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(भाग:240) जब एक अप्सरा ने की थी संजीवनी बूटी लाने जा रहे राम भक्त हनुमान जी महाराज को सहयोग 

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भाग:240) जब एक अप्सरा ने की थी संजीवनी बूटी लाने जा रहे राम भक्त हनुमान जी महाराज को सहयोग

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री:सह-संपादक रिपोर्ट

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मेघनाद की शक्ति के प्रहार से जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे। तब हनुमान जी उनके लिए संजीवनी बूटी लेने गए। रास्ते में एक अप्सरा ने उनकी मदद की थी।

मेघनाद की शक्ति के प्रहार से जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे। तब हनुमान जी उनके लिए संकटमोचन बनें और लंका से सुषेण वैद्य को लेकर आए। उन्होंने बताया कि इस शक्ति बाण का इलाज हिमालय के द्रोणाचल पर्वत के शिखर पर पाई जाने वाली संजीवनी बूटी है। उसे सूर्योदय से पूर्व ही लाना होगा। तभी लक्ष्मण जी के प्राण बच सकते हैं। राम भक्त हनुमान जी संजीवनी बूटी को लेने के लिए निकल पड़े। जब रावण को इस बात की सूचना मिली तो उसने हनुमान जी को रोकने के लिए षड़यंत्र रचा। उसने कालनेमि को इस कार्य को सौंपा, ताकि हनुमान जी समय से उस संजीवनी बूटी को लेकर न आ पाएं।

 

रावण ने कालनेमि से कहा कि हनुमान को रोकने के लिए माया रचो, जिससे उनकी यात्रा में विघ्न उत्पन्न हो जाए। इस पर कालनेमि ने कहा कि रामदूत हनुमान को माया से मोहित कर पाने में कोई भी समर्थ नहीं है। यदि वह ऐसा करता है तो निश्चित ही उनके हाथों मारा जाएगा। ​इस पर रावण ने कहा कि यदि तुम उनकी बात नहीं मानते हो, तो फिर उसके ही हाथों मरना होगा। इस कालनेमि ने सोचा कि रावण के हाथों मरने से अच्छा है कि वह हनुमान के हाथों ही क्यों न मरे। उसने अपनी माया से हनुमान जी के रास्ते में एक सुंदर कुटिया का निर्माण किया और एक ऋषि का वेश धारण कर उसमें बैठ गया।

 

इस बीच आकाश मार्ग से जा रहे हनुमान जी को प्यास लगी, तो वे सुंदर कुटिया देखकर नीचे आ गए। उन्होंने कालनेमि बने ऋषि को प्रणाम किया और पीने के लिए जल मांगा। तब कालनेमि ने कहा कि राम और रावण में युद्ध हो रहा है। राम जी ही विजयी होंगे। मैं यहां से सब देख रहा हूं। उसने अपने कमंडल की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसमें शीतल जल है, आप इसे ग्रहण करो। तब हनुमान जी ने कहा कि इतने जल से उनकी प्यास नहीं बुझेगी। कोई जलाशय बताएं।

 

तब कालनेमि ने हनुमान जी को एक जलाशय दिखाया और कहा कि वहां जल पीकर स्नान कर लें। फिर वह दीक्षा देगा। हनुमान जी जलाशय में पहुंच गए और स्नान करने लगे, तभी एक मकरी ने उनका पैर पकड़ लिया। उन्होंने उसका मुख फाड़ दिया, जिससे वह मर गई। तभी वहां एक दिव्य अप्सरा प्रकट हुई। उसने हनुमान जी से कहा कि श्राप के कारण उसे मकरी बनना पड़ा था। आपके दर्शन से मैं पवित्र हो गई और मुनि के श्राप से मुक्त भी हो गई। अप्सरा ने बताया कि आश्रम में बैठा ऋषि एक राक्षस है, जिसका नाम कालनेमि है।

 

यह बात जानकर हनुमान जी तुरंत कालनेमि के पास गए और बोले कि मुनिवर! सबसे पहले आप गुरुदक्षिणा ले लीजिए। मंत्र बाद में दीजिएगा। इतना कहकर हनुमान जी ने उस कालनेमि को अपनी पूंछ में लपेट लिया और पटक कर मार डाला। मरते हुए कालनेमि का राक्षस स्वरुप सामने आ गया। उसने मरते हुए राम का नाम लिया। राम नाम कहते हुए हनुमान जी महाराज ने उडान भरी

उत्तराखंड में है वह जगह है जहां से हनुमान जी लक्ष्मण के लिए ले गए थे संजीवनी बूटी का पर्वत ही उठा लाये

हनुमान जी का जन्म त्रेता युग में केसरी और अंजनी के यहां हुआ था। माता सीता ने उन्हें अजर-अमर होने का वरदान दिया था। इस वरदान की वजह से हनुमान ही हमेशा जीवित रहेंगे और उन्हें कभी भी बुढ़ापा नहीं आएगा। हनुमान जी से जुड़ी कई ऐसी जगहें हैं, जिनका संबंध रामायण काल से है।

 

जब श्रीराम और रावण का युद्ध चल रहा था। उस समय मेघनाद ने एक दिव्यास्त्र से लक्ष्मण पर प्रहार किया था, उसकी वजह से लक्ष्मण मुर्छित यानी बेहोश हो गए थे। तब लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय क्षेत्र में पहुंचे थे।

जिस जगह हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने पहुंचे थे, वह जगह उत्तराखंड में है। उत्तराखंड के चामोली जिले में जोशीमठ शहर से लगभग 50 किमी दूर द्रोणगिरी पर्वत है। ये नीति गांव में है। गांव में मान्यता प्रचलित है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी को पहचानते नहीं थे। इस कारण वे द्रोणगिरी पर्वत का एक बड़ा हिस्सा उखाड़कर ले गए थे। नीति गांव के लोग इस पर्वत की पूजा करते हैं।

बद्रीनाथ से 45 किमी दूर है द्रोणगिरी पर्वत

 

द्रोणगिरी पर्वत बद्रीनाथ धाम से लगभग 45 किमी दूर स्थित है। आज भी द्रोणगिरी पर्वत का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ दिखाई देता है। इस संबंध में माना जाता है कि पर्वत के ऊपर का कटा हिस्सा हनुमान जी उखाड़कर लंका ले गए थे।

 

ट्रैकिंग के लिए युवाओं की पसंद है द्रोणगिरी पर्वती

 

द्रोणगिरी पर्वत की ऊंचाई करीब 7 हजार मीटर है। ठंड के दिनों में कभी-कभी यहां बर्फबारी भी होती है। इस वजह से शीतकाल में गांव के लोग ये जगह छोड़ देते हैं और दूसरी जगह रहने चले जाते हैं। ये पर्वत काफी ऊंचाई पर है, इस कारण यहां ट्रैकिंग पसंद करने वाले काफी लोग आते हैं।

गर्मी के दिनों में यहां का मौसम बहुत ही सुहावना हो जाता है। गर्मी के दिनों में यहां काफी पर्यटक पहुंचते हैं। चमोली जिले में जोशीमठ से लगभग 50 किलोमीटर आगे जुम्मा नाम की एक जगह है। यहीं से द्रोणगिरी पर्वत के लिए पैदल मार्ग शुरू होता है।

इस क्षेत्र में धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी तरफ पर्वतों की श्रृंखला दिखाई देती है, इन पर्वतों को पार करने के बाद द्रोणगिरी पर्वत पहुंच सकते हैं। इस पहाड़ी क्षेत्र में करीब 10 किमी का रास्ता पैदल ही पार करना होता है

आज हम आप को संजीवनी बूटी के बारे में बताएंगे जैसे संजीवनी बूटी पर्वत का नाम क्या है?, संजीवनी बूटी की पहचान की पहचान क्या है?, संजीवनी बूटी के फायदे के फायदे क्या है?, संजीवनी बूटी कहां मिलती है? संजीवनी बूटी से लक्ष्मण जी को जीवनदान कैसे मिला था?

द्रोणागिरी गाँव के लोग आज भी हनुमान जी से क्यों

लॉकडाउन के चलते शुरू हुई रामानंद सागर की रामायण धारावाहिक में अब लक्ष्मण जी के मूर्छित होने और मेघनाथ के वध का संदर्भ प्रारंभ हो गया है । इसे देखने के लिए दर्शकों को उत्साह काफी बढ़ा हुआ है।

 

लक्ष्मण के मूर्छित होने पर उनके लिए लाई गई संजीवनी बूटी को एक जीवनदायिनी औषधि का रूप देने वाले सुषेण वैद्य ने अपनी छोटी सी भूमिका से ही दर्शकों का दिल जीत लिया।

 

लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी का संदर्भ

रामायण में एक वृतांत है, मेघनाद और लक्ष्मण के बीच चलने वाले युद्ध में दोनों योद्धा अपना पराक्रम दिखा रहे थे। एक समय मेघनाद के मायावी शक्ति बाण से लक्ष्मण जी मूर्छित हो जाते है । उस समय विभीषण के सुझाव पर हनुमान सुषेण वैद्य को लंका से लेकर आते हैं । एक बार इलाज करने से माना करने के उपरांत वैद्य जी तैयार हो जाते हैं ।

 

यह भी पढ़ें: हनुमान जी को कैसे मिले थे असली “आदि राम”

 

सुषेण वैद्य हनुमान को द्रोणगिरी पर्वत पर जाकर 4 जड़ी बूटियां लाने की आज्ञा देते हैं – मृत संजीवनी (मरे हुए को जिवाने वाली), विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। हनुमान द्रोणगिरी पर्वत पर पहुँच जाते हैं परंतु वनस्पतियों की पहचान न हो पाने के कारण पूरा पर्वत उठा कर ले आते है। सुषेण वैद्य इन जड़ी बूटियों से औषधि निर्मित करते हैं और लक्ष्मण को मृत्यु से छुड़ाकर जीवन दान देते हैं ।

 

शिव ने शुक्राचार्य को बताया था संजीवनी का रहस्य

शिव की तपस्या करके शुक्राचार्य ने अमर होने का वरदान मांगा लेकिन शिव ने कहा यह संभव नहीं लेकिन मैं तुम्हें संजीवनी विद्या के बारे में बता सकता हूं। शुक्राचार्य ने उस बूटी की विद्या को सीख लिया। जिसके दम पर वे युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे।

 

वैज्ञानिकों में भी यह चमत्कारिक पौधा (संजीवनी) है अनुसंधान का विषय

वनस्पति वैज्ञानिकों की दृष्टि में ये संवहनी पौधे होते हैं जो शुष्क सतह और पत्थरों पर भी उग सकते हैं। यदि इन्हें नमी न मिलें तो मुरझा जाते हैं लेकिन नमी के मिलने पर पुनः हरे भरे हो जाते हैं।

कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के वनस्पति वैज्ञानिकों ने संजीवनी बूटी पर शोध द्वारा 2 पौधों को चिन्हित किया है।

लखनऊ में स्थित वनस्पति अनुसंधान केंद्र में संजीवनी बूटी के जीन पर शोध हो रहा है । उनके अनुसार यह वनस्पति पौधों के टेरीडोफिया समूह की है।

एक अन्य शोध के अनुसार संजीवनी जड़ी-बूटी का वैज्ञानिक नाम सेलाजिनेला ब्राह्पटेसिर्स है।

यह वनस्पति चमकदार और विचित्र गंध से युक्त होती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार यह बूटी भारत और नेपाल में पायी जाती है।

संजीवनी बूटी आज स्वास्थ्य जगत में चर्चा का विषय है, विशेषकर आयुर्वेद अनुसंधान में। इसके पौधे की पहचान के बारे में वनस्पति वैज्ञानिकों में मतांतर है।

भारत के पहाड़ी क्षेत्रों और आदिवासी क्षेत्र में पाई जाने वाली सेलाजिनेला ब्राह्पटेसिर्स नामक वनस्पति में चमक होती है। यह बूटी रात्रि काल में चमकती है। मुरझा जाने के उपरांत भी जल से सींचने पर यह हरी हो जाती है। इन्हीं गुणों के कारण वैज्ञानिक इस बूटी की प्रमाणिकता की जांच में जुटे हैं ।

क्या हैं संजीवनी बूटी में औषधीय गुण-संजीवनी बूटी के फायदे ?

संजीवनी बूटी को अमर बूटी भी कहते हैं क्योंकि इसमें मानव शरीर की मृत कोशिकाओं को जीवित करने की क्षमता होती है

हृदयाघात होने पर संजीवनी बूटी से निर्मित औषधि अच्छा असर करती है।

पीलिया रोग में असरकारी है ।

मूत्र संबंधी रोगों में उपयोगी है ।

महिलाओं की समस्याओं में भी उपयोगी है ।

द्रोणागिरी गाँव के लोग आज भी हनुमान जी से क्यों नाराज हैं ?

द्रोणागिरी नाम का एक गाँव उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में स्थित है । एक प्रचलित कथा के अनुसार यहाँ के लोग आज भी हनुमान जी से नाराज हैं। यहाँ के लोग न हनुमान जी की पूजा करते हैं और न ही उनके सम्मान में भगवा ध्वज फहराते हैं । दरअसल द्रोणागिरी गाँव के लोग मानते हैं कि जब हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत पर आए उस समय पर्वत राज ध्यान समाधि में थे।

हनुमान जी बिना किसी को बताए, बिना पर्वत राज की पूजा अर्चना किये और आज्ञा लिए बिना द्रोणागिरी पर्वत को उठा कर ले गए । ऐसा भी कहा जाता है कि हनुमान जी के पूछने पर एक वृद्ध महिला ने द्रोणागिरी पर्वत की ओर इशारा करके रास्ता बताया था। इसी कारण आज भी इस पर्वत की पूजा में महिलाओं को साथ नहीं लिया जाता है. जन-जन में संजीवनी बूटी के प्रति बहुत श्रद्धा और उत्सुकता है कि त्रेता युग में सुषेण वैद्य को जिस बूटी का इतना ज्ञान था व आज कैसे विलुप्त हो गई

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