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(भाग:290) चराचर जगत के कल्याण और मोक्ष के दाता हैं भगवान शिव शकर भोलेनाथ

भाग:290) चराचर जगत के कल्याण और मोक्ष के दाता हैं भगवान शिव शकर भोलेनाथ

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

ज‌िन भगवान श‌िव के दर्शन करने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्त‌ि हो जाती है,चराचर जगत कल्याण और मोक्ष के दाताहैं भगवान शिव शंकर भोलेनाथ महादेव ने भी सद‌ियों पहले मोक्ष पाने के ल‌िए यहां तपस्या की थी। हम आपको बता रहे हैं उसी रोचक घटना के बारे में।

उत्तराखंड के चंपावत ज‌िले में बनी पाताल रुद्रेश्वर गुफा क‌िसी चमत्कार से कम नहीं। मान्यता है क‌ि जब यहां भगवान श‌िव ने तपस्या की थी इसके बाद ही उन्हें मोक्ष की प्राप्त‌ि हुई थी।

 

इतना ही नहीं देवी दुर्गा ने इस गुफा का रास्ता खुद बताया था। 40 मीटर लंबी और 10 मीटर चौड़ी पाताल रुद्रेश्वर गुफा की खोज 1993 में की गई थी। कहा जाता है क‌ि देवी दुर्गा ने एक 14 साल के बालक को सपने में इस गुफा का रास्ता बताया था। इससे पहले इस गुफा को च्मेडों खान या घर (चमकादड़ों का निवास) कहते थे कोई भी इस गुफा मैं नहीं जाता था।

यह गुफा रीठा साह‌िब से कुछ ही दूरी पर है। एक दिन गाँव एक लड़का अपने गायों को इस गुफा के पास चारा रहा था तो वो उस गुफा के अन्दर गया। किसी गाँव वाले ने उसको उस गुफा मैं जाते देखा तो जब वो बाहर निकला तो उसने पूछा इसके अन्दर क्यों गया तो उस बालक ने बताया मैंने कल रात सपने मैं ये गुफा देखी जैसा मैंने सपने मैं देखा था हकीकत मै वैसी ही गुफा हैं तब उस आदमी ने गाँव वालों को सारी बात बताई।

उसी समय गांव के कुछ लोग वहां गए और गुफा के अन्दर जो देखा वो किसी चमत्कार से कम नहीं था। वहां पर तीन छोटी छोटी गुफाएं है जिनमें चमकादड रहते हैं। एक बड़ी गुफा है। गुफा के अन्दर एक छोटा सा कुंड हैं जिसके किनारे पर बैल रुपी सफ़ेद पत्थर की आकृति बनी हैं और कुंड के बीचों बीच सफ़ेद पत्थर का शिव लिंग बना हुवा है।

 

शिव लिंग के उप्पर प्राकृतिक रूप से पानी की 5 धाराएँ चट्टान से गिरती हैं इस जगह पर गुफा की उचाई ज्यादा नहीं हैं लगभग 5 फिट होगी इस कुंड से 6 मीटर की दूरी पर चट्टान में कान लगाने से एसी आवाज आती हैं जैसे की चट्टान के अन्दर बहुत बड़ी नदी बह रही हो।

गुफा के बारे में जानकारी म‌िलते ही यहांह लोगों का तांता लग गया। लोगों का मानना है क‌ि इस गुफा में साक्षात श‌िव के दर्शन होते हैं। ऐसा लगता है क‌ि श‌िव अब भी यहां तपस्या कर रहे हैं। (बता दें कि यह सभी बातें पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है।)

पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि भगवान शिव के परिवार के हर सदस्य के पास अलग-अलग शक्तियां और विद्याएं हैं. भगवान शंकर मोक्ष दाता और कल्याणकारी हैं तो माता गौरी सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं. इनके पुत्र भगवान कार्तिकेय पराक्रम और शक्ति प्रदान करते हैं और भगवान गणपति को तिलक लगाते समय किस मध्यमा उंगली का प्रयोग करें इसके अलावा शिव परिवार के सभी सदस्यों के अपने वाहन भी हैं. जैसे भगवान शिव का वाहन है नंदी, और माता पार्वती का वाहन है सिंह, भगवान कार्तिकेय का वाहन है मयूर और भगवान गणपति का है मूषक वाहन है।

माता गौरी दाम्पत्य सुख की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं. यदि कोई सुहागिन स्त्री सच्ची श्रद्धा और भक्ति भाव से देवी गौरी की पूजा-उपासना करती है तो माता गौरी अखंड सौभाग्य का वरदान देती हैं.

प्राचीन कथाओं में ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती तीनों लोको में हमेशा विचरण करते रहते हैं और दीन-दुखियों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. माता पार्वती सबका दुख दूर करना ही अपना कर्तव्य मानती हैं. इन्हीं सब गुणों के कारण भगवान शिव का पूरा परिवार पूजनीय है. भारत में जितनी भाषाएं बोली जाती हैं, उन सभी में भगवान शिव के परिवार की स्तुतियां लिखी गई हैं.

भगवान शिव अब कहाँ हैं? क्या हम भगवान शिव को देख सकते हैं?

भगवान शिव अब वहीं हैं जहां वे हमेशा रहे हैं और हमेशा रहेंगे – नृत्य। वह परमाणु से लेकर ब्रह्मांड तक हर चीज में गति है – जो कुछ भी घूमता और दोलन करता है वह उसके नृत्य आंदोलनों के कारण होता है – सभी कंपन और क्षेत्र उसके ड्रम (शमारू) से उत्सर्जित हो रहे हैं।

ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा उनके ऊपरी दाहिने हाथ में रखी ज्वाला से निकल रही है। जिधर भी देखो, तुम केवल उसी को देखते हो।

शिव भगवान को कैसे प्रसन्न करें ?

वेदों के अनुसार पूजा विधि का पालन करके हम शिवरात्रि पर भगवान शिव को बहुत आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रत्येक भक्त को भगवान शिव की पूजा करनी ही पड़ेगी, क्योंकि भगवान शिव हमारे शरीर के पांच मुख्य प्रधानों में से एक हैं जिन्हें हम *हृदय कमल* कहते हैं। इस कमल में 12 पंखुड़ियाँ होती हैं। यह कमल शरीर के दोनों स्तनों के बीच रीढ़ में होता है। इसमें भगवान शिव के साथ माता पार्वती रहती हैं। लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हम जो विधि अपनाते हैं, वह किसी वेद, शास्त्र आदि में प्रमाणित नहीं है। जैसे: भांग, धतूरा, फूल चढ़ाना, कांवर लेने जाना, तीरथ जल में स्नान करना और व्रत रखना आदि अनुष्ठान स्पष्ट रूप से वर्जित हैं। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में मना किया है कि हे अर्जुन! यह योग (भक्ति) न तो अधिक खाने वाले का है और न ही बिल्कुल न खाने वाले का है, अर्थात जो उपवास करता है, अधिक सोता है और अधिक नहीं जागता, उसकी यह भक्ति सफल नहीं होती। इस श्लोक में व्रत रखना पूर्णतः वर्जित है। शिवपुराण, वेद, शास्त्र आदि में “ॐ नमः शिवाय”, राम राम, हरे कृष्ण, सीता राम, मंत्रों का कहीं उल्लेख नहीं है।

श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 16, श्लोक 23 में लिखा है कि जो लोग पवित्र शास्त्रों के अनुसार पूजा नहीं करते, वे मूर्ख हैं। उन्हें उस पूजा से कभी कोई लाभ नहीं मिलता।

जो व्यक्ति ब्रह्म के एकाक्षरी मंत्र ॐ का उच्चारण करता है और मेरा स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता है, वह परम मोक्ष को प्राप्त करता है।

ॐ मंत्र ब्रह्म का है, जो इस मंत्र का जाप करता है, वह ब्रह्म लोक नामक परम मोक्ष को प्राप्त करता है।

गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा गया है कि ब्रह्म लोक सहित सभी लोक पुनरावृत्ति में हैं, अर्थात ब्रह्म लोक में गए प्राणी भी जन्म-मृत्यु के चक्र में हैं।

गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता नेकहा है कि तत्वदर्शी संत की खोज करो (अर्थात गीता ज्ञान दाता को भी पूर्ण ज्ञान नहीं है)। अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में इसके पश्चात (तत्वदर्शी संत की खोज) परमात्मा के परमपद अर्थात् सतलोक की अच्छी तरह खोज करनी चाहिए, जहाँ जाने वाले भक्त फिर कभी लौटकर संसार में नहीं आते तथा मैं उस अविनाशी पूर्ण परमात्मा (अर्थात गीता ज्ञान दाता से भी बड़ा परमात्मा) की शरण में हूँ, जिससे सृष्टि तथा ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है। उस परमात्मा की भक्ति पूर्ण निश्चय के साथ करनी चाहिए।

गीता में ॐ मंत्र ब्रह्मा के लिए बताया गया है पर हम भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं

किन्तु *”हिंदू साहेबान! नही समझे गीता वेद पुराण “* पुस्तक में नीचे लिखी वाणी के माध्यम से भगवान शिव के मंत्र का अलग उल्लेख किया गया है, परन्तु हम इस मंत्र का जाप शास्त्रानुसार भक्ति बताने वाले गुरु बनाकर ही कर सकते हैं,🙄

गरीब, हम वेरागी ब्रह्म पद, सन्यासी महादेव।

सोहम मंत्र दिया शंकर को, करें हमारी सेव।।

यही प्रमाण गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में है। गीता ज्ञान दाता ब्रह्म (क्षर पुरुष/काल) कह रहा है कि प्रकृति (दुर्गा) मेरी पत्नी है। मैं (गीता ज्ञान दाता श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में स्वयं को महाकाल कह रहा है) उसकी योनि में बीज स्थापित करता हूँ, जिससे सभी जीव उत्पन्न होते हैं। मैं सबका (इक्कीस ब्रह्माण्डों के जीव) पिता हूँ तथा प्रकृति (दुर्गा/अष्टंगी) सबकी माता है। इस दुर्गा (प्रकृति/अष्टंगी) से उत्पन्न तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) अन्य जीवों को कर्मों के बन्धन में बाँधते हैं।

 

मैंने यह सब *”हिन्दू साहेबान! नही समझे गीता, वेद, पुराण”* में पढ़ा तथा समझा। फिर हिन्दू धर्म के सभी पवित्र शास्त्रों से प्रमाण मिलाया जो बिल्कुल सही निकला।

मुझे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि आज तक मैंने जितनी भी भक्ति की थी वह सब गलत है, क्योंकि यह हमारे वेद, शास्त्र, पुराण आदि से प्रमाण सहित बता रहे है। मुझे बहुत दुःख हुआ, पर मुझे यह खुशी है कि अब मैं शास्त्र अनुकूल भक्ति करूंगा

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