जानिए नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया? कौन होते हैं, कैसे बनते शिव से रिश्ता?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
सागरद्वीप । नांगा साधू सनातन हिन्दू धर्मावलंबी साधु होते हैं जोकि हमेशा नग्न रहने और युद्ध कला में माहिर के लिए जाने जाते हैं. विभिन्न अखाड़ों में इनका ठिकाना होता है. सबसे अधिक नागा साधु जुना अखाड़े में होते हैं. नागा साधुओं के अखाड़े में रहने की परंपरा की शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी.
इस समय नांगा संतों के 13 प्रमुख अखाड़े हैं जिनमें प्रत्येक में शीर्ष पर महन्त आसीन होते हैं. इनमें सात शैव संन्यासी, तीन बैरागी वैष्णव और तीन उदासीन संप्रदाय के हैं. शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े हैं.
कुंभ में दी जाती है नागा साधु की दीक्षाराजा भी लेते थे नागा साधुओं का सहयोग
कुंभ मेले के शाही स्नान में आपने युद्ध कला का प्रदर्शन करते हुए स्नान को जाते नागा साधुओं की टोली को जरूर देखा होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये नागा साधु कौन होते हैं, कैसे बनते हैं, कहां और किस नाम से जाने जाते हैं? आदिगुरु शंकराचार्य की ओर से स्थापित किए गए विभिन्न अखाड़ों में रहने वाले ऐसे साधु जो नग्न रहते हैं, शरीर पर धुनि की राख लपेटकर रखते हैं, युद्ध कला में पारंगत होते हैं और हिंदू धर्मावलंबी होते हैं उन्हें नागा साधु कहा जाता है
सनातन धर्म में साधू-संतों का काफी महत्व होता है। साधू-संत भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य व धर्म के मार्ग पर निकल जाते हैं। इसके साथ ही उनकी वेशभूषा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल अलग होती है। उनको ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। साधू-संत आमतौर पर पीला, केसरिया या लाल रंगों के वस्त्र पहनते हैं।
नांगा साधू-संतों को ईश्वर के सबसे निकट माना जाता है। संन्यासी अपने पूरे सांसारिक जीवन का त्याग कर देता है और अपना समय भगवान का नाम स्मरण करने में लगाता है। साधू-संतों में नागा साधुओं की चर्चा जरूर होती है। सबसे खास बात यह है कि नागा साधू कपड़े नहीं धारण करते हैं। वह कड़ाकी ठंड में भी नग्न अवस्था में रहते हैं। वह शरीर पर धुनी या भस्म लगाकर घूमते हैं। नागा का मतलब होता है नग्न। नागा संन्यासी पूरा जीवन नग्न अवस्था में ही रहते हैं। वह अपने आपको भगवान का दूत मानते हैं। आइए नागा साधुओं के बारे कुछ रहस्यमयी बातें जानते हैं…
नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बहुत लंबी और कठिन मानी जाती है। अखाड़ों द्वारा नागा संन्यासी बनाया जाता है। हर अखाडे़ की अपनी मान्यता और पंरपरा होती है और उसी के अनुसार उनको दीक्षा दी जाती है। कई अखाड़ों में नागा साधुओं को भुट्टो के नाम से भी बुलाया जाता है। अखाड़े में शामिल होने के बाद इनको गुरु सेवा के साथ सभी छोटे काम करने के लिए दिए जाते हैं।
नागा साधुओं का जीवन बेहद ही जटिल होता है। बताया जाता है कि किसी भी इंसान को नागा साधू बनने में 12 साल का लंबा समय लगता है। नागा साधू बनने के बाद वह गांव या शहर की भीड़भाड़ भरी जिंदगी को त्याग देते हैं और रहने के लिए पहाड़ों पर जंगलों में चले जाते हैं। उनका ठिकाना उस जगह पर होता है, जहां कोई भी न आता जाता हो।
नागा साधू बनने की प्रक्रिया में 6 साल बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान वह नागा साधू बनने के लिए जरूरी जानकारी हासिल करते हैं। इस अवधि में वह सिर्फ लंगोट पहनते हैं। वह कुंभ मेले में प्रण लेते हैं जिसके बाद लंगोट को भी त्याग देते हैं और पूरा जीवन ब्रह्मचर्य रहते हैं। नागा साधुओं की डरावनी भविष्यवाणियां होती हैं,।
नागा साधू बनने की प्रक्रिया की शुरुआत में सबसे पहले ब्रह्मचर्य की शिक्षा लेनी होती है। इसमें सफलता प्राप्त करने के बाद महापुरुष दीक्षा दी जाती है। इसके बाद यज्ञोपवीत होता है। इस प्रकिया को पूरी करने के बाद वह अपना और अपने परिवार का पिंडदान करते हैं जिसे बिजवान कहा जाता है।