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(भाग:302) जिसकी सहायता से ईश्वर सृष्टि का नियंत्रित और सृजन करते हैं उसे शिव-शक्ति कहते हैं

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भाग:302) जिसकी सहायता से ईश्वर सृष्टि का नियंत्रित और सृजन करते हैं उसे शिव-शक्ति कहते हैं

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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देवाधिदेव भगवान शिव और शक्ति के मिलन से ही परमात्मा या ईश्वर का सृजन होता है. शक्ति की उपासना शिव के साथ करना अत्यंत कल्याणकारी होता है. ख़ास तौर से विवाह और विवाद के मामले में.वे सृष्टि के पालनहार और संहारक हैं, और उनका स्मरण व्यक्ति को आत्मिक ऊर्जा, शक्ति और ज्ञान प्रदान करता है। इस पुराण के अनुसार, शिव की महिमा का अनुभव करने के लिए स्मरण और भक्ति का अत्यंत महत्त्व होता है। शिव की शक्ति, क्षमता और अद्वैता के ज्ञान का प्राप्ति उनके स्मरण और ध्यान से ही संभव होता है। जिसकी सहायता से वह सृष्टि को नियंत्रित करते हैं उसे शक्ति कहते हैं. शिव और शक्ति के मिलन से ही परमात्मा या ईश्वर का सृजन होता है. शक्ति की उपासना शिव के साथ करना अत्यंत कल्याणकारी होता है. ख़ास तौर से विवाह और विवाद के मामले में. शक्ति के बिना शिव अधूरे माने जाते हैं

 

पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मा जी के द्वारा बनाई गई सृष्टि में आदि और प्रकृति ने मिलकर धरती पर नये प्राणियों को जन्म देकर धरती का विकास किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदि को शिव जी और प्रकृति को शक्ति माना जाता है। इसका अर्थ हुआ कि शिव जी और शक्ति ने ही धरती पर प्राणियों के लिए जीवन संभव बनाया। इसलिए आज भी शिव जी और शक्ति को एक साथ आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि शिव ही शक्ति है, शक्ति ही शिव है। शिव ने ही सृष्टि के हित के लिए शक्ति का रूप बनाया था ताकि धरती पर नये प्राणियों का जीवन शुरू हो सके। इसलिए शिव और शक्ति एक-दूसरे के बिना अधूरे है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि आखिर शिव, शक्ति के बिना अधूरे क्यों है।

 

शिव-शक्ति से सृष्टि पर जीवन का आरंभ

सृष्टि के निर्माण के बाद ब्रह्मा जी ने देखा कि धरती पर किसी भी तरह का कोई विकास नहीं हो रहा। कोई भी नया जीव जन्म नहीं ले रहा है। इसलिए ब्रह्मा जी विष्णु जी से सहायता मांगी। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को शिव जी की तपस्या का सुझाव दिया। ब्रह्मा जी शिव जी की तपस्या की, तब शिव जी ने अपने आधे शरीर से एक रूप बनाया जिसे शक्ति नाम दिया गया। शिव-शक्ति का यह रूप अर्धनारीश्वर कहलाया। ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा कि आपका यह दूसरा रूप कौन है, तब शिव जी ने अपने दोनों रूपों को अलग-अलग किया और एक पुरुष और एक नारी की आकृति बनाई। शिव के पुरुष रूप और नारी रूप शक्ति ने मिलकर धरती पर नए जीवों को बनाया जिससे धरती पर जीवों की संख्या बढ़ने लगी और धरती का विकास होने लगा। शिव जी का शक्तिरूप, मां पार्वती के रूप का आधार है। अगर शिव जी ने शक्ति नही बनाई होती तो मां पार्वती भी कभी अस्तित्व में नहीं आती। शिव और शक्ति एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं, क्योंकि शिव और शक्ति एक ही है।

 

शिव के शक्तिरुप का महत्व

 

शास्त्रों में बताया गया है कि शिव जी और शक्ति का अर्धनारीश्वर रूप स्त्री और पुरुष की समानता को बताता है। शिव जी और शक्ति का यह रूप आज के युग में बहुत अधिक महत्व रखता है। शिव जी के अर्धनारीश्वर रूप से यह पता चलता है कि स्त्री और पुरुष को हमेशा अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए ताकि उनका सम्पूर्ण विकास हो सके। पुरुषों को यह ध्यान रखना चाहिए की उनके हर तरह के कार्यों में नारी का भी पूर्ण योगदान होता है। इसलिए नारी का सम्मान करना चाहिए। शिव- शक्ति मिलकर यह सीख देते है कि स्त्री और पुरुष एक- दूसरे के लिए समान रूप से समर्पित रहना चाहिए ताकि वो अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं को मिलकर समझदारी से खत्म कर सकें।

 

भगवान सदाशिव के अंश और समस्त स्त्रियां भगवती शिवा की अंशभूता हैं, उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त है. शिव की आराधना, शक्ति की आराधना है और शक्ति की उपासना शिव की उपासना है. शिव की सम्पूर्ण शक्ति, देवी में मानी गई है. सावन मास में शिव पूजा तभी पूर्ण मानी जाएगी जब देवी प्रसन्न हों और देवी पुराण के अनुसार माता पर गुड़हल का फूल चढ़ाना उतना ही लाभदायक है, जितना बाबा महाकाल को बेलपत्र चढ़ाना. माता को लाल रंग के पुष्प बेहद पसंद आते हैं देवी मां को प्रसन्न करके कुंडली के दोष दूर करने का का समय होता है.

 

इस समय में तारामंडल ग्रह और नक्षत्र की परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए गुड़हल फूल का माला बनाकर माता को समर्पित करने से ही कुंडली में शुक्र से सम्बन्धित सभी दोषों को दूर किया जा सकता है. गुड़हल का फूल देवी मां के लिए बहुत ही प्रिय फूल माना गया है ऐसा माना जाता है कि गुड़हल के फूल के शुरूआती भाग में ब्रह्मा का वास होता है. वही मध्य के भाग में भगवान विष्णु का वास होता है और अंतिम भाग में भगवान महेश यानी भगवान शिव का वास होता है और अंकुरण भाग खुद शक्ति का स्वरुप माता दुर्गा का वास होता है. लाल रंग को उत्साह, उर्जा और शक्ति का प्रतीक माना गया है. माता की विशेष पूजा के लिए लाल गुड़हल के फूल चढ़ाये जाते है. माना जाता है इससे माता प्रसन्न होती है और भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करती है. तंत्र साधना में भी गुड़हल के फूलों का बेहद महत्व होता है इस साधना में भी फूलों की संख्या ध्यान में रखते हुए मंत्रोच्चार से विभिन्न दोषों को दूर किया जा सकता है.

 

लाल रंग के गुडहल के पुष्प असीम शक्ति और उर्जा के प्रतीक माने जाते है. इन फूलों के माध्यम से माता भक्तो को आशीर्वाद प्रदान करती है और भक्तों के घर में सकारात्मक उर्जा का संचार करती है. फूल श्रद्धा और भावना का प्रतीक होते हैं. इसके साथ ही ये हमारी मानसिक स्थितियों को भी बताते हैं. गंध, लाल अक्षत के साथ ही मंत्र के साथ लाल फूल देवी के चरणो में समर्पित कर अशांति और आर्थिक परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करने से जीवन सुख समृधि से पूर्ण हो सकता है.

 

माता को लाल गुड़हल के फूल चढ़ाएं. यथाशक्ति भोग, धूप व दीप लगाकर आरती करें. लक्ष्मी की प्रसन्नता का यह उपाय देवी उपासना के दिन शुक्रवार व नवमी को करना मंगलकारी माना गया है. गुड़हल का फूल देवी माँ का प्रिय फूल होता है और पूजा में गुड़हल का फुल उपयोग कर विभिन्न प्रकार से लाभ पाया जा सकता है. अगर आप किसी कानूनी मामले में लम्बे समय से फंसे है तो आपको अपने घर में गुड़हल का का पौधा लगाना चाहिए. इसे घर में लगाने से कानून संबंधी सभी काम पूरे हो जाते हैं.

 

गुड़हल का फूल अत्यंत ऊर्जावान माना जाता है.

 

– देवी और सूर्य देव की उपासना में इसका विशेष प्रयोग होता है.

 

– नियमित रूप से देवी को गुड़हल अर्पित करने से शत्रु और विरोधियों से राहत मिलती है.

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