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(भाग:333)कंधार नरेश की पुत्री गांधारी के श्राप के कारण आज भी बेहाल है अफगाणिस्तान!

(भाग:333)कंधार नरेश की पुत्री गांधारी का श्राप के कारण आज भी बेहाल है आफगान!

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

हस्तिनापुर। महाभारत काल में अफगानिस्तान को महाभारत काल में गांधार के नाम से जाना जाता था. कथाओं के अनुसार, महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक राजा धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी जो कि गंधार नरेश की राजकुमारी थी. अपने पुत्रों की युद्ध में मृत्यु के बाद उसने श्रीकृष्ण और द्रौपदी समेत गांधारी ने अन्य लोगों को भी श्राप दिए थे जिसका प्रभाव आज भी अफगानिस्तान पर उसका प्रभाव आज भी दिखता है.

अफगानिस्तान को दिया था गांधारी ने श्राप, जिसकी वजह से है आज भी है।

महाभारत काल में गांधार अफगानिस्तान में ही स्थित था, इसे साबित करने वाले तथ्यों में से एक यह है कि देश के शहरों में से एक को अभी भी कंधार के नाम से जाना जाता है. यह शब्द गांधार से उत्पन्न हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘सुगंधों की भूमि’. इस शब्द का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत और उत्तर-रामायण जैसे विभिन्न पुराने ग्रंथों में मिलता है. सहस्त्रनाम के अनुसार, गांधार भगवान शिव के नामों में से एक है. यह भी माना जाता है कि गांधार के पहले निवासी शिव के भक्त थे.

महाभारत और कंधार के बीच संबंध

गांधार साम्राज्य में आज का पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम पंजाब शामिल हैं. महाभारत ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखित एक संस्कृत महाकाव्य है. इसमें कौरव और पांडव राजकुमारों के बीच युद्ध की कहानी शामिल है. इस ग्रंथ के अनुसार लगभग 5500 वर्ष पूर्व गांधार पर राजा सुबाला का शासन था. उनकी गांधारी और शकुनि नाम की एक बेटी और एक बेटा था. उनकी बेटी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ था, जो हस्तिनापुर साम्राज्य के राजकुमार थे और बाद में राजा बने.

गांधार बना कंधार

महाभारत की कथा के अनुसार गांधारी के 100 पुत्र जिन्हें कौरव कहा जाता था, जिन्हें पांडव भाइयों द्वारा युद्ध के बाद दुखद नुकसान का सामना करना पड़ा. युद्ध के बाद जो लोग बच गए वे गांधार साम्राज्य में बस गए और धीरे-धीरे आज के सऊदी अरब और इराक में चले गए. गांधार क्षेत्र से शिव उपासकों के धीरे-धीरे खत्म होने और बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ, गांधार का नाम कंधार हो गया. इतना ही नहीं, चंद्रगुप्त, अशोक, तुर्क विजेता तैमूर और मुगल सम्राट बाबर जैसे मौर्य शासकों ने भी इस क्षेत्र पर शासन किया. संभवत इन्हीं शासकों में से किसी एक के शासन काल में गांधार का नाम बदल गया.

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अफगानिस्तान पर गांधारी के श्राप का प्रभाव

कथाओं के अनुसार, कौरवों की माता गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया था जिस कारण पूरी द्वारिका नगरी समुद्र में डूब गई. इसी के साथ गांधारी ने अपने भाई शकुनि को भी श्राप दिया क्योंकि गांधारी अपने पुत्रों की मृत्यु के लिए अपने भाई को भी उतना ही दोषी मानती थी जितना श्रीकृष्ण को इसलिए गांधारी ने श्राप दिया कि मेरे 100 पुत्रों को मारने वाले गांधार नरेश तुम्हारेे राज्य में कभी शांति नहीं रहेगी यहां हमेशा ही क्लेश का वातावरण बना रहेगा.

माना जाता है कि गांधारी के इस श्राप के कारण ही अफगानिस्तान में कभी भी शांति का माहौल नहीं रहता है. तालिबान का कब्जा होने के बाद और उससे पहले भी कभी शांति नहीं रहती थी. कहा जाता है कि यह देश कभी किसी भी काल में बिना तनाव और झगड़ों के नहीं रह सका है. इन सब वजहों के पीछे गांधारी के श्राप का प्रभाव ही माना जाता है।

जब गांधारी के श्राप ने उजाड़ दिया था पूरा यदुवंश, ऐसे हुई थी भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु

भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु से 36 साल पहले ही दुर्योधन की मां गांधारी ने मौत का श्राप दे दिया था. श्राप के अनुसार ही ठीक 36 साल बाद एक शिकारी का बाण भगवान के पैरों में लग गया. इसके बाद शिकारी ने तुरंत श्रीकृष्ण के पास पहुंचकर क्षमा मांगी. तब श्रीकृष्ण ने बताया कि कैसे उनकी मृत्यु पहले से ही निश्चित थी.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा. भारत के अलग-अलग हिस्सों में जन्माष्टमी का त्योहार भव्य तरीके से मनाया जाता है. भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की लीलाओं से शायद ही कोई अंजान होगा. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म तो जेल में हुआ लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी मृत्यु कैसे हुई?

दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण को एक श्राप मिला था. भगवान श्रीकृष्ण को यह श्राप दुर्योधन की मां गांधारी ने दिया था. गांधारी ने दुर्योधन की मौत पर विलाप करते हुए श्रीकृष्ण से कहा था कि वह श्राप देती है कि 36 साल बाद आपकी मृत्यु हो जाएगी. श्राप के ठीक अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के पैर के तलवे में एक शिकारी ने बाण मार दिया. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बनाकर संसार त्याग दिया

गांधारी ने कब दिया था श्रीकृष्ण को मृत्यु का श्राप

बात उस समय की है, जब कुरुक्षेत्र का युद्ध शांत हो चुका था. युद्ध के बाद श्रीकृष्ण पांडवों के साथ गांधारी और धृतराष्ट्र के पास उनके बेटे दुर्योधन की मौत पर शोक जाहिर करने और उन दोनों से क्षमा मांगने पहुंचे थे.

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