(भाग:341) चंचल मन मतंग माने नहीं? जब लग धोखा ना खाए
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
चंचल मन मतंग माने नहीं जब लग धोखा न खाए। जैसे बिधवा स्त्री गर्भ रहे पश्ताय।।
इसलिए चंचल मन को दुनियादारी से खींचकर उसे एक प्रकार से स्थिर करके रखना होगा। बार-बार ऐसा करना होगा। इच्छाशक्ति द्वारा मन को संयम कर, उसे साधकर, भगवान की महिमा पर विचार करो। मन को काबू में करने का सबसे सीधा उपाय है चुप आसन लगाकर बैठना।
चंचल मन को काबू करने का सरल उपाय है ‘रूप ध्यान’, जानिए इसके महत्वपूर्ण फ़ायदे
रुप ध्यान की पद्धति ईश्वर के साकार स्वरुप को हृदय में बसाने और उस पर ध्यान केन्द्रित करने से संबंधित है।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
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सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।। ( गीता 2.62 )
हम जिसका बार-बार चिंतन करते हैं, उसमें हमारी आसक्ति हो जाती है। उसके लिए हमारा मन पिघल जाता है। जैसे पिघले लोहे को जिस साँचे में डालते हैं, वह लोहा ठीक उसी साँचे में ढल जाता है, ठीक उसी प्रकार हमारे मन का लगाव जिस personality से होता है उसी का गुण हमारे मन में आ जाता है। आसक्ति के पश्चात् उसकी कामना पुनः पूर्ति पर लोभ और कामना की अपूर्ति पर क्रोध उत्पन्न होता है। इस प्रकार हमलोग दुखी रहते हैं।
यदि गौर करें तो हमारे जीवन का अधिकांश दुख मानसिक ही होता है और हम इसी दुख से परेशान रहा करते हैं। इसका जड़ हमारा चंचल मन है।
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ये तो आप सभी जानते हैं कि, चंचल मन को टिकाने का एकमात्र उपाय ध्यान है। इस समय संसार में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग तरह-तरह से मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान की विधियाँ बताते हैं। कोई कहता है कि काग़ज के छोटे टुकड़े को हथेली पर रखकर उसे पाँच मिनट देखो तो मन एकाग्र होगा। कोई कहता है मोमबत्ती को जलाकर उसे देखते रहो, कोई आँखें बंद करके ज्योति , स्थूल शरीर आदि को देखता है। इत्यादि अनेकों तरह से लोग ध्यान लगाने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार के ध्यान से क्षणिक आराम तो मिल जाता है, लेकिन इस चंचल मन का क्या? यह तो पुनः अपने पुराने अभ्यास के कारण सांसारिक क्षेत्रों में मग्न हो जाता है और हम फिर अशांत हो जाते हैं।
इसका उपाय ’’जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज” ने ’रूपध्यान” के विज्ञान से जनसाधारण को परिचित कराया।
रुपध्यान ध्यान की ऐसी विधि है जिसमें हम अपने चंचल मन को श्रीराधा कृष्ण के सुंदर रुप में लगाते हैं एवं इसी का अभ्यास करते हैं। सर्वांतर्यामी ईश्वर की कृपा से उसका ज्ञान व आनंद प्राप्त होने लगता है, जिससे मन पुनः गलत जगहों में नहीं लगता एवं अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है।
रूपध्यान के फ़ायदे
एकाग्रता किसी भी कार्य की सफलता के लिए प्रमुख आवश्यकता होती है। अतः जब रूपध्यान साधना से मन का लगाव श्रीभगवान में हो जाता है तो अनेकों कार्य सरल हो जाते हैं। जैसे –
1. अशांति से शांति की ओर दिन प्रतिदिन बढ़ते जाते हैं।
2. स्वास्थ्य लाभ: जब हम एकाग्रचित रहते है तो इसका लाभ शारीरिक स्वास्थ्य के रुप में हमें स्वतः प्राप्त हो जाता है।
3. हमेशा उर्जावान रहते हैं क्योंकि मानसिक दोष- निंद्रा, तंद्रा, आलस्य, दीर्घसूत्रता आदि रूपध्यान से कम होते जाते हैं।
4. रूपध्यान से सभी आयु वर्गों के लोगों को लाभ ही प्राप्त होता है जैसे छात्र जीवन में शिक्षा के प्रति रुचि जागृत होती है और study से divert नहीं होते हैं।
5. रूपध्यान से भगवद्कृपा होती है, फलतः भगवदीय ज्ञान की प्राप्ति होती है।
6. दैवीय गुणों की वृद्धि: रूपध्यान साधना से दैवीय गुणों जैसे- दीनता, सहनशीलता, सम्मान देने की भावना आदि गुणों की वृद्धि होती है।
7. मन का शुद्धिकरण: रूपध्यान मन को शुद्ध करने का सर्वोत्कृष्ट साधन है। मन की शुद्धि के परिणामस्वरुप मानसिक तनाव समाप्त हो जाते हैं और हम स्वयं को ईश्वर से समीपता का अनुभव करते हैं।
ब्रजगोपिका सेवा मिशन द्वारा प्रतिवर्ष आयेजित वार्षिक साधना शिविर रूप ध्यान साधना को जन जन में प्रतिष्ठित करने का कार्य जगत्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के दो प्रमुख प्रचारकों – ’’सुश्री रासेश्वरी देवीजी एवं स्वामी युगल शरण’’ द्वारा किया जाता है। इसमें भाग लेनेवाले प्रतिभागी रुपध्यान के विज्ञान को सहजतापूर्वक हृदयंगम करते हैं एवं कर्मयोग की साधना द्वारा अपने सांसारिक कार्योें को करते हुए ईश्वर की ओर उन्मुख होते हैं। इस प्रकार वार्षिक साधना शिविर द्वारा रूपध्यान के उपरोक्त वर्णित सारे लाभ प्राप्त होते हैं।