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(भाग:206) वनवास के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने हाथों से किया था इस कुटिया का निर्माण

भाग:206) वनवास के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने हाथों से किया था इस कुटिया का निर्माण

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम, लक्ष्मण और सीता के साथ वन को निकल गए हैं। गंगा तट पर केवट प्रभु राम के पांव धोकर उन्हें नदी पार कराता है। उतराई देने के लिए प्रभु राम अपने हाथ से अंगूठी निकालकर केवट की ओर बढ़ते हैं, लेकिन केवट लेने से इनकार कर देता है। पूछने पर केवट कहता है प्रभु आप मेरे द्वार आए तो मैंने आपको नदी पार कराई और जब मैं आपके द्वार आऊंगा तो आप मुझे भवसागर रूपी संसार से पार करा देना। राम, लक्ष्मण, सीता आगे बढ़ते हैं और पंचवटी में कुटिया बनाकर रहते लगते हैं। इधर, अयोध्या में राम के वन जाने की दुख में राजा दशरथ तड़पते हुए प्राण त्याग देते हैं। जब भरत, शत्रुघ्न को भैया राम, लक्ष्मण के वन जाने और पिता दशरथ के मौत का पता चलता है तो भरत राम को मनाने के लिए वन जाने की तैयारी करने लगते हैं।
वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण पंचवटी क्षेत्र में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे थे। पंचवटी नासिक के पास गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। लक्ष्मण ने यहां पर एक पर्णकुटी बनाई थी। ये ही वो जगह है जहां राम और सीता, लक्ष्मण के साथ एक कुटिया बनाकर रहे थे।

पंचवटी यह अत्यंत प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल हैं. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आकर यहां बने मठ-मंदिरों में पूजा पाठ करते हैं. मान्यताओं के मुताबिक भगवान राम ने चित्रकूट में भी अपने वनवास के दौरान काफी समय बिताया था, जहां उनके साथ माता सीता और अनुज लखन साथ थे. आज हम चित्रकूट के एक ऐसे स्थान के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जहां खुद प्रभु श्री राम ने आपके हाथों से भोजपत्र घास-फूस और पत्तों से कुटिया का भी निर्माण किया था.

हम बात कर रहे है चित्रकूट के रामघाट से 500 मीटर दूर बने पर्णकुटी स्थान की. जहां प्रभु श्री राम ने अपने हाथो से घास-फूस और पत्तों से कुटिया का निर्माण किया था. यहां प्रभु श्री राम, माता सीता विश्राम किया करते थे. तो वही दूसरी ओर बनी एक कुटिया में रहकर लक्ष्मण जी सुरक्षा के दायित्वों का निर्वहन किया करते थे. इस पत्ते और घास फूस से बनी हुई कुटी को पर्णकुटी के नाम से जाना जाता है.

भगवान राम की तपोभूमि है चित्रकूट

मंदिर के पुजारी कृष्ण दास ने बताया कि प्रभु श्री राम ने अपने हाथों से इस कुटिया का निर्माण किया था. जहां वह माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ रहा करते थे और इसी कुटिया में वह साधु संतों के साथ सत्संग भी किया करते थे. उन्होंने बताया कि त्रेता युग में जब अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे. तब उन्होंने आदि ऋषि वाल्मीकि की प्रेरणा से तप और साधना के लिए चित्रकूट आए थे.

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री राम ने वनवास के दौरान जहां जहां अपने कदम रखे उन्हीं स्थानों पर मंदिर कुंड व राम आर्य आदि निर्मित हुए। ग्रंथों में ऐसे कई जगहों का वर्णन मिलता है जहां पर श्री राम जी ने जब अपने पग धरे तो उन जगहों की मान्यता बढ़ गई। आज हम आपको श्रीराम द्वारा बनवाई गई कुछ ऐसी ही जगह हो आदि के बारे में बताने जा रहे हैं। कथाओं के अनुसार लंका से लौटने के बाद प्रभु श्री राम ने कई तरह के कार्य किए थे जैसे कि शिवालय, महिला, आश्रम, कुटिया आदि। परंतु जिन कार्यों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं उन कार्यों को श्री राम ने अपने वनवास के दौरान किया था तो आइए जानते हैं क्या है वह कार्य-

रामायण के अनुसार श्री राम जब गंगा पार करके चित्रकूट पहुंचे थे तो वहां गंगा यमुना के संगम पर ऋषि भारद्वाज का आश्रम था। महर्षि ने श्रीराम को उसी पहाड़ी के ऊपर एक कुटिया बनाने की सलाह दी। जिसके बाद श्रीराम ने वहां पर पर्णकुटी बनाई और वहीं रहने लगे। इसके उपरांत वे नासिक के पंचवटी क्षेत्र में गए यहां भी इन्होंने पर्णकुटी बनाई। फिर सीता माता की खोज में निकले तब रास्ते भर में जहां भी उन्हें कुछ दिनों तक रुकना पड़ता वह वहां पर्णकुटी बनाते। बाद में रामेश्वरम और अंत में श्रीलंका में पर्णकुटी बनाए जाने का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

धार्मिक के किंवदंतिया है कि श्री राम, श्री लक्ष्मण व माता सीता ने वनवास के दौरान खुद ही अपने वस्त्र और खड़ाऊ बनाकर धारण किए थे।

तुलसीदास जी की रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने लंका पर विजय पाने से पहले रामेश्वरम में भगवान शिव की पूजा की थी तथा यहां पर शिवलिंग स्थापित किया था जिसे वर्तमान समय में भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

लंका में प्रवेश करने के लिए व सीता माता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए प्रभु श्री राम ने नल नील के माध्यम से विश्व का पहला सेतु बनवाया था जो समुद्र के ऊपर से गुजरता था। वर्तमान समय में उसे रामसेतु के नाम से जाना जाता है। जबकि पुरानी किंवदंतियों के अनुसार श्री राम ने इस सेतु का नाम नल सेतू रखा था।

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