चुनाव में BJP की जीत के लिए RSS ने की चार तरीकों से मदद
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
मुंबई । गत शनिवार को महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के परिणामों के आए नतीजों में ‘महायुति’ गठबंधन ने ज़बर्दस्त जीत हासिल की है, जिसमें सबसे अहम किरदार बीजेपी का रहा है.
149 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार 132 सीटें जीतने में कामयाब हुए, यानि बीजेपी के क़रीब 90 फ़ीसदी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है.
इस जीत के पीछे मौजूदा ‘महायुति’ सरकार की मुख्यमंत्री ‘लाडकी बहिन’ योजना और प्रदेश में किसानों के लिए सब्सिडी के अलावा विकास के कार्यों पर तो विस्तार से बात भी हो रही है और विश्लेषण भी किया गया है.
दरअसल में इस जीत के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका को भी समझने की भी ज़रूरत है.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ के नारों के पोस्टर लगाए गए. लेकिन ‘ बंटेगे तो कटेंगे’ नारे पर विवाद होने पर एक अन्य नारा दिया गया – ‘एक हैं तो सेफ़ हैं’.
क़रीब एक महीने पहले महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव प्रचार-प्रसार अपने शबाब पर था.
महाराष्ट्र राज्य के विधान सभा चुनाव मे राज्य के 11 फ़ीसदी मुसलमानों के वोटर किसका साथ दिये हैं?
सभारतीय जनता पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकों में से एक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी मैदान में उतार रखा था और उन्होंने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाला एक विवादित नारा भी दे दिया था.
मुंबई और कुछ दूसरे शहरों में ये नारे वाले पोस्टर रातोंरात लग गए थे और राज्य में कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने इसे ‘सांप्रदायिक और भड़काऊ’ करार दे दिया था ।
नारे पर छिड़े विवाद के महज़ तीन दिन बाद नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हेडक्वार्टर में इस पर चर्चा चल रही थी. निष्कर्ष साफ़ था. बीजेपी को किसी भी क़ीमत पर महाराष्ट्र में सत्ता से बाहर नहीं होने देना है.
आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने अगले दिन कहा, ”कुछ राजनीतिक ताक़तें हिंदुओं को जाति और विचारधारा के नाम पर तोड़ेंगी और हमें न सिर्फ़ इससे सावधान रहना है बल्कि इसका मुक़ाबला करना है. किसी भी क़ीमत पर बंटना नहीं है”.
संदेश शायद बीजेपी तक भी पहुंच चुका था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नया नारा दिया, ”एक हैं तो सेफ़ हैं”. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे योगी आदित्यनाथ के नारे से जोड़ते हुए मगर ज़्यादा ‘असरदार’ बताया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अन्तर्गत काम करने वाले तमाम संगठनों में से दो ‘लोक जागरण मंच’ और ‘प्रबोधन मंच’ को इस बात की ज़िम्मेदारी दी गई कि वे घर-घर जाकर ‘एक हैं तो सेफ़ हैं’ वाले नारे का न सिर्फ़ मतलब समझाएं बल्कि ”हिंदुओं को आगाह करें कि अगर वे संगठित नहीं रहे तो उनका अस्तित्व ख़तरे में पड़ सकता है.”
‘बिज़नेस वर्ल्ड’ पत्रिका और ‘द हिंदू’ अख़बार के लिए लिखने वाले राजनीतिक विश्लेषक निनाद शेठ का मानना है, ”एक नारा अगर धार्मिक तर्ज़ पर था तो दूसरा अन्य पिछले वर्गों को एकजुट करने की मंशा वाला. नारों के मतलब सभी ने अलग-अलग निकाले लेकिन वो आम वोटर जो टीवी और सोशल मीडिया से दूर हैं उस तक संदेश पहुंच गया, ऐसा लगता है”.