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(भाग:304) मां शक्ति स्वरूपा दुर्गा का एक रूप प्रेमभक्ति का भी है प्रतीक माना जाता है

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(भाग:304) मां शक्ति स्वरूपा दुर्गा का एक रूप प्रेमभक्ति का भी है प्रतीक माना जाता है

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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देवी दुर्गा को शक्ति स्वरूपा माना जाता है जो किसी हद तक विध्वंस का भी प्रतीक हैं परंतु क्या आप जानते हैं कि गौरी के रूप में वे प्रेम का भी प्रतीक है

शक्ति स्वरूपा दुर्गा का एक रूप प्रेम का भी है

 

हिंदू परंपरा में मुख्य रूप से तीन देवियां हैं। एक हैं लक्ष्मी, दूसरी हैं सरस्वती और तीसरी देवी दुर्गा या शक्ति हैं। लक्ष्मी धन-धान्य या संपत्ति की देवी मानी जाती हैं। सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, तो दुर्गा शक्ति की देवी मानी जाती हैं। दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है। दुर्गा का मतलब है, जिसे जीता नहीं जा सकता। इसका मूल अर्थ है शक्ति। दुर्गा विशिष्ट देवी हैं। अब यहां सवाल उठता है कि शक्ति की पूजा क्यों होनी चाहिए? कुछ लोगों का मानना है कि राज-काज चलाने या राजनीति के लिए शक्ति की जरूरत पड़ती है। इस तरह राजाओं की देवी दुर्गा हैं।

 

दुर्गा के दो रूप हैं। एक, जो भयानक हैं। उनके बाल खुले होते हैं और वह रक्त पान करती हैं। दूसरा रूप है गौरी। गौरी माता का रूप हैं। वह प्यार करती हैं। दक्षिण भारत में गौरी मंदिरों की मूर्तियां देखें, तो उनके हाथ में त्रिशूल नहीं होता है। उनके हाथ में येसुदंड, यानी ईख होती है। येसुदंड कामदेव का चिह्नï है या प्रेम का चिह्न है। प्रेम और शक्ति में क्या संबंध होता है? कुछ लोगों का मानना होता है कि दुष्टों का नाश करने के लिए दुर्गा काली का रूप धारण करती हैं, लेकिन वह दुर्गा रूप में भी दुष्टों को नष्ट करती हैं। फिर कभी काली और कभी दुर्गा का वेष क्यों धारण करती हैं? दुर्गा और काली के रूप में फर्क क्यों है?

 

सुरक्षा के रूप में शक्ति देकर करते हैं प्रेम

 

देखा जाए, तो तीनों देवियों में एक बात सामान्य है। तीन देवियां प्रतीक स्वरूप हैं, जिन्हें व्यक्ति किसी को दे या किसी से ले सकता है। हम धन धान्य और संपत्ति किसी को दे सकते हैं या ले सकते हैं। ज्ञान भी हम दे सकते हैं या ले सकते हैं। लेकिन क्या हम शक्ति ले या दे सकते हैं? देखा जाए तो हम शक्ति भी दे सकते हैं और ले सकते हैं। यदि हम किसी व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करते हैं, तो इसका मतलब है कि हम शक्ति दे रहे हैं। जब हम किसी को शक्ति देते हैं, तो एक प्रकार से गौरी बन जाते हैं। शक्ति देना मतलब प्रेम प्रकट करना होता है। हम बच्चों को शक्ति देते हैं कि वे बहादुरी से जिंदगी का मुकाबला कर सकें। नौकरियों में अधिकारी अपने मातहत को शक्ति देता है। उस शक्ति से मातहत को सुरक्षा मिलती है। उसे डर नहीं लगता। शक्ति देकर हम डर कम करते हैं। डर कम करते हैं, तो प्रेम बढ़ता है।

 

भय से मिलती है शक्ति

 

यह सच है कि कभी-कभी हम काली रूप भी धारण करते हैं, यानी हम शक्ति ले लेते हैं। शक्ति लेने पर भय जागृत होता है और असुरक्षा पैदा होती है। वे घबरा जाते हैं और निराश हो जाते हैं। इसलिए शक्ति-पूजा करने का मतलब है कि हम खुद को शक्तिशाली महसूस करें। यदि किसी व्यक्ति से यह पूछा जाए कि पैसे क्यों चाहिए, तो जवाब मिलेगा कि हमें रोटी, कपड़ा और मकान के लिए पैसे चाहिए। उनके पास बहुत पैसे होने के बावजूद उनसे पूछा जाए, तो उनका जवाब होगा कि परिवार के लिए चाहिए। सच तो यह है कि लोग पैसे के आधार पर ही अपनी शक्ति मापते हैं। वास्तव में ऐसे लोग अंदर से कमजोर होते हैं। वे शक्ति पाने के लिए पैसों का उपार्जन करते हैं। ऐसे लोग लक्ष्मी के पीछे भागते रहते हैं। उन्हें मालूम नहीं होता है कि उन्हें लक्ष्मी नहीं, शक्ति चाहिए। वैसे, यदि देखा जाए, तो कुछ लोग बहुत पढ़ाई करते हैं और जाहिर करते हैं कि वे बहुत ज्ञानी हैं, लेकिन वे अपना ज्ञान बांटना नहीं चाहते हैंं। आप उनसे पूछें कि ज्ञान क्यों नहीं बांटते, तो आपको पता चलेगा वे ज्ञान बचा कर अपनी औकात बढ़ाना चाहते हैं। इस से उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। वास्तव में वे ज्ञान नहीं शक्ति चाहते हैं। वे शक्तिमान होना चाहते हैं।

 

लक्ष्मी, सरस्वती आैर शक्ति का अंतर

 

यह भी एक सच है कि लोग लक्ष्मी, सरस्वती और शक्ति में अंतर नहीं कर पाते हैं। यदि हमारे पास लक्ष्मी नहीं है, तो हम उन्हें दे नहीं सकते। क्योंकि यदि हम किसी दूसरे व्यक्ति को दे दें, तो वे हमारे पास से चली जाती हैं। यदि हमारे पास सरस्वती नहीं हैं, तो हम किसी को दे नहीं सकते। लेकिन यदि हमारे पास सरस्वती है और हम उसे किसी को देते हैं, तो भी हमारे पास से सरस्वती नहीं जाती। वह हमारे पास ही रहती हैं, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि ज्ञान बांटने से और बढ़ता है। यदि हम शक्ति की बात करें, तो हमें कोई दे या न दे, शक्ति हमारे पास रहती है। हमारे पास प्रचुर प्रेम रहता है। हम यह प्रेम किसी को दे सकते हैं या प्रेम न देकर किसी मेें भय पैदा कर सकते हैं। सच तो यह है कि हम गौरी या काली बन सकते हैं। हमारे पास असीमित शक्ति मौजूद होती है, लेकिन इसका एहसास सभी लोगों को नहीं होता है। उल्लेखनीय है कि शक्ति का एक नाम मां भी है। वह शक्ति स्रोत है। वह हमारी ऊर्जा की स्रोत है। उसकी ऊर्जा से ही हम रचे जाते हैं, लेकिन हम उसे महसूस नहीं कर पाते। हम लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में भी शक्ति तलाशते रहते हैं

दुर्गा पार्वती का दूसरा नाम है। जनजाति के शक्ति सम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही विश्व की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है (शाक्त सम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मान्यता दी जाती है) वेदों में तो दुर्गा का कोई ज़िक्र नहीं है, मगर उपनिषद में देवी ‘उमा हैमवती’ उमा, हिमालय की बेटी का वर्णन है। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं, उत्पत्ति देवताओं की प्रार्थना पर राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। ऐसी हैं दुर्गा युद्ध की देवी। देवी दुर्गा के स्वयं अनेक रूप हैं। मुख्य रूप उनका ‘गौरी’ यानी शांतमय, सुंदर और गोरा रूप है। इनका सबसे भयानक काला रूप है, यानि काला रूप। विभिन्न विद्वानों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मंदिर और तीर्थस्थानों में पूजा की जाती है। कुछ दुर्गा मंदिरों में पशुबलि भी चढ़ाई जाती है। भगवती दुर्गा की सवारी शेर है।

 

दुर्गा जी की पूजा में दुर्गा जी की आरती और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।

 

नवरात्रि में देवी पूजन

 

हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का सर्वोत्तम समय मनाया जाता है। भारत में राष्ट्रीय पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को सम्मिलित करता है। वर्ष के चार राष्ट्रों में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, लेकिन अन्य में चैत्र और आश्विन के राष्ट्र ही मुख्य माने जाते हैं। ये भी देवीभक्त अश्विन के नक्षत्र अधिक करते हैं। तृष्णा यथाक्रम वसंती और शरदीय उत्सव भी कहते हैं। यह दीक्षा चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होती है। मूलतः यह प्रतिपदा ‘सम्मुखी’ शुभ है।

ब्रह्म वैवर्त पुराण से उद्धृत:

 

नारदजी बोले-ब्राह्मण! मैंने अत्यंत अद्भुत संपूर्ण उपाख्यानों को सुना। अब दुर्गाजी के उत्तम उपाख्यान को चाहता हूँ। वेद की कौथुमी शाखाओं में जो दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अंबिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती और सनातनी- ये सेल नाम बताए गए हैं, वे सभी के लिए कल्याणदायक हैं हैं। वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ नारायण! इन सेल सेल्यूलेशन का जो उत्तम अर्थ है, वह अभी भी सबसे अच्छा है। इसमें सर्वसम्मत वेदोक्त अर्थ को आप बताएं। पहले कौन सी है दुर्गाजी की पूजा? फिर दूसरी, तीसरी और चौथी बार सगे-संबंधियों ने अपनी सर्वत्र पूजा की है?

श्रीनारायण ने कहा- देवर्षे! भगवान विष्णु ने वेद में इन सेल स्टूडियो का अर्थ बताया है, आप उसे जानते हों तो भी मेरा पुन:: मॉस्को हो। अच्छा, मैं आगमों के अनुसार उन क्वार्टर का अर्थ बताता हूँ।

दुर्गा-दुर्गा शब्द का पदच्छेद योन है-दुर्ग+आ। ‘दुर्ग’ शब्द में दैत्य, महाविघ्न, भावबंधन, कर्म, शोक, दु:ख, नरक, यमदंड, जन्म, महाभय और अत्यंत रोग का अर्थ बताया गया है तथा ‘अ’ शब्द का वाचक है। जिस देवी में दैत्य और महाविघ्न आदि का हनन होता है, उसे ‘दुर्गा’ कहा जाता है।

नारायणी

यह दुर्गा यश, तेज, रूप और गुण में नारायण के समान है और नारायण की ही शक्ति है। इसलिए ‘नारायणी’ कह गईं

ईशाना

ईशान का पदच्छेद इस प्रकार है- ईशान+आ। ‘ईशान’ शब्द संपूर्ण सिद्धियों के अर्थ में असंगत होता है और ‘ए’ शब्द दाताका वाचक है। जो संपूर्ण सिद्धियों को देने वाली है, वह देवी ‘ईशाना’ कही गई है।

विष्णुमाया

पूर्वकाल में सृष्टि के समय परमात्मा विष्णु ने माया की सृष्टि की थी और अपनी उस माया से संपूर्ण विश्व मोहित हो गया। वह मायादेवी विष्णु की ही शक्ति है, इसलिए ‘विष्णुमाया’ कही गयी है।

शिवा

‘शिव’ शब्द का पदचिन्ह योन है- शिव+आ। ‘शिव’ शब्द शिव एवं कल्याण अर्थ में उपयुक्त होता है तथा ‘आ’ शब्द प्रिय एवं दाता-अर्थ में है। वह देवी कल्याणस्वरूपा है, शिवदायिनी है और शिवप्रिया है, इसलिए ‘शिव’ कही गई है।

सती

देवी दुर्गा सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं, प्रत्येक युग में देवता और पतिव्रता एवं सुशीला हैं। इसीलिये इन्हें ‘सती’ कहा जाता है।

नित्या

जैसे भगवान नित्य हैं, वैसे ही भगवती भी ‘नित्य’ हैं। प्राकृत प्रलय के समय वे अपनी माया से भगवान श्रीकृष्ण में तिरोहित रहते हैं।

ब्रह्मासे लेकर तृण या कीत्पर्यन्त सम्पूर्ण जगत् कृत्रिम होने का कारण मिथ्या ही है, परन्तु दुर्गा सत्यस्वरूपा हैं। जैसे भगवान सत्य हैं, वैसे ही प्रकृतिदेवी भी ‘सत्य’ हैं।

भगवती

सिद्ध, ऐश्वर्य आदि के अर्थ में ‘भग’ शब्द का अर्थ होता है, ऐसा बोलता है। वह पूर्ण सिद्ध, दिव्यरूप भगवान हर युग में स्थित मंदिर में स्थित हैं, वे देवी दुर्गा ‘भगवती’ कहलाती हैं।

सर्वाणी

जो विश्व के सम्पूर्ण चराचर मश्वरे को जन्म, मृत्यु, जरा आदि की तथा मोक्ष की भी प्राप्ति कराते हैं, वे देवी अपने इसी गुण के कारण ‘सर्वाणी’ कहि गयी हैं।

सर्वमंगला

‘मंगल’ शब्द मोक्ष का वाचक है और ‘आ’ शब्द दाताका। जो संपूर्ण मोक्ष हैं, वे देवी ‘सर्वमंगला’ हैं। ‘मंगल’ शब्द हर्ष, संविधान और कल्याण के अर्थ में उपयुक्त होता है। जो सार्वजनिक लोग हैं, वे ही देवी ‘सर्वमंगला’ नाम से प्रचलित हैं।

अंबिका

‘अम्बा’ शब्द माता का वाचक है तथा वंदन और पूजन-अर्थ में भी ‘अम्ब’ शब्द का प्रयोग होता है। वे देवी साक्षात् पूजित और वंदित हैं तथा त्रिलोकों की माता हैं, इसलिए ‘अम्बिका’ कहलाती हैं

वैष्णवी

देवी श्रीविष्णु की भक्त, विष्णुरूपा तथा विष्णु की शक्ति हैं। विष्णु के साथ ही सृष्टकाल में उनकी सृष्टि हुई है। अतः इनका ‘वैष्णवी’ उच्चारण है।

गौरी

‘गौर’ शब्द पीला रंग, निर्लिप्त निर्मल एवं परमब्रह्म परमात्मा के अर्थ में असंगत होता है। उन ‘गौर’ शब्दवाच्य भगवान की वे शक्तियाँ हैं, इसलिए वे ‘गौरी’ कही गयी हैं। भगवान शिव सर्व गुरु हैं और देवी उनकी सती-साध्वी प्रिया शक्तियाँ हैं। इसलिए ‘गौरी’ कही गई हैं। श्रीकृष्ण ही सर्वव्यापी गुरु हैं और देवी उनकी माया हैं। इसलिए इन्हें ‘गौरी’ भी कहा गया है।

पार्वती

‘पर्व’ शब्द तिथिभेद (पूर्णिमा), पर्वभेद, कल्पभेद तथा अन्यान्य भेद के अर्थ में सुसंगत होता है तथा ‘ती’ शब्द का अर्थ अर्थ में होता है। उन पर्व आदि में अंकित होने से उन देवी की ‘पार्वती’ का उल्लेख है। ‘पर्व’ शब्द महोत्सव-विशेष के अर्थ में आता है। उनकी अधिष्ठात्री देवी के होने के नाते उन्हें ‘पार्वती’ कहा गया है। वे देवी पर्वत (गिरिराज हिमालय)- की बेटियाँ हैं। पर्वत पर प्रकट हुई हैं और पर्वत की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिए भी उन्हें ‘पार्वती’ कहा जाता है।’

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