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राजस्थान और मध्यप्रदेश के प्रयोग का असर बाकी राज्यों के भाजपा सांसद भयभीत

राजस्थान और मध्यप्रदेश के प्रयोग का असर बाकी राज्यों के भाजपा सांसद भयभीत

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री:सह-संपादक की रिपोर्ट,मो•9822550220

जयपुर। बीजेपी की राजस्थान और मध्यप्रदेश के प्रयोग का असर बाकी राज्यों में भी देखने को मिल सकता है, खास तौर पर UP, बिहार, दिल्ली, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में. बाकी सांसद भी चिंतित हैं. कहीं अगली बारी उनकी तो नहीं है, खासकर वे जो अपनी किसी न किसी हरकत के कारण नेतृत्व की नजर में चढ़े हुए हैं.

मध्य प्रदेश के बीजेपी उम्मीदवारों की लिस्ट राजस्थान से आने वाले सांसदों को डराने लगी थी. बीजेपी ने मध्य प्रदेश में तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को विधानसभा चुनाव का टिकट दे रखा है. विधानसभा का टिकट मिलने के बाद बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का रिएक्शन देख कर तो सबको अंदाजा हो गया कि आलाकमान का फरमान बड़े नेताओं को कैसा लगा है.

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची आने के साथ ही सांसद दीया कुमारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ को भी राजस्थान में मैदान में उतारने के कयास लगाये जाने लगे थे – और जब राजस्थान की पहली लिस्ट आयी तो कयास सही साबित हुए.

अब ऐसा ही डर दूसरे राज्यों के बीजेपी सांसदों को भी सताने लगा है. और ऐसे राज्यों में सबसे ज्यादा बेचैनी उत्तर प्रदेश के बीजेपी सांसदों में देखने को मिली है. पता चला है कि कई नेताओं ने तो टिकट बचाने के लिए पैरवी शुरू करने के साथ ही पूरी ताकत भी झोंक दी

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बीजेपी अमित शाह सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने के लिए लगभग हर चुनाव में पुराने नेताओं के टिकट काट कर नये चेहरों को मैदान में उतारते हैं, लेकिन 2024 का मामला थोड़ा गंभीर लगता है. गंभीर इसलिए भी क्योंकि जातिगत गणना से लेकर विपक्षी गठबंधन INDIA की एकजुटता भी कुछ हद तक परेशान तो कर ही रही है.
सबसे ज्यादा खतरा तो 75 पार के नेताओं को है. 2019 में भी बीजेपी ने ऐसे कई नेताओं के टिकट काटे थे, कुछ नेताओं की जगह उनके बेटे को टिकट मिले थे, जबकि कुछ नेता जिन्हें नजरअंदाज किये जाने पर नुकसान का खतरा लगा, राज भवन भेज दिये गये.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी के लिए 2024 में भी वही कहानी दोहरायी जाने वाली है. अब राजभवन तो सभी भेजे नहीं जा सकते, लिहाजा उनके लिए राज्य सभा की सीट सुरक्षित रखी जा सकती है – और ऐसे भी कुछ नेता हो सकते हैं जिनको लोक सभा के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में मौका दिया जा सकता है.

राजस्थान और मध्य प्रदेश की तरह यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 में ही हो रखे हैं, यानी अगला चुनाव आम चुनाव 2024 के तीन साल बाद होगा. फिर भी यूपी के बीजेपी सांसद खासे चिंतित बताये जा रहे हैं. क्योंकि बीजेपी नेतृत्व ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा का उम्मीदवार बना कर खास मैसेज तो दे ही दिया है.

उत्तर प्रदेश के लिए बीजेपी ने इस बार शत-प्रतिशत जीत का लक्ष्य रखा है. यानी सभी 80 सीटें जीतने के हिसाब से काम चल रहा है. लेकिन यूपी के सांसदों को सबसे ज्यादा पार्टी का आंतरिक सर्वे डरा रहा है. सर्वे के तहत इलाके में सांसदों के प्रभाव को लेकर कार्यकर्ताओं से लेकर आम लोगों के बीच से फीडबैक लिया गया है – और बीजेपी अपने नेताओं को पहले से ही एक बात साफ कर चुकी है कि टिकट तो उनको ही मिलेगा जो जीतेंगे. मध्य प्रदेश को लेकर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुंह से ऐसा ही सुनने को मिला था.

जैसे बीजेपी सांसद टिकट कट जाने को लेकर डरे हुए हैं, ठीक वैसे ही टिकट चाहने वाले नेता खुश हैं कि 2024 में उनको मौका भी मिल सकता है. संगठन के लिए काम कर रहे बीजेपी नेताओं के अलावा यूपी की योगी सरकार में मंत्री बने नेता भी लोक सभा टिकट की उम्मीद लगा रखे हैं.

जैसे 2019 में योगी सरकार में मंत्री रहीं रीता बहुगुणा जोशी को बीजेपी ने प्रयागराज से संसद भेज दिया, वैसा इस बार कुछ मंत्रियों के साथ साथ विधायकों को भी टिकट दिया जा सकता है – रीता बहुगुणा जोशी को लेकर एक और भी मिसाल दी जा सकती है, क्योंकि इस बार उनका टिकट कट जाने की पूरी आशंका है. अव्वल तो वो 75 साल की उम्र सीमा पार कर रही हैं, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा में जो कुछ हुआ था वो भी आगे के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे के लिए विधानसभा का टिकट चाहती थीं, और उसके लिए अपनी कुर्बानी देने तक तो तैयार थीं. एक चर्चा ये भी थी कि उनका बेटे को समाजवादी पार्टी भी उम्मीदवार बना सकती है, लेकिन वहां भी कुछ नहीं हुआ.

रीता बहुगुणा जोशी की तरह ही कानपुर से सांसद सत्यदेव पचौरी, बरेली से सांसद संतोष गंगवार, डुमरियागंज से सांसद जगदंबिका पाल, चंदौली से सांसद महेंद्र नाथ पांडेय और मथुरा से सांसद हेमा मालिनी जैसे नेता भी रिटायरमेंट वाली उम्र के दौर में पहुंच चुके हैं. यूपी के कुछ सांसद ऐसे भी हैं जो अलग अलग वजहों से आलाकमान के निशाने पर माने जाते हैं. बलिया से वीरेंद्र सिंह मस्त, कुशीनगर से विजय दुबे, फतेहपुर से साथ्वी निरंजन ज्योति ऐसे ही कुछ नाम हैं.
बदायूं से बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य का अगर टिकट कटता है तो उसके लिए वो तो कम जिम्मेदार, लेकिन उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ज्यादा जिम्मेदार होंगे. संघमित्रा मौर्य को भी वैसे ही कीमत चुकानी पड़ सकती है जैसे केंद्र में मंत्री रह चुके जयंत सिन्हा को अपने पिता यशवंत सिन्हा की वजह से चुकानी पड़ी है.
मध्य प्रदेश और राजस्थान से जो संकेत मिल रहे हैं, ऐसा लगता है कि उम्रदराज ही नहीं, बल्कि बड़बोले बीजेपी नेता निशाने पर सबसे आगे हैं. ऐसे नेता भी हो सकते हैं जो किसी न किसी वजह से विवादों में रहे हैं, या फिर उनकी वजह से बीजेपी को फजीहत झेलनी पड़ी है – ये लिस्ट भी काफी लंबी है… लखीमपुर खीरी वाले अजय मिश्रा टेनी से लेकर पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी तक.

1. वरुण गांधी और मेनका गांधी तो 2019 से ही बीजेपी नेतृत्व के निशाने पर हैं. तब ऐसी चर्चा रही कि दोनों में से किसी एक को ही टिकट मिलना था, लेकिन मेनका गांधी के सीटों की अदला बदली की सलाह काम कर गयी. लेकिन चुनाव बाद मेनका गांधी को दोबारा मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली – और वरुण गांधी तो मोदी-शाह और योगी सरकार पर हमले के मामले में विपक्षी नेताओं को भी मात देने लगे हैं. आगे की तस्वीर तो करीब करीब उनको भी साफ ही नजर आ रही होगी.
2. तलवार तो कैसरगंज सांसद बृजभूषण शरण सिंह के टिकट पर भी लटक ही रही है. महिला पहलवानों के साथ बदसलूकी को लेकर विवादों में आये बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने केस भी दर्ज कर रखा है, और मामला काफी आगे बढ़ चुका है. आगे तो उनकी हैसियत और दबदबा ही तय करेगा कि वो आलाकमान से कैसी डील कर पाते हैं.

3. रमेश बिधूड़ी का मामला तो बिलकुल ताजा है. बीएसपी सांसद कुंवर दानिश अली पर संसद में बरस पड़ने के लिए नोटिस तो मिला ही था, बाद में रमेश बिधूड़ी को टोंक का प्रभारी बना कर राजस्थान भेज दिया गया है. अब तो उनके प्रदर्शन और लौटने के बाद ही तय होगा कि फिर से संसद भेजे जाएंगे या घर बिठा दिये जाएंगे.

4. लखीमपुर खीरी में बेटे के तेज रफ्तार गाड़ी से किसानों को रौंद डालने के लिए जेल जाने के बाद से ही अजय मिश्रा टेनी विवादों में आ गये थे. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में तो अजय मिश्रा टेनी की सेहत पर कोई असर नहीं दिखा, लेकिन आगे भी कुछ ऐसा वैसा नहीं होगा इस बात की गारंटी कौन ले सकता है.
5. सांसदों का प्रदर्शन भी तो मायने रखता है. दिल्ली को लेकर जिस तरह से अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी हाथ मिलाने को तैयार नजर आ रहे हैं, पहले से ही NPA कैटेगरी में जा चुके है मनोज तिवारी जैसे सांसदों को फिर से टिकट मिलने की संभावना तो कम ही लगती है. दिल्ली विधानसभा चुनावों में जिस तरह उनके प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद प्रवेश वर्मा को ही अमित शाह की तरफ से पेश किया जा रहा था, मनोज तिवारी राजनीतिक भविष्य आगे उज्ज्वल तो नहीं लगता.

6. साक्षी महाराज और साध्वी निरंजन ज्योति जैसे बीजेपी सांसद तो विवादों में अक्सर ही रहते हैं, 2019 में तो जैसे तैसे इन नेताओं ने अपना टिकट पक्का करा लिया, लेकिन 2024 में बहुत मुश्किल लगता है.

7. हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हार का खामियाजा भी कुछ नेताओं को भुगतना पड़ सकता है. हो सकता है, अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं को कोई फर्क न पड़े, लेकिन उनके समर्थक नेताओं को तो कीमत चुकानी ही पड़ेगी. हो सकता है जेपी नड्डा को भी ऐसे ही अनुभवों से गुजरना पड़े, भले ही वो पूरे देश में बीजेपी उम्मीदवारों के नाम पर दस्तखत और मुहर क्यों न लगायें.

8. हिमाचल जैसी काट-छांट कर्नाटक में भी देखने को मिल सकती है. मध्य प्रदेश और राजस्थान का नजारा तो सब देख ही रहे हैं.

9. जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जयपुर रैली में महिला आरक्षण बिल पास होने का जश्न देखने को मिला, हो सकता है अगले आम चुनाव में उसी थीम की झलक देखने तो मिले… बीजेपी नेतृत्व को देश के सामने नजीर भी तो पेश करनी है.

10. राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसा असर जिन राज्यों में देखने को मिल सकता है, वे यूपी, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र. बिहार और महाराष्ट्र हो सकते हैं. ऐसे राज्य जहां पिछले लोक सभा और विधान सभा चुनावों के बाद सत्ता समीकरण बदल चुके हैं, वहां बीजेपी नेतृत्व टिकट तो उसी का फाइनल करेगा जिसकी जीत पहले से ही सौ फीसदी पक्की लगती हो.

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