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सोनिया की राह में रोड़ा, उद्धव का पाला बदल कर शरद पवार ने सियासत का रुख मोडा

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नई दिल्ली। एनसीपी नेता शरद पवार ने जैसे ही पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो एनसीपी में भी इस्तीफों की होड़ लग गई. पवार सियासत के उन चुनिंदा नेताओं में एक हैं जिनका लोहा विपक्षी दल के नेता भी मानते हैं. राजनीति में कई ऐसे मौके आए हैं जब शरद पवार ने अपनी पावर पॉलिटिक्स के जरिए सियासत का रूख मोड़ दिया.

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विपक्ष के नेता भी हैं शरद पवार के प्रशसंक

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महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति में भी शरद पवार का कद इतना मजबूत है कि वह कई मौकों पर विपरीत ध्रुव की राजनीति को आपस में मिलाने में सफल रहे हैं. कुछ दिन पहले जैसे ही उन्होंने एनसीपी प्रमुख के पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया तो उनके समर्थक मायूस होकर रोने तक लगे. पवार का कद कितना बड़ा है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एनसीपी ही नहीं, विपक्ष के नेता भी उनसे इस्तीफे पर फिर से विचार करने को कह रहे हैं. राजनीति में कई ऐसे मोड़ आए हैं जब पवार अपनी ‘पावर पॉलिटिक्स’ के जरिए ना केवल सियासी धारा को बदलने में सफल रहे हैं, बल्कि उसे अंजाम तक भी पहुंचाया है. तो आइए आपको उन पांच मौकों के बारे में बताते हैं, जब पवार ने साबित किया कि वही असल में राजनीति के चाणक्य हैं –

इंदिरा गांधी से बगावत

कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू करने वाले पवार ने आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक से बगावत करते हुए कांग्रेस छोड़ दी. 1978 में उन्होंने जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई और खुद सीएम बने. 1980 में जैसे ही इंदिरा सरकार ने वापसी की तो पवार सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. 1983 में उन्होने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट के नाम से नए दल का गठन किया और इसके सिंबल पर बारामती से सांसद भी बने. 1985 में पवार की पार्टी ने राज्य विधानसभा में 54 सीटें जीतीं और पवार लोकसभा से इस्तीफा देकर राज्य की राजनीति में आ गए और नेता प्रतिपक्ष बने.

सोनिया गांधी से पंगा और NCP का गठन

राजीव गांधी की सरकार के दौरान 1987 में पवार फिर से कांग्रेस में वापस आ गए. इसके बाद वह 1988 में फिर से महाराष्ट्र के सीएम बने और कुछ समय बाद केंद्र में मंत्री बन गए.1990 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस को 288 सीटों में 141 सीटें मिली तो पवार ने 12 निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में कर लिया और फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए.1999 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र एक वोट से गिर गई और इसके साथ ही13वें लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई. इसी बीच सीताराम केसरी की जगह सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित करने की बातें होनी लगीं.सब वजहों से कांग्रेस में बगावत हो रही है
इस बगावत के तीन अहम किरदार- शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा. तीनों ने सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. तीनों ने सोनिया गांधी के ‘विदेशी मूल’ होने पर सवाल उठाया. उनका कहना था कि एक विदेशी मूल के व्यक्ति को भारत का प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता है? सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी की नींव रखी. शरद पवार ने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ मिलकर 10 जून 1999 को एनसीपी का गठन किया. उसी साल अक्टूबर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए. एनसीपी का ये पहला विधानसभा चुनाव था. पार्टी ने राज्य की 288 सीटों में से 223 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. कांग्रेस जहां 75 सीटें जीतने में सफल रही तो एनसीपी के हिस्से में 58 सीटें आईं. बाद में दोनों दलों ने मिलकर सरकार बनाई.

उद्धव ठाकरे के साथ सरकार

कोई सोच भी नहीं सकता था कि शिवसेना जैसी कट्टर हिंदूवादी पार्टी कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना सकती है और ऐसा 2019 में हुआ. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूट गया. इसके बाद बीजेपी ने रातों-रात अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली. लेकिन यहां पवार ने एनसीपी विधायकों को एकजुट करते हुए एक भी विधायक को अजित पवार के पाले में नहीं जाने दिया और परिणाम ये हुआ कि सरकार महज कुछ घंटों में गिर गई. इसके बाद शरद पवार ने न केवल तत्कालीन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को मनाया बल्कि दो विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों को एक पाले में लाकर महाविकास अघाड़ी का गठन कर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बना दी. पवार को यहां तीन पार्टियों- कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना को मिलकर बने महाविकास अघाड़ी का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद जब- जब अघाड़ी सरकार पर संकट आया, तो पवार एक पिलर बनकर सरकार के बचाव में खड़े रहे

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