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(भाग:301)चक्रवर्ती सम्राट दशरथ-कौशल्यानंन्द नंदन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन्म और रामनवमी की महिमा

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(भाग:301)चक्रवर्ती सम्राट दशरथ-कौशल्यानंन्द नंदन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन्म और रामनवमी की महिमा

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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रामनवमी के दिन को बहुत पवित्र और खास माना जाता है. जो लोग नवरात्रि में व्रत रखते हैं वो अष्टमी और नवमी वाले दिन कन्या पूजन कर इसका समापन करते हैं. इस मौके पर कई जगहों पर भंडारे लगाए जाते हैं. मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि की रामनवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म हुआ था.

रामनवमी पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार ‘रामनवमी’ का पर्व चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष 2024 में भी यह 17 अप्रैल को मनाया गया है। रामनवमी के इस शुभ दिन पर चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि का आखरी दिन रहता है। सनातन हिंदू धर्म की पौराणिकता के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।

 

अत: इस शुभ दिन व भगवान राम के स्वागत को सभी लोग “रामनवमी” के रूप में मनाते हैं। लोगों द्वारा यह पर्व पूर्ण श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस शुभ दिन पर लोग पवित्र भाव से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का भजन संकीर्तन और ध्याकरते हैं।

 

हिन्दू मान्यता में रामनवमी के अवसर पर किया जाने वाला पूजन अत्यंत शुद्ध और सात्विक रूप से किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन सभी को प्रातः:काल शुद्ध व पवित्र हो प्रभु श्री राम का स्मरण करते हुए व्रत रखना चाहिए। इस दौरान आप भगवान राम के भजन व कीर्तन का आयोजन भी कर सकते हैं। इस शुभ दिन पर मंदिरों में भगवान राम जी की कथा का श्रवण एवं कीर्तन किया जाता है।

 

इसके अलावा जगह-जगह भंडारे व प्रसाद भी वितरित किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा दी गई है; उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ही लोक कल्याण को समर्पित कर दिया था। उनकी कथा को सुनकर सभी भक्तगण भाव विभोर हो जाते हैं व प्रभु राम के गुणों व भजनों को भेजते हुए इस शुभ दिन (रामनवमी) का पर्व मनाते है।

 

शास्त्रों में कहा जाता है – “रमंते सर्वत्र इति रामः” इसका अर्थ हुआ, जो सर्वत्र व्याप्त है वो प्रभु श्री राम है। सदैव सनातन धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने श्री राम का रूप लेकर धरती पर मानव रूप में जन्म लिया था। मान्यता है कि ‘रामनवमी’ के शुभ अवसर पर भगवान राम की पूजा करने से जातकों को यश और वैभव की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है। विष्णु भगवान के प्रतिरूप श्री राम की आराधना करने से जीवन में सकारात्मकता आती है व सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। रामनवमी के शुभ दिन पर ‘राम रक्षा स्तोत्र’ का पाठ करने से जातक के जीवन की सभी परेशानियां समाप्त होती

मान्यता है कि, जब भी संसार में पाप और अत्याचार बढ़ जाते हैं; तो भगवान हर युग में कोई न कोई रूप में अवश्य अवतरित होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में दशानन रावण के अत्याचारों को समाप्त करने व धर्म की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। प्रभु श्री रामचंद्र जी ने राजा दशरथ के घर, पुत्र रूप में जन्म लिया था भगवान राम का जन्म चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन हुआ था। उनके जन्म पश्चात संपूर्ण सृष्टि भी उन्हीं के रंग में रंगी अद्भुत प्रतीत हो रही थी।

 

उस दिन चारों तरफ हर्ष व उल्लास का वातावरण लालिमा लिए होता है। संसार के साथ-साथ प्रकृति भी मानो प्रभु श्री राम का स्वागत करने को लालायित हो उठे थी। प्रभु श्री राम ने राक्षसो के संहार के लिए धरती पर अवतार लिया था। त्रेतायुग में रावण तथा राक्षसों के अत्याचारों से प्रजा को मुक्त करने के लिए श्री राम भगवान को ‘रघुकुल नंदन’ तथा ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ की उपाधि दी गई थी।

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हिन्दू धर्म में जितना महत्व रामनवमी के त्यौहार का है; उतना ही महत्व चैत्र नवरात्रि का भी है। इस वर्ष 2024 में पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल सुबह 09 बजकर 07 मिनट पर आरंभ हूई है।

इस पर्व के साथ ही मां दुर्गा के चैत्र नवरात्रि का समापन भी होगा।

इस तथ्य को बताने का हमारा यह आशय है कि, भगवान श्री राम ने भी देवी मां दुर्गा की पूजा की थी; जिसके माध्यम से मां की शक्ति पूजा ने प्रभु श्री राम को अधर्म पर धर्म की विजय प्रदान की। इस प्रकार इन दो महत्वपूर्ण त्योहारों का एक साथ होना, पर्व की महत्ता को और भी दुगना कर देता है। ऐसी मान्यता भी व्याप्त है कि इसी दिन, गोस्वामी तुलसीदास जी ने “रामचरित मानस की रचना” करना आरंभ कर दिया था।

शास्त्रों में ‘रामनवमी का व्रत’ पापों का नाश करने वाला तथा शुभ फल प्रदान करने वाला माना गया है। इस शुभ दिन पर देश के कोने कोने में श्री राम के भजन की गूंज सुनाई देती है। प्रभु श्री राम की जन्म भूमि ‘अयोध्या’ में यह पर्व बडे हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। अयोध्या में जहां सरयू नदी है जहां, सभी लोग स्नान करके भगवान श्री राम का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ‘मंगल भवन’ आपसे आशा करते हैं कि इस लेख में आपको ‘रामनवमी’ से संबंधित समस्त आवश्यक जानकारी प्राप्त हो गई होगी।

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है जो अप्रैल-मई में आता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।

 

चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ ।

उदये गुरुगौरांश्चोः स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके ॥

मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटकाह्वये ।

आविरसीत्सकलया कौसल्यायां परः पुमान् ॥

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्यापुरी में विक्रम सम्वत् १६३१ (१५७४ ईस्वी) रामनवमी (मंगलवार) को किया था। गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-

 

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।

हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी [4] के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।

 

सम्पूर्ण भारत में रामनवमी मनायी जाती है। तेलंगण का भद्राचलम मन्दिर उन स्थानों में हैं जहाँ रामनवमी बड़े धूमधाम से मनायी जाती है।

श्रीरामनवमी का त्यौहार पिछले कई हजार सालों से मनाया जा रहा है।

 

रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुण्ड से अग्निदेव अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले। [5]

 

यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने श्रीराम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने श्रीभरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।

कबीर साहेब जी आदि श्रीराम की परिभाषा बताते है की आदि श्रीराम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर‌ धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है।

 

“एक श्रीराम दशरथ का बेटा, एक श्रीराम घट घट में बैठा, एक श्रीराम का सकल उजियारा, एक श्रीराम जगत से न्यारा”।।

रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा अर्चना की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है।

यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते

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