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माता-पिता की संपत्ती में बेटियों का अधिकार

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टेकचंद् सनोडिया शास्त्री:सह-संपादक की रिपोर्ट

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नई दिल्ली। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में 2005 में संशोधन किया गया। इस अधिनियम में माता-पिता की प्रॉपर्टी में महिलाओं को समान अधिकार दिया गया है। हालांकि, इस कानून के बावजूद, कुछ पिता अपनी बेटियों को प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं देते हैं। ऐसे में बेटी को संपत्ति की वसीयत संबंधी अपने अधिकार पता होने चाहिए।

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इस ब्लॉग में हमने उन सभी महिलाओं को यह जानकारी की है कि वो किन स्थितियों में संपत्ति की वसीयत में अपने अधिकार का दावा कर सकती हैं।

मान लें आपकी कम उम्र में शादी कर दी गई है और आप बहुत पढ़ी लिखी नहीं है, इसलिए जॉब मिलने की संभावना काफी कम है। और आपके पति तथा उसके परिवार द्वारा आपको परेशान किया जा रहा है। इतना ही नहीं आपके माता-पिता भी आपकी मदद नहीं कर रहे हैं, और आपके भाई आपको माता-पिता की प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं देना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगी?

पैसे के लिए चाहे माता और पिता, भाइयों या पति पर निर्भर हों, वर्षों से महिलाओं को इस वजह से बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है। ऐसी स्थिति में मदद करने के लिए 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 (Hindu Succession Act 1956) में संशोधन किया गया, जिससे बेटियों को माता-पिता की प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा दिया गया। इसके बावजूद क्या आपके पिता आपको प्रॉपर्टी में हिस्सा देने से मना कर सकते हैं? चलिए देखते हैं….

संपत्ति की वसीयत (Property Will) क्या है?
Property Will एक कानूनी दस्तावेज है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि व्यक्ति के निधन के बाद उसके प्रॉपर्टी के अधिकार उस व्यक्ति को दिए जाते हैं जिसे वह चाहता है। 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति जो मानसिक रूप से बीमार न हो, वसीयत तैयार कर सकता है। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के अनुसार, वसीयत हस्तलिखित या टाइप की हुई होगी। प्रॉपर्टी के मालिक की मृत्यु के बाद परेशानी और विवाद से बचने के लिए वसीयतनामा होना अच्छा रहता है।

पिता की प्रॉपर्टी पर बेटियों का अधिकार

निम्नलिखित स्थितियों में बेटी का माता-पिता की प्रॉपर्टी पर अधिकार होता है:
1 संपत्ति की वसीयत : माता-पिता की प्रॉपर्टी में बेटियों का अधिकार
हिंदू कानून के तहत, प्रॉपर्टी को दो प्रकारों : पैतृक और स्व-अर्जित में बांटा गया है। माता-पिता की प्रॉपर्टी को ऐसी प्रॉपर्टी के रुप में परिभाषित किया गया है जो पुरुष की चार पीढ़ियों तक विरासत में मिला है और इस दौरान अविभाजित रही है। चाहे वह बेटी हो या बेटा, ऐसी प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा जन्म से ही मिलता है। 2005 से पहले ऐसी प्रॉपर्टी में सिर्फ बेटों को हिस्सा मिलता था। इसलिए, कायदे से, पिता बेटी को प्रॉपर्टी की वसीयत नहीं लिख सकता है या उसके हिस्से से वंचित कर सकता है। लेकिन अब जन्म से बेटी का माता-पिता की प्रॉपर्टी में हिस्सा होता है।
#2 संपत्ति की वसीयत : पिता द्वारा स्व-अर्जित प्रॉपर्टी
स्व-अर्जित प्रॉपर्टी के मामले में, जहां पिता ने अपने पैसे से जमीन या घर खरीदा है, बेटी का अधिकार नहीं होता है। इस मामले में, पिता को यह अधिकार है कि वह किसी को भी प्रॉपर्टी की वसीयत लिख सकता है, और बेटी आपत्ति नहीं कर पाएगी।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में 2005 में संशोधन किया गया, जिससे बेटियों को माता-पिता की प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा मिल सके।
#3 संपत्ति की वसीयत (Property Will) : अगर बिना वसीयत लिखे पिता की मृत्यु हो जाती है
अगर पिता की मृत्यु बिना वसीयत लिखे हो जाती है, तो सभी कानूनी उत्तराधिकारियों का प्रॉपर्टी पर समान अधिकार होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पुरुष उत्तराधिकारियों को चार वर्गों में बांटा गया है, और विरासत योग्य प्रॉपर्टी पहले वर्ग I के उत्तराधिकारियों के पास जाती है। इनमें विधवा, बेटियां और बेटे समेत अन्य शामिल हैं। प्रत्येक उत्तराधिकारी प्रॉपर्टी में हिस्से का हकदार होता है, जिसका अर्थ है कि बेटी को भी पिता की प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी का अधिकार है।
अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत लिखे हो जाती है, तो इसे निर्वसीयत (Intestate) कहा जाता है। साथ ही, यह ऐसी स्थिति भी हो सकती है जहां वसीयत केवल प्रॉपर्टी के किसी एक हिस्से के लिए बनाई गई हो, और दूसरे हिस्से की वसीयत न हो।
2005 से पहले, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में बेटियों को केवल हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का सदस्य माना जाता था, सहदायिक (समान उत्तराधिकारी) नहीं। सहदायिक कॉमन पूर्वज के वंशज हैं, जिसमें पहली चार पीढ़ियों के पास पैतृक या स्व-अर्जित प्रॉपर्टी का जन्मसिद्ध अधिकार है। हालाँकि, बेटी की शादी हो जाने के बाद, उसे HUF का सदस्य नहीं माना जाता था। 2005 के संशोधन के बाद, बेटी को सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई है, और भले ही उसका विवाह हुआ हो या न हुआ हो, पिता की प्रॉपर्टी पर उसके अधिकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
#5 संपत्ति की वसीयत : अगर बेटी का जन्म 2005 से पहले हुआ हो
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बेटी का जन्म 9 सितंबर, 2005 से पहले या बाद में हुआ था, जब अधिनियम में संशोधन किया गया था। उसके पिता की प्रॉपर्टी पर पुत्र के समान अधिकार होंगे, चाहे वह पैतृक हो या स्व-अर्जित, चाहे उसकी जन्म तिथि कुछ भी हो।
#6 संपत्ति की वसीयत : अगर पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो गई हो। दूसरी ओर, बेटी को अपनी प्रॉपर्टी पर दावा करने हेतु पिता का 9 सितंबर, 2005 तक जीवित होना जरुरी है। यदि उनकी मृत्यु 2005 से पहले हो जाती है, तो माता-पिता की प्रॉपर्टी पर उनका कोई अधिकार नहीं होगा, और स्व-अर्जित प्रॉपर्टी को पिता की इच्छा के अनुसार बांटा जाएगा।

1956 से पहले, हिंदूओं पर संपत्ति से संबंधी ऐसे कानून लागू होते थे जो हर क्षेत्र में और कभी-कभी एक ही क्षेत्र के भीतर, जाति से जाति में अलग-अलग होते थे। उत्तराधिकार का मिताक्षरा स्कूल, जो उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में प्रचलित था, केवल पुरुष उत्तराधिकारियों की बात करता था। इसके विपरीत, दायभाग प्रणाली ने जन्म से उत्तराधिकार के अधिकारों को मान्यता नहीं दी, और दोनों पुत्रों और पुत्रियों को अपने पिता के जीवित रहने के दौरान संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं था। दूसरी ओर केरल में प्रचलित मारुमक्कट्टायम कानून था, जिसने महिला के माध्यम से उत्तराधिकार के वंश का पता लगाया जाता था।

पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विरासत में महिलाओं के प्रॉपर्टी के अधिकार का समर्थन किया। हिंदुओं के रूढ़िवादी वर्गों के प्रतिरोध के बावजूद, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू किया गया और 17 जून, 1956 को लागू हुआ। बाद में कई बदलाव लाए गए जिससे महिलाओं को अधिक अधिकार मिले, लेकिन फिर भी उन्हें महत्वपूर्ण सहदायिकी अधिकारों से वंचित रखा गया। अधिनियम को अंततः 2005 में संशोधित किया गया था, जिसमें बेटियों को सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई थी, उन्हें माता-पिता की प्रॉपर्टी में समान हिस्सा दिया गया था।

संपत्ति की वसीयत लिखना क्यों जरूरी है?
शायद ही कोई व्यक्ति हो जो अपने निधन के बारे में सोचना चाहता हो, क्योंकि इससे नकारात्मक भावनाएं आती हैं। हालाँकि, यह उन महत्वपूर्ण चीजों में से है जो किसी को अवश्य करनी चाहिए क्योंकि इससे आपके प्रियजन का भविष्य सुरक्षित होगा। आज महिलाएं प्रॉपर्टी के अधिकारों और पारिवारिक व्यवसायों में समान भागीदार हैं। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि पैतृक अधिकार सही उत्तराधिकारियों को दिए जाएं।एक गलत धारणा है कि अगर किसी व्यक्ति के पास घर या प्रॉपर्टी का नॉमिनी है, तो संपत्ति की वसीयत की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह सच नहीं है। नॉमिनी प्रॉपर्टी का देखभाल करने वाला होता है; वह कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है। वसीयत से महिलाओं का भविष्य मजबूत होगा।
संपत्ति की वसीयत से जुड़ी भ्रांतियां
संपत्ति वसीयत से जुड़ी गलत धारणाएं निम्नलिखित हैं:
प्रॉपर्टी की वसीयत तब लिखी जाती है जब व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है
वसीयत को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है यदि यह ऐसे समय में बनाई गई है जब कोई व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ था।
वसीयत लिखना काफी महंगा है।
वसीयत की जगह नॉमिनेशन तथा जॉइंट होल्डिंग किया जा सकता है।
जनवरी 2022 में, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने फैसला सुनाया कि अगर वसीयत नहीं है और कोई अन्य कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है, तो हिंदू बेटियां अपने पिता की प्रॉपर्टी की हकदार होंगी। प्रॉपर्टी के मालिक की बेटियों को पिता के भाई आदि जैसे अन्य सदस्यों पर वरीयता मिलेगी। बेंच ने यह भी कहा कि यदि हिंदू महिला की बिना वसीयत मृत्यु हो जाती है, तो उसके पति या ससुर से विरासत में मिली संपत्ति पति या ससुर के उत्तराधिकारियों के पास जाएगी और उसके पिता या माता द्वारा विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के उत्तराधिकारियों को जाएगी।
प्रॉपर्टी में बेटियों का अधिकार होगा – कुछ खास बातें
अगर आप अपने परिवार को बाद में परेशान नहीं करना चाहते हैं तो संपत्ति वसीयत लिखना सबसे जरुरी है। महिला को माता-पिता की प्रॉपर्टी और अपने पिता या माता के स्वामित्व वाली प्रॉपर्टी में अपने अधिकारों के बारे में जानना जरूरी है। हमें उम्मीद है कि इस ब्लॉग से आपको पता चल गया होगा कि किन मामलों में बेटियों का अपने पिता की संपत्ति वसीयत में अधिकार होता है।
क्या पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार होगा?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के अनुसार, पिता की संपत्ति में महिला का समान अधिकार होता है। हालांकि, अगर कोई पिता संपत्ति खरीदता है, तो यह पिता पर निर्भर करता है कि वह संपत्ति किसे देना चाहता है।

किस मामले में पिता संपत्ति वसीयत से इंकार कर सकता है?अगर कोई संपत्ति पिता की खुद से कमाई हुई संपत्ति है तो वह संपत्ति में बेटी को हिस्सा देने से इनकार कर सकता है। क्या बेटी पिता की वसीयत को कोर्ट में चुनौती दे सकती है?हां, बेटी संपत्ति की वसीयत को चुनौती दे सकती है यदि वह पैतृक संपत्ति है।क्या शादी के बाद महिला का संपत्ति में समान अधिकार है?जी हां, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद शादी के बाद भी महिला को पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार प्राप्त

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