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दुष्ट प्रवृति वाले देहदानवों का संहार करके भक्तों की रक्षा करती हैं मां कालरात्री

दुष्ट प्रवृति वाले देहदानवों का संहार करके भक्तों की रक्षा करती हैं मां कालरात्री

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक की रिपोर्ट

शारदीय अश्विन नवरात्र में मां कालरात्रि की विशेष रूप से आराधना की जाती है। देवी को प्रसन्न करने के लिए जातक पूजा करते समय लाल, नीले या सफेद रंग के कपड़े पहन सकते हैं। मां कालरात्रि की प्रातः काल सुबह चार से 6 बजे तक करनी चाहिए।
दुर्गा के सातवें रूप को मां कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के सातवें दिन इनकी पूजा होती है। देवी कालरात्रि दुष्टों को मार कर भक्तों की रक्षा करती हैं, तो आइए हम आपको मां कालरात्रि की महिमा तथा पूजन विधि के बारे में बताते हैं।

शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन 20 अक्टूबर 2023 को मां दुर्गा का सबसे शक्तिशाली स्वरूप देवी कालरात्रि की पूजा होगी. कालों की काल मां कालरात्रि ने शुंभ, निशुंभ के साथ रक्तबीज का संहार करने के लिए अवतार लिया था. मां कालरात्रि की उपासना तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है.
मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें पसंद है. इसलिए महा सप्‍तमी के दिन माता रानी को गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाने से वे प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि चढ़ाएं गुड़ से बनी इस चीज का भोग चढा
मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें पसंद हैं. इसलिए नवरात्रि के सातवें दिन गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है और माता को प्रसन्न किया जाता है
महिमा माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। काली और कालरात्रि एक हैं? कालरात्रि माता के विषय में कहा जाता है कि यह दुष्टों के बाल पकड़कर खड्ग से उसका सिर काट देती हैं। रक्तबीज से युद्घ करते समय मां काली ने भी इसी प्रकार से रक्तबीज का वध किया था। मां काली के युद्घ करने का यह तरीका दर्शाता है कि काली और कालरात्रि एक ही हैं
मां काली और कालरात्रि में क्या अंतर है?
कालरात्रि माता गले में विद्युत की माला धारण करती हैं। इनके बाल खुले हुए हैं और गर्दभ की सवारी करती हैं, जबकि काली नरमुंड की माला पहनती हैं और हाथ में खप्पर और तलवार लेकर चलती हैं। 3. काली माता के हाथ में कटा हुआ सिर है जिससे रक्त टपकता रहता है
नवरात्र के सातवें दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र में स्थिर कर पूजा करनी चाहिए। इसके लिए ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी- भद्रकाली, काली, महाकाली, भैरवी, मृत्यु, रुद्राणी, चामुंडा, दुर्गा और चंडी कई नामों से जाना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालारात्री के अन्य नाम हैं। काली और कालरात्रि एक दूसरे के परिपूरक होती हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप से सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।
मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना विधि: नवरात्र में मां कालरात्रि की विशेष रूप से आराधना की जाती है। देवी को प्रसन्न करने के लिए जातक पूजा करते समय लाल, नीले या सफेद रंग के कपड़े पहन सकते हैं। मां कालरात्रि की प्रातः काल सुबह चार से 6 बजे तक करनी चाहिए। जीवन की कठिनाइयों को कम करने के लिए सात या सौ नींबू की माला देवी को अर्पित कर सकते हैं। सप्तमी की रात में तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति जलाएं। इसके अलावा अर्गला स्तोत्रम, सिद्धकुंजिका स्तोत्र, काली चालीसा और काली पुराण का पाठ करना चाहिए। सप्तमी की पूरी रात दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। देवी कालरात्रि की पूजा करते समय इस बात का ध्यान रखें जिस स्थान पर मां कालरात्रि की मूर्ति है उसके नीचे काले रंग का साफ कपड़ा बिछा दें। देवी की पूजा करते समय चुनरी ओढ़ाकर सुहाग का सामान चढ़ाएं। इसके बाद मां कालरात्रि की मूर्ति के आगे चढाए जाते हैं

देवी कालरात्रि ने राक्षसों के राजा रक्तबीज को मारने के लिए अवतार लिया था। मां की आराधना से घर में सुख-समृद्धि आती है। मां कालरात्रि का रूप भयानक है, लेकिन वह अपने भक्तों को शुभ फल देती हैं। देवी कालरात्रि को याद करने से राक्षस, दानव, दैत्य, भूत-प्रेत डरकर भाग जाते हैं। दुष्टों का दूर भगाने वाली मां कालरात्रि ग्रह बाधाओं को भी खत्म करती हैं।
मां कालरात्रि से जुड़ी कथा: पौराणिक कथा के अनुसार शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षसों ने तीनों लोकों में सबको दुखी किया था। परेशान होकर अंत में सभी देवता शिव जी के पास गए। शिव जी ने भक्तों की दशा देखकर देवी पार्वती को राक्षसों को मारने को कहा। शिव जी के आदेश पर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ को मार दिया। लेकिन देवी दुर्गा ने रक्तबीज को जब मारा तो उसके शरीर से लाखो रक्तबीज पैदा हुए। इसे देखकर दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया और जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया। इसके बाद सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।

मां का पसंदीदा भोग: मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए सप्तमी के दिन भगवती को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दान देना चाहिए। ऐसा करने से कोई दुख नहीं होता है।

करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम
जानिए ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी से मां कालरात्रि के महिमा के बारे में माता कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इन्हें देवी पार्वती के समतुल्य माना गया है। देवी के नाम का अर्थ- काल अर्थात् मृत्यु/समय और रात्रि अर्थात् रात है। देवी के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने वाली है।
माता कालरात्रि का स्वरूप: देवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं। वे गधे की सवारी करती हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबिक बाएँ दोनों हाथ में क्रमशः तलवार और खडग हैं।
पौराणिक मान्यताएँ: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ नामक दो दानव थे जिन्होंने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार हो गई और देवलोक पर दानवों का राज हो गया। तब सभी देव अपने लोक को वापस पाने के लिए माँ पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा।
जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। तब देवी ने उनका वध किया जिसके कारण उनका नाम चामुण्डा पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। वह अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो।
माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं। आइए हम उनमें से एक बताते हैं कि देवी पार्वती दुर्गा में कैसे परिवर्तित हुईं? मान्यताओं के मुताबिक़ दुर्गासुर नामक राक्षस शिव-पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में हमला करने की लगातार कोशिश कर रहा था। इसलिए देवी पार्वती ने उससे निपटने के लिए कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह लगातार विशालकाय होता जा रहा था। तब देवी ने अपने आप को भी और शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं। उसके बाद जैसे ही दुर्गासुर ने दोबारा कैलाश पर हमला करने की कोशिश की, देवी ने उसको मार गिराया। इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया।

ज्योतिषीय विश्लेषण: ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। कहते हैं देवी के इस रूप की पूजा करने से भय, दुर्घटना और रोगों का नाश हो जाता है। ज्योतिष अनुसार मां कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं। इनकी उपासना से शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होने की मान्यता है

मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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