(भाग:287) शिवलिंग पिंड स्थापन विधिवत कर पूजा सृष्टी में शिव समान कोई नही दूजा 

भाग:287) शिवलिंग पिंड स्थापन विधिवत कर पूजा सृष्टी में शिव समान कोई नही दूजा

 

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

चेतन्य कुंज में चल रही शिव कथा में प्रवचन देते हुए कथावाचक स्वामी चेतथनगिरी महाराज ने शिव महिमा का बखान करते कहा कि संसार में सबसे सरल पूजा भगवान शिव की है, जो मात्र पवित्र जल के लोटे के अर्पण से ही खुश हो जाते हैं। शिव को आशुतोष इस कारण ही कहा गया है कि वह भक्त द्वारा की गई थोड़ी भक्ति से ही खुश होकर उसे आशीर्वाद देते हैं। उन्होंने भगवान शिव के बारे में कहा कि शिव अन्नंत और अविनाशी है और श्रावण मास भोले की आराधना का सबसे बड़ा महिना है। कहा जाता है कि सावन का नाम श्रावण मास इस बात पर पड़ा कि इस महिने के दौरान भगवान शिव ने माता पार्वती की मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कथा सुनाई थी, जिस जगह शिव ने अपना निवास स्थान कैलाश को बनाया था। वहां पर भी पूर्व काल में कभी कभी राम कथा हो चुकी थी। इसलिए आज भी सत्संग का सार यहीं है कि सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान शंकर को ओम नम: शिवाय के जाप के साथ पवित्र जल के लोटे का अर्पण कर उन्हें बिल्व पत्र चढ़ा कर शिव को सच्चे मन के साथ याद करने का प्रयास करें। शिव ही आपको भव सागर पार लगाएंगे।

शिव समान प्रिय मोहि कोई न दूजा

लिंग स्थापन विधिवत कर पूजा, शिव समान प्रिय मोहि न दूजा।

रामचरित मानस में लिखी गोस्वामी तुलसीदास की यह चौपाई सावन के तीसरे सोमवार को शिवालयों में साकार होती दिखी। कांवड़िये और शिव भक्त रविवार रा िसे ही शिवालयों में पहुंचने लगे। भोर से ही भोले बाबा का पूजन और आरती शुरू हो गई। सोमवार को पूरे दिन मंदिरों में श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी रही। प्राचीन मंदिरों में कांवड़ियों को अलग से लाइन लगवाकर भोले बाबा के दर्शन कराए गए। पूजा-अर्चना और दर्शनों का सिलसिला पूरे दिन चलता रहा। देर शाम महादेव का शृंगार और आरती हुई।

अलखनाथ

रविवार की रात ढाई बजे मंदिर के पट खुले। कांवड़ियों ने जलाभिषेक किया। इससे पहले कांवड़ की आरती हुई। सुबह होते ही शिव भक्तों ने पूजा-अर्चना कर भोले बाबा का जलाभिषेक किया। मंदिर में पूरे दिन शिव भक्तों की भारी भीड़ रही।

 

वनखंडीनाथ

 

जोगीनवादा के श्री वनखंडीनाथ मंदिर में बड़ी संख्या में शिव भक्तों ने गंगाजल, दूध, शहद, धतूरा और बेल पत्र चढ़ाकर भोले बाबा को मनाया। जलाभिषेक के बाद मंदिर में 40 दिवसीय भंडारे में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।

त्रिवटीनाथ

सुबह से देर रात तक शिवभक्तों के पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। पुजारी मनोज मिश्रा ने बताया कि सावन के तीसरे सोमवार को बाबा का सबसे बड़ा जलाभिषेक अपराह्न तीन से शाम छह बजे के बीच हुआ। देर रात भंडारा और कीर्तन-पूजन का दौर तक चला। श्री शिव शक्ति जन कल्याण सेवा समिति की ओर से विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। त्रिवटीनाथ भजन संध्या मेें टी सीरीज के गायक सत्यप्रकाश सत्यम ने बाबा के भजनों से माहौल शिवमय बना दिया।

धोपेश्वरनाथ

रात ढाई बजे से ही भोले बाबा की पूजा-अर्चना और जलाभिषेक शुरू हो गया था। तीन हजार से ज्यादा कांवड़ियों ने भोले बाबा का जलाभिषेक कर पूजा अर्चना की। कांवड़िये लाउडस्पीकर पर बजने वाले भोले के भजनों पर नृत्य करते दिखे।

तपेश्वरनाथ

सुभाषनगर के तपेश्वरनाथ मंदिर में कछला धाम से जल लेकर आए कांवड़ियों ने जलाभिषेक किया। शाम को बाबा का शृंगार और आरती हुई। इसमें हजारों की संख्या में शिवभक्त शामिल हुए प्रसाद ग्रहण किया।

 

मढ़ीनाथ

 

रविवार से सोमवार रात तक कांवड़ियों के आने-जाने का सिलसिला जारी रहा। महंत धर्मेंद्र गिरी ने बताया कि सोमवार को साढ़े तीन बजे रुद्राभिषेक के बाद जलाभिषेक शुरू हुआ। भक्तों ने दूध, गंगाजल, शहद, बेल पत्र, धतूरा और मिठाई से महादेव की पूजा की।

पशुपति नाथ

मंदिर में तीन हजार से अधिक कांवड़ियों ने जलाभिषेक किया। इसके बाद कांवड़ियों का जत्था वनखंडीनाथ मंदिर को रवाना हो गया। पूरे दिन शिवभक्त और कांवड़िये भोले के भजनों पर झूमते रहे।

वनखंडी नाथ

नाथ नगरी बरेली जलाभिषेक समिति के नेतृत्व में शिवभक्त श्यामगंज से गणेश पूजन और हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद मंदिर पहुंचे। इसके बाद ऊं नम: शिवाय मंत्रोच्चारण के बीच रुद्राभिषेक किया गया। शिवभक्तों का जगह-जगह फूला बरसाकर स्वागत किया गया।

कछला से गंगाजल लेकर आए शिव सैनिक

600 शिव सैनिकों के जत्थे ने कछला से गंगाजल लाकर अलखनाथ मंदिर में भोले बाबा का जलाभिषेक किया। रामगंगा पर शिव सैनिकों का फूल बरसाकर स्वागत किया गया। महिला कांवड़ियों ने कछला से जल लाकर मौर्या मंदिर में जलाभिषेक किया।

एकता की मिसाल-बेमिसाल

सावन के तीसरे सोमवार को उस समय हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक दिखाई दी, जब मुस्लिम भाइयों ने त्रिवटीनाथ मंदिर में कांवड़ियों का स्वागत किया। कौमी एकता संगठन के अध्यक्ष अफरोज मियां के नेतृत्व में सैफी उल्ला अंसारी, मो. फैजान अंसारी, मो. आसिफ, अशोक कुमार और शांतनु रहोतगी आदि ने कांवड़ियों का फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया

शिव कौन हैं – ईश्वर, पुरुष या पौराणिक कथा?

शिव कौन हैं? क्या वे भगवान हैं? या बस एक पौराणिक कथा? या फिर शिव का कोई गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो खोज रहे हैं?भ भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के सबसे अहम देव, महादेव शिव, के बारे में कई गाथाएँ और दंतकथाएं सुनने को मिलती हैं। क्या वे भगवान हैं या केवल हिन्दू संस्कृति की कल्पना हैं? या फिर शिव का एक गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो सत्य की खोज में हैं?

 

शिव का अर्थ

जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो हमारा इशारा दो बुनियादी चीजों की तरफ होता है। ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’।

शिव शून्य हैं

आज के आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि इस सृष्टि में सब कुछ शून्यता से आता है और वापस शून्य में ही चला जाता है। इस अस्तित्व का आधार और संपूर्ण ब्रम्हांड का मौलिक गुण ही एक विराट शून्यता है। उसमें मौजूद आकाशगंगाएं केवल छोटी-मोटी गतिविधियां हैं, जो किसी फुहार की तरह हैं। उसके अलावा सब एक खालीपन है, जिसे शिव के नाम से जाना जाता है। शिव ही वो गर्भ हैं जिसमें से सब कुछ जन्म लेता है, और वे ही वो गुमनामी हैं, जिनमें सब कुछ फिर से समा जाता है। सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में चला जाता है।

 

शिव कौन हैं – ईश्वर, पुरुष या पौराणिक कथा?

शिव अंधकार हैं

तो शिव को ‘अस्तित्वहीन’ बताया जाता है, एक अस्तित्व की तरह नहीं। उन्हें प्रकाश नहीं, अँधेरे की तरह बताया जाता है। मानवता हमेशा प्रकाश के गुण गाती है, क्योंकि उनकी ऑंखें सिर्फ प्रकाश में काम करती हैं। वरना, सिर्फ एक चीज़ जो हमेशा है, वो अंधेरा है। प्रकाश का अस्तित्व सीमित है, क्योंकि प्रकाश का कोई भी स्रोत, चाहे वो एक बल्ब हो या फिर सूर्य, आखिरकार प्रकाश बिखेरना करना बंद कर देगा। प्रकाश शाश्वत नहीं है। ये हमेशा एक सीमित संभावना है, क्योंकि इसकी शुरुआत होती है और अंत भी। अंधकार प्रकाश से काफी बड़ी संभावना है। अंधकार में किसी चीज़ के जलने की जरुरत नहीं, अंधकार हमेशा बना रहता है। अंधकार शाश्वत है। अंधकार सब जगह है। वो एक अकेली ऐसी चीज़ है जो हर जगह व्याप्त है।

 

पर अगर मैं कहूँ – “दिव्य अंधकार” लोग सोचते हैं कि मैं शैतान का उपासक हूँ। सच में, पश्चिम में कुछ जगहों पर ये फैलाया जा रहा है कि शिव राक्षस हैं! पर आप अगर इसे एक सिद्धांत के रूप में देखें तो आपको पूरे विश्व में सृष्टि की पूरी प्रक्रिया के बारे में इससे ज्यादा स्पष्ट सिद्धांत नहीं मिलेगा। मैं इस बारे में, बिना शिव शब्द बोले, दुनिया भर के वैज्ञानिकों से बातें करता रहा हूँ। वे आश्चर्य से भर उठते हैं, क्या ऐसा है? ये बातें पता थीं? कब? हमे ये हज़ारों सालों से पता हैं। भारत का हर सामान्य आदमी इस बात को अचेतन तरीके से जानता है। वे इसके बारे में बातें करते हैं, और वे इसका विज्ञान भी नहीं जानते।

 

आदियोगी शिव का अर्थ – पहले योगी और पहले गुरु

दूसरे स्तर पर, जब हम शिव कहते हैं, तो हम एक विशेष योगी की बात कर रहे होते हैं, वे जो आदियोगी या पहले योगी हैं, और जो आदिगुरू, या पहले गुरु भी हैं। आज हम जिसे योगिक विज्ञान के रूप में जानते हैं, उसके जनक शिव ही हैं। योग का अर्थ अपने सिर पर खड़े होना या अपनी सांस को रोकना नहीं है। योग, इस जीवन की मूलभूत रचना को जानने, और इसे अपनी परम संभावना तक ले जाने का विज्ञान और तकनीक है।

 

आदियोगी शिव का अर्थ – पहले योगी और पहले गुरु

योग विज्ञान का पहला संचार कांतिसरोवर के किनारे हुआ जो हिमालय में केदारनाथ से कुछ मील दूर पर स्थित एक बर्फीली झील है। यहां आदियोगी ने, इस आंतरिक तकनीक का व्यवस्थित विवरण अपने पहले सात शिष्यों को देना शुरू किया। ये सात ऋषि, आज सप्तर्षि के नाम से जाने जाते हैं। ये सभी धर्मों के आने से पहले हुआ था। लोगों के द्वारा मानवता को बुरी तरह विभाजित करने वाले तरीके तैयार किये जाने से पहले, मानव चेतना को ऊपर उठाने के सबसे शक्तिशाली साधनों को सिद्ध किया और फैलाया जा चुका था। आज मानवता इस तरह से विभाजित है, कि उसे फिर से एक करना लगभग असंभव लग रहा है।

शिव – एक ही शब्द के दो अर्थ

तो शिव शब्द “वो जो नहीं है” और आदियोगी दोनों की ही ओर संकेत करता है, क्योंकि बहुत से तरीकों से ये दोनों पर्यायवाची हैं। ये जीव, जो एक योगी हैं और वो शून्यता, जो सृष्टि का मूल है, दोनों एक ही है। क्योंकि किसी को योगी कहने का मतलब है कि उसने ये अनुभव कर लिया है कि सृष्टि वो खुद ही है। अगर आपको इस सृष्टि को अपने भीतर एक क्षण के लिए भी बसाना है, तो आपको वो शून्यता बनना होगा। सिर्फ शून्यता ही सब कुछ अपने भीतर समा सकती है। जो शून्य नहीं, वो सब कुछ अपने भीतर नहीं समा सकता। एक बर्तन में समुद्र नहीं समा सकता। ये ग्रह समुद्र को समा सकता है, पर सौर्य मंडल को नहीं समा सकता। सौर्य मंडल ग्रहों और सूर्य को समा सकता है, पर बाकी की आकाश गंगा को नहीं समा सकता। अगर आप इस तरह कदम दर कदम आगे बढ़ें, तो आखिरकार आप देखेंगे, कि सिर्फ शून्यता ही हर चीज़ को अपने भीतर समा सकती है। योग शब्द का अर्थ है मिलन। योगी वो है जिसने इस मिलन का अनुभव कर लिया है। इसका मतलब है, कम से कम एक क्षण के लिए, वो पूर्ण शून्यता बन चुका है।

 

शिव शब्द के दो अर्थ – योगी शिव और शून्यता – एक तरह के पर्यायवाची हैं, पर फिर भी वे दो अलग-अलग पहलू हैं। क्योंकि भारतीय संस्कृति द्वंद्व से भरी है, इसलिए हम एक पहलू से दूसरे पहलू पर आते-जाते रहते हें। एक पल हम परम तत्व शिव की बात करते हैं, तो अगले ही पल हम उन योगी शिव की बात करने लगते हैं, जिन्होंने हमें योग का उपहार दिया है।

 

शिव के बारे में लोगों की कल्पना!

यह अफसोस की बात है कि शिव का परिचय ज्यादातर लोगों को भारत में प्रचलित कैलेंडरों के जरिए ही हुआ है, जिसमें उन्हें भरे-भरे गाल वाले नील-वर्णी व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है। उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि कैलेंडर कलाकारों को इस चेहरे से अलग कुछ सूझा ही नहीं। अगर आप कृष्ण बनाने को कहेंगे, तो कलाकार उसके हाथ में एक बांसुरी थमा देंगे। राम बनाने को कहेंगे, तो उसके हाथ में धनुष दे देंगे। और अगर आप शिव बनाने को कहेंगे तो सिर पर चाँद बना देंगे, बस काम हो गया!

 

शिव के बारे में लोगों की कल्पना!

जब भी ऐसे कैलेंडर को देखता हूँ, मैं ये सोचता हूँ कि मैं कभी भी एक चित्रकार के सामने नहीं बैठूंगा। फोटो मैं कोई परेशानी नहीं, क्योंकि उसमे आप जैसे हैं वैसी ही तस्वीर आ जाती है। अगर आप शैतान की तरह दिखते हैं, तो आपका फोटो भी वैसा ही आएगा। पर शिव जैसे एक योगी के गाल इतने भरे कैसे हो सकते हैं? अगर आप उन्हें बहुत दुबला-पतला दिखाते तो ठीक होता, पर एक भरे हुए गालों वाले शिव – ये कैसे हो सकता है?

 

योगिक परंपरा में शिव को भगवान की तरह नहीं देखा जाता। वे एक ऐसे जीव थे, जिनके चरण इस धरती पर पड़े और जो हिमालय क्षेत्र में रहे। योगिक परम्पराओं के स्रोत के रूप में, मानव चेतना के विकास में उनका योगदान इतना जबरदस्त है कि उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। हज़ारों साल पहले, हर उस तरीके की खोज की जा चुकी थी, जिससे मानव तन्त्र को परम संभावना में रूपांतरित किया जा सकता है। इसकी जटिलता अविश्वसनीय है। ये प्रश्न करना, कि उस समय क्या लोग इतने जटिल काम कर सकते थे? कोई मायने नहीं रखता, क्योंकि योग किसी विचार प्रक्रिया या सभ्यता की उपज नहीं है। योग भीतरी बोध से आया है। उनके आस-पास क्या हो रहा था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। योग उनके भीतर से बाहर आने वाला प्रवाह था। उन्होंने बहुत ही विस्तार से हमें बताया कि मानव तन्त्र के हर मुद्ददे का मतलब क्या है और उसमें छुपी संभावना क्या है। जो भी कहा जा सकता था, वो उन्होंने इतने सुंदर और कुशल तरीकों से कहा, कि आप आज भी, उनके द्वारा कही गयी एक भी चीज़ नहीं बदल सकते। आप पूरा जीवन उसका अर्थ निकालने में बिता सकते हैं।

 

शिवलिंग क्या है

सद्गुरु बताते हैं कि “लिंग” का अर्थ है रूप। हम इसे रूप कह रहे हैं क्योंकि जब निराकार अस्तित्व प्रकट होना शुरू हुआ था, या दूसरे शब्दों में जब सृजन होना शुरू हुआ था, तब जो पहला रूप लिया गया था वह एक दीर्घवृत्त या एल्लिप्स का था।

 

शिव पुराण

शिव पुराण एक प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें मौलिक विज्ञान के कई पहलू शामिल हैं और यह सीमाओं को पार करने का एक शक्तिशाली साधन है। कहानियों और दृष्टांतों के रूप में प्रस्तुत, वैज्ञानिक सत्यों को व्यक्त करने का यह तरीका हमेशा से यौगिक संस्कृति की पहचान रहा है।

 

नीलकंठ महादेव

सद्‌गुरु शिव के प्रतीक को नीले गले से दर्शाने के महत्व के बारे में बताते हैं कि कैसे हमारे ऊर्जा शरीर का एक निश्चित आयाम, जिसे विशुद्धि चक्र कहते हैं, वह हमारे गले के गड्ढे में स्थित है और हानिकारक प्रभावों को छानकर हमसे दूर करता है।

 

नटराज शिव की प्रतिमा

शिव के अनेक रूपों में से एक है – नटराज का, यानी कलाओं के राजा। तो क्या सभी भारतीय शास्त्रीय कलाओं के जन्मदाता वही हैं? जानते हैं कि कैसे भगवान शिव द्वारा खोजे गए योगासन नृत्य मुद्राओं से गहराई से जुड़े हैं। .

 

शिव की तीसरी आंख

 

सद्गुरु उन सभी प्रमुख प्रतीकों की व्याख्या कर रहे हैं, जो पारंपरिक रूप से आदियोगी शिव का वर्णन करते हैं – त्रिशूल जिसके बारे में हम सभी जानते हैं, उनके बालों में मौजूद अर्ध-चंद्र, वह सांप जो वे अपने नीले गले में पहनते हैं, और उनके माथे पर बनी तीसरी आंख।..

 

शिव धाम कैलाश

सद्गुरु समझा रहे हैं कि कैलाश को शिव का निवास क्यों कहा जाता है, ऐसा इसलिए नहीं है कि वह कैलाश के शिखर पर बैठे हैं, बल्कि इसलिए है क्योंकि उन्होंने अपना सारा ज्ञान इस पर्वत में सुरक्षित रख दिया था।.

 

पार्वती

शिव विवाह कथा को भारत की आध्यात्मिक कथाओं में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। शिव विवाह में पार्वती के पिता शिव का वंश जानना चाहते थे। फिर शिव ने क्या जवाब दिया? कथा में बताया गया है कि शिव मौन बैठे रहे। पार्वती के पिता ने सोचा कि ये अपने कुल वंश के बारे में भी नहीं जानते। पढ़िए आगे की कथा..

 

ओम नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय मन्त्र आपके सिस्टम को शुद्ध करता है और ध्यानमय बनाने में मदद करता है। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि इस मंत्र का उच्चारण करने का क्या मतलब है और साथ ही समझा रहे हैं कि इसे ओम नमः शिवाय की तरह नहीं बल्की आऊम नमः शिवाय की तरह क्यों उच्चारित करना चाहिए।

 

शिव विनाशक

लोग आम तौर पर रक्षा और खुशहाली के लिए ईश्वर के पास जाते हैं, लेकिन यौगिक संस्कृति में शिव को विनाशकर्ता के रूप में पूजा जाता है। आइए इस अजीब नज़रिये के पीछे की समझदारी का पता लगाते हैं।..

 

पूर्ण तपस्वी और गृहस्थ शिव

आदियोगी शिव एक घोर तपस्वी थे, पर वे एक गृहस्थ बन गए। वे गृहस्थ इसलिए बनें क्योंकि वे अपने ज्ञान को दुनिया के साथ साझा करना चाहते थे, और यौगिक ज्ञान को दुनिया के साथ बांटना चाहते थे।…

 

 

शिव, गणेश और पार्वती

 

सद्गुरु कहानी सुना रहे हैं कि किस तरह शिव ने गणेश का सिर काट दिया और बता रहे हैं कि लोकप्रिय धारणा के विपरीत, उनके सिर के बदले हाथी का नहीं, बल्कि शिव के विचित्र साथियों, जिन्हें गण के नाम से जाना जाता था, उनके सरदार का सिर लगाया गया था।…

 

हर हर महादेव

जानिए कि आदियोगी शिव को महादेव या सभी देवताओं में सबसे महान के रूप में क्यों जाना जाता है।..

 

शिव और गंगा

 

सद्गुरु शिव की जटाओं से गंगा के निकलने की कथा बता रहे हैं और समझा रहे हैं कि यह कहानी प्रतीक के माध्यम से क्या कहने की कोशिश कर रही है।..

 

नीलकंठ की कथा

 

आदियोगी शिव के कई नामों में से एक नीलकंठ है, या जिसका कंठ नीले रंग का हो। सद्गुरु शिव के नीले कंठ के प्रतीक को समझा रहे हैं।..

 

भगवान विष्णु और शिव

 

यहाँ शिव और विष्णु के बारे में पौराणिक कथाओं से तीन दिलचस्प कहानियाँ पेश हैं: जब शिव का घर विष्णु ने ले लिया, जब विष्णु ने शिव को मुश्किल से बचाया और अंत में, विष्णु की शिव भक्ति की एक दिल को छू लेने वाली कहानी।..

 

काली

सद्गुरु, शिव की छाती पर खड़ी काली के चित्र का महत्व समझा रहे हैं। वह हमें यह कहानी सुना रहे हैं कि कैसे एक बार काली ने शिव को मार दिया था और इसके पीछे का प्रतीक क्या है।..

 

महाशिवरात्रि

शिव की महान रात्रि’, महाशिवरात्रि का त्यौहार भारत के आध्यात्मिक उत्सवों की सूची में सबसे महत्वपूर्ण है। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि यह रात इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और हम इसका लाभ कैसे उठा सकते हैं

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