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महाराष्ट्र के 4 करोड हिन्दी भाषी मतदाताओं को लुभाने में जुटी हैं राजनैतिक पार्टिया

महाराष्ट्र के 4 करोड हिन्दी भाषी मतदाताओं को लुभाने में जुटी हैं राजनैतिक पार्टियां

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

मुंबई। आल इंडिया शोसल आर्गनाइजेशन के सर्वेक्षण के अनुसार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा हैं? वैसे-वैसे ही सभी राजनैतिक दल मायानगरी मुंबई सहित महाराष्ट्र में रह रहे 4 करोड हिन्दी भाषी वोटरों को लुभाने के लिए दांव-पेच शुरु हैं। बीजेपी और कांग्रेस के बीच हिन्दी भाषी वोटरों को अपनी ओर के आकर्षित करने की होड जमकर शुरु है।विविध राजनैतिक दल के नेता इस प्रयास में सक्रिय हैं।क्योंकि हिन्दी भाषी समाज आम चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेश,बिहार,झारखंड, उतराखंड इत्यादि राज्यों समेत करीब 4 करोड हिन्दी भाषी मतदाता जनता-जनार्दन मुंबई सहित महाराष्ट्र राज्य के छोटे बडे शहरों में रहते हैं। अब इन हिन्दी भाषी वोटरों पर सभी राजनीतिक दलों को बड़ा प्यारा लगने लगा है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद उन्हें पटाने के लिए राजनीतिक दल हर संभव कोशिश कर रहे हैं। कभी हिन्दी भाषी वोटरों को अपनी बपौती समझने वाली कांग्रेस- भाजपा का साथ जब से हिन्दी भारतीयों ने छोड़ा है, तब से वह सत्ता से दूर होते दिखाई देने लगी है। अब 30 % हिन्दी भाषी बीजेपी के साथ और 25% कांग्रेस के साथ खड़ा है, शेष 40 % शिवसेना के साथ खडा दे रही है। हालांकि सत्ता पाने के बाद बीजेपी 10 साल में ही हिन्दी भारतीयों को अपनी बपौती समझने लगी है।

बीते लोकसभा चुनाव में उत्तर भारतीय वोटर्स बीजेपी से बिदक गया है। इसका फायदा कांग्रेस के नेतृत्व वाली महा विकास आघाडी को हुआ है। सभी राजनीतिक दल यह स्वीकार करते हैं कि चुनावों में हिन्दी भाषी वोटर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वो जिस ओर जाएगा, उसकी जीत पक्की है। मुंबई में करीब 40 से 45 लाख हिन्दी भाषी वोटर्स हैं। विगत वर्षों में अनेक भगोडे कांग्रेसी भाजपा और सेना में शामिल हुए हैं। जिसमें पूर्व सांसद पूर्व मंत्री और पूर्व विधायकों का समावेश हैं। सर्वेक्षण से पता चला है कि कांग्रेस के अनेक भ्रष्टाचारी पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक आयकर(E•D•) के भय से भयभीत राजनेतागण भाजपा में खूब सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। हालकि अनेक महान हिन्दी भाषी नेतागण अपनी मन पसंद पार्टी का प्रचार-प्रसार करने के साथ-साथ हिन्दी भाषियों को भी पार्टी से जोड़ने में लगे हुए हैं। हिन्दी भाषियों अपनी को पार्टी से जोड़ने के लिए वे विविध आयोजन कर रहे हैं। अनेक हिन्दी भाषी नेतागण मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना का फायदा दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा, वे उद्धव ठाकरे, कांग्रेस नेताओं को अलग अलग मुद्दों पर घेर भी रहे हैं। परंतु ED की भेद-भाव पूर्ण कार्यवाई की पोल खुलने से पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाडा, मुंबई और विदर्भ में महाराष्ट्र महाविकास आघाडी MVA उम्मीदवारों की पकड मजबूत दिखाई पड रही हैं? सर्वेक्षण के अनुसार अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद धराशाई प्रकरण के समय मारे गए हजारों कारसेवकों के परिजनों को अभि तक न्याय नहीं मिलने तथा राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा समारोह में कारसेवकों को नहीं आमंत्रित किए जाने को लेकर वे भाजपा की कुटिल नीति से काफी नाराज दिखाई दे रहे हैं?

यह भी सत्य है कि भाजपा से नाराज लाखों राम भक्त कारसेवकों की वजह से लोकसभा चुनाव मे भाजपा को 400 पार होने से रोका दिया है? इसके अलावा मोदी सरकार की करतूतों से राम मंदिर शिलान्यास और प्राण प्रतिष्ठा समारोह संबंध में अनेक सिध्द संत महात्माओं दण्डी सन्यासियों और तपस्वियों का अनादर का नतीजा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव सहित हरियाणा और झारखंड चुनाव में भी भाजपा को भारी मशक्कत का सामना करना पड सकता हैं?

बीजेपी में खींचतान

लोकसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद बीजेपी को जिस तरह से सक्रिय होना चाहिए था, अब तक नहीं हुई। पिछले दिनों मुंबई बीजेपी कार्यालय में उत्तर भारतीय की ‘खींचतान’ बैठक हुई। मंच पर बैठे नेताओं की योग्यता पर सवाल उठाए गए। समाज में पार्टी की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाया गया। सवाल किया गया कि आखिर उन्हीं पुराने घिसे-पिटे चेहरों को पार्टी कब तक ढोती रहेगी? हालांकि मुंबई बीजेपी अध्यक्ष आशीष शेलार ने एक समिति गठित करने का निर्णय लिया है, ताकि उत्तर भारतीय के गिले-शिकवे दूर किए जा सकें। बीजेपी का उत्तर भारतीय मोर्चा ठंडा पड़ा है

वैसे, लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी का महाराष्ट्र और मुंबई उत्तर भारतीय मोर्चा पिक्चर से ही गायब है। चुनाव में सक्रिय रहने वाले प्रदेश अध्यक्ष संजय पांडेय मुंबई तक ही सिमट कर रह गए हैं, जबकि चौपाल से चर्चा में आए मुंबई अध्यक्ष जयप्रकाश सिंह भी गायब हैं। यानी बीजेपी का उत्तर भारतीय मोर्चा पूरी तरह से ठंडा पड़ गया है। वैसे कजरी महोत्सव के जरिए खुद को चर्चा में लाने की कोशिश उत्तर भारतीय नेता कर रहे हैं। मालाड-दिंडोशी विधानसभा में विनोद मिश्र, कालीना विधानसभा में नितेश राजहंस सिंह, चारकोप में कमलेश यादव लगे हुए हैं।

जोर लगा रही है कांग्रेस से

कृपाशंकर सिंह, राजहंस सिंह जैसे नेताओं के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी को बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है। क्योंंकि इनके लिए कांग्रेस का कार्यकाल कलंकित रहा है? फिलहाल

उद्धव सेना के साथ हजारों हिन्दीभाषी कार्यकर्ता सक्रियता दिखाई दे रही हैं। क्योंकि अनेक बदनाम और कलंकित कांग्रेसी जिन्होंने अपनें घरों में झाडू पोछा लगाने वाली सुंदर महिला को भी नहीं छोडा है? भाजपा में घुसपैठ कर चुके हैं? नतीजतन कोई फायदा नहीं होने वाला है?

यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे भी अच्छी तरह समझ गए हैं कि बिना हिन्दीभाषियों के मुंबई में उनकी राजनीतिक दाल नहीं गलने वाली है। सत्ता तक पहुंचने के लिए उन्हें हिन्दीभाषी वोटर चाहिए ही। उनकी पार्टी के प्रवक्ता आनंद दुबे पार्टी का चेहरा बनने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन वो पार्टी को वोट नहीं दिलवा पा रहे हैं। फिलहाल उद्धव के पास अनेक दमदार हिन्दीभाषी चेहरा उपलब्ध हो गए है। दरअसल में चक्कीपिसिंग चक्कीपिसिंग के शिकार अजित पवार की पूरे महाराष्ट्र राज्य में थू थू हो रही है? जबकि मराठा छत्रप और पूर्व सीएम शरदचंद्र पवार की एनसीपी को मुंबई सहित मराठवाडा,पश्चिम महाराष्ट्र में राजनीति मजबूत दिखाई पड रही है? बतादें कि पिछले वर्ष पूर्व सीएम शरदचंद्र पवार के जनम दिन पर केंद्रिय मंत्री नितिन गडकरी साहब भी शरदचंद्र पवार की भूरि-भूरि प्रशंसा करते थके नहीं?

विधानसभा चुनाव में यही समाज कांग्रेस, महा विकास आघाडी और UBT सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे(MVA) को सत्ता में लाना जरुरी हो गया है? क्योंकि हिन्दीभाषी उनके सुख-दुख में ही काम आते हैं।

मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना यह मध्यप्रदेश की तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान सरकार की नकल मानी जा रही है का फायदा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। हालकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जिस तरह से विकास काम कर रहे हैं, उससे पूरा हिन्दीभाषी समाज बेहद ही प्रभावित है।

मविआ उम्मीदवार हिन्दीभाषी लोगों के बीच जा रहे हैं।महाराष्ट्र का मतदाता जनता-जनार्दन मविआ से जुड़ भी रहे हैं क्योंकि समाज के लोग हमारे नेता उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के काम से प्रभावित हैं।आनंद दुबे, यूबीटी शिवसेना से हैं।

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