(भाग:351)ऋषि गौतम पर गौ हत्या का दोष मढा गया था?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
प्रशांत प्रभु ने कहा कि बेदाग, , निष्कलंक, निष्पाप और निरपराध गौतम ऋषि ने शिव गायत्री सिद्ध करके संसार को गौतमी नदी प्रदान की, उनके यश और कीर्ति को देख करके कुछ कपटी और मायावी मुनियों ने उनके यज्ञ कुंड पर षड़यंत्र करके एक अत्याधिक दुर्बल गाय बांध दी। मंत्रोच्चारण के समय ही वह गाय मर गई, जिसका दोष गौतम ऋषि पर लगा दिया गया।
महर्षि गौतम सप्तर्षियों में से एक हैं। वे वैदिक काल के एक महर्षि एवं मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पत्नी अहिल्या थीं जो प्रातःकाल स्मरणीय पंच कन्याओं गिनी जाती हैं। अहिल्या ब्रह्मा की मानस पुत्री थी जो विश्व मे सुंदरता में अद्वितीय थी। हनुमान की माता अंजनी गौतम ऋषी और अहिल्या की पुत्री थी। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने देवताओं द्वारा तिरस्कृत होने के बाद अपनी दीक्षा गौतम ऋषि से पूर्ण की थी। ऋषिओं के इर्श्या वश गोहत्या का झूठा आरोप लगाने के बाद बारह ज्योतिर्लिंगों मैं महत्वपूर्ण त्रयम्बकेश्वर महादेव नाशिक भी गौतम ऋषि की कठोर तपस्या का फल है जहाँ गंगा माता गौतमी अथवा गोदावरी नाम से प्रकट हुईं।[1]
उत्तरप्रदेश की गोमती नदी भी ऋषि गौतम के ही नाम से विख्यात है।
इसके अतिरिक्त राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में स्तिथ गौतमेश्वर महादेव तीर्थ में स्तिथ मंदाकिनी गंगा कुंड के बारे में भी मान्यता है कि इसी कुंड में स्नान करने के पश्चात महर्षि गौतम को गौ हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी इसके पश्चात महर्षि गौतम ने यहाँ महादेव की आराधना करके एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट किया था जो आज भी उन्ही के नाम पर गौतमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है ये जानकारी गौतमेश्वर महादेव मुख्य मंदिर पुजारी अरुण शर्मा हैं।
महर्षि गौतम ऋषि समाधिस्थ होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा, ‘‘भगवान मैं यही चाहता हूं कि आप मुझे गौ-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।’’
भगवान शिव ने कहा, ‘‘गौतम! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गौ-हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं।’’
इस पर महर्षि गौतम ने कहा, ‘‘प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझ कर उन पर आप क्रोध न करें।’’
बहुत से ऋषियों, मुनियों और देवगणों ने वहां एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा वहां निवास करने की प्रार्थना की। वह उनकी बात मानकर वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतम जी द्वारा लाई गई गंगा जी भी वहां पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं।