने 1995, 1997 और 2002 में भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन तीनों बार उनकी सरकार को गिराने का काम भाजपा ने ही किया.

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद वो कई मुद्दों पर सरकार का समर्थन करती दिखी हैं.

समाजवादी पार्टी ने कई बार बसपा को बीजेपी की टीम-बी कहा है.

लेकिन क्या भविष्य की बसपा की राह बीजेपी की तरफ बढ़ती नज़र आ रही है? पढ़िए विश्लेषण-

संसद की नई इमारत के उद्घाटन कार्यक्रम को लेकर केंद्र सरकार और विपक्षी दलों के बीच घमासान तेज़ हो गया है. लेकिन इस बीच सरकार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का भी साथ मिल गया है.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कराए जाने का समर्थन किया है.

उन्होंने कहा कि संसद की नई इमारत का निर्माण सरकार ने कराया है, इसलिए प्रधानमंत्री को पूरा हक़ है कि वो इसका उद्घाटन भी करें.

मायावती ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नए संसद भवन के उद्घाटन की मांग से भी असहमति जताई है.

वहीं कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों की मांग है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराया जाए.

बसपा सुप्रीमो मायावती विपक्ष से दूरी बनाते हुए खुलकर केंद्र सरकार के बचाव में आ गईं हैं. लेकिन यह बहुत चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि इससे पहले भी ख़ासकर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कई मुद्दों पर उन्होंने सरकार का समर्थन किया है.

उत्तर प्रदेश: मायावती की बीएसपी का वोट क्या बीजेपी को 2019 का लोकसभा चुनाव आसान हो गया था। क्योकि समाजवादी पार्टी (सपा) और बसपा ने मिलकर लड़ा था. उस चुनाव में बसपा ने 10 सीटों पर जबकि सपा ने महज़ पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन मायावती ने कुछ ही दिनों बाद चुनाव नतीजों पर असंतोष जताते हुए सपा से गठबंधन तोड़ लिया था.

उस समय उन्होंने ऐलान किया था कि उनकी पार्टी भविष्य में कभी सपा के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी.

सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव बसपा ने अकेले ही लड़ा था. लेकिन उसका प्रदर्शन बहुत ही ख़राब रहा. महज़ एक ही सीट पर जीत मिली और वोटों में भी ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई. पार्टी सिर्फ़ 12.7 फ़ीसद वोट ही हासिल कर सकी.

इस चुनाव के दौरान मायावती लगभग पूरी तरह निष्क्रिय बनी रहीं. उन्होंने महज़ तीन या चार चुनावी रैलियों को ही संबोधित किया था.

बसपा सुप्रीमो की इस भूमिका को लेकर राजनीतिक हलक़ों में कई सवाल भी उठे. सपा और कांग्रेस ने मायावती पर आरोप लगाए कि उन्होंने भाजपा से गुप्त समझौता कर लिया था.

विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में लोकसभा की दो और विधानसभा की तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव में भी उनपर यही आरोप लगे.

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बसपा की शुरू से यह घोषित नीति रही थी कि वह उपचुनाव नहीं लड़ेगी लेकिन 2022 में उसने अपनी इस नीति से हटकर कुछ सीटों पर उपचुनाव लड़ा और नतीजों को प्रभावित किया.

सपा प्रवक्ता भुवन भास्कर जोशी ने आरोप लगाया, “बसपा ने जहां आज़मगढ़ में भाजपा की मदद के लिए अपना उम्मीदवार उतारा, वहीं उसने रामपुर में अपना उम्मीदवार न उतार कर भाजपा की मदद की.”

सपा प्रवक्ता ने बसपा को भाजपा की बी-टीम क़रार दिया.

बसपा पर यही आरोप हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों को लेकर भी लगे.

राज्य के 17 नगर निगमों के महापौर के चुनाव में बसपा ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे जिनमें 11 मुस्लिम थे. सभी 17 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई, सपा और बसपा का सफ़ाया हो गया.

समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि यह बात अब किसी से छिपी नहीं रह गई है कि “बसपा का एकमात्र मक़सद चुनावों में भाजपा की मदद करना रह गया है.”

सपा का कहना था कि निकाय चुनाव में इतने अधिक मुस्लिम उम्मीदवार भी उन्होंने भाजपा के इशारे पर उतारे हैं.

*’राजनीतिक नारों से किनारा’*

चुनावी राजनीति के अलावा मायावती के हाल के कई बयानों से भी बहुत कुछ ज़ाहिर होता है. वे अब उन राजनीतिक नारों से पीछा छुड़ाती दिख रही हैं, जिनके सहारे वे उत्तर भारत में दलितों और अति पिछड़े वर्गों यानी बहुजन समाज की शीर्ष नेता बनी थीं.

इसी वजह से वो देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री भी बनीं.

मायावती ने पिछले महीने पांच अप्रैल को तीन ट्वीट किए थे.

उन्होंने नब्बे के दशक में चर्चित हुए नारों से किनारा करते हुए कहा कि ये नारे समाजवादी पार्टी ने बसपा को बदनाम करने के लिए गढ़े थे.

छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद 1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांसीराम की बहुजन समाज पार्टी के बीच ऐतिहासिक गठबंधन हुआ था. इस दौरान एक नारा ख़ूब चर्चित हुआ था, ‘मिले मुलायम-कांसीराम, हवा में उड़ गई

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