पिता की संपत्ति में बेटी को बेटे के बराबर अधिकार
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली। साल 2004 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन के बाद, बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार मिल गया है.
दरअसल में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक, बेटी जन्म से ही पैतृक संपत्ति में हकदार होती है. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक, बेटी को पिता की स्व-अर्जित या दूसरी संपत्ति भी विरासत में मिल सकती है.
अगर पिता की मौत हो जाती है, तो बेटी की संतान को भी वही हक मिलेगा जो बेटी को मिलता. यह बात जेंडर स्पेसिफ़िक नहीं है, बेटी और बेटा दोनों की मौत पर यही कानून लागू होता है.
माता-पिता अपने बच्चों को पैतृक संपत्ति की वसीयत से बाहर नहीं कर सकते. अगर माता-पिता ऐसा करते हैं, तो बच्चों के पास कोर्ट जाने का अधिकार है.
इस स्थिति में बेटी को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलता. हालांकि, यह सिर्फ पिता की स्व-अर्जित संपत्ति
पर ही लागू होता है. अगर संपत्ति पिता को उनके पूर्वजों से प्राप्त हुई है, यानी वह पैतृक संपत्ति है, तो पिता इसे अपनी मर्जी से किसी एक को नहीं दे सकते.
संंपत्ति विवाद के बारे में देश की अदालतों में लाखों केस प्रलंबित है। दरअसल में आपका भी कोई न कोई प्रोपर्टी विवाद जरूर हो सकता है। बरहाल आज हम बात कर रहे हैं बेटियों के संपत्ति में अधिकार की बात है ये भी एक कड़वी सच्चाई है 90 प्रतिशत बेटियों को प्रोपर्टी में उनका अधिकार नहीं मिलता है।
विवाहित बेटी का पिता की संपत्ति में कितना हिस्सा है वह सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ कर दिया है।
पुुरुष प्रधान देश में बेटियों को पराई घर की चीज समझा जाता है। आज भी भारत में संपत्ति का बंटवारा होता है।
यह कानून 1956 में विशेष रूप से संपत्ति पर दावा और अधिकारों के लिए बनाया गया था. इसके तहत, बेटी को अपने पिता की संपत्ति पर वही अधिकार प्राप्त हैं जो एक बेटे को होते हैं. 2004 में भारतीय संसद ने इस अधिनियम में संशोधन करके बेटी के अधिकारों को और भी पुख्ता कर दिया, जिससे पिता की संपत्ति पर उनके अधिकार को लेकर किसी प्रकार का संदेह न रह सके.
पिता की संपत्ति पर कब दावा नहीं कर सकती हैं बेटियां
ऐसी कई स्थितियां होती हैं, जहां बेटियों को संपत्ति में अपना दावा करने का अधिकार नहीं मिल पाता है. इसका एक मुख्य कारण यह होता है कि पिता अपनी मृत्यु से पहले अपनी पूरी संपत्ति अपने बेटे के नाम कर देते हैं. इस स्थिति में बेटी को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलता.
हालांकि, यह सिर्फ पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर ही लागू होता है. अगर संपत्ति पिता को उनके पूर्वजों से प्राप्त हुई है, यानी वह पैतृक संपत्ति है, तो पिता इसे अपनी मर्जी से किसी एक को नहीं दे सकते. इस स्थिति में बेटी और बेटे दोनों का समान अधिकार होता है.
भारतीय कानून में क्या है प्रावधान ? पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं का अधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पुत्री यानी बेटी को भी पैतृक सम्पत्ति में अधिकार (हक) दिये जाने का प्रावधान है, वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी पुत्री (बेटी) व परिवार की अन्य महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति पर हक (अधिकार) का प्रावधान है. हिन्दू उत्तराधिकार में भी महिलाओं को सम्पत्ति पर अधिकार का प्रावधान था किन्तु वह पति व उनके (पति के) पैतृक सम्पत्ति पर था, किन्तु वर्तमान नें यह अधिकार पिता के सम्पत्ति पर भी प्राप्त है.
9 सितम्बर 2004 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 में संशोधन करते हुए बेटी को भी पिता के सम्पत्ति में समान अधिकार दिया गया है. किन्तु इसके तहत यह शर्त है कि, दिनांक 9 सितम्बर 2005 तक अगर पिता जीवित हो, तो ही पुत्री (बेटी) सम्पत्ति में हकदार होगीं.
हाल ही में, 11 अगस्त 2020 को विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) एससी 641 के फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पारित एक ऐतिहासिक फैसले में कहा गया कि बेटी जन्म से ही सहदायिक यानी पैतृक सम्पति में हकदार होती है और संशोधन की तिथि पर पिता जीवित है या नहीं, यह अप्रासंगिक है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 में 2005 का संशोधन बेटियों को जन्म से हिंदू सहदायिक में अधिकार देता है, जिसका दावा 2005 में संशोधन की तिथि से ही किया जा सकता है. गौरतलब है कि, एक सहदायिक के रूप में बेटी के अधिकारों के सवाल पर एक प्रगतिशील कानून है और कुछ विशिष्ठ कारणों के साथ विशेष रूप से किन मामलों में उन अधिकारों का सफलतापूर्वक दावा किया जा सकता है, यह भी निर्भर करता है. यह जानकारी अवनीश पाण्डेय (प्रैक्टिसनर, हाईकोर्ट लखनऊ और एलएलएम (छात्र), केएमसीएलयू, लखनऊ) ने प्रभात खबर से बातचीत के दौरान साझा की.
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