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(भाग-212)सीता माता के कहने पर ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम स्वर्ण मृग को पकडने पीछे भागे

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(भाग-212)सीता माता के कहने पर ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम स्वर्ण मृग को पकडने पीछे भागे

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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असलियत कथा यह थी कि माता सीता ने श्रीराम से हिरण को मारकर लाने के लि नहीं कहा था बल्कि उसे पकड़कर लाने के लिए कहा था। सुनहरी हिरन के बच्चे को देख कर जंगल में अकेलेपन को दूर करने के लिए माता सीता ने श्रीराम से उस बच्चे को पालने की इच्छा जाहिर की थी।
प्राचीन रामलीला कमेटी झज्जर की तरफ से आयोजित की जा रही दिन की है। सीता माता के कहने पर भगवान राम गए स्वर्ण मृग के पीछे
सीता माता के कहने पर भगवान राम गए स्वर्ण मृग के पीछे दौंंडे थे। प्राचीन रामलीला कमेटी झज्जर की तरफ से आयोजित की जा रही दिन की रामलीला के दौरान मंगलवार को सीता माता के कहने पर भगवान राम स्वर्ण मृग को पकड़कर लाने के लिए उसके पीछे चले गए। भ्राता लक्ष्मण को सीता माता की रक्षा के लिए कुटिया में रूकने के लिए कहा। लेकिन लक्ष्मण ने भी साथ चलने की बात कही। भगवान राम ने उसे मना कर दिया और स्वर्ण मृग को पकड़ने के लिए उसके पीछे चल दिए। रावण के कहने पर उसके मामा मारिच ने स्वर्ण मृग का रूप धारण किया था। क्योंकि रावण सीता माता का हरण करना चाहता था। स्वर्ण मृग जंगल की तरफ दौड़ रहा था। भगवान राम ने उसको पकड़ने के लिए तीर चला दिया। तीर स्वर्ण मृग की पीठ पर लगा। वह तीर लगने की वजह से वह जोर-जोर से सीते-सीते चिल्लाने लगा और गिर गया। जब भगवान राम उसके पास पहुंचा तो वह अपने असली रूप में आ गया। घायल मारिच ने भगवान राम से पूरी बात बताई और अपनी गलती का पश्चाताप करते हुए उसने प्राण त्याग दिए। सीता माता ने जब सीते-सीते चिल्लाने की आवाज सुनी तो उसने लक्ष्मण को अपने भ्राता की मदद के लिए जाने के लिए कहा। लक्ष्मण ने भगवान राम की आज्ञा का पालन करते हुए जाने के लिए सीता माता से मना कर दिया। लेकिन सीता माता के बार-बार कहने पर वह कुटिया के मुख्य द्वार पर लक्ष्मण रेखा खींचकर भगवान राम की मदद के लिए चला गया। उसने सीता माता से कहा कि जब तक मैं और भ्राता नहीं आते आप कुटिया से बाहर नही आयेगीं। लक्ष्मण के वहां से जाने के बाद रावण भिक्षु का रूप धारण करके कुटिया के पास आकर भिक्षा मांगने लगा। माता सीता ने भिक्षा के लिए मना कर दिया लेकिन उसने माता सिता से कई दिनों तक कुछ नहीं खाने की बात भिक्षा देने के लिए कहा। माता सीता को उस पर दया आ गई और वह भिक्षा देने के लिए बाहर आई तो रावण ने उसका हरण कर लिया। भगवान राम व लक्ष्मण ने जंगल में खर दुषण का वध किया और कुटिया की ओर चले। जब भगवान राम व उनके भ्राता लक्ष्मण ने कुटिया में आकर देखा तो वहां सीता माता नहीं थी।

रामलीला के मंचन के लिए प्राचीन रामलीला कमेटी की तरफ से उत्तर प्रदेश के बृज से रामलीला के कलाकारों को बुलाया गया है।

क्यों माता सीता ने सुनहरे हिरण के चमड़े की मांग की थी, और राम भगवान उसे पकडने भी चले गए, जबकि धर्म तो यह नहीं सिखाता?
किसी ने कुछ भी कहा, और आपने मान लिया?
आप किसी ऐसे व्यक्ति को क्या कहते हैं जो कि सब कुछ में विश्वास करता हो? हिरण का चर्म (चमड़ा) किसी के किस काम आता है? केवल कुछ शिकारी, अपनी तड़ी मारने के लिए इसे अपने महलों में सजाया करते थे | जो दंपत्ति अपना राजपाट सब छोड़ कर केवल आदर्शवाद के लिए वनवास कर रहे हैं, उन्हें इसकी क्या ज़रुरत थी? कभी देखा है, किसी कुटिया में किसी ने शेर/चीते/हिरन की खाल लटकाई हो? और जहाँ तक पशु चर्म को कपड़े के समान प्रयोग करने का विचार है, ये केवल उन इलाकों में होता था/है जहाँ बर्फ पड़ने जितनी ठण्ड पड़ती हो, भारत में ऐसा वातावरण कहीं नही माता सीता ने हिरण के चमड़े की मांग नही की थी, और न ही भगवान राम उसे मारने गए। बात सिर्फ इतनी सी थी कि सीताजी को वो सुनहरी हिरण बहुत मनमोहक लगा इसलिए भगवान श्रीराम से वो हिरण पकड़कर लाने के लिए बोला। सोचने वाली बात है यदि उन्होंने हिरन को मार कर खाना ही होता, अथवा उसका चमड़ा ही चाहिए होता तो सीधे बाण ही न चला देते? उसके पीछे दौड़ते किसलिए ?

कथा में कुछ जानने योग्य तथ्य :कुछ भोले श्रद्धालु श्री ब्रह्मा, विष्णु, महेश को परमात्मा और रामचंद्र जी को पूर्ण शक्ति बताते हैं तथा कबीर साहिब जी को एक साधारण कवि संत मानते हैं। श्री राम कृष्ण विष्णु जी के अवतार है सिर्फ तीन लोकों के प्रभु है। और पूर्ण प्रभु कबीर साहिब (वेदोक्त कविर्देव) है जो अनंत कोटि ब्रह्मांडों के मालिक तथा सर्व रचनहार परमेश्वर है। सभी देवी-देव भगवान आदरणीय हैं लेकिन पूजनीय केवल पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर कबीर साहेब है जो सर्वोत्पादक, सर्वव्यापक, पापनाशक तथा सर्वशक्तिमान कुल मालिक है। श्री रामचंद्र जी पूर्ण शक्ति नहीं थे। यदि वे पूर्ण शक्ति होते तो समुद्र के सामने हाथ जोड़ने की क्या आवश्यकता थी? उठाकर सारी सेना को दूसरी तरफ रख देते। सेना की भी जरूरत नहीं थी। स्वयं जाकर रावण का गला दबा देते या वहीं बैठे-बैठे उसको खत्म कर सकते थे या उसकी बुद्धि को भी बदल सकते थे। परंतु ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए। अब कुछ लोग कहते है कि रामचंद्र जी तो लीला कर रहे थे। यह लीला क्या हुई? जिसकी पत्नी ही उठ गई हो और उसको यह भी नहीं पता चला कि वह कहां है? आपकी यह बात मान ले कि 33 करोड़ देवी-देवताओं की बन्द छुड़वानी थी इसलिए सीता हरण का बहाना बना लिया था। परंतु यहां पर लीला की क्या आवश्यकता रह जाती है? जब सीता को उठा लिया था और बहाना बन गया था। पत्नी उठा ली और उन्हें पता भी नहीं चला। सीता माता की खोज कैसे होती है? जैसे किसी की गाय खो जाती है। कोई किसी तरह ढूंढने जाता है, कोई किसी तरफ जाता है। एक को मिल जाए तो पता चलता है कि वहां पर बंधी है। ऐसे हनुमान जी ने सीता की खोज की। फिर कितनी समस्या आई? 12 वर्ष तक युद्ध हुआ। श्रीराम से रावण भी नहीं मरा। उसके बाद सारी सेना समेत नागपाश के अंदर भगवान भी आ जाते हैं। उस समय गरुड़ से प्रार्थना की, तब गरुड़ ने आकर नाग खाए और भगवान तथा सेना जिसमें अंगद, लक्ष्मण, हनुमान आदि भी थे फिर बंधन मुक्त हुए। लक्ष्मण को तीर लग गया, वह भी भगवान राम से जीवित नहीं हुवे। उसके लिए संजीवनी बूटी की आवश्यकता पड़ी जिसे हनुमान जी लेकर आए।मश्रीराम से 12 वर्ष में भी रावण नहीं मरा। विभीषण ने राम को बताया कि इसकी नाभि में अमृत है और वहां पर तीर लगे तो यह मर सकता है। फिर भी श्रीराम से रावण नहीं मर रहा था क्योंकि बराबर का योद्धा था। श्रीराम से एक भी तीर नहीं लगने दिया। रामजी ने पूरी कोशिश कर ली थी। (जब यह हार जाते हैं तो परमपिता को याद करते है।) श्री रामचंद्र जी ने हताश होकर पूर्ण परमेश्वर को याद किया। उसी समय परमात्मा गुप्त रूप से आकर राम का तीर साधा और रावण के प्राण लिए। क्योंकि परमात्मा आधीन तथा निर्दोष की मदद करता है। इस प्रकार रावण का वध हुआ। दूसरी तरफ पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर कबीर साहिब जी 600 साल पहले काशी में सशरीर शिशु रूप में कमल के फूल पर प्रकट होकर 120 साल रहकर लीला करके गये। ऐसे-ऐसे अद्भुत चमत्कार किए जो सिर्फ पूर्ण परमात्मा ही कर सकता है जैसे मृतक को जीवित करना, आयु बढ़ाना, असाध्य रोग मिटाना, दुख दूर करना, सर्व सुख देना, भाग्य से अधिक लाभ देना इत्यादि चमत्कार कबीर साहिब जी ने हजारों लोगों के सामने किया। और अन्तिम समय हजारों लोगों के सामने शरीर सतलोक गए थे।

कबीर ज्ञान सूरज जैसा है और अन्य ज्ञान चांद तारों जैसा‌ समझो। जब सूरज उदय होता है तो चांद-तारे छुप जाते हैं। ऐसे ही अब कबीर ज्ञान यथार्थ रूप में प्रकट हो चुका है। अन्य शास्त्र विरुद्ध ज्ञान अब लुप्त हो जाएगा।

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